शनिवार, 27 जनवरी 2018

गुनहगार हीरालाल कश्यप भी

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      भारत वर्ष में दहेज़ को रोकने के लिए भारतीय दंड संहिता में भी प्रावधान हैं और इसके लिए अलग से दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम भी बनाया गया है जिसकी जानकारी आप मेरे ब्लॉग कानूनी ज्ञान की इस पोस्ट
''कानून है तब भी " से ले सकते हैं किन्तु इस सबके बावजूद दहेज़ हत्याओं में कमी नहीं आयी है और एक बार को गरीब तबके को छोड़ भी दें वो इसलिए कि पहले तो उनमे इसका इतना प्रचलन नहीं है क्योंकि इसके लिए बड़े तबकों के लोग यह कह देते हैं कि ''इन्हें लड़की मिलती ही कहाँ है ये तो लड़की को खरीदते हैं ''किन्तु अपने गिरेबान में अगर ये बड़े तबके झांक लें तो इनमे लड़की को खरीदने जैसी कुप्रथा तो नहीं अपितु लड़कों को बेचने जैसी माखन लपेट सुप्रथा का प्रचलन है और इसी तबके में आज भी लड़कियां दहेज़ के लिए मारी जा रही हैं ,जलाई जा रही हैं।
     और इसका जीता जागता प्रमाण है कल देश के ६९ वें गणतंत्र दिवस पर समाचारों की सुर्ख़ियों में रही यह खबर -''पिता मिनिस्टर तो ससुर सांसद रहे, फिर भी इतनी टॉर्चर हुई थी ये लड़की'' 
    कल इस मामले में कोर्ट का फैसला आया जिसमे पूर्व सांसद और बीजेपी नेता नरेंद्र कश्यप बहू को आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में दोषी करार दिए गए हैं। उनकी पत्नी देवेंद्री और बेटे सागर को भी मामले में दोषी करार दिया गया है। पुलिस ने तीनों आरोपियों को अरेस्ट कर डासना जेल भेज दिया है। बता दें, नरेंद्र की बहू हिमांशी का शव 6 अप्रैल 2016 को ससुराल में बाथरूम में बरामद हुआ था।
     कोर्ट ने इस मामले में लड़की के ससुर ,सास व् पति को दोषी करार दिया है और ये ज़रूरी भी था क्योंकि बहू अपनी ससुराल में ही मरी थी और  घटनाक्रम भी उनके दोषी होने की गवाही दे रहा था। सम्पूर्ण घटनाक्रम के अनुसार -
- यूपी के गाजियाबाद जिले के कवि नगर इलाके के संजय नगर सेक्टर-23 में नरेंद्र कश्‍यप की फैमिली रहती है। बड़े बेटे डॉक्टर सागर की शादी हिमांशी से हुई थी।
- 6 अप्रैल 2016 को हिमांशी का शव बाथरूम में मिला था। उसके हाथ में रिवाॅल्वर भी बरामद हुई थी, जोकि पति सागर की थी।
- ससुरालवालों ने बताया था, बहू ने बाथरूम का दरवाजा अंदर से बंद कर खुद को गोली मार ली। उसे तुरंत यशोदा अस्पताल ले गए, जहां डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया।
- हिमान्शी की शादी 27 नवंबर 2013 में हुई थी। उसने यूपी के बदायूं से पढ़ाई की थी। पिता हीरा लाल कश्यप पिछली बसपा सरकार में दर्जा प्राप्त राज्यमंत्री थे। उन्होंने ससुरालवालों के ख‍िलाफ दहेज हत्या का केस दर्ज कराया था।
पिता ने बताई थी बेटी की मौत की ये वजह
- हिमान्शी के पिता हीरा लाल कश्यप ने बताया , ''मैंने शव देखा तो बेटी के शरीर पर चोटों के निशान थे। आंखों में घूसे मारे गए थे, नाक टूटी थी, गाल लाल थे और बाल खींचे गए थे। सिर की हड्डी टूटी हुई थी। दो-दो गोली मारी गई थी।''
- ''हाथ मोड़ कर टेढ़े कर दिए गए थे। बेटी गाय की तरह थी, लेकिन उसे दहेज के लिए मार दिया। ससुरालवाले फॉर्च्यूनर कार और हार मांग रहे थे। बड़ी दर्दनाक तरीके से मारा उसे।''
      ये सब लड़की का बाप  कह रहा है और अपनी बच्ची  के लिए एक बाप का यह सब देखना असहनीय है किन्तु अगर गौर किया जाये तो क्या सिर्फ लड़की के ससुराल वालों को ही जिम्मेदार ठहराना  सही होगा? क्या लड़की के बाप या परिजनों की कोई जिम्मेदारी नहीं है इस दहेज़ हत्या में जबकि लड़की का बाप खुद कह रहा है -
