तुम्हारे और मेरे बीच की
दूरी में
पसरा हुआ ग़म
कब्ज़ा किये रहता है
मेरी
पनीली आँखों के
कोरों पर..
क्षीण होते हुये
मन के सामने
बिछा देता है
तुम्हारी यादों का
इंद्रजाल
कि .. उलझती रहूँ
उदासियों के दरवाज़े को
खोलकर
लगा देता है
सपनों के अंबार
कि.. विचरती रहूँ ..
पकड़कर
मेरी कलाइयों को
चलना सिखाने लगा है
तुम्हारे और मेरे बीच की
दूरी में
पसरा हुआ ग़म
मुझे
पहचानने लगा है ..
दूरी में
पसरा हुआ ग़म
कब्ज़ा किये रहता है
मेरी
पनीली आँखों के
कोरों पर..
क्षीण होते हुये
मन के सामने
बिछा देता है
तुम्हारी यादों का
इंद्रजाल
कि .. उलझती रहूँ
उदासियों के दरवाज़े को
खोलकर
लगा देता है
सपनों के अंबार
कि.. विचरती रहूँ ..
पकड़कर
मेरी कलाइयों को
चलना सिखाने लगा है
तुम्हारे और मेरे बीच की
दूरी में
पसरा हुआ ग़म
मुझे
पहचानने लगा है ..
4 टिप्पणियां:
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति मृदुला जी, बधाई
बहुत सुन्दर।
होलीकोत्सव के साथ
अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस की भी बधाई हो।
बहुत सुंदर । मोहक ।
बहुत सुंदर प्रस्तुति
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