सोमवार, 22 सितंबर 2025

मुस्लिम महिला तलाक के बाद भी भरण पोषण की हकदार -पटना हाईकोर्ट

 


 पटना हाईकोर्ट ने कहा है कि 

"एक मुस्लिम महिला तलाक के बाद भी धारा 125 CrPC के तहत अपने पति से भरण-पोषण (maintenance) मांग सकती है, अगर तलाक के बाद इद्दत अवधि में उसके भविष्य के लिए पति ने “उचित और न्यायसंगत प्रावधान” नहीं किया। "

जस्टिस जितेंद्र कुमार ने फैमिली कोर्ट के आदेश को सही ठहराया, जिसमें एक मुस्लिम पुरुष को अपनी पत्नी को महीने ₹7,000 देने का निर्देश दिया गया था। पति ने दलील दी थी कि 

"उनकी शादी आपसी सहमति (mubarat) से खत्म हो गई थी, "

लेकिन कोर्ट ने इसे खारिज कर दिया।

➡️ मामला संक्षेप में-

पत्नी ने आरोप लगाया कि 

" शादी के तुरंत बाद पति की क्रूरता के कारण उसे अपने माता-पिता के घर लौटना पड़ा। उसने कोई आय न होने का हवाला देते हुए ₹15,000 प्रति माह की मांग की। उसने बताया कि उसका पति विदेश में काम करता है और लगभग ₹1 लाख प्रति माह कमाता है। "

पति ने क्रूरता के आरोप को खारिज किया और कहा कि

" शादी 2013 में मुबारत (आपसी तलाक) से खत्म हो गई थी। उसने दावा किया कि उसने पहले ही ₹1,00,000 की राशि एलिमनी, दीन मोहर और इद्दत खर्च के रूप में दे दी है।"

फैमिली कोर्ट ने पति की दलील को खारिज कर दिया और भरण-पोषण देने का आदेश दिया। हाई कोर्ट ने भी फैमिली कोर्ट का आदेश सही ठहराया। कोर्ट ने कहा कि

" आपसी तलाक का दावा सही तरह से साबित होना चाहिए। धारा 125 CrPC की प्रकृति सारांश (summary) होती है, इसलिए शादी की स्थिति का विवाद सीधे इस मामले में नहीं तय किया जा सकता। "

हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि

" अगर तलाक मान भी लिया जाए, तो भी पत्नी को भरण-पोषण मिलना चाहिए। "

कोर्ट ने कहा, 

"मान लीजिए कि मि. मुर्शिद आलम ने तलाक दे दिया, तब भी नाजिया शाहीन को अपने पूर्व पति से भरण-पोषण पाने का अधिकार है, क्योंकि यह मामला नहीं है कि उसकी पूर्व पत्नी ने पुनः शादी कर ली हो या पति ने इद्दत अवधि में उसका उचित प्रावधान किया हो।"

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के शाहबानो (1985) और दानियल लतीफी (2001) के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि

धारा 125 CrPC धर्मनिरपेक्ष है, और यह किसी भी व्यक्तिगत धर्म या कानून से विरोध नहीं करती। मुस्लिम पति की यह जिम्मेदारी है कि जो महिला आत्मनिर्भर नहीं है, उसे तलाक के बाद भी भरण-पोषण मिले। "

न्यायमूर्ति कुमार ने कहा कि 

"उचित और न्यायसंगत प्रावधान में रहने का स्थान, भोजन, कपड़े और अन्य आवश्यक चीजें शामिल हो सकती हैं। फैमिली कोर्ट के आदेश में कोई गलती है."

 और हाई कोर्ट ने ₹7,000 प्रति माह देने का आदेश बनाए रखा।

आभार 🙏👇


प्रस्तुति 

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली )

मंगलवार, 9 सितंबर 2025

विवाहित बेटी भी अनुकम्पा नियुक्ति की हक़दार -इलाहाबाद हाई कोर्ट

 


अनुकम्पा नियुक्ति पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला आया है। हाईकोर्ट ने कहा कि

विवाहित बेटी भी अनुकंपा पर नियुक्ति की हकदार है। बेटियों के विवाहित होने से अनुकंपा नियुक्ति देने से इनकार नहीं किया जा सकता."

