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रविवार, 25 अगस्त 2019
शुक्रवार, 23 अगस्त 2019
राधाकृष्ण काव्यामृत ----डा श्याम गुप्त
चित्र काव्यामृत ---
पद
कान्हा तेरी वंसी मन तरसाए |
कण कण ज्ञान का अमृत बरसे, तन मन सरसाये |
ज्योति दीप मन होय प्रकाशित, तन जगमग कर जाए |
तीन लोक में गूंजे यह ध्वनि, देव दनुज मुसकाये |
पत्ता-पत्ता, कलि-कलि झूमे, पुष्प-पुष्प खिल जाए |
नर-नारी की बात कहूँ क्या, सागर उफना जाए |
बैरन छेड़े तान अजानी , मोहनि मन्त्र चलाये |
राखहु श्याम’ मोरी मर्यादा, मुरली मन भरमाये ||
काहे न मन धीर धरे घनश्याम |
तुम जो कहत हम एक विलगि कब हैं राधे ओ श्याम ।
फ़िर क्यों तडपत ह्रदय जलज यह समुझाओ हे श्याम !
सान्झ होय और ढले अर्क, नित बरसाने घर-ग्राम ।
जावें खग मृग करत कोलाहल अपने-अपने धाम।
घेरे रहत क्यों एक ही शंका मोहे सुबहो-शाम।
दूर चले जाओगे हे प्रभु! छोड़ के गोकुल धाम ।
कैसे विरहन रात कटेगी, बीतें आठों याम ।
राधा की हर सांस सांवरिया , रोम रोम में श्याम।
श्याम', श्याम-श्यामा लीला लखि पायो सुख अभिराम ।
राधे काहे न धीर धरो ।
मैं पर-ब्रह्म ,जगत हित कारण, माया भरम परो ।
तुम तो स्वयं प्रकृति -माया ,मम अन्तर वास करो।
एक तत्व गुन , भासें जग दुई , जगमग रूप धरो।
राधा -श्याम एक ही रूपक ,विलगि न भाव भरो।
रोम-रोम हर सांस सांस में , राधे ! तुम विचरो ।
श्याम, श्याम-श्यामा लीला लखि,जग जीवन सुधरो।
चित्र गाथा ---
युगल छवि राधे गोविन्द बन्दे ....
“ रस स्वरुप घनश्याम हैं राधा भाव विभाव... | ”
इश्के मजाजी और इश्के हकीकी का जो संगम बांसुरी की तान में है अन्यंत्र कहाँ ! यही वह रूप, भाव, रस, छंद की अनूठी तान है जिसने युगों युगों से विश्व को, विश्व की हर संस्कृति-सभ्यता को, जन जन को, स्त्री-पुरुष को, मानवता को, समस्त जड़-जंगम, चेतन-अचेतन प्रकृति को अपने वश में कर रखा है |
प्रेम और भक्ति का सम्पूर्ण भाव यदि कहीं ढूंढना हो राधाकृष्ण शब्द में ढूंढिए, मुरली की तान में खोजिये | गोपाल की वंशी धुन में पाइए | गोपी भाव में, राधा की भक्ति, श्रीकृष्ण की प्रेम धुन में जानिये, अपने अंतर के आनंदमय मधुरतम भाव में अनुभव कीजिये और प्रेम-सरिता के प्रवाह को तात्विकता से उत्पन्न होकर, लोक में प्रणय से होकर दिव्य की अनुभूति तक प्राप्त करिए |
श्रृद्धा-विश्वास रूपिणों का सम्पूर्ण रूप प्रस्तुत चित्र में ढूंढिए जिसे मन की गहराई से अनुभव करेंगे तो प्रेम की लौकिक अभिव्यक्ति प्रणय के प्रभावोत्पादन का सौन्दर्यमय, अभिव्यन्जनीय, अनिवर्चनीय व मादक रूप भाव दृष्टव्य होगा | ब्रह्म-माया-जीव-संसार का भाव आनंद रूप मिलेगा, साक्षात् माया-ब्रह्म का नर्तन, प्रकृति-पुरुष का भाव मंथन, द्वैत–अद्वैत के तत्व-चितन का दर्शन होगा, जहां प्रेम उच्चतम अवस्था में, भावातिरेक अवस्था में भक्ति में परिवर्तित होजाता है और अगले सोपान निर्विकल्प भक्ति पर द्वैत का अद्वैत में लय होकर प्रिय के साथ रंग, रूप, रस, भाव, लय, विचार आदि सर्वस्व तदनुरूपता में | ...
” जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं |”
तब मीरा आलाप लेती हैं---मैं तो सांवरे के रंग रांची .......
