सोमवार, 12 अगस्त 2013

कुल का दीपक -लघु कथा


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ओमप्रकाश बाबू के घर में गर्मियों की छुट्टियाँ आते  ही रौनक आ गयी .विवाहित   बेटा  सौरभ  व्  विवाहित  बेटी  विभा  सपरिवार अपने पैतृक घर जो आ गए थे .ओमप्रकाश बाबू का पोता बंटी व् नाती चीकू हमउम्र थे और सारे दिन घर में धूम मचाते .एक  दिन चीकू दौड़कर विभा के पास  रोता हुआ पहुंचा और सुबकते हुए बोला -'' ''मम्मा  चलो  यहाँ से  .......बंटी कहता  है  ये  उसका  घर है  ...हम  मेहमान  हैं  .....उसने  नाना  जी  की बेंत  पर   भी  मुझे  हाथ  लगाने  से  मना  कर  दिया   ...बोला ये  उसके  बाबा  जी  की है  और वे  उसे   ही ज्यादा प्यार   करते   हैं   … क्योंकि वो उनके कुल का दीपकहै  ...चलो  अपने घर चलो  ...'' विभा ये सुनकर आवाक रह गयी .उसने चीकू के आँसूं पोछे और उसे बहलाकर इधर-उधर  की बातों में लगा दिया .उस दिन  से विभा का मूड कुछ उखड गया और वो तय प्रोग्राम को पलटकर जल्दी ससुराल लौट गयी .ससुराल आते ही उसने पाया उसकी ननद सुरभि ; जो उसी शहर में ब्याही  हुई थी ,अपने बेटे टिंकू के साथ  वहां आई हुई थी .विभा को आते देखकर सुरभि ने आगे बढ़कर उसे गले लगा लिया और चीकू टिंकू का हाथ पकड़कर इधर-उधर डोलने लगा .थोड़ी देर बाद टिंकू रोता हुआ आया और  सुरभि से लिपट गया .सुरभि के चुप कराने पर वो भरे गले से बोल -'' मॉम चीकू भैया ने मुझे बहुत डांटा...  मैंने नाना जी का एक  पेन उनके टेबिल से उठा  लिया तो  वो बोले कि ये उसके बाबा जी  का है और उनकी हर चीज़ उसकी है मेरी नहीं !'' पास बैठी विभा  टिंकू का  हाथ पकड़कर प्यार  से अपनी ओर खींचते हुए  उसके आंसू पोंछकर  बोली -'' ''बेटा ...चल मेरे साथ ...बता कहाँ हैं वो कुल का दीपक ...अभी लगाती हूँ उस के एक चांटा ....यहाँ हर चीज़ तुम्हारी  भी उतनी ही है जितनी चीकू की ...'' ये कहकर विभा खड़ी  हुई ही थी कि चीकू ने आकर कान पकड़ते हुए टिंकू से कहा    -'' सॉरी   ब्रदर ..आई बैग योर पार्डन .'' इस  पर सुरभि विभा दोनों  हँस  पड़ी   .

शिखा कौशिक  'नूतन ' 

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