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) देवरिया को निर्देश जारी किया कि 

"वह अपीलकर्ता की अनुकंपा नियुक्ति के दावे पर फिर से विचार करें और आठ सप्ताह के भीतर निर्णय लें।"

 यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज कुमार गुप्ता एवं न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्र की खंडपीठ ने चंदा देवी की विशेष अपील पर दिया है।

➡️ संक्षेप में मामला-

देवरिया निवासी चंदा देवी के पिता संपूर्णानंद पांडेय पूर्व प्राथमिक विद्यालय गजहड़वा, ब्लॉक बनकटा, तहसील भाटपाररानी में सहायक अध्यापक के पद पर कार्यरत थे। सेवा के दौरान 2014 में उनकी मृत्यु हो गई। चंदा देवी ने अनुकंपा के आधार पर नियुक्ति के लिए आवेदन किया। दिसंबर 2016 में जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने उनके आवेदन को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह विवाहित बेटी हैं, इसलिए वह शासनादेश चार सितंबर 2000 के अनुसार अनुकंपा नियुक्ति के लिए पात्र नहीं हैं। चंदा देवी ने इस आदेश को हाईकोर्ट में चुनौती दी।

एकलपीठ ने मई 2025 में उनकी याचिका खारिज कर दी। एकल पीठ ने माना कि विवाहित बेटी भी पात्र है, लेकिन चंदा देवी यह साबित नहीं कर पाईं कि उनके पति बेरोजगार हैं और वह अपने पिता पर आश्रित थी। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि उनके पिता का निधन 2014 में हुआ था। अब लगभग 11 साल बीत चुके हैं। ऐसे में यह दावा विचार योग्य नहीं है।

चंदा ने एकल पीठ के खिलाफ विशेष अपील दाखिल की। पक्षों को सुनने के बाद खंडपीठ ने कहा कि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी ने चंदा देवी के आवेदन को सिर्फ इस आधार पर खारिज किया था कि वह विवाहित बेटी है। उन्होंने पिता पर निर्भरता का आधार नहीं लिया था। ऐसे में एकलपीठ का यह कहना कि उन्होंने निर्भरता साबित नहीं की उचित नहीं है। 

खंडपीठ ने स्मृति विमला श्रीवास्तव बनाम उप्र राज्य में स्पष्ट किया है कि पुत्री का विवाहित होना अनुकम्पा नियुक्ति में बाधा नहीं है। खंडपीठ ने यह भी कहा कि याची ने दावा खारिज होने के तुरंत बाद ही कोर्ट में याचिका दाखिल की थी। इसलिए देरी के आधार पर याची को लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने चंदा देवी की विशेष अपील स्वीकार कर ली।

➡️ स्मृति विमला श्रीवास्तव बनाम उप्र राज्य

विवाह के पहलू पर विचार करते हुए, खंडपीठ ने निम्नलिखित निर्णय दिया:

"विवाह का पहचान से कोई निकट संबंध नहीं है और न ही होना चाहिए। एक महिला के रूप में उसकी पहचान उसके वैवाहिक संबंध के बाद भी और उसके बावजूद भी बनी रहती है। इसलिए, समय आ गया है कि न्यायालय इस बात पर सकारात्मक रूप से ज़ोर दे कि यदि राज्य को संविधान के अनुच्छेद 14 और 15 में निहित समानता के मूल सिद्धांत के अनुरूप कार्य करना है , तो वह विवाहित पुत्रियों के साथ भेदभाव नहीं कर सकता, उन्हें क्षैतिज आरक्षण के लाभ से वंचित कर सकता है, जो कि पुत्र को उसकी वैवाहिक स्थिति पर ध्यान दिए बिना उपलब्ध कराया जाता है।"

➡️ श्रीमती रंजना मुरलीधर अनेराव बनाम महाराष्ट्र राज्य10 

यही विचार बॉम्बे उच्च न्यायालय की एक खंडपीठ ने श्रीमती रंजना मुरलीधर अनेराव बनाम महाराष्ट्र राज्य10 मामले में व्यक्त किया था, जहाँ यह माना गया था कि लाइसेंस धारक की मृत्यु के बाद खुदरा केरोसिन लाइसेंस प्रदान करने के लिए विवाहित पुत्री को शामिल न करना न्यायोचित नहीं था। बॉम्बे उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने निम्नलिखित निर्णय दिया:

