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मंगलवार, 31 दिसंबर 2019
शनिवार, 28 दिसंबर 2019
बेचारी नहीं रहेगी पत्नी अब
योगी सरकार उत्तर प्रदेश में जब से आयी है बहुत से क्रांतिकारी बदलाव लेकर आयी है और अब उन्हीं बदलावों में एक और वृद्धि करने जा रही है यहां की पीड़ित महिलाओं या यूं कहें कि पीड़ित पत्नियों के लिए, तो ज्यादा उचित रहेगा, एक सुकून भरे जीवन की शुरुआत और वह यह है -
मतलब यह है कि प्रदेश में तीन तलाक पीड़ित व परित्यक्ता पत्नी की मदद का मसौदा तैयार कर लिया गया है और चालू वित्त वर्ष में यह लागू कर दिया जाएगा जिसमें 5000 तीन तलाक पीड़िताओं को और 5000 परित्यक्ताओं को साल में 6000 रुपये दिए जाया करेंगे और इसके लिए उन्हें केवल यह सबूत देना होगा कि उन्होंने पति के खिलाफ एफ आई आर कराई है या पति पर भरण पोषण के लिए मुकदमा किया है.
तो अब दीजिए योगी सरकार को धन्यवाद और अपनी चिंताओं को करिए किनारे क्योंकि कम से कम किसी सरकार को तो उनकी सुध आई.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
(कानूनी ज्ञान)
बुधवार, 18 दिसंबर 2019
सोमवार, 2 दिसंबर 2019
#क्या वाकई निर्भया?
जो दिखाई देता है, हम सभी जानते हैं कि वह हमेशा सत्य नहीं होता है किन्तु फिर भी हम कुछ ऐसी मिट्टी के बने हुए हैं कि तथ्यों की जांच परख किए बगैर दिखाए जा रहे परिदृश्य पर ही यकीन करते हैं और इसका फायदा भले ही कोई भी उठाता हो लेकिन हम अपनी भावुकतावश नुकसान में ही रहते हैं.
अभी दो दिन पहले ही तेलंगाना में एक पशु चिकित्सक डॉ प्रियंका रेड्डी की दुष्कर्म के बाद हत्या कर दी गयी और हत्या भी ऐसे कि लाश को इस बुरी तरह जला दिया गया कि उसकी पहचान का आधार बना एक अधजला स्कार्फ और गले में पड़ा हुआ गोल्ड पैंडैंट और मच गया चारों ओर कोहराम महिला के साथ निर्दयता का, सोशल मीडिया पर भरमार छा गई #kabtaknirbhaya की, सही भी है नारी क्या यही सब कुछ सहने को बनी हुई है, क्या वास्तव में उसका इस दुनिया में कुछ भी करना इतना मुश्किल है कि वह अगर घर से बाहर कहीं किसी मुश्किल में पड़ गई तो अपनी इज्ज़त, जिंदगी सब गंवाकर ही रहेगी, आज की परिस्थितियों में तो यही कहा जा सकता है किन्तु अगर बाद में सच कुछ और निकलता है तब हम सोशल मीडिया पर क्या लिखेंगे? सोचिए.
स्टार भारत पर प्रसारित किए जा रहे सावधान इंडिया में दिखाए गए एक सच ने मुझे यह सोचने पर मजबूर कर दिया और उनकी दिखाई गई एक सत्य घटना के बारे में सर्च की और थोड़ी मशक्कत के बाद मुझे वह घटना इस तरह प्राप्त भी हो गई, जिसे आप सब भी पढ़ सकते हैं -
कक्षा आठ की छात्रा आरती हाथरस के मुरसान थाना क्षेत्र के गांव करील में पिछले छह साल से अपने मामा भूरा के घर रह रही थी। गांव वालों ने बताया कि भूरा के घर से धुंआ उठने पर जब वे घर के अंदर गए तो उन्हें आरती जली मिली। थोड़ी देर तक तो वे समझे कि ये बहू ममता है, लेकिन बाद में उसकी पहचान आरती के रूप में हुई। दरअसल ग्रामीणों को आरती की पहचान में इसलिए गफलत हुई क्योंकि उसके हाथ में चूड़ियां और पांव में बिछुआ थे। ममता ने आरती को क्यों मारा, इस बारे में किसी को कुछ पता नहीं है। वारदात के समय मामी और भांजी ही घर पर थे।
ऐसे ही थोड़ा अवलोकन अब इस मामले का करते हैं, ध्यान दीजिये -
डॉक्टर को हैदराबाद-बेंगलुरु हाईवे पर स्थित जिस टोल प्लाजा पर आखिरी बार देखा था, वहां से करीब 30 किमी दूर एक किसान ने गुरुवार सुबह उसका जला हुआ शव देखा। उसने पुलिस को सूचना दी। पुलिस ने गुमशुदगी की रिपोर्ट के आधार पर डॉक्टर के परिवार के लोगों को घटनास्थल पर बुलाया। अधजले स्कार्फ और गले पड़े गोल्ड पेंडेंट से डॉक्टर के शव की पहचान हुई। पुलिस को आसपास से शराब की बोतलें भी मिलीं।
जैसे कि उपरोक्त पहले मामले में मृतका की पहचान चूड़ी और बिछुवे से कर आरती को ममता मान लिया गया था क्या ऐसे ही इस मामले में नहीं हो सकता है ? क्या यह प्रश्न विचारणीय नहीं है कि जिस आग ने शरीर की यह दशा कर दी वह स्कार्फ को अधजला छोड़ देती है ? सब ये कह रहे हैं कि यह शव डॉ प्रियंका रेड्डी का है क्योंकि स्कार्फ व गोल्ड पैंडैंट उसी के थे किंतु जब ममता अपनी चूडिय़ां व बिछुवे आरती को पहना कर गांव के लोगों के मन में यह बिठा सकती है कि वह शव आरती का है तो क्या अन्य कोई किसी और के शव को डॉ प्रियंका रेड्डी का शव मानने को विवश नहीं कर सकता है.
घटनाक्रम के अनुसार आरोपियों का कहना है कि उसे दुष्कर्म के दौरान ही चीखने से मुँह दबाकर मों आरिफ द्वारा रोका गया था जिसमें दम घुटने से वह मर गई थी ऐसे में उसके द्वारा आरोपियों को पहचानने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था और आमतौर पर आरोपियों द्वारा पीड़ित को तभी मारा जाता है जब वह उन्हें पहचान सकती हो और इसी क्रम में बहुत सी बार मारने का एक तरीका उसे जलाने के रूप में अपना लिया जाता है लेकिन यहां तो वह पहले ही मर चुकी थी और यह आरोपियों की जानकारी में था फिर उनके द्वारा उसकी लाश को ट्रक में ले जाया जाना, फिर पेट्रोल पम्प से पेट्रोल ख़रीदना और लाश को जलाकर फैंकना, ये सब बेवजह के खतरे मोल लेना ही कहा जाएगा, जो शायद कोई भी अपराधी नहीं करेगा.
ऐसे में, पूरी तरह से यह विश्वास कर हंगामा किया जाना कि वह लाश डॉ प्रियंका रेड्डी की है, सही प्रतीत नहीं होता. इसके लिए पहले जरूरी यह है कि उस लाश का डी एन ए टेस्ट हो और उसके बाद यदि यह साबित हो कि वह डॉ प्रियंका रेड्डी का शव है तब उसके लिए न्याय की मांग की जाए और इससे विपरीत परिस्थितियों में डॉ प्रियंका रेड्डी की ही तलाश की जाए.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
(कौशल)
शुक्रवार, 29 नवंबर 2019
न रुकने वाला वहशी सिलसिला
Hyderabad veterinary doctor Priyanka Reddy murder: Rape suspected, cops arrest 4 accused
#RIPPriyankaReddy
सोमवार, 25 नवंबर 2019
शिवांगी भारत का गौरव 🇮🇳
मुजफ्फरपुर/ पटना. वायुसेना के बाद अब नौसेना को भी देश की पहली महिला पायलट मिलने जा रही है। बिहार की शिवांगी स्वरूप देश की पहली नौसेना पायलट होंगी। वे कोच्चि (केरल) में प्रशिक्षण ले रही हैं। उन्हें 4 दिसंबर को नौसेना दिवस पर होने वाले समारोह में बैज लगाया जाएगा।
शिवांगी नौसेना कोच्चि में ऑपरेशन ड्यूटी में शामिल होंगी और फिक्स्ड-विंग डोर्नियर सर्विलांस विमान उड़ाएंगी। ये विमान कम दूरी के समुद्री मिशन पर भेजे जाते हैं। इसमें एडवांस सर्विलांस, रडार, नेटवर्किंग और इलेक्ट्रॉनिक सेंसर लगे होते हैं। शिवांगी को पिछले साल जून में वाइस एडमिरल एके चावला ने औपचारिक तौर पर नेवी में शामिल किया था।
एसएसबी के जरिए नेवी में हुआ चयन
शिवांगी ने 2010 में डीएवी पब्लिक स्कूल से सीबीएसई 10वीं की परीक्षा पास की। 10 सीजीपीए प्राप्त हुआ। साइंस स्ट्रीम से 12वीं करने के बाद इंजीनियरिंग की। एमटेक में दाखिले के बाद एसएसबी की परीक्षा के जरिए नेवी में सब लेफ्टिनेंट के रूप में चयनित हुईं। ट्रेनिंग के बाद पहली महिला पायलट के लिए चयन किया गया।
ये भी पहली महिलाएं
भावना कांत भारतीय वायुसेना में पहली महिला पायलट बनी थीं। वहीं, कराबी गोगाई नौसेना की पहली महिला डिफेंस अटैची हैं। असिस्टेंट लेफ्टिनेंट कमांडर गोगाई अगले माह रूस में तैनात की जाएंगी। वे कर्नाटक के करवार बेस पर रूसी भाषा में कोर्स कर रही हैं। वे युद्धपोत के निर्माण और उनकी मरम्मत में माहिर मानी जाती हैं।
(साभार भास्कर न्यूज)
संकलन
शालिनी कौशिक एडवोकेट
मंगलवार, 19 नवंबर 2019
Mujhe Yaad aaoge - Hindi Kavita Manch
मुझे याद आओगे
कभी तो भूल पाऊँगा तुमको,
मुश्क़िल तो है|
लेकिन,
मंज़िल अब वहीं है||
पहले तुम्हारी एक झलक को,
कायल रहता था|
लेकिन अगर तुम अब मिले,
तों भूलना मुश्किल होगा||
सोमवार, 18 नवंबर 2019
भारतीय ध्रुवतारा इंदिरा गांधी
जब ये शीर्षक मेरे मन में आया तो मन का एक कोना जो सम्पूर्ण विश्व में पुरुष सत्ता के अस्तित्व को महसूस करता है कह उठा कि यह उक्ति तो किसी पुरुष विभूति को ही प्राप्त हो सकती है किन्तु तभी आँखों के समक्ष प्रस्तुत हुआ वह व्यक्तित्व जिसने समस्त विश्व में पुरुष वर्चस्व को अपनी दूरदर्शिता व् सूक्ष्म सूझ बूझ से चुनौती दे सिर झुकाने को विवश किया है .वंश बेल को बढ़ाने ,कुल का नाम रोशन करने आदि न जाने कितने ही अरमानों को पूरा करने के लिए पुत्र की ही कामना की जाती है किन्तु इंदिरा जी ऐसी पुत्री साबित हुई जिनसे न केवल एक परिवार बल्कि सम्पूर्ण राष्ट्र गौरवान्वित अनुभव करता है और इसी कारण मेरा मन उन्हें ध्रुवतारा की उपाधि से नवाज़ने का हो गया और मैंने इस पोस्ट का ये शीर्षक बना दिया क्योंकि जैसे संसार के आकाश पर ध्रुवतारा सदा चमकता रहेगा वैसे ही इंदिरा प्रियदर्शिनी ऐसा ध्रुवतारा थी जिनकी यशोगाथा से हमारा भारतीय आकाश सदैव दैदीप्यमान रहेगा।
१९ नवम्बर १९१७ को इलाहाबाद के आनंद भवन में जन्म लेने वाली इंदिरा जी के लिए श्रीमती सरोजनी नायडू जी ने एक तार भेजकर कहा था -''वह भारत की नई आत्मा है .''
गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर ने उनकी शिक्षा प्राप्ति के पश्चात् शांति निकेतन से विदाई के समय नेहरु जी को पत्र में लिखा था -''हमने भारी मन से इंदिरा को विदा किया है .वह इस स्थान की शोभा थी .मैंने उसे निकट से देखा है और आपने जिस प्रकार उसका लालन पालन किया है उसकी प्रशंसा किये बिना नहीं रहा जा सकता .'' सन १९६२ में चीन ने विश्वासघात करके भारत पर आक्रमण किया था तब देश के कर्णधारों की स्वर्णदान की पुकार पर वह प्रथम भारतीय महिला थी जिन्होंने अपने समस्त पैतृक आभूषणों को देश की बलिवेदी पर चढ़ा दिया था इन आभूषणों में न जाने कितनी ही जीवन की मधुरिम स्मृतियाँ जुडी हुई थी और इन्हें संजोये इंदिरा जी कभी कभी प्रसन्न हो उठती थी .पाकिस्तान युद्ध के समय भी वे सैनिकों के उत्साहवर्धन हेतु युद्ध के अंतिम मोर्चों तक निर्भीक होकर गयी .
आज देश अग्नि -५ के संरक्षण में अपने को सुरक्षित महसूस कर रहा है इसकी नीव में भी इंदिरा जी की भूमिका को हम सच्चे भारतीय ही महसूस कर सकते हैं .भूतपूर्व राष्ट्रपति और भारत में मिसाइल कार्यक्रम के जनक डॉ.ऐ.पी.जे अब्दुल कलाम बताते हैं -''१९८३ में केबिनेट ने ४०० करोड़ की लगत वाला एकीकृत मिसाइल कार्यक्रम स्वीकृत किया .इसके बाद १९८४ में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी डी.आर.डी एल .लैब हैदराबाद में आई .हम उन्हें प्रैजन्टेशन दे रहे थे.सामने विश्व का मैप टंगा था .इंदिरा जी ने बीच में प्रेजेंटेशन रोक दिया और कहा -''कलाम !पूरब की तरफ का यह स्थान देखो .उन्होंने एक जगह पर हाथ रखा ,यहाँ तक पहुँचने वाली मिसाइल कब बना सकते हैं ?"जिस स्थान पर उन्होंने हाथ रखा था वह भारतीय सीमा से ५००० किलोमीटर दूर था .
इस तरह की इंदिरा जी की देश प्रेम से ओत-प्रोत घटनाओं से हमारा इतिहास भरा पड़ा है और हम आज देश की सरजमीं पर उनके प्रयत्नों से किये गए सुधारों को स्वयं अनुभव करते है,उनके खून की एक एक बूँद हमारे देश को नित नई ऊँचाइयों पर पहुंचा रही है और आगे भी पहुंचती रहेगी.
आज का ये दिन हमारे देश के लिए पूजनीय दिवस है और इस दिन हम सभी इंदिरा जी को श्रृद्धा पूर्वक नमन करते है .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
गुरुवार, 14 नवंबर 2019
महिला आयोग - ध्यान दें मोदी व योगी
भारत में महिलाओं की मदद हेतु केंद्र और राज्य दोनों में महिला आयोग का गठन किया गया है जिनसे संपर्क करने के लिए 1091 व 181 हेल्पलाइन की व्यवस्था भी की गयी है. साथ ही, उत्तर प्रदेश में इस आयोग से संपर्क के नंबर 1800-180-5220 है. दोनों ही आयोगों के बारे में मुख्य जानकारी निम्नलिखित है -
राष्ट्रीय महिला आयोग (अँग्रेजी: National Commission for Women, NCW) भारतीय संसद द्वारा 1990 में पारित अधिनियम के तहत जनवरी 1992 में गठित एक सांविधिक निकाय है।यह एक ऐसी इकाई है जो शिकायत या स्वतः संज्ञान के आधार पर महिलाओं के संवैधानिक हितों और उनके लिए कानूनी सुरक्षा उपायों को लागू कराती है। आयोग की पहली प्रमुख सुश्री जयंती पटनायक थीं। 17 सितंबर, 2014 को ममता शर्मा का कार्यकाल पूरा होने के पश्चात ललिता कुमारमंगलम को आयोग का प्रमुख बनाया गया था,मगर पिछले साल सितंबर में पद छोड़ने के बाद रेखा शर्मा को कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर यह संभाल रही थी,और अब रेखा शर्मा को राष्ट्रीय महिला आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है।
राष्ट्रीय महिला आयोग का उद्देश्य -
भारत में महिलाओं के अधिकारों का प्रतिनिधित्व करने के लिए और उनके मुद्दों और चिंताओं के लिए एक आवाज प्रदान करना है। आयोग ने अपने अभियान में प्रमुखता के साथ दहेज, राजनीति, धर्म और नौकरियों में महिलाओं के लिए प्रतिनिधित्व तथा श्रम के लिए महिलाओं के शोषण को शामिल किया है, साथ ही महिलाओं के खिलाफ पुलिस दमन और गाली-गलौज को भी गंभीरता से लिया है।
बलात्कार पीड़ित महिलाओं के राहत और पुनर्वास के लिए बनने वाले कानून में राष्ट्रीय महिला आयोग की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। अप्रवासी भारतीय पतियों के जुल्मों और धोखे की शिकार या परित्यक्त महिलाओं को कानूनी सहारा देने के लिए आयोग की भूमिका भी अत्यंत सराहनीय रही है।
आयोग के कार्य -
1.आयोग के कार्यों में संविधान तथा अन्य कानूनों के अंतर्गत महिलाओं के लिए उपबंधित सुरक्षापायों की जांच और परीक्षा करना है। साथ ही उनके प्रभावकारी कार्यांवयन के उपायों पर सरकार को सिफारिश करना और संविधान तथा महिलाओं के प्रभावित करने वाले अन्य कानूनों के विद्यमान प्रावधानों की समीक्षा करना है।
2.इसके अलावा संशोधनों की सिफारिश करना तथा ऐसे कानूनों में किसी प्रकार की कमी, अपर्याप्तता, अथवा कमी को दूर करने के लिए उपचारात्मक उपाय करना है।
3.शिकायतों पर विचार करने के साथ-साथ महिलाओं के अधिकारों के वंचन से संबंधित मामलों में अपनी ओर से ध्यान देना तथा उचित प्राधिकारियों के साथ मुद्दे उठाना शामिल है।
4.भेदभाव और महिलाओं के प्रति अत्याचार के कारण उठने वाली विशिष्ट समस्याओं अथवा परिस्थितियों की सिफारिश करने के लिए अवरोधों की पहचान करना, महिलाओं के सामाजिक आर्थिक विकास के लिए योजना बनाने की प्रक्रिया में भागीदारी और सलाह देना तथा उसमें की गई प्रगति का मूल्यांकन करना इनके प्रमुख कार्य हैं।
5.साथ ही कारागार, रिमांड गृहों जहां महिलाओं को अभिरक्षा में रखा जाता है, आदि का निरीक्षण करना और जहां कहीं आवश्यक हो उपचारात्मक कार्रवाई किए जाने की मांग करना इनके अधिकारों में शामिल है। आयोग को संविधान तथा अन्य कानूनों के तहत महिलाओं के रक्षोपायों से संबंधित मामलों की जांच करने के लिए सिविल न्यायालय की शक्तियां प्रदान की गई हैं।
और उत्तर प्रदेश महिला आयोग -
प्रदेश में महिलाओं के उत्पीड़न सम्बन्धी शिकायतों के निस्तारण , विकास की प्रकिया में सरकार को सलाह देने तथा उनके सशक्तिकरण हेतु आवश्यक कदम उठाने के उद्देश्य को लेकर 2002 में महिला आयोग का गठन किया गया था। वर्ष 2004 में आयोग के कियाकलापों को कानूनी आधार प्रदान करने के लिए उ.प्र. राज्य महिला आयोग अधिनियम 2004 अस्तित्व में आया। तत्पश्चात पुन: जून 2007 में अधिनियम में कतिपय संशोधन कर आयोग का पुनर्गठन किया गया। पुन: दिनांक 26 अप्रैल 2013 को अधिनियम में आवश्यक संशोधन कर आयोग का पुनर्गठन किया गया।
आयोग का उद्देश्य-
महिलाओं के कल्याण, सुरक्षा, संरक्षण के अधिकारों की रक्षा करना ।
महिलाओं के शैक्षिक, आर्थिक तथा सामाजिक विकास के लिए निरंतर प्रयासरत रहना ।
महिलाओं को दिये गये संवैधानिक एवं विधिक अधिकारों से सम्बद्ध उपचारी उपायों के लिए अनुश्रवण के उपरान्त राज्य सरकार को सुझाव एवं संस्तुतियां प्रेषित करना ।
आयोग की शक्तियाँ-
आयोग को किसी वाद का विचारण करने के लिए सिविल न्यायालय को प्राप्त शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार जैसे :-
सम्मन करना ।
दस्तावेज मंगाना ।
लोक अभिलेख प्राप्त करना ।
साक्ष्यों और अभिलेखों के परीक्षण के लिए कमीशन जारी करना आदि ।
कार्यक्षेत्र-
