बेटी मेरी तेरी दुश्मन ,तेरी माँ है कभी नहीं ,
तुझको खो दूँ ऐसी इच्छा ,मेरी न है कभी नहीं .
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नौ महीने कोख में रखा ,सपने देखे रोज़ नए ,
तुझको लेकर मेरे मन में ,भेद नहीं है कभी नहीं .
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माँ बनने पर पूर्ण शख्सियत ,होती है हर नारी की ,
बेटे या बेटी को लेकर ,पैदा प्रश्न है कभी नहीं .
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माँ के मन की कोमलता ही ,बेटी से उसको जोड़े ,
नन्ही-नन्ही अठखेली से ,मुहं मोड़ा है कभी नहीं .
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सबकी नफरत झेल के बेटी ,लड़ने को तैयार हूँ,
पर सब खो देने का साहस ,मुझमे न है कभी नहीं .
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कुल का दीप जलाने को ,बेटा ही सबकी चाहत ,
बड़े-बुज़ुर्गों की आँखों का ,तू तारा है कभी नहीं .
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बेटे का ब्याह रचाने को ,बहु चाहिए सबको ही ,
बेटी होने पर ब्याहने का ,इनमे साहस है कभी नहीं .
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अपने जीवन ,घर की खातिर ,पाप कर रही आज यही ,
माफ़ न करना अपनी माँ को ,आना गर्भ में कभी नहीं .
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रो-रोकर माँ कहे ''शालिनी ''वसुंधरा भी सदा दुखी ,
बेटी के आंसू बहने से ,माँ रोक सकी है कभी नहीं .
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शालिनी कौशिक
[कौशल ]
2 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (06-08-2019) को "मेरा वजूद ही मेरी पहचान है" (चर्चा अंक- 3419) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत खूबसूरत सृजन ! Ration Card Suchi
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