- ''25 मार्च 2016 को बेटी आख‍िरी बार जब घर आई थी तो उसने बताया था कि दहेज के लिए हमेशा मार पड़ती है। पति भी प्रताड़ित करता है। उसके कुछ दिन पहले ही सागर ने उसे इतना मारा था कि कान में गंभीर चोटें आई थीं, जिसका इलाज चल रहा था।''
- ''वह ससुराल नहीं जाना चाहती थी, लेकिन मेरे समझाने के बाद गई। मैंने उससे कहा था कि कुछ दिन रुक जा, मैं कार दे दूंगा। वो बस मुझसे यही कहती थी, पापा मुझे यहां से ले चलो, ये लोग बहुत परेशान करते हैं।''
      क्या लड़की के ब्याह के बाद कोई ज़रूरी है कि लड़की अपनी ससुराल में ही रहे और वह भी तब जबकि वहां उसके जीवित रहने की सम्भावना ही न हो,शादी के बाद अक्सर बेटियां अपना सब कुछ खो देती हैं और उनकी स्थिति न घर की न घाट की धोबी के कुत्ते की तरह हो जाती है ससुराल वाले उसे दहेज़ के लिए मारपीट कर मायके भेजते रहते हैं और मायके वाले इस समाज में अपनी यह प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए ''कि उनकी बेटी ससुराल में भली-भांति रह रही है ''उसे बार बार कुछ न कुछ देकर लड़के वालों का मुंह बंद करने को ससुराल में धकेलते रहते हैं और इस तरह ससुराल वालों के मुहँ में दहेज़ के नाम पर वही काम कर देते हैं जो किसी के काटने पर कुत्ते के साथ होता है अर्थात जैसे कुत्ता जब किसी के काटता है तो उसके मुहं में खून लग जाता है और फिर वह बार बार काटता है ऐसे ही बार बार बेटी के साथ मारपीट होने पर भी जब मायके  वाले ससुरालियों की महत्वाकांक्षा पूरी करने को उन्हें कुछ न कुछ देते रहते हैं तो उनकी  यही आदत बन जाती है कि ''इसकी बेटी का कुछ भी करो यह यहीं भेजेगा इसे ''सोचकर वे अपनी बहु के साथ दुर्दांत अत्याचार करते भी नहीं रुकते और उसका एक परिणाम यही होता है कि या तो अपनी बहू से अपनी महत्वाकांक्षा पूरी न होते देख  ससुरालिए उसे निबटा देते हैं या फिर वह लड़की ही अपनी धोबी के कुत्ते वाली स्थिति देख आत्महत्या कर लेती है। 
      ऐसे में किसी बेटी या बहू की मृत्यु की जिम्मेदारी न केवल ससुरालियों की बनती है बल्कि मायके वालों की भी बनती है और ऐसे में अब दहेज़ कानून में संशोधन की परम आवश्यकता है। हर वह मामला जिसमे किसी भी लड़की की दहेज़ हत्या की बात सामने आती है उसमे ससुराल वालों के लिए तो कानून में प्रावधान है ही ,मायके वालों के लिए भी कुछ नए प्रावधान किये जाने चाहियें और जब दहेज़ देना भी अपराध है तो हर दहेज़ हत्या की रिपोर्ट मायके वालों के खिलाफ भी होनी चाहिए और उनसे भी यह जवाब माँगा जाना चाहिए कि -
-आपने शादी में कानून में अपराध होने के बावजूद जिस सामान की सूची दे रहे हैं ,वह कैसे दिया ?
-आपको दहेज़ की मांग का कब पता लगा ?
-जब ससुराल वालों ने सामान के साथ ही आने को कहा था तो आपने उसे कैसे वहां भेजा ?
-ससुराल वालों की दहेज़ की मांग को कानून का उल्लंघन करते हुए भी क्यों पूरा किया ?
-बेटी का भी घर  की संपत्ति में हिस्सा होते हुए आपने उसे जबरदस्ती दूसरे घर में कैसे भेजा ?
        इसी तरह से अगर कानून में मायके वालों पर भी कार्रवाही का इंतज़ाम होगा तो पहले तो बेटियों पर ज़ुल्म करने देने का अधिकार ससुराल वालों को देने के मायके वालों के हाथ बंधेंगे और साथ ही जो बहुत सी बार दहेज़ के झूठे केस दायर किये जाते हैं वे भी रुकेंगे क्योंकि बेटी कहूं या लड़की वह भी एक इंसान है और स्वयं अपनी मालिक है किसी अन्य की बांदी  या गुलाम नहीं। बार बार लड़की को मौत के मुंह में भेजने वाले हीरालाल कश्यप भले ही अब बेटी के लिए न्याय की मांग में आत्मदाह की घोषणा करें किन्तु हिमांशी की दहेज़ हत्या में वे भी नरेंद्र कश्यप जितने ही जिम्मेदार हैं और देखा जाये तो उससे भी ज्यादा क्योंकि उनके लिए तो वह दूसरे की लड़की थी पर हीरालाल का तो वह अपना खून थी। 
शालिनी कौशिक 
[कौशल ] 

