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बुधवार, 13 दिसंबर 2017

सैल्यूट टू शामली एस.पी.डॉ.अजयपाल शर्मा


    शामली जिला अपराधियों से भरपूर क्षेत्र ,कोई भी अधिकारी पुलिस का ज्यादा समय नहीं टिक पाता और इन्हीं अपराधियों की भरमार ने जन्म दिया ''कैराना पलायन प्रकरण '' को .जब दिनदहाड़े अपराधी वारदात को अंजाम देने लगें ,दुकान पर बैठे व्यापारी को गोली मार मौत के घाट उतारने लगें तो हाहाकार मचनी स्वाभाविक थी ,मुकीम काला ,फुरकान आदि दर्जन भर अपराधियों ने क्षेत्र में अपनी अच्छी घुसपैठ बना ली थी तभी शामली जिले में आगमन होता है एस.पी.डॉ.अजय पाल शर्मा का ,कुछ खास नहीं लगता ,रोज़ आते हैं नए अधिकारी और चले जाते हैं ,ये भी आये हैं चले जायेंगे ,पर धीरे-धीरे नज़र आता है नवागत एस.पी.का अपराध व् अपराधियों की समाप्ति का दृढ-संकल्प और आज इसी दृढ-संकल्प का परिणाम है कि क्षेत्र सुरक्षा की हवा में साँस ले रहा है ,पर फिर भी बहुत खास नहीं लगता ,नहीं लगता कि कुछ अलग अंदाज़ लिए हैं हमारे नवागत एस.पी.महोदय ,रोज़-रोज़ समाचार पत्रों में माननीय एस.पी.डॉ.अजय पाल शर्मा के सम्मान की ख़बरें छपती हैं जिससे पता चलता रहता है अपने नवागत एस.पी.का अपराध व् अपराधियों के खिलाफ युद्ध-स्तरीय अंदाज और धीरे-धीरे थोड़ी खासियत नज़र आने लगती है अपने जिले के इस अधिकारी में किन्तु लगता यही रहता है कि सब कुछ कर वही रहे हैं जो इनके विभाग के कार्य हैं .लगता यही है कि बस ये कर रहे हैं पहले वाले अधिकारी नहीं करते थे और कुछ विशेष नहीं ,किन्तु एकाएक दिमाग में घंटियां बजती हैं और मन कहता है कि नहीं ऐसा नहीं है , ये माननीय अन्यों से अलग हैं .
        अभी हाल ही में देश में 4  से 10 दिसंबर तक महिला सशक्तिकरण सप्ताह मनाया गया जिसमे शामली के पुलिस विभाग ने डॉ.अजय पाल शर्मा की देखरेख में बहुत ही बढ़-चढ़कर कार्य किया .माननीय एस.पी.साहब के निर्देशानुसार गोहरणी गांव के दलित किसान की बेटी कोमल को एक दिन की कोतवाल बनने का मौका दिया गया और इस मौके ने एक नयी दिशा दी नारी सशक्तिकरण को .एक सामान्य छात्र का कोतवाल बनना न केवल उसके लिए वरन उसकी साथी छात्राओं के मन में एक प्रेरणा उत्पन्न करने के लिए पर्याप्त है ,ये एहसास पैदा करने के लिए काफी है कि तुम भी कुछ हो और कुछ बन सकती हो ,दुनिया को अपनी मुट्ठी में कर सकती हो और ये एहसास एक नारी के मन में आना उसकी समस्त दुर्बलताओं को मिटाने के लिए राम-बाण के समान है .
        एस.पी.साहब का यह प्रयास एकदम नवीन था और सराहना के काबिल भी किन्तु फिर भी उनकी नौकरी के कार्य में ही था जिसमे उन्हें नारी को सशक्तता का अहसास कराना था किन्तु कल का कार्य न हम सोच सकते थे कि एस.पी.साहब ऐसा भी कर सकते हैं और सच में वे भी नहीं सोच सकते कि उन्होंने  एक ग्रामीण इलाके की लड़की की ज़िंदगी में ही नहीं वरन समस्त पढ़ने वाली छात्राओं व् घर से बाहर जाकर काम करने वाली महिलाओं की ज़िंदगी में उन्होंने एक नवीन सूर्योदय की शुरुआत कर दी है .
