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शुक्रवार, 24 मई 2013

श्याम स्मृति - पुरुषवादी मानसिकता ...डा श्याम गुप्त.....

                                                    श्याम स्मृति - पुरुषवादी मानसिकता ....

                                  आजकल एक शब्द-समूह अधिकाँश सुना, कहा  व लिखा जा रहा है  वह है    'पुरुषवादी मानसिकता'.....प्राय: नारीवादी लेखिकाएं, सामाजिक कार्यकर्त्री , प्रगतिशील तेज तर्रार नारियां  व  समन्वयक पुरुष सभी के द्वारा , स्त्री सम्बंधित घटनाओं, दुर्घटनाओं, अनाचार, अत्याचार, यौन उत्प्रीणन आदि सभी के सन्दर्भ में पुरुषवादी सोच व मानसिकता का रोना रोया जाता है | यदि पुरुष में पुरुषवादी सोच व मानसिकता नहीं होगी तो और क्या होगी, तभी तो वह पुरुष है | क्या स्त्री अपनी स्त्रियोचित सोच व मानसिकता को बदल सकती है, त्याग सकती है ....नहीं , यह तो प्रकृत-प्रदत्त है ...अपरिवर्तनशील | 
              यह असंगत है, समस्या के मूल से भटकना... किसी दुश्चरित्र पुरुष के कार्यकलापों का ठीकरा  समस्त आधी दुनिया ...सारे पुरुष वर्ग  पर फोड़ना क्या उचित है !
            वस्तुतः यह सोचहीनता का परिणाम है, कृत्य -दुष्कृत्य करते समय व्यक्ति यह नहीं सोच पाता कि वह स्त्री किसी की बहन, पुत्री, माँ, पत्नी है..ठीक अपनी स्वयं की माँ, बहन, पुत्री, पत्नी की भांति | निकृष्ट व आपराधिक व आचरण हीनता की  विकृत मानसिकता युक्त व्यक्ति ऐसी सोचहीनता से ग्रस्त होता है एवं स्त्रियों को सिर्फ कामनापूर्ति, वासनापूर्ति , वासना की पुतली, सिर्फ यौन तुष्टि का हेतु समझता है| नारी का मान, सम्मान, स्वत्व का उसके लिए कोई मूल्य नहीं होता | यह चरित्रगत कमी व अक्षमता का विषय है जो विविध परिस्थितियों ,आलंबन व उद्दीपन ---निकटता, आसंगता, स्पर्श्मयता आसान उपलब्धता से उद्दीप्तता की ओर गमनीय होजाते हैं|
           आज स्त्रियों में पुरुष-समान कार्यों में रत होने के कारण  उनमें स्त्रेंण भाव कम होरहा है व पुरुष भाव की अधिकता है अतः उनमें पुरुष के ,पुरुष भाव की शमनकारी व स्वयं के स्त्रेंण भाव  के उत्कर्ष  का भाव नहीं  रहा फलतः पुरुष में प्रतिद्वंद्विता भाव युत आक्रामकता बढ़ती जा रही है जिसे पुरुष मानासिकता  से संबोधित किया जा रहा है |