भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 75 लैंगिक उत्पीड़न को दण्डनीय अपराध घोषित करती है. इसमे कहा गया है कि
➡️धारा 75. लैंगिक उत्पीड़न.-
(1) ऐसा कोई निम्नलिखित कार्य, अर्थात् :-
(i) शारीरिक संस्पर्श और अग्रक्रियाएं करने, जिनमें अवांछनीय और लैंगिक संबंध बनाने संबंधी स्पष्ट प्रस्ताव अन्तर्वलित हों; या
(ii) लैंगिक स्वीकृति के लिए कोई मांग या अनुरोध करने; या
(iii) किसी महिला की इच्छा के विरुद्ध अश्लील साहित्य दिखाने; या
(iv) लैंगिक आभासी टिप्पणियां करने,
वाला पुरुष लैंगिक उत्पीड़न के अपराध का दोषी होगा।
(2) ऐसा कोई पुरुष, जो उपधारा (1) के खण्ड (i) या खण्ड (ii) या खण्ड (iii) में विनिर्दिष्ट अपराध करेगा, वह कठिन कारावास से, जिसकी अवधि तीन वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
(3) ऐसा कोई पुरुष, जो उपधारा (1) के खण्ड (iv) में विनिर्दिष्ट अपराध करेगा, वह दोनों में से किसी भांति के कारावास से, जिसकी अवधि एक वर्ष तक की हो सकेगी, या जुर्माने से, या दोनों से, दण्डित किया जाएगा।
दो दिन पूर्व ही बॉम्बे हाई कोर्ट अपने निर्णय में कहा कि किसी महिला सहकर्मी के बालों के बारे में टिप्पणी करना और उस पर गीत गाना कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न नहीं माना जा सकता और यह कहते हुए एचडीएफसी बैंक के अधिकारी को राहत दे दी.
इससे एक दिन पूर्व ही इलाहाबाद हाई कोर्ट द्वारा दुष्कर्म के प्रयास के आरोपी को राहत देते हुए विवादित निर्णय दिया गया जिसने पूरे देश में महिला आयोग और महिला मंत्रियों तक को महिलाओं की सुरक्षा हेतु आवाज़ उठाने के लिए विवश कर दिया. पीड़िता का ब्रेस्ट पकड़ना और नाड़ा तोड़ना दुष्कर्म या दुष्कर्म का गम्भीर प्रयास माना जाएगा या नहीं, इस पर तो बहस सारे देश में छिड़ी हुई ही थी, साथ ही, अब बहस "लैंगिक उत्पीड़न क्या है?" पर भी छिड़ने जा रही है.
➡️ लैंगिक उत्पीड़न क्या है -
लैंगिक उत्पीड़न, यौन प्रकृति का कोई भी अवांछित व्यवहार है जिससे किसी व्यक्ति को अपमानित, भयभीत या असुरक्षित महसूस हो. यह लैंगिक असमानता का एक रूप है. यह भेदभाव और हिंसा का भी एक रूप है.
➡️लैंगिक उत्पीड़न के कुछ उदाहरण:
*किसी को गलत तरीके से घूरना या तिरछी नज़र से देखना
*किसी की शारीरिक विशेषताओं या तौर-तरीकों के बारे में लिंग-संबंधी टिप्पणी करना
*किसी को धमकाने के लिए यौन या लिंग-संबंधी टिप्पणी या आचरण का इस्तेमाल करना
*यौन अफ़वाहें फैलाना
*यौन प्रस्ताव देना
*यौन चुटकुले सुनाना
*अश्लील साहित्य दिखाना
*किसी को कामुक या लिंग-विशिष्ट तरीके से कपड़े पहनाना
*किसी को डराने-धमकाने वाला माहौल बनाना
➡️लैंगिक उत्पीड़न का दुष्प्रभाव-
लैंगिक उत्पीड़न किसी भी लिंग, यौन अभिविन्यास, जाति, जातीयता, सामाजिक-आर्थिक स्थिति, या धर्म के लोगों को प्रभावित कर सकता है.
