सोमवार, 19 दिसंबर 2011

(स्व. संध्या गुप्ता को विनम्र श्रद्धांजलि.. )- अवन्ती सिंह [गीत अंतरात्मा के] द्वारा

  अवन्ती  सिंह [गीत अंतरात्मा के] द्वारा प्रस्तुत टिप्पणी रूप में (स्व. संध्या गुप्ता को विनम्र श्रद्धांजलि.. )


विनम्र श्रद्धांजलि...


 गर प्राण ,देह को असमय त्याग दें तो हे भगवन,
 करना मुझ पे इतनी कृपा एक नव देह देना मुझे को ,
कुछ दिन को सही ,
 सभी अधूरे कार्य कर सकूँ ,
कुछ अभिलाषाए पूर्ण कर सकूँ ...... 
कुछ और देर मुंडेर पर बैठी चिड़ियों के कलरव गीत का रस पान कर सकूँ
 एक और बार सींच सकूँ 
उन पौधों को जो मेरे अकस्मात जाने के बाद सूख चले है
 कुछ और देर बच्चों की निर्दोष हँसीं सुन लूँ समेत लूँ ,
अपने अंतर में ,
उन की सुन्दर छवियाँ कुछ 
और देर आत्मीय जनों को अपनी मुस्कान से सुख शांति प्रदान कर सकूँ
 कुछ और देर बैठ सकूँ प्रीतम के पास, 
कह दूँ वो सब जो कभी कहा ही नहीं, 
प्रकट कर दूँ विशुद्ध प्रेम जिसके सहारे
 वो अपने अकेलेपन से जूझ पाए कर पाए जीवन की हर कठिनाई का सामना ,
बिना थके . बूढी माँ को कह तो सकूँ के दवा टाइम से खाना ,
अब मेरी तरह रोज दवा 
टाइम देने शायद कोई न भी आ पाए प्राणों ने देह ही तो छोड़ी है ,
पर उन अभिलाषाओं को कहाँ छोड़ पाए है जो , 
अभी तक पल रही है इस अमर मन में....
 (स्व. संध्या गुप्ता को विनम्र श्रद्धांजलि.. )

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