     लड़कियां इस दुनिया पर बोझ हैं .उन्हें पढ़ाना तो दूर की बात है लोग जीने भी नहीं देना चाहते .इसीलिए ही बहुत सी बार लड़कियां कोख में ही क़त्ल कर दी जाती हैं ,किन्तु हर माँ-बाप ऐसे नहीं होते ,लड़की तो लड़की वे मच्छर तक का भी क़त्ल नहीं कर सकते इसीलिए मन मारकर बेटी को जीने देते हैं .फिर आज के समाज में बेपढ़ी-लिखी लड़कियों की शादी मुश्किल है इसीलिए थोड़ा बहुत पढ़ने स्कूल भी भेजना पड़ता है ताकि अच्छी जगह शादी हो सके .इसके अलावा लड़की को स्कूल भेजने का अन्य कोई मकसद इस इलाके के माँ-बाप का नहीं होता और ऐसे में अगर लड़की के साथ छेड़खानी की घटना हो जाये तो समझ लो कि उसका पूरा जीवन बर्बाद ,तब माँ-बाप उसे घर बैठा लेंगे , न घटना की रिपोर्ट करेंगे और आनन् फानन में उसकी शादी किसी ऐसी वैसी जगह कर देंगे .ज्यादातर ऐसे मामलों में लड़की की शादी उससे उम्र में बहुत बड़े ,या कम दिमाग या किसी विकलांग लड़के से कर दी जाती है और उस पर तुर्रा ये कि चलो किसी तरह बेटी की ज़िंदगी बची और अपनी इज़्ज़त फिर चाहे लड़की को ज़िंदगी भर खून के घूँट ही पीने पड़ें जबकि उसकी कोई भी गलती नहीं होती ,ऐसे ही एक मामले में कैराना से कांधला डिग्री कालेज में आने वाली लड़की ने पढाई छोड़ दी थी ,हमें तो इतनी ही जानकारी है अब पढाई उसने छोड़ी या छुड़वा दी गई नहीं पता और आगे उसकी ज़िंदगी का क्या हुआ सभी कुछ नेपथ्य में है .
      11  दिसंबर 2017  को क़स्बा कांधला में मलकपुर गांव की एक छात्रा कोचिंग सेंटर पर जा रही थी तब एक लड़के ने उसके साथ छेड़खानी की, जिसका लड़की ने मुंहतोड़ जवाब दिया और आस-पास के लोगों की मदद के बगैर उस लड़के की चप्पलों से पिटाई भी की किन्तु मामले की रिपोर्ट नहीं की ,माननीय एस.पी.साहब ने अख़बारों में छपी खबर से मामले का संज्ञान लिया और कांधला थाने पहुंचकर छात्रा को बुलवाकर उसे सम्मानित किया और इसी सम्मान ने छात्रा व् उसके परिजनों में वह आत्मविश्वास उत्पन्न किया कि छात्रा के पिता ने आरोपी के विरुद्ध रिपोर्ट दर्ज कराई और बताया कि आरोपी हमारे गांव का ही है और यह शुरू से छात्रा को परेशान करता था . 
         आज माननीय एस.पी.डॉ.अजय पाल शर्मा के इस सराहनीय कदम से ही छात्रा का पिता आरोपी के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज करने की हिम्मत जुटा पाया नहीं तो वह अब भी पहले की ही तरह चुप बैठा रहता और हो सकता था कि बेटी को भी बैठा लेता ,जबकि आज इसी का सुपरिणाम है कि आरोपी पुलिस की गिरफ्त में है और यह सबक है इसी तरह की घटना को अंजाम देने वाले और सोचने वालों को कि आज नहीं तो कल को तुम्हारा भी यही हाल हो सकता है .नारी को अपनी शक्ति का एहसास दिलाने वाले माननीय एस.पी.डॉ.अजय पाल शर्मा का आभार ह्रदय से आज इस क्षेत्र की समस्त नारीशक्ति व्यक्त करती है क्योंकि नारी का सम्मान बढाकर उन्होंने ऐसा पुनीत कार्य किया है जिसका इस क्षेत्र में होना बहुत बड़े मायने रखता है और इसीलिए ये नारी शक्ति गर्व से अपने ''ग्रेट माननीय एस.पी.डॉ.अजय पाल शर्मा ''को ''सेल्यूट '' करती है .
शालिनी कौशिक 
   [कौशल ] 

रविवार, 10 दिसंबर 2017

''तभी लेंगे शपथ ........''


        ''औरत ने जनम दिया मर्दों को
         मर्दों ने उसे बाजार दिया .''