तथा मुग्धा नायिका भाव विह्वल हुई गा उठती है – पिया अंग लग लग भयी सांवरी मैं ...|
जिसका वर्णन आदि-पुराण में इस प्रकार किया गया है ----
श्री कृष्णस्य तेजसार्धेना सा च मूर्तिमती सती
एका मूर्तिहि द्विविधा भुव भेदो वेदा निरूपिता |
-----श्रीकृष्ण के दैवीय तेजस स्वरुप का अर्धभाग राधारूप है | वे वेदों द्वारा निरूपित एक ही शरीर के दो अविभाज्य रूप है |
यथा सामवेद के अनुसार- ‘रेपोहि कोटि जन्मागम कर्म भोगम शुभशुभं | जिसका दर्शन मात्र करोड़ों करोड़ों वर्ष के जन्मों के पाप का विनाश व समस्त कर्मभोगों का क्षय करता है तथा जन्म-मरण के संसार चक्र से मुक्ति प्रदान करता है ---- अस्तु-
लीला राधा-श्याम की श्याम’ सके क्या जान ,
जो लीला को जान ले श्याम’ रहे न श्याम’ |
-----हरे कृष्ण -----
पद
कान्हा तेरी वंसी मन तरसाए |
कण कण ज्ञान का अमृत बरसे, तन मन सरसाये |
ज्योति दीप मन होय प्रकाशित, तन जगमग कर जाए |
तीन लोक में गूंजे यह ध्वनि, देव दनुज मुसकाये |
पत्ता-पत्ता, कलि-कलि झूमे, पुष्प-पुष्प खिल जाए |
नर-नारी की बात कहूँ क्या, सागर उफना जाए |
बैरन छेड़े तान अजानी , मोहनि मन्त्र चलाये |
राखहु श्याम’ मोरी मर्यादा, मुरली मन भरमाये ||
काहे न मन धीर धरे घनश्याम |
तुम जो कहत हम एक विलगि कब हैं राधे ओ श्याम ।
फ़िर क्यों तडपत ह्रदय जलज यह समुझाओ हे श्याम !
सान्झ होय और ढले अर्क, नित बरसाने घर-ग्राम ।
जावें खग मृग करत कोलाहल अपने-अपने धाम।
घेरे रहत क्यों एक ही शंका मोहे सुबहो-शाम।
दूर चले जाओगे हे प्रभु! छोड़ के गोकुल धाम ।
कैसे विरहन रात कटेगी, बीतें आठों याम ।
राधा की हर सांस सांवरिया , रोम रोम में श्याम।
श्याम', श्याम-श्यामा लीला लखि पायो सुख अभिराम ।
राधे काहे न धीर धरो ।
मैं पर-ब्रह्म ,जगत हित कारण, माया भरम परो ।
तुम तो स्वयं प्रकृति -माया ,मम अन्तर वास करो।
एक तत्व गुन , भासें जग दुई , जगमग रूप धरो।
राधा -श्याम एक ही रूपक ,विलगि न भाव भरो।
रोम-रोम हर सांस सांस में , राधे ! तुम विचरो ।
श्याम, श्याम-श्यामा लीला लखि,जग जीवन सुधरो।
चित्र गाथा ---
युगल छवि राधे गोविन्द बन्दे ....
“ रस स्वरुप घनश्याम हैं राधा भाव विभाव... | ”
इश्के मजाजी और इश्के हकीकी का जो संगम बांसुरी की तान में है अन्यंत्र कहाँ ! यही वह रूप, भाव, रस, छंद की अनूठी तान है जिसने युगों युगों से विश्व को, विश्व की हर संस्कृति-सभ्यता को, जन जन को, स्त्री-पुरुष को, मानवता को, समस्त जड़-जंगम, चेतन-अचेतन प्रकृति को अपने वश में कर रखा है |
प्रेम और भक्ति का सम्पूर्ण भाव यदि कहीं ढूंढना हो राधाकृष्ण शब्द में ढूंढिए, मुरली की तान में खोजिये | गोपाल की वंशी धुन में पाइए | गोपी भाव में, राधा की भक्ति, श्रीकृष्ण की प्रेम धुन में जानिये, अपने अंतर के आनंदमय मधुरतम भाव में अनुभव कीजिये और प्रेम-सरिता के प्रवाह को तात्विकता से उत्पन्न होकर, लोक में प्रणय से होकर दिव्य की अनुभूति तक प्राप्त करिए |
श्रृद्धा-विश्वास रूपिणों का सम्पूर्ण रूप प्रस्तुत चित्र में ढूंढिए जिसे मन की गहराई से अनुभव करेंगे तो प्रेम की लौकिक अभिव्यक्ति प्रणय के प्रभावोत्पादन का सौन्दर्यमय, अभिव्यन्जनीय, अनिवर्चनीय व मादक रूप भाव दृष्टव्य होगा | ब्रह्म-माया-जीव-संसार का भाव आनंद रूप मिलेगा, साक्षात् माया-ब्रह्म का नर्तन, प्रकृति-पुरुष का भाव मंथन, द्वैत–अद्वैत के तत्व-चितन का दर्शन होगा, जहां प्रेम उच्चतम अवस्था में, भावातिरेक अवस्था में भक्ति में परिवर्तित होजाता है और अगले सोपान निर्विकल्प भक्ति पर द्वैत का अद्वैत में लय होकर प्रिय के साथ रंग, रूप, रस, भाव, लय, विचार आदि सर्वस्व तदनुरूपता में | ...
” जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं |”
तब मीरा आलाप लेती हैं---मैं तो सांवरे के रंग रांची .......
तथा मुग्धा नायिका भाव विह्वल हुई गा उठती है – पिया अंग लग लग भयी सांवरी मैं ...|
जिसका वर्णन आदि-पुराण में इस प्रकार किया गया है ----
श्री कृष्णस्य तेजसार्धेना सा च मूर्तिमती सती
एका मूर्तिहि द्विविधा भुव भेदो वेदा निरूपिता |
-----श्रीकृष्ण के दैवीय तेजस स्वरुप का अर्धभाग राधारूप है | वे वेदों द्वारा निरूपित एक ही शरीर के दो अविभाज्य रूप है |
यथा सामवेद के अनुसार- ‘रेपोहि कोटि जन्मागम कर्म भोगम शुभशुभं | जिसका दर्शन मात्र करोड़ों करोड़ों वर्ष के जन्मों के पाप का विनाश व समस्त कर्मभोगों का क्षय करता है तथा जन्म-मरण के संसार चक्र से मुक्ति प्रदान करता है ---- अस्तु-
लीला राधा-श्याम की श्याम’ सके क्या जान ,
जो लीला को जान ले श्याम’ रहे न श्याम’ |
-----हरे कृष्ण -----
गुरुवार, 15 अगस्त 2019
शनिवार, 10 अगस्त 2019
क्या लड़कियां सम्पत्ति होती हैं?
मोदी और शाह की जोड़ी द्वारा जब से कश्मीर से अनुच्छेद 370 व 35 A हटाया गया है सारे देश में एक चर्चा गर्म है - "कश्मीरी लड़कियों से शादी करने की" और न केवल आम जनता बल्कि सत्तारुढ़ पार्टी के जिम्मेदार नेता भी इस हवन में अपनी आहुति दे रहे हैं. भाजपा के उत्तर प्रदेश के खतौली क्षेत्र के विधायक विक्रम सिंह सैनी कहते हैं कि "अब हर कोई गोरी कश्मीरी लड़कियों से शादी कर सकता है, " और हरियाणा के मुख्य मंत्री मनोहर लाल खट्टर कहते हैं कि "अपने यहां कम पड़ेगी तो कश्मीर से मंगा लेंगे,".
सवाल ये उठता है कि क्या वाकई लड़कियाँ कोई चीज़ या कोई सम्पत्ति हैं कि उनका जिसने जैसे चाहा इस्तेमाल कर लिया और ऐसा नहीं है कि यहां बात केवल भोली नादान लड़कियों की है बल्कि यहां हम बात ऐसी लड़कियों की भी कर रहे हैं जो आज के युग में सशक्तता की मिसाल बन चुकी थी.
अभी हाल ही में उत्तर प्रदेश बार कौंसिल अध्यक्ष पद के लिए निर्वाचित हुई कुमारी दरवेश यादव एडवोकेट की उनके साथी अधिवक्ता मनीष शर्मा ने कुछ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, केवल इसलिये हत्या कर दी कि दरवेश उनकी इच्छा के विरूद्ध एक पुलिस अधिकारी से मिलती थी जबकि मनीष शादी शुदा थे और दरवेश केवल उनकी साथी अधिवक्ता थी, न तो वह उनकी बहन थी और न ही उनसे किसी भी भावनात्मक रिश्ते में बंधी थी, केवल साथ काम करने के कारण मनीष शर्मा एडवोकेट उन पर ऐसे अधिकार समझने लगे जैसे वे उनकी संपत्ति हों.
ऐसे ही उत्तर प्रदेश के एटा जिले की जलेसर कोर्ट में सहायक अभियोजन अधिकारी के पद पर तैनात कुमारी नूतन यादव को उसके पुलिस क्वार्टर में हत्यारे द्वारा मुंह में पांच गोलियों के फायर कर मार दिया गया और पुलिस को प्राप्त काल डिटेल से पता लगता है कि नूतन के मंगेतर की काल ज्यादा थी और हत्यारे की कम, जिससे कुछ मीडिया रिपोर्ट के अनुसार यह ज़ाहिर होता है कि हत्यारे ने नूतन द्वारा खुद से अधिक मंगेतर को तरजीह दिए जाने पर हत्याकांड को अन्जाम दिया और ऐसा उसके द्वारा समाज में घर से बाहर निकली लड़की को अपनी संपत्ति सोच कर किया गया.
