मां तेरी तस्वीर के आगे ठहर जाती हूँ मैं,
टूट कर माला के मोती सी बिखर जाती हूँ मैं!
है नहीं मालूम कैसे जी रही तेरे बिना,
जिंदगी के सब गमों का पी जहर जाती हूँ मैं!
गौर से मैं देखती हूँ जब कभी मां आईना,
हूबहू तब तेरे जैसी ही नजर आती हूँ मैं!
अब नहीं मिल पायेंगी मां की नरम वो थपकियां,
सोचकर ऐसा ही कुछ कितनी सिहर जाती हूँ मैं!
तुम बसी 'नूतन' के दिल में क्या कहूं इसके सिवा,
हां दुआयें याद कर अब भी निखर जाती हूँ मैं!
शिखा कौशिक नूतन
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