रविवार, 21 जनवरी 2018

पुनर्विवाह के बाद विधवा ?

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आज सुबह के समाचार पत्र में एक समाचार था कि ''पुनर्विवाह के बाद भी विधवा पूर्व पति की कानूनी वारिस '' ये निर्णय महिला अधिकारों पर पंजाब व् हरियाणा हाईकोर्ट का था ,अहम् फैसला है किन्तु क्या सही है ? क्या एक महिला जो कि दुर्भाग्य से विधवा हो गयी थी और समाज के प्रगतिशील रुख के कारण दोबारा सुहागन हो गयी है उसका कोई हक़ उस पति की संपत्ति में रहना जिससे विधि के विधान ने उसे अलग कर एक नए पति के बंधन में बांध दिया है ,जिस परिवार के प्रति अब उसका कोई दायित्व नहीं रह गया है और जिसकी उसे अब कोई ज़रुरत भी नहीं है उस परिवार की संपत्ति में उसका ये दखल क्या उसकी सशक्तता के लिए आवश्यक कहा जा सकता है ?
महिला अधिकारों की बातें करना सही है ,उसकी सशक्तता के लिए आवाज़ बुलंद करना सही है ,उसकी सुरक्षा के लिए कानूनी प्रावधान किया जाना उचित है किन्तु पुनर्विवाह के बाद भी पूर्व पति की संपत्ति में उसका हक़ किसी भी दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता है क्योंकि जो पति होता है वह किसी का बेटा और भाई भी होता है किन्तु इस तरह से उनके साथ हो रहे अन्याय को रोकना तो रोकना उसके सम्बन्ध में सोचना भी गुनाह हो जायेगा क्योंकि पत्नी या विधवा ये हिन्दू उत्तराधिकार कानून के तहत वर्ग-एक की उत्तराधिकारी हैं और ऐसे में पति में जो संपत्ति उसके विवाह के समय निहित हो चुकी है वह तो उसे मिलने से कोई रोक भी नहीं सकता किन्तु ऐसा मामला जिसमे उसके पति का किसी दुर्घटना में निधन हो जाता है वहां मुआवजे के रूप में संपत्ति का मिलना तब तो सही भी कहा जायेगा जब वह विधवा ही रहकर उस परिवार से जुडी रही हो जिसका कि उसका पति था किन्तु उस स्थिति में जिसमे वह मुआवजा मिलने से पूर्व ही किसी और की सुहागन हो चुकी हो तब ये उस परिवार के साथ तो अन्याय है जिसका कि वह बेटा या भाई था क्योंकि ऐसे में उनका भी तो सहारा छिना था किन्तु चूँकि वे उत्तराधिकार में पत्नी-विधवा से नीचे हैं इसलिए उन्हें हर हाल में बेसहारा ही रहना होगा .
पुनर्विवाह  के बाद स्थिति पलट जाती है .विधवा न तो विधवा रहती है और न ही उसका पूर्व पति के परिवार से कोई मतलब रहता है ऐसे में यदि उसके पूर्व पति से कोई संतान है तब तो उसका पूर्व पति की संपत्ति का वारिस होना न्यायपूर्ण कहा जायेगा क्योंकि दूसरे परिवार में संतान को वह हक़ मिलना मुश्किल ही रहता है जो हक़ उसका अपने पिता के यहाँ रहता है किन्तु महिला की स्थिति वहां भी पत्नी की ही रहती है और वह वहां भी उसी तरह हक़दार रहती है जैसे अपने पहले पति के यहाँ थी ,ऐसे में जैसे कि कानून में विधवा पुत्र-वधु व् विधवा पौत्र-वधु के पुनर्विवाह होने पर उनके पूर्व पति के परिवार से उनका हक़ ख़त्म होने का प्रावधान हिन्दू उत्तराधिकार कानून में है ऐसे ही मृतक की विधवा के सम्बन्ध में भी नवीन प्रावधान किया जाना चाहिए जिसमे जैसे कि नवीन परिवार में जाने पर पूर्व पति के परिवार से उसके दायित्व समाप्त मान लिए जाते हैं ऐसे ही उसके अधिकार भी पूर्व पति के परिवार से समाप्त मान लिए जाने चाहिए .
शालिनी कौशिक
[ कौशल ]