आयोग को किसी वाद का विचारण करने के लिए सिविल न्यायालय को प्राप्त शक्तियों का प्रयोग करने का अधिकार जैसे :-
महिलाओं के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा ।
महिलाओं का सशक्तिकरण ।
महिला उत्पीडन सम्बंधी शिकायतों पर प्रभावी कार्यवाही करना ।
बाल विवाह, दहेज एवं भ्रूण हत्या रोकना ।
कार्य स्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीडन पर रोक ।
महिलाओं से सम्बंधित कानून में आवश्यकतानुसार संशोधन हेतु शासन को संस्तुतियां करना ।
महिलाओं से सम्बंधित योजनाओं का प्रभावी रूप से क्रियान्वयन करना ।
महिला कारागारों, चिकित्सालयों, छात्रावासों, संरक्षण गृहों तथा अन्य सदृश्य गृहों का निरीक्षण ।
दोनों ही आयोगों के उद्देश्यों में महिलाओं की मदद करना शामिल किया गया है किन्तु अगर वास्तविक स्थिति का अवलोकन किया जाए तो परिणाम शून्य है क्योंकि महिलाओं की स्थिति आज क्या है वह केंद्र हो या यू पी, सभी जानते हैं और महिलाओं के द्वारा इन सेवाओं का उपयोग भी करने की कोशिश की जाती है किन्तु स्थानीय स्तर पर जितना मैं जानती हूं महिलाओं को अब तक एक बार भी इन आयोगों से कोई लाभ नहीं मिला है. ऐसे में यही कहा जा सकता है कि महिलाओं की गंभीर स्थिति को ध्यान में रखते हुए केंद्र और उत्तर प्रदेश दोनों की सरकारों को इस ओर ध्यान देना चाहिए.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
(कानूनी ज्ञान)
मंगलवार, 12 नवंबर 2019
बुधवार, 6 नवंबर 2019
Rural Indian women (ग्रामीण भारतीय नारी): India's most underrated population
आज कल शहरो में फेमिनिज्म की आवाज बड़ी तेजी स्वर पकड़ रही है, सोशल मीडिया साइट्स पर मुहिमे चलायी जा रही है , महिलाएं खासकर युवा यानि हमारी हमउम्र ,महिलाओ के मुद्दों पर खुल कर सामने आ रही है फिर चाहे वह मुद्दा बीते दशक से उठ रहा समान वेतमान का हो या फिर मासिक धर्म और सेनेटरी पैड्स के उपयोग जैसे मुद्दा | जिसका उल्लेख भी आज से कुछ वर्ष पहले तक किया जाना अपवित्र माना जाता था ।
गाँव की नारी ,सब पर भारी
यह तो हो गयी शहरों की बात अब बात करते है भारतीय समाज के उस तबके की जिसकी व्याख्या अंग्रेजी के शब्द "underated" से की जा सकती है वह है "ग्रामीण महिला" जिसका उल्लेख न तो रोज रोज अखबारों में होता है, न ही यह तबका टीवी पर खिड़कियों में बैठा बहस करता दिखेगा पर है तो यह भारतीय समाज का सबसे अहम तबका जो इस आधुनिकता के दौर में जहाँ पश्चिम की तरफ से चल रही हवा हमारे रहन सहन में मिलावट कर रही है उसी दौर में ग्रामीण महिलाएं आज भी नैतिकता और सरलता का झंडा उठाए झूझ रही है और जिस बराबरी के हक़ की आवाज को आज लोग फेमिनिज्म की उपमा दे रहे है यह महिलाएं सदियों पहले से उसके लिए संघर्षरत है,
स्त्रियों को काम करने की आजादी देना जो आज के इस सोशल मीडिया के महिला शसक्तीकरण की सबसे बड़ी मांग है उसमे ग्रामीण महिलाएं शुरू से अग्रसर रही है ग्रामीण भारत के प्रमुख व्यवसाय कृषि में देखा जाये तो महिलाएं पुरुषों से कंधे से कन्धा मिलाये चल रही है और जब बात शिक्षा की आती है तो इस वक्त लड़कियों की शिक्षा दर में उल्लेखनीय बढ़ोतरी हुई है और अगर राजनितिक क्षेत्र में देखा जाये तो ग्राम पंचायत में 50% आरक्षण ने महिलाओं को इस मोर्चे पर भी मजबूती प्रदान की है ।
शहरी और ग्रामीण महिला
अब अगर तुलनात्म बात की जाये तो यह तो मानना पड़ेगा की भारत में दो अलग देश बसते है शहरीय भारत और ग्रामीण भारत जिनका लक्ष्य एक है पर जरूरते अलग अलग है और किसी भी मुद्दे पर विश्लेषण करने के लिए सिक्के के दोनों पहलु देखना जरूरी है | एक जगह जहाँ शहरीय इलाको में महिला शक्तिकरण बहुत आगे निकल गया है पर उसके साथ ही इसमें कही कही एक नकलीपन भी नजर आता है नशीले पदार्थो के सेवन ,पुरुषों के प्रति कट्टरपन भी आदि भी इसमें आ चुके है ,जिसका उदहारण हाल फिलहाल में बॉलीवुड में शुरू हुए एक सम्मानीय कदम #metoo है जो भी अंत में जाते जाते पब्लिसिटी के ढोंग की भेंट चढ़ गया और जो झूठे आरोपो की भीड़ में सच्चे खुलासों पर से भी लोगो का विश्वास उठ गया | वही दूसरी और ग्रामीण भारत में इसकी गति धीमी जरूर है पर वहाँ यह भोंडापन और नकलीपन नहीं है परन्तु समस्याएं यहाँ भी है रफ़्तार बहुत धीमी अपनी आवाज बुलंद करने में और समस्याएं कहने में हिचकिचाहट है कुछ और भी पहलू है जैसे जिन गांवों में महिला सरपंच है उनमे से ज्यादातर में ताकत आज भी सरपँच पति, पिता या परिवार के किसी पुरुष के पास है ।
सीधा लेखक के दिल से :
बस यही था भारत में दो तरह के महिला शक्तिकरण पर छोटा सा लेख जितनी समझ है दोनों जगहों की उतना ही लिखा है ,
माना उम्र कम है , अनुभव ज्यादा नहीं है इसीलिए कुछ चीजो में परिपक्वता की कमी हो सकती है इसीलिए आपके सुझाव और स्वस्थ बहस के लिए आप सब कमेंट बॉक्स में आमंत्रित है
मेरी जिंदगी में दखल रखने वाली सभी महिलाओं को मेरा शत शत नमन 🙏
जय हिंद🙏
-आपका
✍️शुभम जाट
लेखक पर्सनल ब्लॉग : युवा भारत
लेखक पर्सनल ब्लॉग : युवा भारत
बुधवार, 30 अक्टूबर 2019
मोदी के अभियान पर जैन महिला भारी
श्री नरेन्द्र मोदी ने स्वच्छ भारत मिशन की नई दिल्ली, राजपथ पर शुरूआत करते हुए कहा था कि “एक स्वच्छ भारत के द्वारा ही देश 2019 में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती पर अपनी सर्वोत्तम श्रद्धांजलि दे सकते हैं।” 2 अक्टूबर, 2014 को स्वच्छ भारत मिशन देश भर में व्यापक तौर पर राष्ट्रीय आंदोलन के रूप में शुरू किया गया था। इस अभियान के अंतर्गत 2 अक्टूबर 2019 तक “स्वच्छ भारत” की परिकल्पना को साकार करने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है।
स्वच्छता के जन अभियान की अगुआई करते हुए प्रधान मंत्री ने जनता को महात्मा गांधी के स्वच्छ और स्वास्थ्यवर्धक वातावरण वाले भारत के निर्माण के सपने को साकार करने के लिए प्रेरित किया। श्री नरेन्द्र मोदी ने स्वयं मंदिर मार्ग पुलिस थाने में स्वच्छता अभियान को शुरू किया। धूल-मिट्टी को साफ़ करने के लिए झाडू उठाकर स्वच्छ भारत अभियान को पूरे राष्ट्र के लिए एक जन-आंदोलन का रूप दिया और कहा कि लोगों को न तो स्वयं गंदगी फैलानी चाहिए और न ही किसी और को फैलाने देना चाहिए। उन्होंने “न गंदगी करेंगे, न करने देंगे।” का मंत्र भी दिया। श्री नरेन्द्र मोदी ने नौ लोगों को स्वच्छता अभियान में शामिल होने के लिए भी आमंत्रित किया और उनमें से हर एक से यह अनुरोध किया वो अन्य नौ लोगों को इस पहल में शामिल होने के लिए प्रेरित करें।
लोगों को इस अभियान में शामिल होने का आह्वान करके स्वच्छता अभियान एक राष्ट्रीय आंदोलन का रूप ले चुका है। स्वच्छ भारत अभियान के संदेश ने लोगों के अंदर उत्तरदायित्व की एक अनुभूति जगा दी है और अब जबकि अधिकांश नागरिक पूरे देश में स्वच्छता के कामों में सक्रिय रूप से सम्मिलित हो रहे हैं, ऐसे में लगता ये था कि महात्मा गांधी द्वारा देखा गया ‘स्वच्छ भारत’ का सपना अब साकार होने लगा है किन्तु भारत जैसे देश में अगर देखा जाए तो " वादडिया सुजादडिया जप शरीरा नाल" अर्थात बचपन की लगी आदतें शरीर के साथ ही जाती हैं ऐसे में जगह-जगह कूड़ा फैलाने की भारतवासियों की ये आदत भी लगता नहीं कि जाएगी.