"विवाहित पुत्री का यह बहिष्कार किसी तर्क या अन्य न्यायोचित मानदंड पर आधारित प्रतीत नहीं होता है। किसी पुत्री का विवाह, जो लाइसेंस धारक की कानूनी प्रतिनिधि है, लाइसेंस धारक की मृत्यु पर उसके नाम पर लाइसेंस हस्तांतरण के मामले में उसके लिए अहितकर नहीं माना जा सकता। भारत के संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) के तहत किसी भी व्यापार या व्यवसाय को करने का नागरिक का अधिकार सुरक्षित है। अनुच्छेद 19(6) के तहत किसी भी व्यापार या व्यवसाय को करने के लिए आवश्यक व्यावसायिक या तकनीकी योग्यताओं के संबंध में उचित प्रतिबंध लगाए जा सकते हैं। इसी प्रकार, संविधान के अनुच्छेद 15 द्वारा लैंगिक भेदभाव निषिद्ध है। 1979 के लाइसेंसिंग आदेश में "परिवार" अभिव्यक्ति के दायरे से विवाहित पुत्री का बहिष्कार न केवल अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है, बल्कि यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(g) द्वारा गारंटीकृत अधिकार का भी उल्लंघन करता है ।"

       इस प्रकार विवाहित पुत्री भी अनुकम्पा नियुक्ति की हकदार है.

आभार 🙏👇


प्रस्तुति 

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली )

शनिवार, 6 सितंबर 2025

जिठानी-देवरानी अलग परिवार -इलाहाबाद हाई कोर्ट

  


इलाहाबाद हाईकोर्ट द्वारा हाल ही में बरेली के जिला कार्यक्रम अधिकारी द्वारा आंगनवाड़ी कार्यकर्ता की नियुक्ति को रद्द किये जाने को रद्द कर दिया गया, जिसमें कहा गया था कि 

"एक भाभी (जेठानी) को सरकारी आदेश के तहत 'एक ही परिवार' का हिस्सा तब माना जाता है, ज़ब दोनों भाई एक ही घर और रसोई में साथ रहते हैं।"

जस्टिस अजीत कुमार की पीठ ने कुमारी सोनम की याचिका को स्वीकार करते हुए यह फैसला सुनाया, जिनकी नियुक्ति 13 जून, 2025 को बरेली के जिला कार्यक्रम अधिकारी ने रद्द कर दी थी। रद्द करने का आधार यह था कि उसकी जेठानी पहले से ही उसी केंद्र में आंगनवाड़ी सहायक के रूप में सेवा कर रही थी।

जबकि याचिकाकर्ता का तर्क यह था कि उसकी जेठानी (भाभी) एक अलग घर नंबर के साथ एक अलग घर में रहती है और इसलिए, वह उसके पति के परिवार की परिभाषा में नहीं आती है, भले ही वह उसके ससुर के परिवार से संबंधित हो। याचिकाकर्ता के वकील ने संबंधित परिवार रजिस्टर दस्तावेज को भी इंगित किया, जिससे पता चलता था कि उसकी जेठानी वास्तव में अलग रहती थी। संदर्भ के लिए, 21 मई, 2023 को सरकारी आदेश के तहत खंड 12 (iv) के तहत बनाए गए बार के संबंध में तर्क दिया गया था, यह प्रावधान है कि एक ही परिवार की दो महिलाओं को एक ही केंद्र में आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और आंगनबाड़ी सहायक के रूप में नियुक्त नहीं किया जाएगा.

इसके अलावा, याचिकाकर्ता के वकील ने सरकारी विभाग में परिवार के आश्रितों को चिकित्सा सहायता के उद्देश्य से चिकित्सा विभाग में सरकारी कर्मचारी के लिए प्रदान किए गए परिवार की परिभाषा के साथ-साथ आदेश XXXII-A, नियम 6 के तहत दी गई परिवार की परिभाषा का उल्लेख किया कि कल्पना के किसी भी खिंचाव से भाभी (जेठानी) को चयन के प्रयोजनों के लिए परिवार की परिभाषा के भीतर नहीं माना जा सकता है और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के पद पर नियुक्ति।

इस पृष्ठभूमि के खिलाफ, शुरुआत में, न्यायालय ने आदेश को इस आधार पर अस्थिर पाया कि यह याचिकाकर्ता को कोई नोटिस या सुनवाई का अवसर दिए बिना पारित किया गया था, इसके बावजूद प्रतिकूल नागरिक परिणाम हुए। इसके अलावा, जीओ के खंड 12 (iv) की ओर मुड़ते हुए, न्यायालय ने इस प्रकार धारण करने के लिए 'एक ही परिवार' के अर्थ की जांच की: 

"बहू (जेठानी) परिवार की सदस्य नहीं बनेगी और बहू (जेठानी) को परिवार का सदस्य माना जा सकता है, बशर्ते दोनों भाई एक साथ रसोई और घर में रह रहे हों।"

