रविवार, 25 नवंबर 2018

सुनीता जी की कविता



सुनीता काम्बोज

सुनीता काम्बोज
जन्म : जिला- करनाल  (हरियाणा) भारत ।
विधा : ग़ज़ल, छन्द, गीत, बालगीत, भजन  एवं हरियाणवी भाषा में ग़ज़ल व गीत, हाइकु, सेदोका, चोका, क्षणिका, आलेख, समीक्षा एवं व्यंग्य ।
शिक्षा :  हिन्दी और इतिहास में परास्नातक ।
प्रकाशन :अनभूति (काव्य-संग्रह), किनारे बोलते हैं (ग़ज़ल-संग्रह )
ब्लॉग :  मन के मोती ।
सम्प्रति – स्वतंत्र लेखन
राष्ट्रीय, एवं अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में निरंतर कविताओं और ग़ज़लों का प्रकाशन-अनन्तिम, वीणा, अभिनव बालमन, कालचक्र, पंखुड़ी, गर्भनाल, अभिनव इमरोज, जगमग दीप ज्योति, सरस्वती सुमन, शोध दिशा, बाबू जी का भारत मित्र,  प्रकृति दर्शन, गतिमान, साहित्य वाटिका, अर्बाबे क़लम, सेतु, लोकमत, हरिगंधा (हरियाणा साहित्य अकादमी ), बाल किलकारी (बिहार बाल भवन), इन्दु  संचेतना (चीन), अम्स्टेल गंगा (नीदरलैंड ), हिन्दी चेतना (कनाडा), विभोम स्वर, निभा, गुफ़्तगू , अट्टहास, ग़ज़ल के बहाने, आदिज्ञान, अग्रिमान, शैलसूत्र, शाश्वत सृजन, नया अध्याय, ललित प्रकाश,  दैनिक जागरण, विजय दर्पण टाइम्स, कविता अविराम, दुनिया गोल-मटोल, प्रणाम पर्यटन,  कविताम्बरा , अभिनव बालमन, प्रखर पूर्वांचल समाचार पत्र आदि
ब्लॉग- सहज साहित्य, पतंग, हिन्दी हाइकु, त्रिवेणी, उदंती, ज्योति कलश, भारत दर्शन, साहित्य सुधा, वैब दुनिया, जय विजय, समकालीन क्षणिका, हस्ताक्षर, कविताकोश, कहानियाँ डाट कॉम, साहित्य, शिल्पी, हिन्दी विद्या, पूर्वांचल,  रचनाकार आदि।
विश्व पुस्तक मेले में  कविताकोश द्वारा आयोजित कार्यक्रम में  प्रस्तुति।
प्रस्तुति- डी.–डी. दूरदर्शन पंजाबी  एवं अन्य  हिन्दी कार्यक्रमों में कविता पाठ ।

ईमेल –sunitakamboj31@gmail.com


मेरे बस की बात नहीं

दरबारों में वन्दन करना
मेरे बस की बात नहीं
मरने के पहले ही मरना 
मेरे बस की बात नहीं

जो अखरेगा बिन बोले मैं
कभी नहीं रह पाऊँगी
मेरा रुख मत मोड़ तुम्हारे
साथ नहीं बह पाऊँगी
कच्ची माटी का घट भरना
मेरे बस की बात नहीं

तेरी हाँ में, हाँ बोलूँगी
ये उम्मीद नहीं करना
करूँ खिलाफत, सारे जग की
अगर सही, तुम मत  डरना
तूफ़ानी लहरों से डरना
मेरे बस की बात नहीं

एक तमन्ना, जाऊँ जग से
ये ख़ुद्दारी साथ चले
खुद से कोई रहे न शिकवा
जब ये जीवन शाम ढले
माटी की कश्ती में तरना

मेरे बस की बात नहीं

सोमवार, 19 नवंबर 2018

इंदिरा गांधी जी को जन्मदिन पर शत् शत् नमन

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अदा रखती थी मुख्तलिफ ,इरादे नेक रखती थी ,
वतन की खातिर मिटने को सदा तैयार रहती थी .
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मोम की गुड़िया की जैसी ,वे नेता वानर दल की थी ,,
मुल्क पर कुर्बां होने का वो जज़बा दिल में रखती थी .
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पाक की खातिर नामर्दी झेली जो हिन्द ने अपने ,
वे उसका बदला लेने को मर्द बन जाया करती थी .
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मदद से सेना की जिसने कराये पाक के टुकड़े ,
शेरनी ऐसी वे नारी यहाँ कहलाया करती थी .
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बना है पञ्च-अग्नि आज छुपी है पीछे जो ताकत ,
उसी से चीन की रूहें तभी से कांपा करती थी .
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जहाँ दोयम दर्जा नारी निकल न सकती घूंघट से ,
वहीँ पर ये आगे बढ़कर हुकुम मनवाया करती थी .
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कान जो सुन न सकते थे औरतों के मुहं से कुछ बोल ,
वो इनके भाषण सुनने को दौड़कर आया करती थी .
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न चाहती थी जो बेटी का कभी भी जन्म घर में हो ,
मिले ऐसी बेटी उनको वो रब से माँगा करती थी .
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जन्मदिन ये मुबारक हो उसी इंदिरा की जनता को ,
जिसे वे जान से ज्यादा हमेशा चाहा करती थी .
शालिनी कौशिक
[कौशल ]