तीन तलाक के खिलाफ लोकसभा से बिल पारित किए जाने के ठीक बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हज यात्रा को लेकर मुस्लिम महिलाओं के हक में आवाज उठाई है। पुरुष अभिभावक के बिना महिलाओं के हज यात्रा पर रोक को भेदभाव और अन्याय बताते हुए पीएम ने कहा कि उनकी सरकार ने इसे खत्म कर दिया है। पीएम ने साल के अंतिम 'मन की बात' में कहा कि मुस्लिम महिलाएं अब पुरुषों के बिना भी हज यात्रा पर जा सकती हैं। मुस्लिम महिलाओँ को लेकर प्रधानमंत्री मोदी जी कुछ ज्यादा ही सक्रिय हैं और पहले तीन तलाक के मुद्दे पर वे मुस्लिम महिलाओँ का साथ देते नज़र आये और अब वे महिलाओँ के अभिभावक के साथ के बिना हज पर जाने को लेकर उन्हें ललचाते नज़र आ रहे हैं लेकिन ये सब करते हुए वे मुस्लिम महिलाओँ के लिए कुरान में दिए गए निर्देशों की तरफ तनिक भी ध्यान नहीं दे रहे हैं जबकि स्वयं मुस्लिम महिलाओँ के अनुसार ''चलना तो हमें पाक कुरान के हुकुम के अनुसार ही है '' और कुरान में महिलाओँ के लिए कहा गया है -
सर्वप्रथम -
फुक़हा इस बात पर सहमत हैं कि पत्नी के लिए - बिना किसी ज़रूरत या धार्मिक कर्तव्य के - अपने पति की अनुमति के बिना बाहर निकलना हराम (निषिद्ध) है। और ऐसा करने वाली पत्नी को वे अवज्ञाकारी (नाफरमान) पत्नी समझते हैं।
‘‘अल-मौसूअतुल फिक़हिय्या’’ (19/10709) में आया है कि :
‘‘मूल सिद्धांत यह है कि महिलाओं को घर में ही रहने का आदेश दिया गया है, और बाहर निकलने से मना किया गया है ... अतः उसके लिए बिना उसकी - अर्थात पति की - अनुमति के बाहर निकलना जायज़ नहीं है।
इब्ने हजर अल-हैतमी कहते हैं : यदि किसी महिला को पिता की ज़ियारत के लिए बाहर निकलने की ज़रूरत पड़ जाए, तो वह अपने पति की अनुमति से श्रृंगार का प्रदर्शन किए बिना बाहर निकलेगी। तथा इब्ने हजर अल-असक़लानी ने निम्न हदीस :
(''अगर तुम्हारी औरतें रात को मस्जिद जाने के लिए अनुमति मांगें तो तुम उन्हें अनुमति प्रदान कर दिया करो।’’ )
पर टिप्पणी के संदर्भ में इमाम नववी से उल्लेख किया है कि उन्हों ने कहा : इससे इस बात पर तर्क लिया गया है कि औरत अपने पति के घर से बिना उसकी अनुमति के नहीं निकलेगी, क्योंकि यहाँ अनुमति देने का आदेश पतियों से संबंधित है।’’ संक्षेप के साथ ‘‘अल-मौसूआ’’ से उद्धरण समाप्त हुआ।
दूसरा -
और इसी के समान वह लड़की भी है जो अपने वली (अभिभावक) के घर से उसकी अनुमति के बिना निकलती है। अगर उसका अभिभावक उसकी शादी करने के मामले का मालिक है, तो वह उसके सभी मामलों में उसके ऊपर निरीक्षण करने का तो और अधिक मालिक होगा। और उन्हीं में से यह भी है कि : वह उसे अपने घर से बाहर निकलने की अनुमति दे, या अनुमति न दे ; विशेषकर ज़माने की खराबी, भ्रष्टाचार और परिस्थितियों के बदलने के साथ। बल्कि वली (अभिभावक) पर - चाहे वह बाप हो या भाई - अनिवार्य है कि वह इस ज़िम्मेदारी को उठाए, और उसके पास जो अमानत (धरोहर) है उसकी रक्षा करे, ताकि वह अल्लाह तआला से इस हाल में मिले कि उसने अपनी बेटी को सभ्य बनाया हो, उसे शिक्षा दिलाई हो और उसके साथ अच्छा व्यवहार किया हो। तथा लड़की पर अनिवार्य है कि वह इस तरह की चीज़ों में, और भलाई के सभी मामले में उसका विरोध न करे, और अपने घर से अपने अभिभावक की अनुमति के बिना बाहर न निकले।
और ऐसे में मोदी जी उन्हें हज पर अभिभावक के बिना जाने की आज़ादी दिलवा रहे हैं क्या वे नहीं जानते कि इस भारतीय समाज में औरतों की स्थिति कितनी ख़राब है ,मुस्लिम समाज तो आज तक पिछड़ेपन को अपनाये हुए है और ऐसे में उसमे महिलाओँ की स्थिति बद से बदतर हुई जा रही है और ऐसा नहीं है कि मुस्लिम महिलाओँ की इच्छाओं के खिलाफ ऐसा हो रहा है ,ये सब उनकी इच्छाओं को अनुसार ही हो रहा है और उन्होंने पाक कुरान का आदेश मानकर इन परम्पराओं को अपनाया हुआ है और जब कोई अपना सुधार खुद ही न चाहे तो उसका कोई कुछ नहीं कर सकता ,
