शनिवार, 9 मई 2015

मातृ दिवस पर ....कविता --माँ ...डा श्याम गुप्त



                            माँ

जितने भी पदनाम सात्विक, उनके पीछे मा होता है |
चाहे धर्मात्मा, महात्मा, आत्मा हो अथवा  परमात्मा |

जो महान सत्कार्य जगत के, उनके पीछे माँ होती है |
चाहे हो वह माँ कौशल्या, जीजाबाई या जसुमति माँ |

पूर्ण शब्द माँ ,पूर्ण ग्रन्थ माँ, शिशु वाणी का प्रथम शब्द माँ |
जीवन की हर एक सफलता, की पहली सीढी होती माँ |

माँ अनुपम है वह असीम है, क्षमा दया श्रृद्धा का सागर |
कभी नहीं रीती होपाती, माँ की ममता रूपी गागर |

माँ मानव की प्रथम गुरू है,सभी सृजन का मूलतंत्र माँ |
विस्मृत ब्रह्मा की स्फुरणा, वाणी रूपी मूलमन्त्र माँ |

सीमित तुच्छ बुद्धि यह कैसे, कर पाए माँ का गुणगान |
श्याम करें पद वंदन, माँ ही करती वाणी बुद्धि प्रदान ||
 
 

9 टिप्‍पणियां:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (10-05-2015) को "सिर्फ माँ ही...." {चर्चा अंक - 1971} पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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मातृदिवस की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
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Shikha Kaushik ने कहा…

bahut sundar

Onkar ने कहा…

सुन्दर रचना

Kailash Sharma ने कहा…

माँ अनुपम है वह असीम है, क्षमा दया श्रृद्धा का सागर |
कभी नहीं रीती होपाती, माँ की ममता रूपी गागर |

..बिलकुल सच..अद्भुत अभिव्यक्ति..

Dr.NISHA MAHARANA ने कहा…

sundar bhaw ....

अभिषेक शुक्ल ने कहा…

माँ पर तो कलम थम जाती है, आपकी अभिव्यक्ति रुकी नहीं बधाई।

बेनामी ने कहा…

मां से श्रेष्‍ठ कोई नहीं।

dj ने कहा…

माँ एक ही शब्द लेकिन अपने में पूर्ण संसार समेटे।
बहुत ही सुंदर प्रस्तुति।

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद dj, कहकशां ,अभिषेक, निशा ,कैलाश जी, ओमकार , शिखा कौशिक एवं शास्त्रीजी ....