हिन्दू विधवा पुनर्विवाह बाद भी उत्ताधिकारी

एक सामान्य सोच है कि यदि हिन्दू विधवा ने पुनर्विवाह कर लिया है तो वह अपने पूर्व पति की संपत्ति को उत्तराधिकार में प्राप्त नहीं कर सकती है किन्तु हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम कहता है कि यदि विधवा ने पुनर्विवाह कर लिया है तब भी वह उत्तराधिकार में प्राप्त संपत्ति से निर्निहित नहीं हो सकती है .इन द   मैटर ऑफ़ गुड्स ऑफ़ लेट घनश्याम दास सोनी ,2007  वी.एन.एस. 113  [इलाहाबाद] में कहा गया है कि विधवा हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम की प्रथम अनुसूची में प्रथम श्रेणी के वारिस के रूप में अपने पति की परिसम्पत्तियों और प्रत्ययों के प्रशासन-पत्र की हक़दार है   और विधवा के इसी अधिकार को पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने उपरोक्त मामले में निर्णीत किया है .
मोटर वेहिकल एक्ट 1988  की धारा 166  कहती है -
केंद्र सरकार अधिनियम
मोटर वाहन अधिनियम, 1 9 88 में धारा 166
166. मुआवजे के लिए आवेदन.-
(1) धारा 165 की उपधारा (1) में निर्दिष्ट प्रकृति के दुर्घटना से उत्पन्न होने वाली मुआवजे के लिए आवेदन किया जा सकता है-
(ए) उस व्यक्ति द्वारा जिसने चोट कायम रखी है; या
(बी) संपत्ति के मालिक द्वारा; या
(सी) जहां मौत दुर्घटना से हुई है, मृतक के सभी या किसी भी कानूनी प्रतिनिधि द्वारा; या
(डी) किसी भी एजेंट द्वारा, जिसे व्यक्ति घायल व्यक्ति या मृतक के सभी या किसी भी कानूनी प्रतिनिधि द्वारा अधिकृत किया गया है, जैसा भी मामला हो: बशर्ते कि जहां मृतक के सभी कानूनी प्रतिनिधि मुआवजे के लिए किसी भी ऐसे आवेदन में शामिल नहीं हुए हों, आवेदन मृतक के सभी कानूनी प्रतिनिधियों के लाभ या इसके लिए किया जाएगा और जो कानूनी प्रतिनिधि शामिल नहीं हैं, उन्हें आवेदन के उत्तरदाताओं के रूप में लागू किया जाएगा।
[(2) उप-धारा (1) के तहत प्रत्येक आवेदन दावेदार के विकल्प पर बनाया जाएगा, या तो दावे के लिए न्यायाधिकरण जो उस क्षेत्र पर अधिकार क्षेत्र का है जिसमें दुर्घटना हुई है, या स्थानीय सीमा के भीतर दावा ट्रिब्यूनल जिसका अधिकार क्षेत्र दावेदार रहता है या व्यवसाय करता है या जिसके क्षेत्राधिकार प्रतिवादी रहते हैं, की स्थानीय सीमाओं के भीतर रहता है, और इस प्रकार के रूप में होगा और ऐसे विवरण शामिल होंगे जिन्हें निर्धारित किया जा सकता है: बशर्ते कि जहां धारा 140 के तहत मुआवजे के लिए कोई दावा नहीं किया जाता है आवेदन, आवेदन में आवेदक के हस्ताक्षर से पहले तत्काल प्रभाव के लिए एक अलग बयान शामिल होगा।]
3 [****]
[(4) दावा ट्रिब्यूनल उप-धारा के तहत उसे अग्रेषित किए गए दुर्घटनाओं की किसी भी रिपोर्ट का इलाज करेगा ( 6) धारा 158 के तहत इस अधिनियम के तहत मुआवजे के लिए एक आवेदन के रूप में।]
इस प्रकार हिन्दू विधवा पुनर्विवाह के बाद भी अपने पूर्व पति की संपत्ति से निर्निहित नहीं हो सकती उसे पुनर्विवाह के बाद भी उसकी उस संपत्ति में हिस्सा मिलेगा जो उसके पति की उसके साथ विवाह के समय थी .
शालिनी कौशिक
[कानूनी ज्ञान ]

