''ना ताई ...इब और ना ...''-लघु कथा
ताई ने घर में घुसते ही रो रोकर हंगामा खड़ा कर दिया -''हाय ...हाय ...मेरा बबलू ...दूसरी बार भी लौंडिया ही जनी इसकी बहू ने ...क्या भाग ले के आई यो बहू ...हे भगवन !! ...''. बबलू अन्दर कमरे से हँसता हुआ निकलकर आया और आते ही ताई के चरण-स्पर्श किये और आँगन में पड़ी खाट की ओर इशारा करते बोला -''ताई गम न मान मेरी दोनों बच्चियां ही कुल का नाम रोशन करेंगी .ये बता तुझे कोई तकलीफ तो न हुई सफ़र में ?'' ताई कड़कते हुए बोली -''अरे हट मरे ...मेरी तकलीफ की पूछे है !....तकलीफ तो तेरा फून आते ही हो गयी थी .बेटे इब ज्यादा दिन की ना हूँ मैं ...तेरे लाल का मुख देख लूँ बस इसी दिन की आस में जी रही हूँ .....चल इब की बेर ना हुआ अगली बेर जरूर होवेगा ...हिम्मत न हार .मैंने माई से मन्नत मांगी है .'' बबलू ताई के करीब खाट पर बैठते हुआ बोला -''ना ताई ...इब और ना ...दूसरा बच्चा भी बड़े ऑपरेशन से जना है तेरी बहू ने .....और तू ही तो बतावे थी कि मेरी माँ भी इसी चक्कर में मेरी बेर चल बसी थी .वो तो तू थी जिसने मेरी चारो बहनों व् मेरा पालन-पोषण ठीक से कर दिया ....ना ताई ना मैं अपनी बच्चियों को बिन माँ की न होने दूंगा !'' ये कहकर बबलू अन्दर से आती अपनी तीन वर्षीय बिटिया आस्था को गोद उठाने के लिए बढ़ लिया और ताई बड़बडाती रह गयी .
शिखा कौशिक 'नूतन '
4 टिप्पणियां:
very nice.
सच्ची, इब और ना।
बहुत सुन्दर लगा ... सुन्दर भाव ..
बधाई
भ्रमर५
achchhi laghukatha
badahi
rachana
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