ये तो मात्र दो एक किस्से व हमारे देश के जिम्मेदार नेताओं के बयान हैं, जबकि देखा जाए तो स्थिति बहुत ज्यादा बदतर है. लड़कियों को इंसान का दर्जा न किसी पुरुष द्वारा, न परिवार द्वारा, न समाज द्वारा और न ही देश के प्रबुद्ध नागरिकों, नेताओं, समाजसेवियों द्वारा दिया जाता है बल्कि उनके द्वारा उन्हें पग पग पर अपनी सामाजिक कमजोर स्थिति का आकलन कर ही कुछ करने के निर्देश दिए जाते हैं और जहां कोई लड़की हिम्मत कर ऐसी स्थिति का मुकाबला करने के लिए खड़ी होती है तो उसके लिए अनर्गल प्रलाप कर उसे नीचा दिखाने की कोशिश की जाती है या फिर उसकी दरवेश यादव या नूतन यादव की तरह हत्या कर दी जाती है. शालिनी कौशिक एडवोकेट
(कौशल)
रविवार, 4 अगस्त 2019
बेटी और माँ - कविता
बेटी मेरी तेरी दुश्मन ,तेरी माँ है कभी नहीं ,
तुझको खो दूँ ऐसी इच्छा ,मेरी न है कभी नहीं .
......................................................................
नौ महीने कोख में रखा ,सपने देखे रोज़ नए ,
तुझको लेकर मेरे मन में ,भेद नहीं है कभी नहीं .
..................................................................
माँ बनने पर पूर्ण शख्सियत ,होती है हर नारी की ,
बेटे या बेटी को लेकर ,पैदा प्रश्न है कभी नहीं .
.......................................................................
माँ के मन की कोमलता ही ,बेटी से उसको जोड़े ,
नन्ही-नन्ही अठखेली से ,मुहं मोड़ा है कभी नहीं .
.........................................................................
सबकी नफरत झेल के बेटी ,लड़ने को तैयार हूँ,
पर सब खो देने का साहस ,मुझमे न है कभी नहीं .
....................................................................
कुल का दीप जलाने को ,बेटा ही सबकी चाहत ,
बड़े-बुज़ुर्गों की आँखों का ,तू तारा है कभी नहीं .
.......................................................................
बेटे का ब्याह रचाने को ,बहु चाहिए सबको ही ,
बेटी होने पर ब्याहने का ,इनमे साहस है कभी नहीं .
............................................................................
अपने जीवन ,घर की खातिर ,पाप कर रही आज यही ,
माफ़ न करना अपनी माँ को ,आना गर्भ में कभी नहीं .
..............................................................................
रो-रोकर माँ कहे ''शालिनी ''वसुंधरा भी सदा दुखी ,
बेटी के आंसू बहने से ,माँ रोक सकी है कभी नहीं .
.............................................................................
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
शनिवार, 3 अगस्त 2019
बेचारी नारी
निकल जाओ मेरे घर से
एक पुरुष का ये कहना
अपनी पत्नी से
आसान
बहुत आसान
किन्तु
क्या घर बनाना
उसे बसाना
सीखा कभी
पुरुष ने
पैसा कमाना
घर में लाना
क्या मात्र
पैसे से बनता है घर
नहीं जानता
घर
ईंट सीमेंट रेत का नाम नहीं
बल्कि
ये वह पौधा
जो नारी के त्याग, समर्पण ,बलिदान
से होता है पोषित
उसकी कोमल भावनाओं से
होता पल्लवित
पुरुष अकेला केवल
बना सकता है
मकान
जिसमे कड़ियाँ ,सरिये ही
रहते सिर पर सवार
घर
बनाती है नारी
उसे सजाती -सँवारती है
नारी
उसके आँचल की छाया
देती वह संरक्षण
जिसे जीवन की तप्त धूप
भी जला नहीं पाती है
और नारी
पहले पिता का
फिर पति का
घर बसाती जाती है
किन्तु न पिता का घर
और न पति का घर
उसे अपना पाता
पिता अपने कंधे से
बोझ उतारकर
पति के गले में डाल देता
और पति
अपनी गर्दन झुकते देख
उसे बाहर फेंक देता
और नारी
रह जाती
हमेशा बेघर
कही जाती
बेचारी
जिसे न मिले
जगह उस बगीचे में
जिसकी बना आती वो क्यारी- क्यारी .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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