शनिवार, 20 जनवरी 2018

बीजेपी में नारी का आदिकाल



bjp mp rajkumar saini says rape incidents are happening from ancient time

हरियाणा में पिछले दिनों हुई रेप की घटनाओं ने राज्य के साथ पूरे देश को हिला कर रख दिया है, वहीं कुरुक्षेत्र के बीजेपी सांसद राजकुमार सैनी ने रेप को लेकर विवादित बयान दिया है। राज्य में बलात्कार की बढ़ती घटनाओं पर सैनी ने कहा की रेप की घटनाएं आदिकाल से होती आ रही हैं और यह सरकार से पूछकर नहीं होती। देश की जनसंख्या बढ़ना भी रेप की घटनाओं को बढ़ावा देता है।
गौरतलब है कि हरियाणा में बेटियों के खिलाफ अपराध रुक नहीं रहे हैं। गुड़गांव में गैंगरेप का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि एक नाबालिग का शुक्रवार को अपहरण कर लिया गया। पिछले दस दिनों में गैंगरेप की करीब आठ-दस घटनाएं हुई हैं लेकिन ज्यादातर मामलों को पुलिस सुलझा नहीं सकी है। 
पिछले दिनों भी एडीजी आरसी मिश्रा ने शर्मनाक तरीके से रेप को 'समाज का हिस्सा' बताते हुए कह दिया था कि 'इस तरह की घटनाएं अनंतकाल से होती चली आ रही हैं।' 
इसी तरह  बादशाहपुर थाना एरिया के गांव बेगमपुर खटौला में 12 व 7 साल की दो बच्चियां नजदीक की फैक्ट्री में काम करने वाले अपने पिता को सुबह खाना देने गई थीं। करीब साढ़े 8 बजे दोनों वापस लौट रही थीं। धुंध भी थी। 
बड़ी बहन तेज कदमों से आगे चल रही थी जबकि छोटी पीछे थी। तभी छोटी बहन ने देखा कि पानी की टंकी के पास एक लाल रंग की कार बड़ी बहन के पास आकर रुकी। कार से तीन लड़के उतरे और उसकी बहन को कार में खींचकर भगा ले गए। वह तुरंत घर गई और अपनी मां को बताया। परिवार ने पुलिस को सूचना दी। 
         हरियाणा में बलात्कार की एक और घटना प्रकाश में आई है जिसमें राज्य के हिसार स्थित एक कॉलोनी में तीन वर्षीय बच्ची से 14 वर्षीय एक किशोर ने कथित रूप से बलात्कार किया। आरोपी को बुधवार को पकड़ लिया गया। उसके खिलाफ संबंधित धाराओं में मामला दर्ज किया गया है।
     ऐसा नहीं है कि दुष्कर्म की घटनाएं बीजेपी शासित हरियाणा में ही हो रही हों बल्कि बीजेपी के शासन में इस वक़्त 14  राज्य हैं जहाँ इस वक़्त बीजेपी के ही मुख्यमंत्री  हैं जिनमे दुष्कर्म की घटनाएं जोरों पर हैं जबकि बीजेपी जिस वक़्त दिल्ली में शीला दीक्षित को हटाने में सफल हुई थी तब बीजेपी निर्भया बलात्कार कांड में कॉंग्रेस शासन के खिलाफ जबरदस्त प्रचार कर व् उसके शासन को महिलाओं के लिए बुरा बताकर ही सत्ता पर काबिज होने में सफल हुई थी और आज बीजेपी के शासन में 14  राज्य हैं और बलात्कार तो हो ही रहे हैं उसे लेकर महाराष्ट्र जैसे राज्य में उचित कार्यवाही भी की जा रही है किन्तु दुष्कर्म को लेकर ऐसे बयान दिए जा रहे हैं जो बलात्कार से भी ज्यादा बुरे हैं .
   उत्तर प्रदेश, जिसमे बीजेपी काफी समय बाद सत्ता में आयी है लेकिन इसके बाद भी जो संभावनाएं सोची जा रही थी उस पर बीजेपी खरी नहीं उतरी,क्योंकि महिलाओं को लेकर अपराध बढ़ते जा रहे हैं ,उत्तर प्रदेश के कांधला के गढ़ी श्याम में सोनी हत्याकांड ,मेरठ में छात्रा द्वारा छेड़छाड़ से तंग आकर स्वयं को आग लगाना ,मुज़फ्फरनगर में छेड़छाड़ से तंग आकर आत्मदाह और भी बहुत कुछ चल रहा है महिलाओं के साथ लेकिन सरकार विफल है महिलाओं की सुरक्षा करने में और उस पर बीजेपी सांसदों द्वारा अनाप-शनाप बयान देकर  महिलाओं को दर्द पहुँचाया जा रहा है .