      कैसी विडम्बना है जन्म देने वाली की ,जन्म देने का सम्मान तो मिलना दूर की बात है ,अपने प्यार के बदले में प्यार भी नहीं मिलता ,मिलती है क्या एक औलाद जो केवल मर्द की हवस को शांत करने का एक जरिया मात्र है और कुदरत से उसे मिलने वाला कहने को उपहार पर आज की दुनिया को देखा जाये तो यह न तो वरदान है और न ही उपहार .बेटों ने तो अपनी सार्थकता बहुत पहले ही साबित कर दी थी और बाकी ऐसे मर्मान्तक फ़िल्मी गानों ने कर दी और रही बेटियां तो वे अब अपनी सार्थकता साबित कर रही हैं .
          बेटियां पराया धन होती हैं आरम्भ से ही बेटियों को यह कहकर पाला जाता है और इसीलिए बेटियों की माँ-बाप को लेकर कोई जिम्मेदारी नहीं होती पर फिर भी देखा गया है कि बेटियां अपने माँ-बाप का बहुत ध्यान रखती हैं और अपने माँ-बाप के साथ उनके दुःख की घड़ी में एक ढाल के समान खड़ी रहती हैं .बेटियां हमेशा से नरमदिल मानी जाती हैं और यह कोरी कल्पना ही नहीं है सच्चाई है .माँ-बाप का दिल रखने को अपने सारे अरमानों पर पत्थर रख लेने के बेटियों के बहुत सारे उदाहरण है .रामायण में जब सीता स्वयंवर चल रहा होता है तब जनक सुपुत्री सीता को स्वयम्वर में पधारे राजाओं में श्री राम के दर्शन होते हैं तब वे मन ही मन उन्हें अपना पति स्वीकार कर लेती हैं किन्तु ये इच्छा अपने माता-पिता के समक्ष प्रकट नहीं करती और माँ गौरी को मनाती हुई मन ही मन कहती हैं -
    ''मोर मनोरथु जानहु नीकेँ ,
    बसहु सदा उर पुर सबहीं के ,
    कीन्हेउँ प्रगट न कारन तेहीं
    अस कहि चरन गहे वैदेहीं .''
   भावार्थ:-मेरे मनोरथ को आप भलीभाँति जानती हैं, क्योंकि आप सदा सबके हृदय रूपी नगरी में निवास करती हैं। इसी कारण मैंने उसको प्रकट नहीं किया। ऐसा कहकर जानकीजी ने उनके चरण पकड़ लिए॥2॥
   ऐसे ही आज के युग में भी बहुत सी कन्यायें ऐसी रही हैं जिन्होंने अपने माँ-बाप की गरिमा को कायम रखा है .आशा भोंसले के घर से भागने के बाद पुत्री लता मंगेशकर ने ही अपने पिता दीनानाथ मंगेशकर को सहारा दिया और अपना सारा जीवन अपने पिता की सेवा  में ही समर्पित कर दिया .
     पर ऐसा नहीं है कि केवल पुत्रियां ही माता-पिता की सेवा करती हैं करते पुत्र भी हैं श्रवण कुमार भी पुत्र ही थे जिन्होंने अपने कन्धों पर बैठकर मात-पिता को तीर्थयात्रा कराई थी. श्री राम भी पुत्र ही हैं जिन्होंने अपने पिता राजा दशरथ के वचन पालन के लिए चौदह वर्ष का वनवास स्वीकार किया था और समस्त राज-पाट का त्याग किया था लेकिन क्योंकि बात हो रही है बेटियों की तो बेटियों की ही बात की जाएगी और इनकी नरमदिली की जाँच भी ,माता-पिता के प्रति कर्तव्यपालन की पड़ताल भी .
        आज कलियुग का दौर है. वह युग जिसमे अपने के नाम पर कोई अपना नहीं ,आदमी का कोई ईमान नहीं ,पैसा-सत्ता-ज़मीन-जायदाद बस ये ही आज के इंसान का धर्म है ,ईमान है .व्हाट्सप्प पर एक मेसेज आ रहा है कि
 ''एक लड़की ने फेसबुक पर एक मेसेज टैग किया कि,अगर माँ-बाप को संभालने का हक़ लड़कियों का होता तो भारत में एक भी वृद्धाश्रम नहीं होता ....
      तो एक लड़के ने उस पर बड़ा ही सुन्दर जवाब दिया कि अगर हर लड़की ससुराल में अपने सास-ससुर को ही अपने माँ-बाप का दर्जा दे दे और घर के हर सुख-दुःख में शामिल रहे तो भारत में तो क्या पूरी दुनिया में भी वृद्धाश्रम नहीं रहेगा ''.