न केवल मुस्लिम महिला बल्कि हिन्दू महिला की स्थिति भी कुछ बेहतर नहीं है और वे भी आज अपने आदमी से मार खाना बुरा नहीं समझती हैं और यही कारण है कि आदमी औरत को अपने पिंजरे का पंछी ही मानता है ,हमारी फ़िल्में इसका जीता जागता सबूत हैं जिनमे ख़ुशी से गाया जाता है -
''शादी के लिए रजामंद कर ली ,
मैंने एक लड़की पसंद कर ली ,
अब ध्यान दीजिये -
''उड़ती चिड़िया पिंजरे में बंद कर ली
मैंने एक लड़की पसंद कर ली ''
ऐसे ही -
''तेरे लिए चाँदी का बंगला बनाऊंगा
बंगले में सोने का ताला लगाऊंगा
ताले में हीरे की चाबी लगाऊंगा ''
मतलब कुछ भी है यही है कि औरत आदमी के लिए बंद रखने की एक चीज़ है और औरत इस सबके बाद भी उसी मर्द की पूजा करती है उसके व्यव्हार को अपना भाग्य मानती है ,उदाहरण के लिए यशोदा बेन हैं जिन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने त्याग दिया और उन्होंने अपना सारा जीवन मोदी जी की भक्ति में लगा दिया मोदी जी के प्रधानमंत्री बनने पर यशोदा बेन को आशा जगी भी कि शायद उनका वनवास समाप्त हो जाये किन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ लेकिन मोदी जी स्त्री स्वतंत्रता के पक्षधर हैं ये उन्होंने साबित भी किया है यशोदा बेन को छोड़कर ,न कि मुस्लिम या अन्य महिलाओँ को सामाजिक स्थिति के अनुसार बंदिनी बनाकर ,ये तो स्त्री मन है जो स्वयं बंदिशें स्वीकार करता है और उन्हें निभाता है और उसके द्वारा सब कुछ निभाने के बावजूद पुरुष मन अपने द्वारा अत्याचार की सारी हदें पार करा देता है ,
ऐसे में ,हमें आवश्यकता होती है ऐसे मार्गदर्शक की जिसने अपने जीवन में ऐसे उदाहरण को अपनाया हो और तभी अपने जैसा कुछ करने की प्रेरणा औरों को दी हो और प्रधानमंत्री मोदी जी के द्वारा अपने मन की बात में औरतों को अभिभावक के बिना जाने की बात कहना इसलिए संग्रहणीय है क्योंकि जब औरत को अभिभावक के बगैर छोड़ दिया जायेगा तब धार्मिक कर्तव्य निभाने के लिए उसे स्वयं ही तो जाना होगा ,कम से कम किसी ऐसे अभिभावक की तरफ तो नहीं देखना होगा जिसने उसे त्याग दिया हो और पाक कुरान के नियमों को न समझते हुए मोदी जी मुस्लिम महिलाओँ की स्थिति यशोदा बेन वाली ही करने जा रहे हैं ,
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
4 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (02-01-2018) को नववर्ष "भारतमाता का अभिनन्दन"; चर्चा मंच 2836
पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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नववर्ष 2018 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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उत्कृष्ट व प्रशंसनीय प्रस्तुति........
नववर्ष 2018 की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ नई पोस्ट पर आपके विचारो का इंतजार।सादर...!
शालिनी जी----छोड़ने एवं संन्यास लेने में अंतर है .....बड़े उद्देश्य के लिए यह करना पहले भी होता रहा है ...देश के लिए कार्य एक बहुत बड़ा उद्देश्य है ...हिन्दू धर्म में दोनों ही रास्ते हैं ...ब्रह्मचारी -सन्यास या गृहस्थ----स्त्री व पुरुष दोनों के ही लिए....आपने सरस्वती चन्द्र फिल्म देखी ही होगी ....
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