     क्या यही सही साथ दे रही है बीजेपी महिलाओं का ,जिनके अधिकारों को लेकर बीजेपी तीन तलाक के खिलाफ खड़ी हुई है लेकिन जो सबसे ज्यादा दुखद है वह है दुष्कर्म होना ,जो महिलाओं की ज़िंदगी से सम्मान ही समाप्त कर देता है और उससे भी ज्यादा दुखद होता है इसे लेकर गन्दी बयानबाजी जिसकी कम से कम सत्ताधारी पार्टी से अपेक्षा नहीं की जाती है ,क्योंकि सत्ताधारी पार्टी इस स्थिति में होती है कि वह अपने दम पर इन घटनाओं पर अंकुश लगा सके किन्तु उसके द्वारा ऐसा कोई प्रयास न किया जाना या ऐसी घटनाओं को नियति ही बता देना यही दर्शाता है कि बीजेपी में आदिकाल से ही रेप की घटनाएं होती रही हैं .

शालिनी कौशिक 
 [कौशल ] 

गुरुवार, 11 जनवरी 2018

बेटी का जीवन

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बेटी का जीवन भी देखो कैसा अद्भुत होता है,
देख के इसको पाल के इसको जीवनदाता रोता है.
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पैदा होती है जब बेटी ख़ुशी न मन में आती है,
बाप के मुख पर छाई निराशा माँ भी मायूस हो जाती है.
विदा किये जाने तक उसके कल्पित बोझ को ढोता है,
देख के इसको पाल के इसको जीवनदाता रोता है.
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वंश के नाम पर बेटो को बेटी से बढ़कर माने,
बेटी के महत्व को ये तो बस इतना जाने,
जीवन में दान तो बस एक बेटी द्वारा होता है,
देख के इसको पाल के इसको जीवनदाता रोता है.
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शालिनी कौशिक 

शनिवार, 6 जनवरी 2018

तीन तलाक की समाप्ति---- मानव संस्कृति का एक और एतिहासिक कदम --- डा श्याम गुप्त....

                                    