4 जुलाई 2019 को हम दो बहनों द्वारा इसी अभियान के मद्देनजर अपने घर के पास के स्थान को सार्वजनिक कूड़ा स्थल के कलंक से मुक्ति दिलाने के लिए अभियान शुरू किया गया जिसमें हमें वर्तमान एस. डी. एम. श्री अमित पाल शर्मा जी व अधिशासी अधिकारी नगरपालिका परिषद् कांधला श्री राजबली यादव जी का पूर्ण रूप से सहयोग प्राप्त हुआ और इसी कारण हमने इस अभियान में क्षेत्र के सफाई कर्मचारी सतीश, राम किशन, सुषमा आदि के सहयोग से लगभग सफलता प्राप्त की, कमी अगर थी तो बस ये थी कि इसमें क्षेत्र के कथित अभिजात्य वर्ग का पूर्ण सहयोग नहीं मिल पा रहा था जिससे निबटने के लिए हमने नगरपालिका के सहयोग से एक बोर्ड लगाया जिसपर यह लिखा था कि
यहां कूड़ा डालना मना है और कूड़ा डालने वाले का चालान काटा जाएगा - आज्ञा से अधिशासी अधिकारी नगरपालिका परिषद् कांधला
किन्तु दुखद यह रहा कि बोर्ड लगने के बाद उसी शाम को घर के सामने के स्कूल नेशनल चिल्ड्रन एकेडमी द्वारा ही वहां बोर्ड के पास कूड़ा डाल दिया गया और बोर्ड लगना भी इसका कोई समाधान नज़र नहीं आया परिणाम स्वरूप दिन भर वहां खड़े रह कर कूड़ा डालने से रोकने की ड्यूटी जारी रही, सीसी टी वी कैमरे लगवाये कुछ फायदा हुआ पर पूरा नहीं, फिर दिमाग में आया कि लोगों की भगवान के प्रति आस्था को देखते हुए यहां मंदिर का निर्माण कराया जाए और करते करते 5 सितंबर 2019 को राम दरबार की स्थापना कराकर एक मंदिर की स्थापना भी करा दी गई
यहां कूड़ा डालना मना है और कूड़ा डालने वाले का चालान काटा जाएगा - आज्ञा से अधिशासी अधिकारी नगरपालिका परिषद् कांधला
किन्तु दुखद यह रहा कि बोर्ड लगने के बाद उसी शाम को घर के सामने के स्कूल नेशनल चिल्ड्रन एकेडमी द्वारा ही वहां बोर्ड के पास कूड़ा डाल दिया गया और बोर्ड लगना भी इसका कोई समाधान नज़र नहीं आया परिणाम स्वरूप दिन भर वहां खड़े रह कर कूड़ा डालने से रोकने की ड्यूटी जारी रही, सीसी टी वी कैमरे लगवाये कुछ फायदा हुआ पर पूरा नहीं, फिर दिमाग में आया कि लोगों की भगवान के प्रति आस्था को देखते हुए यहां मंदिर का निर्माण कराया जाए और करते करते 5 सितंबर 2019 को राम दरबार की स्थापना कराकर एक मंदिर की स्थापना भी करा दी गई
हम दोनों के साथ साथ हमारे बहुत से मिलने जुलने वालों का भी यही ख्याल था कि अब कोई भी व्यक्ति यहां कूड़ा नहीं डालेगा, 50 दिन करीब सब ठीक रहा पर फिर महिला सशक्तीकरण उभरकर सामने आया और सुबह 6 बजकर 11 मिनट पर एक जैन महिला द्वारा इस मिथक को तोड़ दिया गया
और ये महिला वह थी जिसने हमारे अभियान का प्रति पल निरीक्षण किया था, पढ़ी-लिखी थी इसलिए बोर्ड भी पढ़ा था और जैन थी इसलिए हिन्दू धर्म के भगवान श्री राम को भी भली भांति जानती थी और यह भी नहीं कहा जा सकता कि वह प्रधानमंत्री स्वच्छता अभियान से नावाकिफ थी ऐसे में यह सोचना कि मोदी जी के द्वारा इस देश को गंदगी से निकालने का पुनीत अभियान सफल हो जाएगा, कोरी कल्पना ही है क्योंकि अपने घर का कूड़ा सब निकालना चाहते हैं लेकिन अपने दिमाग का कूड़ा चंद समझदार लोग ही, अधिकांश ऐसे ही हैं जो अपने घर से कूड़ा निकालकर दूसरे के घर के आगे चुपके से डाल कर निकल लेते हैं और स्वयं सफाई के ठेकेदार बने फिरते हैं.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
(कौशल)
गुरुवार, 24 अक्टूबर 2019
समाज महिलाओं की प्रतिभा को उचित सम्मान दे
समाज
महिलाओं की प्रतिभा को उचित सम्मान दे
समय निरंतर बदलता रहता है, उसके साथ समाज भी
बदलता है और सभ्यता भी विकसित होती है।लेकिन समय की इस यात्रा में अगर उस समाज की
सोच नहीं बदलती तो वक्त ठहर सा जाता है।
1901 में जब नोबल पुरस्कारों की शुरुआत होती है और 118 सालों बाद 2019 में जब नोबल पुरस्कार
विजेताओं के नामों की घोषणा होती है तो कहने को इस दौरान 118 सालों का लंबा समय बीत चुका होता है लेकिन महसूस कुछ
ऐसा होता है कि जैसे वक्त थम सा गया हो।
क्योंकि 2019 इक्कीसवीं सदी का वो दौर है जब विश्व भर की महिलाएं डॉक्टर
इंजीनियर प्रोफेसर पायलट वैज्ञानिक से लेकर हर क्षेत्र में अपना योगदान दे रही हैं। यहाँ तक कि हाल ही के भारत के महत्वकांक्षी
चंद्रयान 2
मिशन का
नेतृत्व करने वाली टीम में दो महिला वैज्ञानिकों के अलावा पूरी टीम में लगभग 30% महिलाएं थीं। कमोबेश
यही स्थिति विश्व के हर देश के उन विभिन्न चनौतीपूर्ण क्षेत्रों में भी महिलाओं के होने की
है जो महिलाओं के लिए वर्जित से माने जाते थे जैसे खेल जगत,सेना, पुलिस, वकालत, रिसर्च आदि।
सालों के इस सफर में यद्यपि महिलाओं ने एक लंबा
सफर तय कर लिया लेकिन 2019 में भी जब नोबल जैसे अन्य प्रतिष्ठित पुरुस्कार पाने वालों
के नाम सामने आते हैं तो उस सूची को देखकर लगता है कि सालों का यह सफर केवल वक्त ने तय
किया और महिला कहीं पीछे ही छूट गई। शायद इसलिए 2018 में पिछले 55 सालों में भौतिकी के
लिए नोबल पाने वाली पहली महिला वैज्ञानिक डोना स्ट्रिकलैंड ने कहा था, "मुझे हैरानी नहीं
है कि अपने विषय में
नोबल पाने वाली 1901 से लेकर अब तक मैं तीसरी महिला हूँ, आखिर हम जिस दुनिया में रहते हैं वहाँ पुरूष ही
पुरूष तो नज़र आते हैं।" आश्चर्य नहीं कि 97% विज्ञान के नोबल पुरस्कार विजेता पुरूष वैज्ञानिक हैं। 1901 से 2018 के बीच भौतिक शास्त्र
के लिए 112
बार
नोबल पुरस्कार दिया गया जिसमें से सिर्फ तीन बार किसी महिला को नोबल मिला। इसी
प्रकार रसायन शास्त्र, मेडिसीन, अर्थशास्त्र के क्षेत्र में भी लगभग यही असंतुलन दिखाई देता है।
इनमें 688
बार
नोबल दिया गया जिसमें से केवल 21 बार महिलाओं को मिला। अगर अबतक के कुल नोबल पुरस्कार विजेताओं की
बात की जाए तो यह पुरस्कार विभिन्न क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान के लिए 892 लोगों को दिया गया है जिसमें
से 844 पुरूष हैं और 48 महिलाएं। विभिन्न
वैश्विक मंचों पर जब लैंगिक समानता की बड़ी बड़ी बातें की जाती हैं तो अंतरराष्ट्रीय
स्तर के किसी पुरस्कार के ये आंकड़े निश्चित ही वर्तमान कथित आधुनिक समाज की कड़वी
