रोज़ दस बलात्कार होते हैं हमारे उत्तर प्रदेश में ...इसलिए अगर बदायूं में दो दलित किशोरियों का बलात्कार करके उन्हें फांसी पर लटका दिया गया तो इसमें इतना शोर मचाने की क्या जरूरत है !कुछ ऐसा रवैय्या है हमारे प्रदेश की सरकार का .ऐसे में किसी भी तबके की महिलाएं हमारे प्रदेश में कितनी सुरक्षित हैं इसे बिना किसी जांच-पड़ताल के समझा जा सकता है .सवाल केवल सरकार का भी नहीं है ..सवाल है हमारे सामाजिक ढांचें का जिसमे उच्च जाति का मर्द दलित औरत की अस्मत लूटना कोई अपराध नहीं समझता .जब इतने बड़े अपराध को ये कहकर हवा में उड़ा दिया जाता है कि - ''लड़के हैं गलती हो जाती है '' तब इस वीभत्स अपराध को अंजाम देने वालों का हौसला कितना बढ़ जाता है इसका परिणाम है ऐसी घटनाएँ .सोच किस-किस की पलटी जाये ..सुधारी जाये ? यही बड़ा मुद्दा है .महिला होने की कीमत कब तक चुकानी होगी उसकी देह को ये कोई महिला नहीं जानती .महिला होना और दलित होना तो मानों पाप की श्रेणी में ही आता है .अब और क्या लिखें -
लुट रही अस्मत किसी की जनता तमाश बीन है ;
इंसानियत की निगाह में जुल्म ये संगीन है .
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चैनलों को मिल गयी एक नयी ब्रेकिंग न्यूज़ ;
स्टूडियों में जश्न है मौका बड़ा रंगीन है .
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अखबार में छपी खबर पढ़ रहे सब चाव से ;
पाठक भी अब ऐसी खबर पढने के शौक़ीन हैं .
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ये हवस की इंतिहा' है इससे ज्यादा क्या कहें ?
कर न लें औरत को नंगा ये मर्द की तौहीन है .
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बीहड़ बनी ग़र हर जगह कब तक सहेगी जुल्म ये ;
कई और फूलन आएँगी पक्का मुझे यकीन है .
शिखा कौशिक 'नूतन'