          तीन तलाक की समाप्ति---- मानव संस्कृति का एक और एतिहासिक कदम ---
      यहाँ हम मानवता की बात केवल भारतीय सन्दर्भ में नहीं अपितु वैश्विक सन्दर्भ में कर रहे हैं | यह किसी धर्म देश मज़हब एवं केवल स्त्री अस्मिता का ही प्रश्न नहीं है अपितु भारतीय अस्मिता एवं समस्त मानव जाति, मानवता का प्रश्न है |
     आखिर दाम्पत्य क्या है, विवाह क्यों व उसका अर्थ क्या है ?? विशद रूप में दाम्पत्य-भाव का अर्थ है, दो विभिन्न भाव के तत्वों द्वारा अपनी अपनी अपूर्णता सहित आपस में मिलकर पूर्णता व एकात्मकता प्राप्त करके विकास की ओर कदम बढाना। यह सृष्टि का विकास-भाव है । प्रथम सृष्टि का आविर्भाव ही प्रथम दाम्पत्य-भाव होने पर हुआ ।
    शक्ति-उपनिषद का श्लोक है  स वै नैव रेमे तस्मादेकाकी न रमते स द्वितीयमैच्छत। सहैता वाना स। यथा स्त्रीन्पुन्मासो संपरिस्वक्तौ स। इयमेवात्मानं द्वेधा पातपत्तनः पतिश्च पत्नी चा भवताम।  ---अर्थात अकेला ब्रह्म रमण न कर सका, उसने अपने संयुक्त भाव-रूप को विभाज़ित किया और दोनों पति-पत्नी भाव को प्राप्त हुए।
        यही प्रथम दम्पत्ति स्वयम्भू आदि-शिव व अनादि माया या शक्ति रूप है जिनसे समस्त सृष्टि का आविर्भाव हुआ। मानवी भाव में प्रथम दम्पत्ति मनु व शतरूपा हुए जो ब्रह्मा द्वारा स्वयम को स्त्री-पुरुष रूप में विभाज़ित करके उत्पन्न किये गयेजिनसे समस्त सृष्टि की उत्पत्ति हुई। सृष्टि का प्रत्येक कण धनात्मक या ऋणात्मक  ऊर्ज़ा वाला है, दोनों मिलकर पूर्ण होने पर ही, तत्व एवम यौगिक व पदार्थ की उत्पत्ति तथा विकास होता है। यजुर्वेद १०/४५ में कथन है
   एतावानेन पुरुषो यजात्मा प्रतीति। 
   विप्राः प्राहुस्तथा चैतद्यो भर्ता सांस्म्रतांगना ॥“ 
      अर्थात पुरुष भी स्वयं अकेला पुरुष नहीं बनता अपितु पत्नी व संतान मिलकर ही पूर्ण
पुरुष बनता है। स्त्री के लिए भी यही सत्य है | अतः दाम्पत्य-भाव ही पुरुष को भी संपूर्ण करता है, स्त्री को भी ।
            इस प्रकार सफ़ल दाम्पत्य का प्रभाव व उपलब्धियां ही हैं जो मानव को जीवन के लक्ष्य तक ले जाती है।
       सूर्य देवीमुषसं रोचमाना मर्यो नयोषार्मध्येति पश्चात।
        यत्रा नरो देवयंतो युगानि वितन्वते प्रति भद्राय भद्रय॥
      प्रथम दीप्तिमान ऐवम तेजसविता युक्त उषादेवी के पीछे सूर्य उसी प्रकार अनुगमन करते हैं जैसे युगों से मनुष्य व देव नारी का अनुगमन करते हैं । समाज़ व परिवार में पत्नी को सम्मान दाम्पत्य सफ़लता की कुन्जी है-
ऋग्वेद के अन्तिम मन्त्र (१०-१९१-२/४) में क्या सुन्दर कथन है---
"" समानी व अकूतिःसमाना ह्रदयानि वः ।
समामस्तु वो मनो यथा वः सुसहामतिः ॥"""---
    ------तुम्हारे हृदय समान हों, मन समान हों प्रत्येक कार्य में आपसी सहमति हो |
      पुरुष की सहयोगी शक्ति-भगिनी, मित्र, पुत्री, सखी, पत्नी, माता के रूप में सत्य ही स्नेह, संवेदनाओं एवं पवित्र भावनाओं को सींचने में युक्त नारी,  पुरुष व संतति के निर्माण व विकास की एवं समाज के सृजन, अभिवर्धन व श्रेष्ठ व्यक्तित्व निर्माण की धुरी है।
      मानव समाज के विकास के एक स्थल पर, जब संतान की आवश्यकता के साथ उसकी सुरक्षा की आवश्यकता हुई एवं यौन मर्यादा न होने से आचरणों के बुरे व विपरीत व्यक्तिगत व सामाजिक परिणाम हुए तो श्वेतकेतु ने सर्वप्रथम विवाह संस्था रूपी मर्यादा स्थापित की ताकि प्राकृतिक काम संवेग की व्यक्तिगत संतुष्टि के साथ साथ स्त्री-पुरुष के आपसी सौहार्दिक सम्बन्ध एवं सामाजिक समन्वयता भी बने रहे |  
     विवाह संस्था का सतत् विकास हुआ श्वेतकेतु ऋग्वैदिककाल की विवाह संस्था को मजबूत करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता थे। श्वेतकेतु के पिता उद्दालक प्रख्यात दर्शनशास्त्री ऋषि थे। श्वेतकेतु ने नियम बनाया कि जो स्त्री पति को छोड़ दूसरे से मिलेगी उसे भ्रूणहत्या का पाप
लगेगा और जो पुरुष अपनी स्त्री को छोड़ दूसरी से सम्पर्क करेगा उस पर भी वैसा ही कठोर पाप होगा। भारत में यही परम्परा है।