सच्चाई सामने ले आते हैं। इस विषय का विश्लेषण करते हुए ब्रिटिश साइंस जर्नलिस्ट एंजेला
सैनी ने
"इन्फीरियर"
अर्थात हीन नाम की एक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में विभिन्न वैज्ञानिकों के
इंटरवियू हैं और कहा गया है कि वैज्ञानिक शोध खुद औरतों को कमतर मानते हैं जिनकी
एक वजह यह है कि उन शोधों को करने वाले पुरूष ही होते हैं। अमेरिका की साइंस
हिस्टोरियन मार्गरेट डब्लू रोसिटर ने 1993 में ऐसी सोच को माटिल्डा इफ़ेक्ट नाम दिया था जब महिला वैज्ञानिकों
के प्रति एक तरह का पूर्वाग्रह होता है जिसमें उनकी उपलब्धियों को मान्यता देने के
बजाए उनके काम का श्रेय उनके पुरुष सहकर्मियों को दे दिया जाता है और आपको जानकर हैरानी
होगी कि इसकी संभावना 95% होती है। क्लोडिया
रैनकिन्स जो सोसाइटी ऑफ स्टेम वीमेन की सह संस्थापक हैं, इस विषय में उनका कहना है कि इतिहास में नेटी स्टीवेंस, मारीयन डायमंड और
लिसे मीटनर जैसी कई महिला वैज्ञानिक हुई हैं जिनके काम का श्रेय उनके बजाए उनके पुरुष
सहकर्मियों को दिया गया। दरअसल लिसे मीटनर ऑस्ट्रेलियाई महिला वैज्ञानिक थीं
जिन्होंने न्यूक्लियर फिशन की खोज की थी लेकिन उनकी बजाए उनके पुरूष सहकर्मी
ओटो हान को 1944
का नोबल
मिला।
अगर आप इस कथन के विरोध में नोबल
पुरस्कार के शुरुआत यानी 1903 में ही मैडम क्यूरी को नोबल दिए जाने का तर्क प्रस्तुत करना चाहते हैं तो आपके
लिए इस घटना के पीछे का सच जानना रोचक होगा जो अब इतिहास में दफन हो चुका है। यह
तो सभी जानते हैं कि रेडिएशन की खोज मैडम क्यूरी और उनके पति पियरे क्यूरी दोनों
ने मिलकर की थी लेकिन यह एक तथ्य है कि 1902 में जब इस कार्य के लिए नामांकन दाखिल किया गया था तो नोबल कमिटी द्वारा मैडम
क्यूरी को नामित नहीं किया गया था, सूची में केवल पियरे क्यूरी का ही नाम था । पियरे क्यूरी के एतराज
और विरोध के कारण मैडम क्यूरी को भी नोबल पुरस्कार दिया गया और इस प्रकार 1903 में वो इस पुरस्कार को
पाने वाली पहली महिला वैज्ञानिक और फिर 1911 में रेडियम की खोज करके दूसरी बार नोबल पाने वाली पहली महिला बनीं।
स्पष्ट है कि प्रतिभा के बावजूद महिलाओं को लगभग हर क्षेत्र में
कमतर ही आंका जाता है और उन्हें काबलियत के बावजूद जल्दी आगे नहीं बढ़ने दिया जाता।
2018 की नोबल पुरस्कार
विजेता डोना स्ट्रिकलैंड दुनिया के सामने इस बात का जीता जागता उदाहरण हैं जो अपनी काबलियत के बावजूद सालों से कनाडा की
प्रतिष्ठित वाटरलू यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर ही कार्यरत रहीं थीं। इस पुरस्कार के
बाद ही उन्हें प्रोफेसर पद
की पदोन्नति दी गई।
आप कह सकते हैं कि पुरूष प्रधान समाज में यह आम
बात है। आप सही भी हो सकते हैं। किंतु
मुद्दा कुछ और है। दरअसल यह आम बात तो हो सकती है लेकिन यह "साधारण" बात नहीँ हो सकती।
क्योंकि यहाँ हम किसी साधारण क्षेत्र के आम पुरुषों की बात नहीं कर रहे बल्कि
विभिन्न क्षेत्रों के असाधारण वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री, गणितज्ञ, साहित्यकार पुरुषों की बात कर रहे हैं जिनकी असाधारण बौद्धिक
क्षमता
और
जिनका मानसिक स्तर उन्हें आम पुरुषों से अलग करता है। लेकिन खेद का विषय यह है कि
महिलाओं के प्रति इनकी मानसिकता उस भेद को मिटाकर इन कथित इंटेलेकचुअल पुरुषों को
आम पुरुष की श्रेणी में लाकर खड़ा कर देती है । पुरूष वर्ग की मानसिकता का अंदाजा ई
-लाइफ जैसे साइंटिफिक जर्नल की इस रिपोर्ट से लगाया जा सकता है कि केवल 20% महिलाएं ही वैज्ञानिक
जर्नल की संपादक, सीनियर स्कॉलर और लीड ऑथर जैसे पदों पर पहुंच पाती हैं। आप कह सकते
हैं कि इन क्षेत्रों में महिलाओं की संख्या और उपस्थिति पुरुषों की अपेक्षा कम
होती है। इस विषय पर भी कोपेनहेगेन यूनिवर्सिटी की लिसोलेट जौफ्रेड ने एक रिसर्च की थी
जिसमें उन्होंने यू एस नेशनल साइंस फाउंडेशन से इस क्षेत्र के 1901 से 2010 तक के जेंडर आधारित
आंकड़े लिए और इस अनुपात की तुलना नोबल पुरस्कार पाने वालों की लिंगानुपात से की।
नतीजे बेहद असमानता प्रकट कर रहे थे। क्योंकि जिस अनुपात में महिला
वैज्ञानिक हैं उस अनुपात में उन्हें जो नोबल मिलने चाहिए वो नहीं मिलते।
जाहिर है इस प्रकार का भेदभाव आज के आधुनिक और
तथाकथित सभ्य समाज की पोल खोल देता है।लेकिन अब महिलाएँ जागरूक हो रही हैं। वो
वैज्ञानिक बनकर केवल विज्ञान को ही नहीं समझ रहीं वो इस पुरूष प्रधान समाज के
मनोविज्ञान को भी समझ रही हैं। वो पायलट बनकर केवल आसमान में नहीं उड़ रहीं बल्कि
अपने हिस्से के आसमाँ को मुट्ठी में कैद भी कर रही हैं। यह सच है कि अब तक स्त्री पुरूष के
साथ कदम से कदम मिलाकर सदियों का सफर तय कर यहाँ तक पहुंची है, इस सच्चाई को वो स्वीकार करती है और इस साथ के लिए पुरूष की सराहना भी
करती है।
लेकिन
अब पुरूष की बारी है कि वो स्त्री की काबलियत को उसकी प्रतिभा को स्वीकार करे और
उसको यथोत्तचित सम्मान दे जिसकी वो हक़दार है।
डॉ नीलम महेंद्र
लेखिका वरिष्ठ स्तंभकार हैं
शुक्रवार, 18 अक्टूबर 2019
पति पे भारी - आज की नारी
दिखावा और औरतें आज के समय में एक दूसरे के पर्याय बने हुए हैं. थे तो पहले से ही, पर आज कुछ ज्यादा ही हो गए हैं और ऐसा नहीं है कि ऐसा मैं किसी व्यक्तिगत चिढ़ की वजह से कह रही हूँ बल्कि मैंने आज की औरतों को देखा है और महसूस किया है कि महज दिखावे के लिए ये अपनी सारी जिंदगी तबाह कर लेती हैं.
अभी कल ही करवा चौथ का त्यौहार मनाया गया, त्यौहार कल था पर तैयारियां पिछले 10 दिनों से शुरू थी, ठीक मुसलमान औरतों की तरह, जैसे मुसलमान औरतें ईद के मौके पर घर के काम के समान, पहनने ओढ़ने के कपड़े, चप्पल, श्रंगार के समान आदि सभी कुछ खरीदने में पैसा जाया करती फिरती हैं जैसे घर में सब कुछ खत्म ही हो गया हो ठीक वैसे ही अब हिन्दू औरतें भी करवा चौथ पर चूड़ी श्रंगार की दुकानों पर ऐसे खड़ी रहती हैं जैसे अब तक तो इन चीजों के बगैर रह रही थी और इस सब का कारण केवल इतना है कि पडोस वाली ले रही है तो हम ही पीछे क्यूँ रहें भले ही पति की मेहनत की कमाई को ही लुटाना पड़ जाए.
