मैं नहीं कोमल कली सी, ना गरजती दामिनी,
हूं नहीं तितली सी चंचल, ना ही मैं गजगामिनी,
ना मैं देवी, ना परी, ना ही हूं मैं दानवी,
मैं सरल साक्षात नारी, मात्र हूं मैं मानवी,
मैं गगन में नित चमकती तारिका नहीं हूँ !
मैं तुम्हारे काव्य की नायिका नहीं हूँ !
है नहीं मुझ पर समय कि केश सज्जा मैं करूं,
आईने के सामने बैठकर सजती रहूं,
तोड़ती पत्थर मैं, धूप में प्रहार से,
ढ़ो रही सिर धर के ईटें, दब रही हूँ भार से,
श्रंगार रस प्रसार की सहायिका नहीं हूँ !
मैं तुम्हारे काव्य की नायिका नहीं हूँ !
हां गृहस्थी के लिए दिन रात मैं खटती रही,
जिंदगी चूल्हे आगे ही मेरी कटती रही,
कब गृहस्थन बैठ सकती मेंहदी लगाकर हाथ में ?
कूटने दिन में मसाले, चौका बरतन रात में,
प्रेम राग गाने वाली गायिका नहीं हूँ !
मैं तुम्हारे काव्य की नायिका नहीं हूँ !
हूँ नहीं मुग्धा कोई जो चित्त का कर लूं हरण,
ना ही कर पल्लव नरम, न फूल से मेरे चरण,
मानिनी बनकर कभी खुद पर नहीं करती अहम,
हां सहज ही भाव से कर्तव्यों को करती वहन,
मैं विलास इच्छुक अभिसारिका नहीं हूँ !
मैं तुम्हारे काव्य की नायिका नहीं हूँ !
शिखा कौशिक नूतन
हूं नहीं तितली सी चंचल, ना ही मैं गजगामिनी,
ना मैं देवी, ना परी, ना ही हूं मैं दानवी,
मैं सरल साक्षात नारी, मात्र हूं मैं मानवी,
मैं गगन में नित चमकती तारिका नहीं हूँ !
मैं तुम्हारे काव्य की नायिका नहीं हूँ !
है नहीं मुझ पर समय कि केश सज्जा मैं करूं,
आईने के सामने बैठकर सजती रहूं,
तोड़ती पत्थर मैं, धूप में प्रहार से,
ढ़ो रही सिर धर के ईटें, दब रही हूँ भार से,
श्रंगार रस प्रसार की सहायिका नहीं हूँ !
मैं तुम्हारे काव्य की नायिका नहीं हूँ !
हां गृहस्थी के लिए दिन रात मैं खटती रही,
जिंदगी चूल्हे आगे ही मेरी कटती रही,
कब गृहस्थन बैठ सकती मेंहदी लगाकर हाथ में ?
कूटने दिन में मसाले, चौका बरतन रात में,
प्रेम राग गाने वाली गायिका नहीं हूँ !
मैं तुम्हारे काव्य की नायिका नहीं हूँ !
हूँ नहीं मुग्धा कोई जो चित्त का कर लूं हरण,
ना ही कर पल्लव नरम, न फूल से मेरे चरण,
मानिनी बनकर कभी खुद पर नहीं करती अहम,
हां सहज ही भाव से कर्तव्यों को करती वहन,
मैं विलास इच्छुक अभिसारिका नहीं हूँ !
मैं तुम्हारे काव्य की नायिका नहीं हूँ !
शिखा कौशिक नूतन
6 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर...।
मानिनी बनकर कभी खुद पर नहीं करती अहम....।
बही ही सुन्दर...
हार्दिक धन्यवाद सुधा जी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (21-05-2017) को
"मुद्दा तीन तलाक का, बना नाक का बाल" (चर्चा अंक-2634)
पर भी होगी।
--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
Bhut acche keep posting keep visiting on www.kahanikikitab.com
वाह मै नायिका नहीँ हूँ ...सत्य और सीधी बात ..
👏👏👏👏👏
नारी तुम हो एक सम्पूर्ण इकाई
bahut bahut dhnyvad INDIRA ji
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