➡️ भारतीय परम्परा के अनुसार "परिवार"-

परिवार वह व्यक्तियों का समूह है जो जन्म, विवाह या गोद लेने से आपस में जुड़े होते हैं और जो एक ही घर में रहते हैं। इसमें पति, पत्नी, बच्चे, और कई बार दादा-दादी, चाचा-चाची जैसे करीबी रक्त संबंधी शामिल हो सकते हैं। परिवार समाज की सबसे बुनियादी इकाई है जो भावनात्मक संबंध और एक आर्थिक इकाई के रूप में काम करती है, जिससे सदस्यों को सामाजिक, भावनात्मक और आर्थिक सहारा मिलता है। 

🌑 परिवार के प्रकार:

✒️ एकल परिवार (Nuclear Family):

इसमें माता-पिता और उनके अविवाहित बच्चे शामिल होते हैं। 

✒️ संयुक्त परिवार (Joint Family):

इस बड़े परिवार में पति-पत्नी, बच्चे, दादा-दादी, चाचा-चाची, और उनके बच्चे, जैसे कई पीढ़ी के सदस्य एक साथ रहते हैं। 

✒️ उदाहरण:

एकल परिवार: एक पति, पत्नी और उनके बच्चे। 

संयुक्त परिवार: दादा-दादी, माता-पिता, उनके बच्चे और उनके भाई-बहन सभी एक ही घर में रहते हैं।,

अब क्योंकि वर्तमान पारिवारिक व्यवस्था और कानूनी दृष्टिकोण के अनुसार परिवार में पति पत्नी और बच्चे ही आते हैँ, ऐसे में उपरोक्त मामले में अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि यह नहीं कहा जा सकता है कि 

"भाभी (जेठानी) और याचिकाकर्ता दोनों एक ही परिवार की महिलाएं थीं। इसलिए, आक्षेपित आदेश को प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन के आधार पर और मेरिट के आधार पर भी अस्थिर कर दिया गया था। नतीजतन, रिट याचिका की अनुमति दी गई, और आक्षेपित आदेश को रद्द कर दिया गया। जिला कार्यक्रम अधिकारी को निर्देश दिया गया कि याचिकाकर्ता को उसके कर्तव्यों का निर्वहन करने के लिए आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के रूप में बहाल किया जाए।"

    इस प्रकार यहाँ इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पति पत्नी और बच्चे को ही एक परिवार मानते हुए जेठानी को देवरानी के परिवार से अलग माना और देवरानी को आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के पद पर वापस बहाल करने के आदेश जारी किये.

आभार 🙏👇



द्वारा 

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट 

कैराना (शामली )

बुधवार, 3 सितंबर 2025

महिला आयोग गंभीर महिला सुरक्षा को लेकर

  


( ई रिक्शाओं पर महिला आयोग गंभीर )

उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग महिलाओं के साथ ई-रिक्शा में हो रही छेड़छाड़ की घटनाओं को लेकर गंभीर है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पूर्व में जारी किये गए निर्देशों को अमल में लाने की कार्यवाही करते हुए महिला आयोग ने भी निर्देश दिया है कि अब हर ई-रिक्शा पर चालक का नाम और मोबाइल नंबर स्पष्ट रूप से लिखा होना चाहिए.

➡️ उत्तर प्रदेश महिला आयोग की अध्यक्ष-

उत्तर प्रदेश राज्य महिला आयोग की वर्तमान अध्यक्षा डॉ. बबीता सिंह चौहान हैं, जिनकी नियुक्ति सितंबर 2024 में की गई थी. उन्होंने इस पद की जिम्मेदारी संभालने के बाद से प्रदेश में महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर काम किया है और कई जिलों का दौरा भी किया है, जिसमें उन्होंने जेलों का निरीक्षण किया और अस्पतालों में बेबी किट बांटी.

➡️ महिला आयोग की महत्वपूर्ण बैठक-

महिला आयोग की अध्यक्ष डॉ बबीता सिंह चौहान ने बाराबंकी में अफसरों के साथ एक महत्वपूर्ण बैठक की और यह निर्णय लिया. उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी महिलाओं की सुरक्षा को लेकर गंभीर हैं. बैठक में आयोग ने महिलाओं की सुरक्षा को लेकर कई अहम बिंदुओं पर चर्चा की.इसके साथ ही आयोग ने हेल्पलाइन 1090 और 181 की कार्यप्रणाली की समीक्षा कराने का आश्वासन दिया, ताकि पीड़ित महिलाओं को तुरंत सहायता मिल सके.