ऐसा ही करवा चौथ के व्रत के अनुष्ठान में हो रहा है, मम्मी जब करवा चौथ का व्रत करती थी तब वे बाजार से एक करवा मंगाती थी और करवा पानी से भरकर मंदिर में रखती थीं साथ ही एक लाल चूड़ी का डिब्बा मंगाती थी, दिन भर भूखी रहकर शाम को करवा चौथ व्रत की कथा हमें सुनाती थी और वह कहानी यह होती थी. करवा चौथ की कहानी के अनुसार -
"सबसे प्रचलित कथा
एक ब्राह्मण के सात पुत्र थे और वीरावती नाम की इकलौती पुत्री थी। सात भाइयों की अकेली बहन होने के कारण वीरावती सभी भाइयों की लाडली थी और उसे सभी भाई जान से बढ़कर प्रेम करते थे. कुछ समय बाद वीरावती का विवाह किसी ब्राह्मण युवक से हो गया। विवाह के बाद वीरावती मायके आई और फिर उसने अपनी भाभियों के साथ करवाचौथ का व्रत रखा लेकिन शाम होते-होते वह भूख से व्याकुल हो उठी। सभी भाई खाना खाने बैठे और अपनी बहन से भी खाने का आग्रह करने लगे, लेकिन बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह खाना सिर्फ चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्य देकर ही खा सकती है। लेकिन चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल हो उठी है।
वीरावती की ये हालत उसके भाइयों से देखी नहीं गई और फिर एक भाई ने पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर चलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा लगा की चांद निकल आया है। फिर एक भाई ने आकर वीरावती को कहा कि चांद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देने के बाद भोजन कर सकती हो। बहन खुशी के मारे सीढ़ियों पर चढ़कर चांद को देखा और उसे अर्घ्य देकर खाना खाने बैठ गई।उसने जैसे ही पहला टुकड़ा मुंह में डाला है तो उसे छींक आ गई। दूसरा टुकड़ा डाला तो उसमें बाल निकल आया। इसके बाद उसने जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुंह में डालने की कोशिश की तो उसके पति की मृत्यु का समाचार उसे मिल गया।
उसकी भाभी उसे सच्चाई से अवगत कराती है कि उसके साथ ऐसा क्यों हुआ। करवा चौथ का व्रत गलत तरीके से टूटने के कारण देवता उससे नाराज हो गए हैं। एक बार इंद्र देव की पत्नी इंद्राणी करवाचौथ के दिन धरती पर आईं और वीरावती उनके पास गई और अपने पति की रक्षा के लिए प्रार्थना की। देवी इंद्राणी ने वीरावती को पूरी श्रद्धा और विधि-विधान से करवाचौथ का व्रत करने के लिए कहा। इस बार वीरावती पूरी श्रद्धा से करवाचौथ का व्रत रखा। उसकी श्रद्धा और भक्ति देख कर भगवान प्रसन्न हो गए और उन्होंनें वीरावती सदासुहागन का आशीर्वाद देते हुए उसके पति को जीवित कर दिया। इसके बाद से महिलाओं का करवाचौथ व्रत पर अटूट विश्वास होने लगा।"
कहानी सुनाने के बाद चांद निकलने का इंतजार करती थी और चांद निकलने पर करवे का जल चांद को चढाती थी और उसके बाद आकर अन्न जल ग्रहण करती थी. इस सारे अनुष्ठान में हमने तो कभी यह नहीं देखा कि मम्मी ने पहले चांद को फिर पापा को छलनी से देखा हो या पापा ने आकर मम्मी को जल पिलाकर मम्मी का व्रत खुलवाया हो और ये रिश्ता दोनों के बीच 41 साल तक रहा और उनके रिश्ते में सारी जिंदगी हमने कोई दरार भी नहीं देखी बस इतना है कि आदर्श मिसाल कायम करने वाले उनके इस रिश्ते में कोई दिखावा नहीं था जो कि आज के प्यार के दिखावे की नींव पर टिके आधुनिक औरतों के रिश्तों में मेकअप की परतों के रूप में बसा हुआ है. व्यस्तता की इस दुनिया में पति अपनी गाड़ी, मोटर साइकिल और साइकिल, जो भी रखते हैं पर अपना समय निकाल कर पत्नी को उसकी फालतू की ज़रूरत के लिए शहर के बाजार में इसलिए लिए फिरते हैं कि अगर घर का सुकून देखना है तो थोड़ा समय थोड़ा पैसा खर्च कर ही दो नहीं तो घरवाली तेरे लिए व्रत ही क्या रखेगी बल्कि तुझे ही भूखे पेट रहने को मज़बूर कर देगी.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
(कौशल)
रविवार, 13 अक्टूबर 2019
देह तक सिमटती आधुनिक नारी की सोच
सर्दियों का मौसम लगभग आरंभ हो गया है. सुबह और शाम को हल्की हल्की ठंड महसूस होने लगी है. रात को सोते समय पंखों का बंद होना भी शुरू हो गया है. सुबह के समय खेतों पर जाते हुए लोग गरम चादर ओढ़कर जाते हुए दिखने लगे हैं. मौसम परिवर्तन लोगों की वेषभूषा में बदलाव तो लाता ही है किन्तु जितना अधिक बदलाव पुरुषों की वेशभूषा में लाता है उतना महिलाओं की वेषभूषा में नहीं, आखिर क्यूं? ये प्रश्न विचारणीय है.
सोनी टी वी पर आज कल एक विज्ञापन प्रचारित है जिसमें कैटरीना कैफ, रणबीर कपूर व आदित्य प्रतीक सिंह सिसौदिया उर्फ बादशाह ने काम किया है, बादशाह और रणबीर कपूर को देखकर लगता है कि सर्दी का मौसम बहुत जोरों पर है क्योंकि दोनों ही गरम भारी जैकेट पहने हुए हैं किन्तु तभी ध्यान जाता है कैटरीना कैफ पर, तो लगता है कि अभी तो सर्दी के मौसम की सोच भी दिमाग में लाना खुद पर जुल्म करना होगा क्योंकि कैटरीना साधारण गर्मी के वस्त्र पहने हुए हैं.
न केवल कैटरीना बल्कि आजकल अगर हम अपने आस-पास भी नज़र दौड़ाते हैं तो ये महिला - पुरुष का भेदभाव हमारी नज़रों से अछूता नहीं रहेगा, एक तरफ मौसम के इस बदलाव में पुरुष जहां सफारी सूट, पूरी बाहों की शर्ट - पैंट में दिखाई दे रहे हैं वहीं महिलाओं की फ़ैशन के प्रति दीवानगी की सीमा की कोई हद ही नहीं है और ये दीवानगी ही कही जाएगी जिसमें महिलाओं के कपड़े की कटिंग बढ़ती ही जा रही है.
आज शरद पूर्णिमा है, आज के दिन ही ठंड की ये दशा है कि सोते समय पंखा बंद करना पसंद आ रहा है और अब से लगभग एक माह बाद ये ठंड शायद अपने चरम पर पहुंच जाएगी ऐसा सोच सकते हैं किन्तु उफ्फ ये फैशन पीड़ित महिलाएं, इनके लिए उससे सुहावना मौसम कोई होगा ही नहीं और ऐसे में उनके कपड़े मात्र तन ढकने का पर्याय बनकर रह जाएंगे. देवोत्थान एकादशी से शादियों का सीजन शुरू हो जाएगा और तब पुरुषों के लिए जहां गरम सूट भी ठंड रोकने के लिए कम पड़ेंगे वहीं नारियों के लिए गरम तो गरम ठंडे कपड़ों की भी कोई ज़रूरत नहीं रहेगी, अपना शरीर दिखाने के लिए ये फैशन पीड़ित नारियां शरीर पर से जितने कपड़े कम कर सकेंगीं, कम कर देंगी.
महिलाएं इस दुनिया का सबसे बड़ा आश्चर्य हैं, एक तरफ पुरुषों के द्वारा छेड़छाड़ से पीड़ित हैं तो दूसरी तरफ पुरुष इन पर ध्यान न दें तो भी पीड़ित हैं और इसीलिए आकर्षण का मुद्दा बनने के लिए इस तरह की हरकत करती हैं क्योंकि पुरुषों के अनुसार जो नारी ऐसा नहीं करती वह या तो आंटी है या बहनजी और इन फ़ैशन पीड़ित नारियों को अपने लिए ये सुनना बिल्कुल बर्दाश्त नहीं इसलिए जहां एक तरफ स्कूटी चलाते वक़्त पूरी बाहों के दस्ताने पहन अपने हाथों को धूप से काले होने से बचाती हैं वहीं कंधों के काले होने का कोई डर नहीं क्योंकि वहां से आधुनिकता से जुड़ाव दिखाया जाता है और कंधों पर से आस्तीन को काट लिया जाता है.
इसलिए अगर ये फ़ैशन पीड़ित नारियां ये कहें कि इस तरह के कपड़ों से छेडछाड या दुष्कर्म का कोई मतलब नहीं है तो यह बिल्कुल गलत होगा क्योंकि इन आधुनिक नारियों की यह विशेषता ही आज छेड़छाड़ या दुष्कर्म की मुख्य वजह कही जा सकती है क्योंकि ये अपनी इन हरकतों से ये पुरुषों में कामुकता को भड़का देती हैं जिसे शांत करने के लिए उन हवस पीड़ित पुरुषों को जो कोई भी मिल जाती है उसे वह अपना शिकार बना लेता है और ऐसे में उसका सबसे आसान शिकार छोटी बच्चियां ही होती हैं क्योंकि छोटी बच्चियां ना तो विरोध कर सकती हैं और न ही किसी को कुछ बता सकती हैं लेकिन ये फैशन पीड़ित नारियां न तो इस बात को कभी मानेंगी न ही इसके लिए अपने कपड़ों में कोई परिवर्तन ही अमल में लाएंगी क्योंकि ऐसा करते ही तो ये बैकवर्ड हो जाएंगी.
शालिनी कौशिक एडवोकेट
(कौशल)
रविवार, 29 सितंबर 2019
नारी नहीं है बेचारी
दुष्कर्म आज ही नहीं सदियों से नारी जीवन के लिए त्रासदी रहा है .कभी इक्का-दुक्का ही सुनाई पड़ने वाली ये घटनाएँ आज सूचना-संचार क्रांति के कारण एक सुनामी की तरह नज़र आ रही हैं और नारी जीवन पर बरपाये कहर का वास्तविक परिदृश्य दिखा रही हैं .
भारतीय दंड सहिंता में दुष्कर्म ये है -
अश्लीलता का असर -
राज्य २०१२ २०१३
आंध्र प्रदेश २८ २३४
केरल १४७ १७७
उत्तर प्रदेश २६ १५९
महाराष्ट्र ७६ १२२
असम ० १११
भारत ५८९ १२०३
-सूचना प्रोद्योगिकी अधिनियम के तहत दर्ज मामले [पोर्नोग्राफी के चलते जहाँ महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा बढ़ रही है वहीं मासूम भी इसके दुष्प्रभाव से बचे हुए नहीं हैं .आंकड़े लोकसभा ]
और ये हैं कुछ गंभीर मामले -
१- दामिनी गैंगरेप केस -१६ दिसंबर २०१२
२-ग्वालियर में महिला जज द्वारा मध्य प्रदेश हाईकोर्ट जज पर यौन उत्पीड़न का आरोप
३- विशाखापट्नम में नौसेना में महिला अफसर [सब लेफ्टिनेंट महिला अफसर ]द्वारा कमांडर रैंक के अफसर पर यौन प्रताड़ना का आरोप
४- शामली जिले में ९० वर्षीय महिला से रिश्ते के पौत्र द्वारा रेप
५- बदायूं में दो बहनों के साथ बलात्कार के बाद हत्या
६- बंगलुरु में शहर के एक नामी गिरामी स्कूल में एक छह साल की बच्ची के साथ बलात्कार
७- बंगलुरु में आर्मी एविएशन कॉर्प्स में तैनात एक महिला अधिकारी की इज़्ज़त लूटने का प्रयास .
