शनिवार, 2 दिसंबर 2017

बदनाम रानियां -कहानी


बगल में बस की सीट पर बैठी खूबसूरत युवती द्वारा मोबाइल पर की जा रही बातचीत से मैं इस नतीजे पर पहुँच चूका था कि ये ज़िस्म फ़रोशी का धंधा करती है .एक रात के पैसे वो ऐसे तय कर रही थी जैसे हम सेकेंड हैण्ड स्कूटर के लिए भाव लगा रहे हो .टाइट जींस व् डीप नेक की झीनी कुर्ती में उसके ज़िस्म का उभरा हुआ हर अंग मानों कपड़ों से बाहर निकलने को छटपटा रहा था .न चाहते हुए भी मेरी नज़र कभी उसके चेहरे पर जाती और कभी ज़िस्म पर .मोबाइल पर बात पूरी होते ही उसने हाथ उठाकर ज्यूँ ही अंगड़ाई ली त्यूं ही उस बस में मौजूद हर मर्द का ध्यान उसकी ओर चला गया . सबकी नज़रे उसके चेहरे और उसके ज़िस्म पर जाकर टिक गयी .शायद वो चाहती भी यही थी . वो बेखबर सी बनकर पर्स से लिपस्टिक निकाल कर दुसरे हाथ में छोटा सा आइना चेहरे के सामने कर होंठों को और रंगीन बनाने लगी . मेरे लिए बहुत ही असहज स्थिति थी . एक शरीफ मर्द होने के कारण मैं उससे थोड़ी दूरी बनाकर बैठना चाहता था पर दो की सीट होने के कारण ये संभव न था .उस पर वो युवती मुझसे सटकर बैठने में ही रुचि ले रही थी .
सड़क के गड्ढों के कारण एकाएक बस उछली और संभलते-संभलते भी उसके लिपस्टिक लगे होंठ मेरी सफ़ेद कमीज के कन्धों पर आ छपे .मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर उसके ''सॉरी'' कहते ही न जाने क्यों मेरे मर्दाना मन में कुछ गुदगुदी सी होने लगी . मैं चुप होकर बैठ गया और कहीं न कहीं मुझमें भी उसके प्रति या यूँ कहूँ उसके खूबसूरत ज़िस्म के पार्टी आकर्षण पैदा होने लगा . अविवाहित होने के कारण किसी लड़की की छुअन ने मेरे तन-मन दोनों को रोमांचित कर डाला जबकि मैं जानता था कि ये लड़कियां समाज में वेश्या-रंडी-छिनाल जैसी संज्ञाओं से विभूषित की जाती हैं . मैंने एक बार फिर से उसके चेहरे को गौर से देखा .बड़ी-बड़ी आँखें , गोरा रंग , धनुषाकार भौहें , होंठ के ऊपर काला तिल और सुडोल नासिका ...कुल मिलाकर गज़ब की खूबसूरत दिख रही थी वो . मैंने क्षण भर में ही अपनी नज़रें उसकी ओर से हटा ली तभी अचानक वो बिजली की सी रफ़्तार से सीट से खड़ी हुई और हमारी सीट के पास खड़े एक अधेड़ का गला दबोचते हुए बोली -'' क्या देखे जा रहा है हरामज़ादे इतनी देर से ......नंगी औरत देखनी है तो जा सिनेमा हॉल में ...परदे पर दिख जाएँगी तुझे ...खबरदार जो मेरी कुर्ती के अंदर झाँका .....नोट लगते हैं इसके ..समझा !!'' ये कहकर उसने धक्का देकर उसका गला छोड़ दिया .वो अधेड़ आदमी अपनी गर्दन सहलाता हुआ दूसरी ओर मुंह करके खड़ा हो गया और वो युवती फिर से और ज्यादा मुझसे सटकर सीट पर विराजमान हो गयी .
