स्त्री-शिक्षा व शोषण-चक्र
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यदि शिक्षा व स्त्री-शिक्षा के इतने प्रचार-प्रसार के पश्चात् भी शोषण व उत्प्रीणन जारी रहे तो क्या लाभ ? हमें बातें नहीं, कर्म पर विश्वास करना चाहिए, परन्तु यथातथ्य विचारोपरांत । यह
शोषण-उत्प्रीणन चक्र अब रुकना ही चाहिए । पर जब तक नारी स्वयं आगे नहीं आयेगी, क्या होगा, कुछ
नहीं ? नारी-शोषण में कुछ नारियां ही तो भूमिका में होती हैं । आखिर हीरोइनों को कौन विवश करता है
अर्धनग्न नृत्य के लिए ? चंद पैसे ही न । क्या कमाई का यह ज़रिया वैश्यावृत्ति का नया अवतार नहीं कहा
जा सकता ।
आखिर नारी क्या चाहती है ? नारी स्वातंत्र्य का क्या अर्थ हो ? मेरे विचार में स्त्री को भी पुरुषों
की भाँति सभी कार्यों की छूट होनी चाहिए । हाँ, साथ ही सामाजिक मर्यादाएं, शास्त्र मर्यादाएं व स्वयं स्त्री
सुलभ मर्यादाओं की रक्षा करते हुए स्वतंत्र जीवन का उपभोग करें । आखिर पुरुष भी तो स्वतंत्र है, परन्तु
शास्त्रीय, सामाजिक व पुरुषोचि मर्यादा निभाये बगैर समाज उसे भी कब आदर देता है । वही स्त्री के लिए भी
है । भारतीय समाज में प्राणी मात्र के लिए सभी स्वतन्त्रता सदा से ही हैं । हाँ, गलत लोग, गलत स्त्री तो हर
समाज में सदा से होते आये हैं व रहेंगे । इससे सामाजिक संरचना थोड़े ही बुरी होजाती है । अतः उसे कोसा
जाय , यह ठीक नहीं । और 'समाज को बदल डालो' यह नारा ही अनुचित है अपितु 'स्वयं को बदलो ' नारा
होना चाहिए । यही एकमात्र उपाय है आपसी समन्वय का एवं स्त्री-पुरुष, समाज-राष्ट्र व विश्व-मानवता की
भलाई व उन्नति का |
4 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज वृहस्पतिवार (22-06-2013) के "संक्षिप्त चर्चा - श्राप काव्य चोरों को" (चर्चा मंचः अंक-1345)
पर भी होगी!
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
bahut sarthak prastuti .aabhar
हिंदी ब्लॉगर्स चौपाल {चर्चामंच} के शुभारंभ पर आप को आमंत्रित किया जाता है। कृपया पधारें!!! आपके विचार मेरे लिए "अमोल" होंगें | आपके नकारत्मक व सकारत्मक विचारों का स्वागत किया जायेगा |
धन्यवाद शास्त्री जी, शालिनी एवं ललित जी ...
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