मंगलवार, 24 नवंबर 2015

''दर्द दिल में है तेरे हम जानते हैं !''



दर्द दिल में है तेरे हम जानते हैं !
ज़ख्म गहरे हैं तेरे हम जानते हैं !
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ग़मों की आग में तपकर मासूम सा ये दिल ,
धधकता सीने में तेरे हम जानते हैं !
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छलक आते हैं आसूँ  आँखों में बेशरम ,
नहीं बस में हैं तेरे हम जानते हैं !
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तज़ुर्बा कह रहा हमसे वफ़ा का है सिला धोखा ,
नहीं कुछ हाथ में तेरे हम जानते हैं !
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क्यों सदमा सा लगा तुझको हकीकत जानकर 'नूतन'
नहीं कोई साथ है तेरे हम जानते हैं !


शिखा कौशिक 'नूतन'

सभी ब्लॉगर मित्रों को नमस्कार
बहुत दिन बाद आप मित्रों के सम्मुख आने का मौका मिला , मित्रों नव प्रकाशित हिंदी मासिक पत्रिका "ह्यूमन टुडे " को सम्पादन करने की जिम्मेदारी मिली है. ऐसे में आपलोगों की याद आनी स्वाभाविक है. भले ही इतने दिनों तक गायब रहा लेकिन आपसे दूर नहीं , मैं चाहता हूँ की जो ब्लॉगर मित्र अपनी रचनाओ के माध्यम से मुझसे जुड़ना चाहते है , मै  उनका सहर्ष स्वागत करता हूँ।  सामाजिक सरोकारों से जुडी इस पत्रिका में आपकी रचनाओ का स्वागत है , जो मित्र मुझसे जुड़ना चाहते हैं वे अपनी रचनाएँ मुझे मेल करें। ।
humantodaypatrika@gmail.com
रचनाएँ राजनितिक , सामाजिक व् ज्ञानवर्धक हो। कविता , कहानी व विभिन्न विषयो पर लेख आमंत्रित।
harish singh ---- editor- Humantoday

बुधवार, 11 नवंबर 2015

''इस अमावस को बदल दें चांदनी की रात में ''


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इस बार दीपक वे जगें ,फैले उजाला प्यार का ,
अंत हो इस मुल्क में मज़हबी तकरार का !
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हो मिठाई से भी मीठा , मुंह से निकले बोल जो ,
ये ही मौका है मोहब्बत के खुले इक़रार का !
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इस अमावस को बदल दें चांदनी की रात में ,
तब मज़ा आएगा असली दीपों के त्यौहार का !
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नफ़रतें मिट जाएँ सारी , फिरकापरस्ती दफ़न हो ,
इस दीवाली काट देंगें सिर हर एक गद्दार का !
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अब दिलों में झिलमिलाएँ प्रेम से रोशन दिए ,
कारोबार ठप्प हो 'नूतन' नफरत-ए-बाजार का !

शिखा कौशिक 'नूतन'