   कितनी सही बात हम आज इन सोशल साइट्स पर पढ़ व् देख रहे हैं किन्तु नहीं अपनाते क्योंकि ये हवा जो कलियुग की सभी ओर बह रही है उससे हम  बेटियां भी  कैसे वंचित रह सकती हैं और इसी हवा का प्रभाव कहा जायेगा जब माँ-बाप को बेटी के रहते वृद्धाश्रम में रहना पड़ जाये ,बेटी के होते हुए माँ-बाप को कानून की सहायता से उससे भरण-पोषण मांगना पड़ जाये और बेटी जैसे ही बहू बन जाये तो सास को भी क़त्ल होना पड़ जाये ये सब कोरी कल्पना नहीं है वरन सत्य है जिसे आज कल के माँ-बाप भुगत रहे हैं .
       डॉ.श्रीमती विजय मनोहर अरबाट बनाम कांशी राम राजाराम संवाई और अन्य में माँ-बाप ने बेटी से भरण-पोषण माँगा और रही सास के क़त्ल होने की बात तो अभी ७ दिन पहले शाहपुर के गांव काकड़ा में मौसम व् कोमल ने मिलकर मौसम की सास सरोज से झगड़ा होने पर बीच की बहन के पति को बीचबचाव करने पर धारदार हथियार से हमला कर मार डाला और ऐसा हुआ तब जब पूरे देश में नारी सशक्तिकरण सप्ताह मनाया जा रहा था सारा देश नारी सशक्तिकरण की शपथ ले रहा था और ये सब कार्य पुरुषों द्वारा बढ़-चढ़कर किया व् कराया जा रहा था .
        ये सत्य है कि आज तक महिलाओं पर माँ-बाप की कोई जिम्मेदारी नहीं है .शुरू से पराया धन के नाम पर उन्हें ससुराल में विदा करने के लिए ही पाला जाता है और लड़के बचपन से ही यूँ तो माँ-बाप की आँख के तारे होते हैं  किन्तु सारे घर की माँ की बाप की बहन की सारी जिम्मेदारी उन्ही पर होती है .इसलिए जिम्मेदारी निभाने का उनमे घमंड होता है और लड़कियों को कोमल बने रहने का वरदान मिला रहता है और यही कोमलता जब वे ससुराल में आ जाती हैं कर्कशता में बदल जाती है .सबमे नहीं पर अधिकांशतया में और ससुराल में आकर वे अपने सास ससुर को अपने माँ-बाप का स्थान नहीं दे पाती और इसी का परिणाम होता है बहू आने के बाद घर का टूटना .जो परिवार बहू आने तक एक थाली में खाता था वह बहू के आने के बाद एक छत के नीचे भी नहीं खा पाता और इसके बाद भी बेटियों की महानता के राग  अलापे जाते हैं .जब वह अपने माँ-बाप के लिए अपनी भाभी से ये आशा रख सकती है कि वह उनका करे तो वह अपने सास-ससुर के साथ वह न्याय क्यों नहीं कर पाती ?
           फिर कैसी नारी के सशक्तिकरण की शपथ ली गयी है जब वह अपने प्रकृति प्रदत्त गुणों का ही त्याग कर आगे बढ़ रही है .वह चोरी कर रही है .क़त्ल में सहयोग कर रही है .खुद क़त्ल कर रही है ,सब कहते हैं औरत का अपना कोई घर नहीं होता पर सब यह भी कहते हैं कि औरत बिना कोई घर घर नहीं होता ,नारी हीन घर भूतों का डेरा होता है ऐसा कहा जाता है और जैसे हर पुरुष की सफलता के पीछे एक नारी का हाथ होता है वैसे ही एक नारी की सफलता उसके घर परिवार में बसती है उसकी सशक्तता तभी है जब उसका घर पूरी तरह से सुख से संपन्न हो और ये तभी होगा जब वह सही राहों पर चले .पुरुष वर्ग से लोहा ले किन्तु उसके गुणों पर चलकर नहीं बल्कि अपने प्रकृति प्रदत्त गुणों को अपनाकर .तभी ये कहा जायेगा और कहा जा सकेगा -
''पुरुषों से लड़ने की खातिर ,नारी अब बढ़ जाएगी ,
किसी काम में उससे पीछे नहीं कही अब जाएगी .
क्या खासियत है मर्दों में क्यों रहते उससे आगे
काम करेगी दिलोजान से मर्द-मार कहलाएगी .''

शालिनी कौशिक
   [कौशल]