अब मैंने उसकी ओर ध्यान न जाये इसलिए अपना मोबाइल निकाला और व्हाट्सऐप पर जोक्स पढ़ने का नाटक करने लगा .सड़क के गड्ढों के कारण बस फिर से उछली और मैं मोबाइल संभालते हुए लगभग गिरने ही वाला था कि उस युवती ने अपनी नरम हथेलियों से मेरी बांह पकड़ कर मुझे सहारा दिया . पल भर को मन मचल गया -'' काश ये नरम हथेलियाँ यूँ ही मुझे थामे रहे '' पर तुरंत होश में आते हुए मैंने ''थैंक्स '' कहते हुए उसकी ओर देखा तो वो मुस्कुराकर बोली -'' तुम कुंवारे हो या शादीशुदा !'' मैं उसके इस प्रश्न पर सकपका गया .दिमाग में उत्तर आया -'' तुझसे मतलब '' पर जुबान विनम्र बनकर बोली -'' अभी अविवाहित हूँ !' ये सुनते ही उस युवती ने जींस की जेब में से अपना विजिटिंग कार्ड निकालकर मेरे हाथ पर रखते हुए कहा -'' ये मेरा एड्रेस और नंबर है ...जब भी दिल चाहे आ जाना तेरी सारी आग बुझा दूँगी .'' मेरा दिमाग उसकी इस बात पर तेज़ाबी नफरत से भर उठा .मैं कड़वी जुबान में बोला -'' घिन्न नहीं आती तुम्हें अपने इस ज़िस्म से ..क्यों करती हो ऐसा गन्दा काम ? '' युवती मेरी बात पर ठठाकर हंस पड़ी और मेरे बालों को अपनी बारीक उंगलियों से हौले-हौले सहलाते हुए बोली -'' गन्दा काम ...क्या गन्दा है इसमें ? मेरा ज़िस्म है ...मैं कुछ भी करूँ...मर्द की हवस मिट जाती है और मेरे घर का चूल्हा जल जाता है ..क्या बुरा है ? रोज़ सुबह नहा-धो कर शुद्ध हो जाती हूँ मैं . अरे तुम सब मर्दों को तो मेरी जैसी औरतों का अहसानमंद होना चाहिए ..हम अपना बदन नोंचवा कर आदमी की अंदर की वासना को तृप्त न करें तो तुम जैसे नैतिकतावादियों की माँ-बहन-पत्नी-बेटी न जाने कब किसी दरिंदे की हवस की शिकार हो जाएँ ....खैर छोडो ये बकवास बातें ! ....तुम आना चाहो तो कार्ड पर लिखे मोबाइल नंबर पर कॉल कर देना ...उसी पर पैसे और दिन तय कर लेंगें .'' उसकी बातों ने मुझे गहरे अवसाद में डाल दिया था .अब मेरे बदन में रोमांच की जगह आक्रोश ने ले ली थी .मैं सोचने लगा -'' आखिर कैसे इसे समझाऊं कि वो जो कर रही है सही नहीं है पर उसके तर्क भी दमदार थे .आदमी नैतिकता का झंडा उठाये युगों-युगों से औरत को दो श्रेणियों में बांटता आया है -अच्छी औरत और बदजात औरत .देवी के आगे सिर झुकाने वाले कितने ही मर्दों ने उसकी प्रतिमूर्ति औरत के बदन को जी चाहे नोंचा-चूसा और उसके बाद उसे पतिता कहकर उसके मुंह पर थूककर चलते बने . न पीछे मुड़कर कभी देखा कि कहीं उस पतिता के गर्भ से तुम्हारी ही संतान ने जन्म न ले लिया हो !'' मेरे ये सोचते-सोचते उस युवती ने मेरे कंधें पर हाथ रखते हुए बड़ी अदा के साथ पूछा -'' कहाँ खो गए चिकने बाबू ? देखो मेरे भी कुछ उसूल हैं .मैं मर्द से पहले ही पूछ लेती हूँ कि वो कुँवारा है या शादीशुदा .यदि वो शादीशुदा है तो मैं उसके साथ डील नहीं करती क्योंकि मुझे उन सती -सावित्रियों से नफरत है जो अपने मर्दों को तो संभाल नहीं पाती और हुमजात औरतों को बदनाम करती हैं कि हमने उनके मर्दों को फंसा लिया . मैं केवल कुंवारे मर्दों से डील करती हूँ . कार्ड पर मेरा नाम तो पढ़ ही लिया होगा .मेरा असली नाम रागिनी है जिसे मैंने कार्ड पर '' रानी '' छपवाया है .दिन में मैं एक दफ्तर में काम करती हूँ जहाँ और महिला सहकर्मियों की तुलना में मुझे ज्यादा वेतन मिल जाता है क्योंकि मैं बॉस और उसके क्लाइंट्स द्वारा मेरे जिस्म से खिलवाड़ करने से नाराज़ नहीं होती ..नाराज़ होकर कर भी क्या लूंगी ..