पुस्तक समीक्षा... शब्द
संवाद
पुस्तक—शब्द संवाद (हिन्दी ब्लॉग जगत के
प्रतिनिधि कवि और उनकी कवितायें) मूल्य-३९९ रु.
संपादक...वीना श्रीवास्तव, प्रकाशक...ज्योतिपर्व
प्रकाशन, गाजियाबाद... समीक्षक –डा श्याम गुप्त
प्रस्तुत पुस्तक महिला सशक्तीकरण के
वर्ष में ब्लॉग जगत के रचनाकारों द्वारा एक अनुपम प्रयास है | रचनाकारों द्वारा
ब्लॉग जगत पर विविध टिप्पणियाँ भी संतुलित एवं समुचित ही हैं| ‘ यह संग्रह क्यों ‘
में संपादिका द्वारा कथ्य ..’ अब टेक्नोलोजी ने प्लेटफार्म देदिया है ...’सटीक ही
है | यद्यपि कवयित्री कलावंती जी का कथन..’अब लेखन मठाधीशों /संपादकों की जागीर
नहीं है ..’ पूर्णतः सत्य नहीं है | मठाधीश ब्लॉग जगत में भी उपस्थित हैं, अपनी
मनपसंद टिप्पणियाँ न होने पर, आलोचना, विवेचना से बचने हेतु टिप्पणियाँ न छापने या
हटाने के प्रयासों से यह स्पष्ट होता है|
परन्तु यह भी सत्य है कि काफी कुछ मठाधीशों से छुटकारा मिला है | ऐसे ही मठाधीशों
से तंग आकर महादेवी, निराला, प्रसाद आदि ने अपने आत्मकथ्य लिखने के कठोर कदम उठाये
थे जिन्हें में उनके ब्लॉग कहता हूँ ...मेरी स्वयं की एक कविता ‘ब्लोग्स’
का उद्दरण रख रहा हूँ ...
“हमारे साहित्यकार बंधु तो
न जाने कब से ब्लॉग बना रहे
हैं |
जब प्रसाद, महादेवी, निराला
को
अपने समय के आचार्यों के
आचार नहीं सुहाए
तो उन्होंने सभी खेमेबाजों
को अंगूठे दिखाए ,
अपनी पुस्तकों में आप ही
भूमिकायें लिखी और
आत्मकथ्य रूपी ब्लॉग छपवाए | “
पुस्तक की रचनाएँ सामयिक सामाजिक, हिन्दी
ग़ज़ल, दामिनी, नारी-विमर्श, रिश्ते, अतीत की स्मृतियाँ आदि विविध विषयक हैं जो
सामान्यतः वर्नानात्मक व अभिधात्मक शैली में रची गयी गज़लें, हिन्दी गज़लें, अतुकांत
कवितायें, गद्य गीत व अगीत हैं |
भावपक्ष सशक्त है, रचनाएँ मूलतः
भावप्रधानता के साथ-साथ युवा रचनाकारों के नए नए भाव-विचार भी प्रदर्शित करती हैं
| युवा दिलों की बातें जो सामान्य भाषा, स्पष्ट सपाट बयानी व भाव युक्त है जो
अच्छी लगती हैं| यद्यपि विषय के अनुसार आचरणगत, समाधानयुत साहित्य की कमी खलती है
| कलापक्ष के अनुसार काव्यकला की लावण्यता, माधुर्य एवं साहित्यिक भाषा-तत्व की
कमी है| पुस्तक मूलतः ब्लॉग जगत का आधा आईना ही है | ब्लॉग जगत में अन्य बहुत से
श्रेष्ठ ब्लॉग एवं ब्लोगर भी उपस्थित हैं|
उल्लेखनीय रचनाओं में अशोक सलूजा जी की
हिन्दी गज़लें, कलावंती जी का कविता के बारे में कथन सत्य व सुन्दर है ...जीवन की समूची तपिश में से मिठास चुरा लेने की कोशिश है कविता.. उनकी विविध विषयक रचनाएँ जिनमें पिता व मंझले भैया अनूठी हैं
| उनकी कविता 'प्रेम' का एक दृष्टांत देखें..
“मैंने कहा
प्रेम
और गिर पड़े
कुछ हर सिंगार ...”
मदन मोहन सक्सेना के नए
प्रयोग ‘बिना मतले की ग़ज़ल’, राजेश सिंह व शशांक के अगीत व त्रिपदियाँ ...एक अगीत
देखें ...
“ अब कामाख्या की औरतें नहीं,
ट्रेनें बना देती हैं भेड बकरियां,
आम आदमी को,
ठूंस लेती हैं अपने में
भेड़-बकरियों की भांति..”
ऋताशेखर व निहार रंजन के गद्यगीत,
प्रतुल वशिष्ठ की तुकांत रचनाएँ व गीत उल्लेखनीय हैं| रश्मिप्रभा जी तो मंजी हुई
रचनाकार हैं ही उनकी लम्बी-लम्बी अतुकांत कवितायें भावप्रधान हैं| हाँ रश्मि शर्मा
जी की भावपूर्ण कवितायें...अंतिम गाँठ व हसरतें उच्चतर भावाव्यक्ति हैं| शिखा
कौशिक की गज़लनुमा चार पंक्तियों की कवितायें एक विशेष विधा प्रतीत होती है| बीस
वर्ष के युवा कवि मंटू कुमार के युवा दिल की बातें यद्यपि सपाट बयानी में हैं
परन्तु भाव गहरे हैं | यथा ..
"पता नहीं कौन सी उंगली थामे
मुझे चलना सिखाया होगा मां
अब हर उंगली देखता हूँ तो,
तू बेहिसाब याद आती है ..मां |"
वीणा श्रीवास्तव जी की अतुकांत कवितायें विविध विषयक
नवीनताओं के साथ उल्लेखनीय हैं| प्रकाश जैन की 'चलो फिर नए से शुरू करते हैं' भी नवीनता लिए हुए है | पुस्तक निश्चय ही पठनीय है| सुन्दर प्रयास का
स्वागत किया जाना चाहिए |
डा श्याम गुप्त