कैसे रंगे बनवारी
सोचि सोचि राधे हारी, कैसे रंगे बनवारी,
कोऊ तौ न रंगु चढ़े, नीले अंग वारे हैं |
बैजनी वैजंतीमाल, पीत पट कटि डारि,
ओठ लाल-लाल श्याम. नैन रतनारे हैं |
हरे बांस वंसी हाथ, हाथन भरे गुलाल ,
प्रेम रंग सन्यो कान्ह, केस कज़रारे हैं |
केसर अबीर रोरी, रच्यो है विसाल भाल,
रंग रंगीलो तापै, मोर-मुकुट धारे हैं ||
चाहें कोऊ रंगु डारौ, चढिहै न लालजू पे,
क्यों न चढ़े रंग, लाल, राधा रंगु हारौ है |
राधे कहो नीलु तन, चाहें स्याम-घन सखि !
तन कौ है कारौ, पै मन कौ न कारौ है |
जन कौ दुलारौ कहौ, सखियन प्यारौ कहौ,
तन कौ रंगीलौ कहौ, मन उजियारो है |
एरी सखि ! जियरा के प्रीति रंग ढारि देऊ,
श्याम रंग न्यारौ चढ़े, सांवरो नियारो है ||
1 टिप्पणी:
बहुत अद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति .पोस्ट दिल को छू गयी.......
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