ये तो चंद घटनाएँ हैं मात्र उदाहरण उस अभिशाप का जो नारी जीवन को मर्मान्तक ,ह्रदय विदारक चोट देता है किन्तु ये समाज और ये पुरुष जाति इस घटना को मात्र संवाद सहानुभूति तक ही सीमित कर देती है .गावों में जहाँ दुष्कर्मी को कभी पांच जूते मारकर व् कभी गधे पर मुंह काला करके गावं में घुमाने तो कभी कुछ रुपयों का जुर्माने की सजा दी जाकर बरी कर दिया जाता है वहीँ इस तरह की घटना पर रक्षा मंत्री /वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली जी द्वारा 'एक छोटी सी घटना ''जैसी संवेदना हीन प्रतिक्रिया दी जाती है .
किन्तु जैसे कि सहानुभूति कुछ देर के लिए दर्द को भुला तो सकती है खत्म नहीं कर सकती वैसे ही ऐसे में यदि इस घटना पर नारी को सहानुभूति मिल भी जाये तो उसकी अंतहीन पीड़ा का खात्मा नहीं हो सकता उसे इस सम्बन्ध में स्वयं को मजबूत करना होगा और इस ज़ुल्म के खिलाफ खड़ा होना ही होगा .
भारतीय दंड सहिंता में दुष्कर्म ये है -
भारतीय दंड संहिता १८६० का अध्याय १६ का उप-अध्याय ''यौन अपराध ''से सम्बंधित है जिसमे धारा ३७५ कहती है-
[I.P.C.]
Central Government Act
Section 375 in The Indian Penal Code, 1860
375. Rape.-- A man is said to commit" rape" who, except in the case hereinafter excepted, has sexual intercourse with a woman under circumstances falling under any of the six following descriptions:-
First.- Against her will.
Secondly.- Without her consent.
Thirdly.- With her consent, when her consent has been obtained by putting her or any person in whom she is interested in fear of death or of hurt.
Fourthly.- With her consent, when the man knows that he is not her husband, and that her consent is given because she believes that he is another man to whom she is or believes herself to be lawfully married.
Fifthly.- With her consent, when, at the time of giving such consent, by reason of unsoundness of mind or intoxication or the administration by him personally or through another of any stupefying or unwholesome substance, she is unable to understand the nature and consequences of that to which she gives consent.
Sixthly.- With or without her consent, when she is under sixteen years of age.
Explanation.- Penetration is sufficient to constitute the sexual intercourse necessary to the offence of rape.
Exception.- Sexual intercourse by a man with his own wife, the wife not being under fifteen years of age, is not rape.
ये आंकड़े इस बात का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं कि आज ये घटनाएँ किस कदर नारी जीवन को गहरे अंधकार में धकेल रही हैं -अश्लीलता का असर -
राज्य २०१२ २०१३
आंध्र प्रदेश २८ २३४
केरल १४७ १७७
उत्तर प्रदेश २६ १५९
महाराष्ट्र ७६ १२२
असम ० १११
भारत ५८९ १२०३
-सूचना प्रोद्योगिकी अधिनियम के तहत दर्ज मामले [पोर्नोग्राफी के चलते जहाँ महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा बढ़ रही है वहीं मासूम भी इसके दुष्प्रभाव से बचे हुए नहीं हैं .आंकड़े लोकसभा ]
१- दामिनी गैंगरेप केस -१६ दिसंबर २०१२
२-ग्वालियर में महिला जज द्वारा मध्य प्रदेश हाईकोर्ट जज पर यौन उत्पीड़न का आरोप
३- विशाखापट्नम में नौसेना में महिला अफसर [सब लेफ्टिनेंट महिला अफसर ]द्वारा कमांडर रैंक के अफसर पर यौन प्रताड़ना का आरोप
४- शामली जिले में ९० वर्षीय महिला से रिश्ते के पौत्र द्वारा रेप
५- बदायूं में दो बहनों के साथ बलात्कार के बाद हत्या
६- बंगलुरु में शहर के एक नामी गिरामी स्कूल में एक छह साल की बच्ची के साथ बलात्कार
७- बंगलुरु में आर्मी एविएशन कॉर्प्स में तैनात एक महिला अधिकारी की इज़्ज़त लूटने का प्रयास .
ये तो चंद घटनाएँ हैं मात्र उदाहरण उस अभिशाप का जो नारी जीवन को मर्मान्तक ,ह्रदय विदारक चोट देता है किन्तु ये समाज और ये पुरुष जाति इस घटना को मात्र संवाद सहानुभूति तक ही सीमित कर देती है .गावों में जहाँ दुष्कर्मी को कभी पांच जूते मारकर व् कभी गधे पर मुंह काला करके गावं में घुमाने तो कभी कुछ रुपयों का जुर्माने की सजा दी जाकर बरी कर दिया जाता है वहीँ इस तरह की घटना पर रक्षा मंत्री /वित्त मंत्री श्री अरुण जेटली जी द्वारा 'एक छोटी सी घटना ''जैसी संवेदना हीन प्रतिक्रिया दी जाती है .
किन्तु जैसे कि सहानुभूति कुछ देर के लिए दर्द को भुला तो सकती है खत्म नहीं कर सकती वैसे ही ऐसे में यदि इस घटना पर नारी को सहानुभूति मिल भी जाये तो उसकी अंतहीन पीड़ा का खात्मा नहीं हो सकता उसे इस सम्बन्ध में स्वयं को मजबूत करना होगा और इस ज़ुल्म के खिलाफ खड़ा होना ही होगा .
नारी नहीं है बेचारी
साक्षी नाम की १५ वर्षीय लड़की और उत्तर प्रदेश का सी.ओ.स्तर का अधिकारी अमरजीत शाही ,कोई सोच भी नहीं सकता था कि एक १५ वर्षीय नाजुक कोमल सी लड़की उसका मुकाबला कर पायेगी पर उसने किया और अपना नाम तक नहीं बदला क्योंकि उसका मानना है कि मुजरिम वह नहीं उसका उत्पीड़न करने वाला है और उसी की हिम्मत का परिणाम है कि १४ अगस्त को शाही को अपहरण ,बलात्कार और आतंकित करने के जुर्म में दोषी पाया गया और तीन दिन बाद उसे १० साल की सख्त कारावास और ६५,००० रूपये का अर्थ दंड भरने की सजा सुनाई गयी.
साक्षी नाम की १५ वर्षीय लड़की और उत्तर प्रदेश का सी.ओ.स्तर का अधिकारी अमरजीत शाही ,कोई सोच भी नहीं सकता था कि एक १५ वर्षीय नाजुक कोमल सी लड़की उसका मुकाबला कर पायेगी पर उसने किया और अपना नाम तक नहीं बदला क्योंकि उसका मानना है कि मुजरिम वह नहीं उसका उत्पीड़न करने वाला है और उसी की हिम्मत का परिणाम है कि १४ अगस्त को शाही को अपहरण ,बलात्कार और आतंकित करने के जुर्म में दोषी पाया गया और तीन दिन बाद उसे १० साल की सख्त कारावास और ६५,००० रूपये का अर्थ दंड भरने की सजा सुनाई गयी.
शामली में ९० वर्षीय वृद्धा ने कोर्ट में रेप की दास्तान बयान की और उसके दुष्कर्मी को १० साल का कारावास मिला .
बंगलुरु में महिला अधिकारी की इज़्ज़त लूटने के प्रयास में जवान बर्खास्त .
कंकरखेड़ा मेरठ की आशा कहती हैं कि महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों को रोकने के लिए सिर्फ कानून से काम चलने वाला नहीं .कानून की कमी नहीं पर इसके लिए समाज को भूमिका निभानी होगी .लाडलो पर अंकुश लगाना होगा .
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार देश में २०१३ में दर्ज किये गए रेप के मामले में प्रत्येक १०० मामलों में ९५ दोषी व्यक्ति पीड़िताओं के परिचित ही थे .अभी हाल ही में घटित लखनऊ निर्भया गैंगरेप में भी दोषी मृतका का परिचित ही था .इसलिए ऐसे में महिलाओं की जिम्मेदारी बनती है कि वे सतर्क रहे और संबंधों को एक सीमा में ही रखें .
बच्चों की शिकायतों पर गौर करें और ज़रूरी कदम उठायें संबंधों को मात्र संबंध ही रहने दें न कि अपने ऊपर बोझ बांयें .
सामाजिक रूप से बच्चों की और अपनी दोस्ती को घर के बाहर ही निभाने पर जोर दें और बच्चों से उनके दोस्तों के बारे में जानकारी लेती रहें .
यही नहीं कानून ने भी इस संबंध में नारी का साथ निभाने में कोई कमी नहीं छोड़ी है और भले ही यह अपराध उन्हें तोड़ने की लाख कोशिश करे किन्तु वे टूटें नहीं बल्कि इसका डटकर मुकाबला करें .
कंकरखेड़ा मेरठ की आशा कहती हैं कि महिलाओं के प्रति बढ़ते अपराधों को रोकने के लिए सिर्फ कानून से काम चलने वाला नहीं .कानून की कमी नहीं पर इसके लिए समाज को भूमिका निभानी होगी .लाडलो पर अंकुश लगाना होगा .
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार देश में २०१३ में दर्ज किये गए रेप के मामले में प्रत्येक १०० मामलों में ९५ दोषी व्यक्ति पीड़िताओं के परिचित ही थे .अभी हाल ही में घटित लखनऊ निर्भया गैंगरेप में भी दोषी मृतका का परिचित ही था .इसलिए ऐसे में महिलाओं की जिम्मेदारी बनती है कि वे सतर्क रहे और संबंधों को एक सीमा में ही रखें .
बच्चों की शिकायतों पर गौर करें और ज़रूरी कदम उठायें संबंधों को मात्र संबंध ही रहने दें न कि अपने ऊपर बोझ बांयें .
सामाजिक रूप से बच्चों की और अपनी दोस्ती को घर के बाहर ही निभाने पर जोर दें और बच्चों से उनके दोस्तों के बारे में जानकारी लेती रहें .
यही नहीं कानून ने भी इस संबंध में नारी का साथ निभाने में कोई कमी नहीं छोड़ी है और भले ही यह अपराध उन्हें तोड़ने की लाख कोशिश करे किन्तु वे टूटें नहीं बल्कि इसका डटकर मुकाबला करें .
