शुक्रवार, 28 अगस्त 2015

राखी व रक्षाबंधन पर्व के निहितार्थ ... डा श्याम गुप्त..

राखी व रक्षाबंधन पर्व के निहितार्थ ... डा श्याम गुप्त..

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                              बहना ने भाई की कलाई पर प्यार बांधा है '... रक्षाबंधन भाई-बहन के शाश्वत प्रेम का प्रतीक है | क्या यह सिर्फ अपने भाई, अपनी बहन के प्रेम का प्रतीक है ? क्या भाई द्वारा अपनी बहन की रक्षा हेतु राखी का बंधन अनिवार्य है, क्या राखी बांधे बिना भाई बहन की समय पर सहायता करना भूल जायगा ? कैसे हो सकता है ? राखे बंधे या न बंधे भाई तो अपनी बहन की रक्षा करेगा ही | फिर रक्षाबंधन का क्या महत्त्व ?

                                 क्या भाई को केवल बहन की ही रक्षा करना चाहिए ...पुत्र को माँ की या पिता की नहीं, या पिता को पुत्री की, पति को पत्नी की नहीं | वास्तव में यह सिर्फ भाई द्वारा बहन की रक्षा का ही नहीं अपितु प्रत्येक पुरुष द्वारा प्रत्येक स्त्री की ...प्रत्येक बहन..बहनों की रक्षा हेतु स्वयं बंधन- संकल्प का पर्व है | परिवार, पडौस, समाज की, नगर की, ग्राम की, विश्व की प्रत्येक महिला, स्त्री, बच्ची को बहन की निगाहों से देखने के संकल्प का पर्व है |
प्रत्येक पुरुष को सभी स्त्रियों को माँ-बहन की भांति देखना चाहिए | यद्यपि छोटी बच्ची को माँ न कहा जासके ( यद्यपि पुरा काल में सभी स्त्रियों को माँ कहकर ही पुकारा जाता था चाहे छोटी हो या बड़ी --आज भी भारत के दक्षिण के राज्यों में हर उम्र की स्त्री को माँ या अम्मा कह कर पुकारा जाता है...चाहे अपनी स्वयं की माँ को आई कहा जाता हो ..) परन्तु बहन के लिए कोइ उम्र सीमा नहीं होती ...एक वर्ष की बच्ची भी बहन हो सकती है ७० वर्ष की वृद्धा भी |
                                 इसीलिये आज का दिन यह संकल्प का है कि प्रत्येक पुरुष प्रत्येक स्त्री को बहन के समान समझे एवं उसी प्रकार व्यवहार करे ..उसके मान-सम्मान की रक्षा हेतु न सिर्फ स्वयं तत्पर रहे अपितु अन्य भी करें एवं उसका सामाजिक, मानसिक व शारीरिक उत्प्रीणन न हो यह सुनिश्चित करे | इसीलिये रक्षाबंधन को भाई-बहन का त्यौहार कहा जाता है |

                               यदि हम आज के दिन इस पर्व का वास्तविक निहितार्थ समझें, यथा भाव संकल्प करें तो निश्चय ही हम न किसी बच्ची, युवती, महिला का उत्प्रीणन करेंगे न होने देंगे तभी समाज में उच्च मानव आचरण , व्यावहारिक आदर्शों व संस्कारों की स्थापना होगी और हमारे समाज से स्त्रियों पर आये दिन होने वाले अनाचार,अत्याचार, उत्प्रीणन , हिंसा, बलात्कार , यौन उत्प्रीरणन ... आदि का कलंक मिट सकता है | यही एक मात्र उपाय है तभी हम इस पर्व को मनाने के सच्चे अधिकारी होंगे |

2 टिप्‍पणियां:

बेनामी ने कहा…

बहुत ही सुंदर लेख।

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद कहकशां