➡️ हेल्पलाइन नंबर 1090 --

विमेन पावर लाइन ( Women Power Line) उत्तर प्रदेश पुलिस का एक अभियान है जो यौन उत्पीड़न, और इसकी जड़ों में समाज की पितृसत्तात्मक मानसिकता की गलतफहमी के विरोध पर केंद्रित है। यह महिलाओं की सुरक्षा के लिए काम करने वाला सरकारी कॉल सेंटर है । यह 24x7 काम करता है। महिलाओं की सुरक्षा हेतु वीमेन पावर लाइन 1090 की स्थापना की गयी है । इस काल सेण्टर में 1090 नम्बर पर प्रदेश के किसी भी कोने से महिलायें / लड़कियां किसी भी वक्त काल करके अपने साथ होने वाली छेड़खानी की घटनाओं की शिकायत कर सकती हैं। जहां पीड़िता की पहचान गोपनीय रखी जाती है ।

➡️ हेल्पलाइन नम्बर 181--

 181 महिला हेल्पलाइन का उद्देश्य हिंसा से प्रभावित महिलाओं को 24 घंटे सहायता और आपातकालीन प्रतिक्रिया प्रदान करना है। यह हेल्पलाइन एक ही नंबर के माध्यम से देश भर में महिलाओं से संबंधित सरकारी योजनाओं और कार्यक्रमों की जानकारी भी प्रदान करती है। 181 हेल्प लाइन नंबर 24 घंटे चालू रहेगा। आपात स्थिति में इस नंबर पर डायल कर महिलाएं कानूनी मदद ले सकेंगी। 181 हेल्पलाइन नंबर की खासियत यह होगी कि शिकायत दर्ज कराने वाले का नाम गोपनीय रखा जाएगा।

➡️ महिला आयोग की अध्यक्ष के निर्देश--

महिला आयोग की अध्यक्ष द्वारा उत्तर प्रदेश के सभी थानों में महिला डेस्क को और मजबूत करने के निर्देश भी जारी किये गए हैं. महिलाओं की सुरक्षा के दृढ निश्चय के साथ महिला आयोग के इन कदमों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि महिलाएं बिना किसी डर के अपनी शिकायत दर्ज करा सकें और उन्हें त्वरित न्याय मिले.

➡️ ई रिक्शा पर पूर्व अभियान- 

 पूर्व में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के निर्देश पर उत्तर प्रदेश ट्रैफिक पुलिस ने ऑटो टेंपो और ई रिक्शा में ड्राइवर का नाम उसका मोबाइल नंबर मालिक का नाम समेत अन्य जानकारियां शीशे पर आगे लिखने का एक अभियान चलाया था. जिसमें शुरू शुरू में कई गाड़ियों पर इसका पालन भी हुआ, हालांकि बीच में फिर शिथिलता बरती गई है जिससे बाद में ई रिक्शाओं पर इस निर्देश का कहीं कोई असर नहीं दिखाई दिया.

➡️ अब ई रिक्शाओं को मानना होगा निर्देश- 

अब महिला आयोग की अध्यक्ष का इस मुद्दे को लेकर गंभीर होने पर इस मामले में तेजी देखने को मिल सकती है जिससे आने वाले दिनों में तमाम ई रिक्शा और ऑटो रिक्शा के शीशे पर उनके ड्राइवर का नाम मोबाइल नंबर समेत अन्य जानकारियां सार्वजनिक तौर पर लिखी जाने की आशा की जा सकती है.

      उत्तर प्रदेश महिला आयोग द्वारा महिला सुरक्षा के लिए ई रिक्शाओं पर इस नियम का कड़ाई से लागू किये जाने का यह फैसला अति सराहनीय कहा जायेगा क्योंकि ई रिक्शाएं आज परिवहन का मुख्य साधन बन चुकी हैं और महिलाओं के द्वारा यातायात-परिवहन का सुगम साधन होने के कारण बहुतायत में इस्तेमाल की जा रही हैँ और जहाँ तक इनके चालक की या वाहन की पहचान की बात है उसका कोई साधन ई रिक्शा में नजर नहीं आता और क्योंकि योगी सरकार के निर्देश ई रिक्शाओं पर नाकाफी दिखाई दिए हैँ ऐसे में महिला सुरक्षा के लिए महिला आयोग की गंभीरता अनिवार्य और सराहनीय कदम है.

द्वारा

शालिनी कौशिक

एडवोकेट

कैराना ( शामली )