
ब्रज की भूमि भई है निहाल |
आनंद कंद प्रकट भये ब्रज में विरज भये ब्रज ग्वाल |
सुर गन्धर्व अप्सरा गावहिं, नाचहिं दै- दै ताल |
आशिस देंय विष्णु शिव ब्रह्मा, मुसुकावैं गोपाल |
जसुमति द्वारे बजे बधायो, ढफ ढफली खडताल |
पुरजन परिजन हर्ष मनावें, जनमु लियो नंदलाल |
बाजहिं ढोल मृदंग मंजीरा, नाचहिं ब्रज के बाल |
गोप गोपिका करें आरती, झूमि बजावैं थाल |
सुर दुर्लभ छवि निरखि निरखि छकि श्याम' हू होय निहाल ||

सखी री मोरे अंगना आयो श्याम |
पीताम्बर कटि, मोरपखा सिर, छवि सांवरी ललाम |
चंचल चपल नैन कज़रारे, कानन लटकन लोल |
हरित मुरलिया अधरन सोहे, मधुरस घोले बोल |
ठुमुकि-ठुमुकि पग नचे कन्हैया सुधि-बुधि बैठी खोय |
लग्यो नचावन कर गहि मोहन, मोहि लियो सखि मोय |
भरमाई सखी नैननि सैननि, नटखट नन्दकिशोर |

चेतति ही जब पकरन धाई, भाज्यो नैन नचाय |
श्याम' श्याम-लीला चित-चितवत चित चकोर हरषाय ||
---चित्र गूगल ..साभार .