अब जब हम भारतीय न्याय संहिता 2023 की धारा 75(1) की उपधारा (iv) का अवलोकन करते हैं तो पाते हैं कि उसमे (iv) लैंगिक आभासी टिप्पणियां करने वाले पुरुष को लैंगिक उत्पीड़न के अपराध का दोषी माना गया है और जब हम लैंगिक उत्पीड़न के कुछ उदाहरण देखते हैं तो उसमें किसी की शारीरिक विशेषताओं या तौर-तरीकों के बारे में लिंग-संबंधी टिप्पणी करने को लैंगिक उत्पीड़न कहा गया है.
अब एक नजर प्रस्तुत मामले में निर्णय की ओर ले जाते हैं जिसमें जस्टिस संदीप मानें ने कहा कि यदि याचिकाकर्ता के खिलाफ आरोप सही भी माने जाएं, तो भी उनसे यौन उत्पीड़न पर कोई ठोस निष्कर्ष नहीं निकाला जा सकता। पुणे स्थित एचडीएफसी बैंक के एसोसिएट क्षेत्रीय प्रबंधक विनोद कछावे को बैंक की आंतरिक शिकायत समिति ने कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न रोकथाम कानून के तहत कदाचार का दोषी ठहराया था। वहीं, याची के वकील ने कहा, कछावे ने महिला से सिर्फ यही कहा था कि वह बाल संवारने के लिए जेसीबी का इस्तेमाल कर रही होगी।
ऐसे में एक महिला के बालों को उसकी शारीरिक विशेषता के रूप में स्वीकार करते हुए जब लैंगिक उत्पीड़न के उदाहरण इस टिप्पणी को लैंगिक उत्पीड़न की भाषा में शामिल कर रही है तो बॉम्बे हाई कोर्ट का यह निर्णय भी उसी तरह से विवादास्पद कहा जाना चहिये जिस तरह से इलाहाबाद हाई कोर्ट का दुष्कर्म के प्रयास को नकारने का निर्णय विवादों की एक कड़ी बनकर रह गया है.
पुरुषों द्वारा महिलाओं पर लैंगिक टिप्पणी करना उनकी रोज की आदत में शुमार है और फिर जब महिला उनकी सहकर्मी हो तो यह एक तरह से वे अपने हक में शामिल कर लेते हैं. अभी हाल ही में दिल्ली विधान सभा के चुनाव में एक राजनेता रमेश बिधूड़ी कहते हैं, 'लालू ने वादा किया था कि बिहार की सड़कों को हेमा मालिनी के गालों जैसा बना दूंगा, लेकिन वे ऐसा नहीं कर पाए। मैं आपको विश्वास दिलाता हूं, जैसे ओखला और संगम विहार की सड़कें बना दी हैं, वैसे ही कालकाजी में सारी की सारी सड़कें प्रियंका गांधी के गाल जैसी बना दूंगा।'
इस तरह अगर न्यायालयों द्वारा महिला के सम्मान पर हुए लैंगिक टिप्पणी के मुद्दे को यूँ ही हल्की बात समझकर हवा में उड़ाया जाता रहा तो महिलाओं के लिए सार्वजनिक जीवन में उतरकर कार्य करना बहुत ही कठिन हो जाएगा. अपने सम्मान को ठेस पहुंचाने वाले के खिलाफ उतरना एक महिला के लिए, वो भी जब वह भारतीय हो, बहुत मुश्किल होता है. रूपम देओल बजाज होना और के पी एस गिल जैसे बड़े अधिकारी को सजा दिलवाना आसान नहीं होता, इसके लिए न्याय व्यवस्था का महिला के साथ मजबूत सहयोग जरूरी है.
द्वारा
शालिनी कौशिक
एडवोकेट
कैराना (शामली)
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