वे मुझे दो दिन में बाहर का रास्ता दिखा देंगें और रात को मैं अनजान मर्दों की हवस को शांत करने की मशक्कत करती हूँ .इसमें मिलने वाले पैसों का कोई हिसाब नहीं .अभी मैं चौबीस साल की हूँ ...मेरे पास पैसे कमाने के करीब-करीब उतने ही साल हैं जितने किसी क्रिकेट खिलाडी के पास होते हैं ..मतलब करीब सोलह साल और ......चालीस के बाद कौन मेरे इस जिस्म का खरीदार मिलेगा ! मुझे इन्ही सोलह सालों में अपने बैंक-बैलेंस को बढ़ाना हैं ताकि चालीस के बाद मैं भूखी न मरूं .'' युवती बहुत सहज भाव में ये सब कह गयी पर मुझे एक-एक शब्द ऐसा लगा जैसे कोई मेरे कानों में गरम तेल उड़ेल रहा हो . मैं कहना चाहता था -'' बंद करो ये सब ...चुप हो जाओ ...ऐसी बातें सुनकर मुझे लग रहा है कि एक मर्द होने के कारण मैं भी तुम जैसी औरतों का अपराधी हूँ .आखिर मर्द इतना कमजोर कैसे हो सकता है ? अपनी बहन-बेटी-पत्नी-माँ की अस्मिता की रक्षा हेतु सचेष्ट मर्द अन्य औरतों को क्यों मात्र एक मादक बदन मानकर उसका मनमाना उपभोग करने को आतुर है .'' तभी एक झटके के साथ बस रूक गयी और वो युवती सीट पर से खड़ी हो गयी . उसे शायद यहीं उतरना था .अपना पर्स उठाकर वो चलते हुए मुझसे बोली -'' सॉरी तेरा बहुत दिमाग खाया पर यकीन कर यदि मेरे साथ एक रात बिताएगा तो मैं तेरे सारे शिकवे-गिले दूर कर दूँगी .'' ये कहकर उसने झुककर मेरे गाल पर किस चिपका दिया और तेजी से आगे बढ़कर बस से उतर गयी . मैं भी न जाने किस नशे में उसके पीछे -पीछे वहीं उतरने लगा . बस से उतर कर मैंने चारो ओर देखा तो वो कहीं नज़र न आई . मुझे खुद पर आक्रोश हो आया -'' आखिर कितना कमजोर है मेरा चरित्र जो एक कॉल-गर्ल के पीछे गंतव्य से पूर्व ही बस से उतर लिया ...अरे उसके लिए तो मैं केवल एक रात का साथी मात्र हूँ जो उसके मनचाहे पैसे देकर उसके जिस्म का उपभोग कर सकता हूँ ....पर क्या मैं भी और मर्दों की भांति एक औरत के जिस्म को एक रात में नोच -खसोट कर अपनी हवस पूरी कर पाउँगा ....या अपनी ही नज़रों में गिर जाऊंगा कि मैंने भी औरत को केवल एक जिस्म माना ....नहीं .मैं ऐसा कभी नहीं कर पाउँगा ..मैं उसके तर्कों के आगे झुककर ये मानता हूँ कि यदि ये कॉल-गर्ल न होती तो समाज में इज़्ज़त के साथ रह रही महिलाओं की अस्मिता खतरे में पड़ जाती क्योंकि मर्द की हवस की आग वेश्यालयों में शांत न की जाती तो घर-बाहर हर जगह बहन-बेटियों को दबोचने का सिलसिला जारी रहता पर कब तक ऐसी रानियां खुद बदनाम होकर अपने बदन को दरिंदों के हवाले करती रहेंगी ...मर्द भी कभी कुछ करेगा या नहीं ? शरुआत मुझे खुद से करनी होगी .'' ये सोचते हुए मैंने रानी का दिया कार्ड टुकड़े-टुकड़े कर डाला और हवा में उछाल दिया .
शिखा कौशिक 'नूतन '

3 टिप्‍पणियां:

Shalini kaushik ने कहा…

बहुत सार्थक लेखन है आपका

सुशील कुमार जोशी ने कहा…

बेबाक लेखन । यही सच है ।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (03-12-2017) को "दिसम्बर लाता है नया साल" (चर्चा अंक-2806) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'