जीव सृष्टि की
कहानी – नारी से सृष्टि सारी, नर से भारी नारी
सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी अत्यंत चिंतित व गंभीर समस्यारत थे कि मैं इस
प्रकार कब तक मानवों ,प्राणियों को बनाता रहूँगा कोई निश्चित स्वचालित प्रणाली
होनी चाहिए कि जीव स्वयं ही उत्पन्न होता जाये | वे समाधान सोचने में व्यस्त होगये
|
वास्तव में जीव की अदृष्ट
भाव-सृष्टि व रूप-सृष्टि—महत्तत्व, चेतन, त्रिगुण-सत तम रज, इन्द्रियाँ, मन, विविध
भाव रूप, गुण, भाव-शरीर आदि की सृष्टि के पश्चात ब्रह्मा ने वास्तविक दृश्य-भौतिक जीव
शरीर सृष्टि की उत्पत्ति प्रारम्भ की |
सर्व प्रथम ब्रह्मा ने चार मानस पुत्र –सनक,
सनंदन, सनातन, सनत्कुमार बनाए जो योग साधना में लीन होगये | पुनः संकल्प से नारद, भृगु, कर्म, प्रचेतस, पुलह, अन्गिरिसि, क्रतु, पुलस्त्य, अत्रि, मरीचि --१० प्रजापति बनाए..वे भी साधना लीन रहे .... पुनः संकल्प द्वारा....९ पुत्र- भृगु, मरीचि, पुलस्त्य, अंगिरा, क्रतु, अत्रि, वशिष्ठ, दक्ष, पुलह.. एवं -९ पुत्रियां --ख्याति, भूति , सम्भूति, प्रीति, क्षमा, प्रसूति आदि उत्पन्न कीं |
यद्यपि ये सभी संकल्प द्वारा संतति प्रवृत्त थे परन्तु कोई निश्चित, सतत स्वचालित प्रक्रिया व क्रम नहीं था ( सब एकान्गी थे--प्राणियों व वनस्पतियों में भी ), अतः ब्रह्मा का जीव-सृष्टि सृजन कार्य का तीब्र गति से प्रसार नहीं होरहा था अतः सृष्टि क्रम समाप्त नही हो पा रहा था | ब्रह्मा चिंतित व गंभीर समस्या के समाधान हेतु मननशील थे, कि वे इस प्रकार कब
तक मानवों, प्राणियों को बनाते रहेंगे .... कोइ निश्चित स्वचालित प्रणाली होनी
चाहिए कि जीव स्वयं ही उत्पन्न होता जाये एवं मेरा कार्य समाप्त हो |
चिन्तित ब्रह्मा ने पुनः प्रभु का स्मरण किया व तप किया--- तब उनके ललाट से अर्ध- नारीश्वर ( द्विलिन्गी) रूप में रूद्रदेव जो शम्भु- महेश्वर व माया का सम्मिलित रूप था, प्रकट हुए, जिसने स्वयम को
--क्रूर-सौम्या; शान्त-अशान्त; श्यामा-गौरी; शीला-अशीला आदि ११ नारी भाव एवम ११ पुरुष भावों में विभक्त किया। रुद्रदेव के ये सभी ११-११ स्त्री-पुरुष भाव सभी जीवों में समाहित हुए, ये 11-स्थायी भाव.....जो अर्धनारीश्वर भाव में उत्पन्न हुए ...क्रमश:
...१. रति, २. हास, ३. शोक, ४. क्रोध, ५. उत्साह, ६. भय, ७. घृणा, ८. विस्मय, ९.निर्वेद,. १०. संतान प्रेम, ११. समर्पण।... इस प्रकार काम सृष्टि का प्रादुर्भाव एवं लिंग चयन
हुआ।
उसी प्रकार ब्रह्मा ने भी स्वयम के दायें-बायें भाग से मनु व शतरूपा को प्रकट किया, जिनमे रुद्रदेव के ११-११ नर-नारी- भाव समाहित होने से वे प्रथम मानव युगल हुए। वे मानस, सन्कल्प व काम सन्कल्प विधियों से सन्तति उत्पत्ति में प्रव्रत्त थे, परन्तु अभी भी पूर्ण स्वचालित प्रक्रिया
नहीं थी।
-----पुनः ब्रह्मा ने मनु की काम सन्कल्प पुत्रियां आकूति व प्रसूति-को दक्ष को दिया। दक्ष को मानस-सृष्टि फ़लित नहीं थी अतः उसने काम-सम्भोग प्रक्रिया से ५००० व १०००० पुत्र उत्पन्न किये,परन्तु सब नारद के उपदेश से तपस्या को चले गये । -पुनः------- दक्ष ने प्रसूति के गर्भ से -सम्भोग, मैथुन जन्य प्रक्रिया से ६० पुत्रियों को जन्म दिया, जिन्हें सोम, अन्गिरा, धर्म, कश्यप व
अरिष्ट्नेमि आदि ऋषियों को दिया गया जिनसे मैथुनी क्रिया द्वारा, सन्तति से आगे स्वतः क्रमिक सृष्टि-क्रम चला, व चल रहा है | | अतः वास्तविक सृष्टि-क्रम दक्ष से माना जाता है।
प्रथम मैथुनी क्रम प्रसूति से चला अतः गर्भाधान को प्रसूति एवं जन्म को प्रसव कहा जाता है। शम्भु महेश्वर, इस लिन्गीय चयन व निर्धारण व काम-सम्भोग स्वतः उत्पत्ति
प्रणाली के मूल हैं अतः इस सृष्टि को "माहेश्वरी प्रज़ा या सृष्टि " कहाजाता है।
मानवेतर सृष्टि, देव, वनस्पति जगत, दानव व अन्य समस्त प्राणी-जगत का जन्म-----कश्यप ऋषि से उनकी विभिन्न पत्नियों से हुआ-- | संसार की सभी
मानवेतर जातियां इन्ही की संतानें मानी जाती हैं| इस प्रकार ब्रह्मा का सृष्टि सृजन यज्ञ सम्पूर्ण
हुआ
लौकिक कथाएं कि ब्रह्मा अपनी ही पुत्रियाँ
स्वरुप ...शतरूपा या सरस्वती पर आसक्त होगये निश्चय ही नारी भाव के काम भाव
संभवा सतत सृष्टि सृजन क्षमता की सफलता की गाथाएँ हैं|भला जब तक नारी-भाव की उत्पत्ति न होती स्वतः सृष्टि-क्रम कैसे प्रारम्भ हो सकता था? और कैसे होसकता था ब्रह्मा का सृष्टि-सृजन यज्ञ सम्पूर्ण |
1 टिप्पणी:
अच्छी जानकारी
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