         सभी जानते हैं कि विवाह दो पृथक-पृथक पृष्ठभूमि से आये हुए व्यक्तित्वों का मिलन होता है, एक गठबंधन है, अपनी अपनी जैविक एवं सामाजिक आवश्यकता पूर्ति हित एक समझौता  ...प्रेम विवाह हो या परिवार द्वारा नियत विवाह | समझौते में अपने अपने सेल्फ को अपने दोनों के सेल्फ में समन्वित, विलय करना होता है, अपना एकल सेल्फ कुछ नहीं होता, उसे भुलाकर समन्वित सेल्फ को उभारना होता है | अर्थात कोई किसी की सत्ता से छुटकारा नहीं पा सकता समन्वय करना ही एक मात्र रास्ता है |
     यद्यपि इस समन्वय के भी दुष्परिणाम होते रहे हैं जो नारी के बंधन, नारी अत्याचार व उत्प्रीणन में बदलते रहे हैं | परन्तु समय समय पर नारी पर कठोर बंधनों के विरोध से स्वर एवं सुधार के कृतित्व होते रहे हैं |
       द्वापर में श्री कृष्ण-राधा के कार्यों के कारण गोपिकाए ( ब्रज-बनिताएं) पुरुषों के अन्याय, निरर्थक अंकुश तोड़ कर बंधनों से बाहर आने लगीं, कठोर कर्म कांडी ब्राह्मणों की स्त्रियाँ भी पतियों के अनावश्यक रोक-टोक को तोड़कर श्री कृष्ण के दर्शन को बाहर जाती हैं। यह स्त्री स्वतन्त्रता, सम्मान, अधिकारों की पुनर्व्याख्या थी। वैदिक काल के पश्चात जो सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक शून्यता समाज में आई, उसी की पुनर्स्थापना करना कृष्ण -राधा का उद्देश्य था |
   विवाह विच्छेद या तलाक ----     नर-नारी आचार-द्वंद्व तो सदा से आदिम युग से ही चला आया है परन्तु इसी चाबी से ही तो मानव आचरण व व्यवहार का ताला खुलता है|  यदि कुछ युगलों में समन्वय नहीं होपाता तो हज़ारों युगल सदैव साथ-साथ जीते भी तो हैं..हंसी-खुशी ...जीवन भर साथ निभाकर | निश्चय ही यह समस्या न पुरुष सत्ता की बात है न स्त्री-सत्ता की न धर्म की न देश समाजं की अपितु मानव आचरण की बात है | यदि यह समन्वय नहीं हो सकता तो फिर दोनों का अलग हो जाना ही उचित है | विवाह मुख्य रूप से संतानप्राप्ति एवं दांपत्य संबंध के लिए किया जाता है, किंतु यदि किसी विवाह में ये प्राप्त न हों तो दांपत्य जीवन को नारकीय या विफल बनाने की अपेक्षा विवाह विच्छेद की अनुमति दी जानी चाहिए
       विवाह विच्छेद के सम्बन्ध में मानव समाज के विभिन्न भागों में बड़ा वैविध्य है। जिन समाजों में विवाह को धार्मिक संस्कार माना जाता है, उनमें प्राय: विवाह अविच्छेद्य संबंध माना जाता है यथा हिंदू एवं रोमन कैथोलिक ईसाई समाज | यद्यपि विवाह विच्छेद या तलाक के नियमों के संबंध में अत्यधिक भिन्नता होने पर भी कुछ मौलिक सिद्धांतों में समानता है। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 में भी इसको इसी रूप में बनाए रखने की चेष्टा की गई है। परन्तु विशेष परिस्थितियों के उत्पन्न होने पर, इस अधिनियम के अंतर्गत वैवाहिक संबंध विघटित किया जा सकता है। इस व्यवस्था का दुरुपयोग न हो, इस दृष्टि से तलाक का अधिकार अनेक प्रतिबंधों के साथ विशेष अवस्था में ही दिया जाता है।
      कुछ समाजों में (प्रायः मुस्लिम इस्लामिक ) पुरुष को विवाह विच्छेद संबंधी असीमित अधिकार देदिए गए हैं, तीन तलाक उसी का अवांछित रूप है,जिसे अधिकाँश इस्लामिक देश भी प्रतिबंधित कर चुके हैं |
      भारत जैसे बड़े लोकतंत्र व महान राष्ट्र ने नारियों के हितार्थ जो आज किया है | इसके दूरगामी प्रभाव होंगे | निश्चय ही यह कदम केवल विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में ही मानव मानव, जाति-धर्म-पंथ की समानता समन्वय के लिए नहीं अपितु समस्त विश्व में मानवता के हित समन्वय का एक महत्वपूर्ण कदम सिद्ध होगा | जिस प्रकार कभी सृष्टि के आदि में महादेव शिव की पहल पर – शिव-ब्रह्मा-इंद्र –विष्णु ने वृहद् भारत की संपन्न उत्तर दक्षिण भूमि की संपन्न संस्कृतियों के समन्वय से सार्वकालीन महान वैदिक संस्कृति की नीव रखी थी और वे देवाधिदेव कहलाये | जिस प्रकार द्वापर में श्रीकृष्ण-राधा ने स्त्रियों को अपने अधिकार दिलाये एवं वर्त्तमान युग में बहुपत्नी प्रथा की समाप्ति, विधवा विवाह की पुनः स्थापना, विवाह विच्छेद संबंधी नियम लाये गए |