सुनीता काम्बोज
जन्म : जिला- करनाल (हरियाणा) भारत ।
विधा : ग़ज़ल, छन्द, गीत, बालगीत, भजन एवं हरियाणवी भाषा में ग़ज़ल व गीत, हाइकु, सेदोका, चोका, क्षणिका, आलेख, समीक्षा एवं व्यंग्य ।
शिक्षा : हिन्दी और इतिहास में परास्नातक ।
प्रकाशन :अनभूति (काव्य-संग्रह), किनारे बोलते हैं (ग़ज़ल-संग्रह )
ब्लॉग : मन के मोती ।
सम्प्रति – स्वतंत्र लेखन
राष्ट्रीय, एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में निरंतर कविताओं और ग़ज़लों का प्रकाशन-अनन्तिम, वीणा, अभिनव बालमन, कालचक्र, पंखुड़ी, गर्भनाल, अभिनव इमरोज, जगमग दीप ज्योति, सरस्वती सुमन, शोध दिशा, बाबू जी का भारत मित्र, प्रकृति दर्शन, गतिमान, साहित्य वाटिका, अर्बाबे क़लम, सेतु, लोकमत, हरिगंधा (हरियाणा साहित्य अकादमी ), बाल किलकारी (बिहार बाल भवन), इन्दु संचेतना (चीन), अम्स्टेल गंगा (नीदरलैंड ), हिन्दी चेतना (कनाडा), विभोम स्वर, निभा, गुफ़्तगू , अट्टहास, ग़ज़ल के बहाने, आदिज्ञान, अग्रिमान, शैलसूत्र, शाश्वत सृजन, नया अध्याय, ललित प्रकाश, दैनिक जागरण, विजय दर्पण टाइम्स, कविता अविराम, दुनिया गोल-मटोल, प्रणाम पर्यटन, कविताम्बरा , अभिनव बालमन, प्रखर पूर्वांचल समाचार पत्र आदि
ब्लॉग- सहज साहित्य, पतंग, हिन्दी हाइकु, त्रिवेणी, उदंती, ज्योति कलश, भारत दर्शन, साहित्य सुधा, वैब दुनिया, जय विजय, समकालीन क्षणिका, हस्ताक्षर, कविताकोश, कहानियाँ डाट कॉम, साहित्य, शिल्पी, हिन्दी विद्या, पूर्वांचल, रचनाकार आदि।
विश्व पुस्तक मेले में कविताकोश द्वारा आयोजित कार्यक्रम में प्रस्तुति।
प्रस्तुति- डी.–डी. दूरदर्शन पंजाबी एवं अन्य हिन्दी कार्यक्रमों में कविता पाठ ।
ईमेल –sunitakamboj31@gmail.com
मेरे बस की बात नहीं
दरबारों में वन्दन करना
मेरे बस की बात नहीं
मरने के पहले ही मरना
मेरे बस की बात नहीं
जो अखरेगा बिन बोले मैं
कभी नहीं रह पाऊँगी
मेरा रुख मत मोड़ तुम्हारे
साथ नहीं बह पाऊँगी
कच्ची माटी का घट भरना
मेरे बस की बात नहीं
तेरी हाँ में, हाँ बोलूँगी
ये उम्मीद नहीं करना
करूँ खिलाफत, सारे जग की
अगर सही, तुम मत डरना
तूफ़ानी लहरों से डरना
मेरे बस की बात नहीं
एक तमन्ना, जाऊँ जग से
ये ख़ुद्दारी साथ चले
खुद से कोई रहे न शिकवा
जब ये जीवन शाम ढले
माटी की कश्ती में तरना
मेरे बस की बात नहीं
मेरे बस की बात नहीं
4 टिप्पणियां:
आपने मेरी रचना को ब्लॉग पर स्थान दिया इसके लिए समस्त सम्पादन मण्डल का हृदयतल से आभार🙏🙏🙏
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई व शुभकामनाएँ स्वीकार करें.
बहुत खूब
---सुन्दर रचना -----जो न कह सके सत्य उठा सिर, उसको मानव कौन कहे ----
---खुद से कोई रहे न शिकवा
जब ये जीवन शाम ढले------क्या बात है -----अति सुन्दर कथ्य ----बधाई सुनीता जी --
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