मैं सबला हूं पर अबला नहीं ,
मेरी शक्ति का तुम्हें भान नहीं।
तुम जीत नहीं सकते मुझको,
तुम हरा नहीं सकते मुझको।
मैं सहती हूं पर कमजोर नहीं,
मैं सुनती पर मजबूर नहीं ।
तुम भ्रम में जीवन जीते हो,
मन ही मन खुश होते हो
मेरे सब्र का प्याला छलकेगा,
मेरा रौद्र रुप तब झलकेगा।
तब मैं दुर्गा बन जाऊंगी,
या फिर काली कहलाऊंगी।
मैं स्वाभिमान की छाया हूं ,
रखती अपनी मर्यादा हूं।
मेरी ममता मेरी शक्ति है,
सतीत्व मेरा मेरी भक्ति है।
मैं मां शक्ति का अंश बनूं,
मैं उसके बताए पथ पर चलूं।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
6 टिप्पणियां:
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-10-2018) को "सब के सब चुप हैं" (चर्चा अंक-3126) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार आपका आदरणीय 🙏 मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए
very nice .. bahut acchaa laga ..
very nice article
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Very nice
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