आज यदि देखा जाये तो महिलाओं के लिए घर से बाहर जाकर काम करना ज़रूरी हो गया है और इसका एक परिणाम तो ये हुआ है कि स्त्री सशक्तिकरण के कार्य बढ़ गए है और स्त्री का आगे बढ़ने में भी तेज़ी आई है किन्तु इसके दुष्परिणाम भी कम नहीं हुए हैं जहाँ एक तरफ महिलाओं को कार्यस्थल के बाहर के लोगों से खतरा बना हुआ है वहीँ कार्यस्थल पर भी यौन शोषण को लेकर उसे नित्य-प्रति नए खतरों का सामना करना पड़ता है .
कानून में महिलाओं की सुरक्षा को लेकर पहले भी काफी सतर्कता बरती गयी हैं किन्तु फिर भी इन घटनाओं पर अंकुश लगाया जाना संभव नहीं हो पाया है.इस सम्बन्ध में उच्चतम न्यायालय का ''विशाखा बनाम राजस्थान राज्य ए.आई.आर.१९९७ एस.सी.सी.३०११ ''का निर्णय विशेष महत्व रखता है इस केस में सुप्रीम कोर्ट के तीन न्यायाधीशों की खंडपीठ ने महिलाओं के प्रति काम के स्थान में होने वाले यौन उत्पीडन को रोकने के लिए विस्तृत मार्गदर्शक सिद्धांत विहित किये हैं .न्यायालय ने यह कहा ''कि देश की वर्तमान सिविल विधियाँ या अपराधिक विधियाँ काम के स्थान पर महिलाओं के यौन शोषण से बचाने के लिए पर्याप्त संरक्षण प्रदान नहीं करती हैं और इसके लिए विधि बनाने में काफी समय लगेगा ;अतः जब तक विधान मंडल समुचित विधि नहीं बनाता है न्यायालय द्वारा विहित मार्गदर्शक सिद्धांत को लागू किया जायेगा .
न्यायालय ने ये भी निर्णय दिया कि ''प्रत्येक नियोक्ता या अन्य व्यक्तियों का यह कि काम के स्थान या अन्य स्थानों में चाहे प्राईवेट हो या पब्लिक ,श्रमजीवी महिलाओं के यौन उत्पीडन को रोकने के लिए समुचित उपाय करे .इस मामले में महिलाओं के अनु.१४,१९ और २१ में प्रदत्त मूल अधिकारों को लागू करने के लिए विशाखा नाम की एक गैर सरकारी संस्था ने लोकहित वाद न्यायालय में फाईल किया था .याचिका फाईल करने का तत्कालीन कारण राजस्थान राज्य में एक सामाजिक महिला कार्यकर्ता के साथ सामूहिक बलात्कार की घटना थी .न्यायालय ने अपने निर्णय में निम्नलिखित मार्गदर्शक सिद्धांत विहित किये-
[१] सभी नियोक्ता या अन्य व्यक्ति जो काम के स्थान के प्रभारी हैं उन्हें चाहे वे प्राईवेट क्षेत्र में हों या पब्लिक क्षेत्र में ,अपने सामान्य दायित्वों के होते हुए महिलाओं के प्रति यौन उत्पीडन को रोकने के लिए समुचित कदम उठाना चाहिए.
[अ] यौन उत्पीडन पर अभिव्यक्त रोक लगाना जिसमे निम्न बातें शामिल हैं - सम्बन्ध और प्रस्ताव,उसके लिए आगे बढ़ना ,यौन सम्बन्ध के लिए मांग या प्रार्थना करना ,यौन सम्बन्धी छींटाकशी करना ,अश्लील साहित्य या कोई अन्य शारीरिक मौखिक या यौन सम्बन्धी मौन आचरण को दिखाना आदि.
[बी]सरकारी या सार्वजानिक क्षेत्र के निकायों के आचरण और अनुशासन सम्बन्धी नियम [१] सभी नियोक्ता या अन्य व्यक्ति जो काम के स्थान के प्रभारी हैं उन्हें चाहे वे प्राईवेट क्षेत्र में हों या पब्लिक क्षेत्र में ,अपने सामान्य दायित्वों के होते हुए महिलाओं के प्रति यौन उत्पीडन को रोकने के लिए समुचित कदम उठाना चाहिए.
[अ] यौन उत्पीडन पर अभिव्यक्त रोक लगाना जिसमे निम्न बातें शामिल हैं -शारीरिक सम्बन्ध और प्रस्ताव,उसके लिए आगे बढ़ना ,यौन सम्बन्ध के लिए मांग या प्रार्थना करना ,यौन सम्बन्धी छींटाकशी करना ,अश्लील साहित्य या कोई अन्य शारीरिक मौखिक या यौन सम्बन्धी मौन आचरण को दिखाना आदि.
[बी]सरकारी या सार्वजानिक क्षेत्र के निकायों के आचरण और अनुशासन सम्बन्धी नियम या विनियमों में यौन उत्पीडन रोकने सम्बन्धी नियम शामिल किये जाने चाहिए और ऐसे नियमों में दोषी व्यक्तियों के लिए समुचित दंड का प्रावधान किया जाना चाहिए .
[स] प्राईवेट क्षेत्र के नियोक्ताओं के सम्बन्ध में औद्योगिक नियोजन [standing order ]अधिनियम १९४६ के अधीन ऐसे निषेधों को शामिल किया जाना चाहिए.
[द] महिलाओं को काम,आराम,स्वास्थ्य और स्वास्थ्य विज्ञानं के सम्बन्ध में समुचित परिस्थितियों का प्रावधान होना चाहिए और यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि महिलाओं को काम के स्थान में कोई विद्वेष पूर्ण वातावरण न हो उनके मन में ऐसा विश्वास करने का कारण हो कि वे नियोजन आदि के मामले में अलाभकारी स्थिति में हैं .
[२] जहाँ ऐसा आचरण भारतीय दंड सहिंता या किसी अन्य विधि के अधीन विशिष्ट अपराध होता हो तो नियोक्ता को विधि के अनुसार उसके विरुद्ध समुचित प्राधिकारी को शिकायत करके समुचित कार्यवाही प्रारंभ करनी चाहिए .
[३]यौन उत्पीडन की शिकार महिला को अपना या उत्पीडनकर्ता का स्थानांतरण करवाने का विकल्प होना चाहिए.
न्यायालय ने कहा कि ''किसी वृत्ति ,व्यापर या पेशा के चलाने के लिए सुरक्षित काम का वातावरण होना चाहिए .''प्राण के अधिकार का तात्पर्य मानव गरिमा से जीवन जीना है ऐसी सुरक्षा और गरिमा की सुरक्षा को समुचित कानून द्वारा सुनिश्चित कराने तथा लागू करने का प्रमुख दायित्व विधान मंडल और कार्यपालिका का है किन्तु जब कभी न्यायालय के समक्ष अनु.३२ के अधीन महिलाओं के यौन उत्पीडन का मामला लाया जाता है तो उनके मूल अधिकारों की संरक्षा के लिए मार्गदर्शक सिद्धांत विहित करना ,जब तक कि समुचित विधान नहीं बनाये जाते उच्चतम न्यायालय का संविधानिक कर्त्तव्य है.- -इसके साथ ही उच्चतम न्यायालय ने दिल्ली डेमोक्रेटिक वर्किंग विमेंस फोरम बनाम भारत संघ [१९९५] एस.सी.१४ में पुलिस स्टेशन पर पीड़िता को विधिक सहायता की उपलब्धता की जानकारी दिया जाना ,पीड़ित व्यक्ति की पहचान गुप्त रखा जाना और आपराधिक क्षति प्रतिकर बोर्ड के गठन का प्रस्ताव रखा है .
-भारतीय दंड सहिंता की धारा ३७६ में विभिन्न प्रकार के बलात्कार के लिए कठोर कारावास जिसकी अवधि १० वर्ष से काम नहीं होगी किन्तु जो आजीवन तक हो सकेगी और जुर्माने का प्रावधान भी रखा गया है .
-महिलाओं की मदद के लिए विभिन्न तरह के और भी उपाय हैं -
-आज की सबसे लोकप्रिय वेबसाइट फेसबुक पर महिलाओं की मदद के लिए पेज है -
helpnarishakti@yahoo.com
-राष्ट्रीय महिला आयोग से भी महिलाएं इस सम्बन्ध में संपर्क कर सकती हैं उसका नंबर है -
011-23237166,23236988
-राष्ट्रीय महिला आयोग को शिकायत इस नंबर पर की जा सकती है -
23219750
-दिल्ली निवासी महिलाएं दिल्ली राज्य महिला आयोग से इस नंबर पर संपर्क कर सकती हैं -
011 -23379150 ,23378044
-उत्तर प्रदेश की महिलाएं अपने राज्य के महिला आयोग से इस नंबर पर संपर्क कर सकती हैं -
0522 -2305870 और ईमेल आई डी है -up.mahilaayog@yahoo.com
आज सरकार भी नारी सुरक्षा को लेकर प्रतिबद्ध है और उसकी यह प्रतिबद्धता दिखती है अब दुष्कर्म पीड़िताओं की मदद के लिए निर्भया केंद्र खुलेंगे जिसमे पीड़िताओं को २४ घंटे चिकित्सीय सहायता मिलेगी और जहाँ डाक्टर ,नर्स के अलावा वकील भी केन्द्रों पर मौजूद रहेंगे .यही नहीं अब सरकार गावों में खुले में शौच को भी इस समस्या से जोड़ रही है और मोदी जी ने स्वतंत्रता दिवस पर इस सम्बन्ध में त्वरित प्रबंध किये जाने के प्रति अपना दृढ संकल्प दिखाया है .
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने क्लिंटन फाउंडेशन के कार्यक्रम में कहा कि महिलाओं और लड़कियों में आर्थिक व् सामाजिक रूप से आगे बढ़ने की असीमित क्षमता है इसके लिए ज़रूरी है कि वे अपने निर्णय खुद लें और आज उन्हें दिखाना ही होगा कि ये कहर भी झेलकर वे आगे बढ़ती रहेंगी और इसका डटकर मुकाबला करती रहेंगी .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
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