मंगलवार, 8 मार्च 2016

मम्मी इमोशनल होगई हैं... महिला दिवस डा श्याम गुप्त की रचना---

महिला दिवस के उपलक्ष में एक कविता------

मम्मी इमोशनल होगई हैं...


पुत्रवधू का फोन आया -
बोली, पापा 'ढोक',
घर का फोन उठ नहीं रहा ,
कहाँ व कैसे हैं आप लोग ? 


खुश रहो बेटी, कैसी हो ...
ठीक हैं हम भी ,
ईश्वर की कृपा से मज़े में हैं , और-
इस समय तुम्हारे कमरे में हैं ।

क्या पापा ...?
हाँ बेटा, हम जयपुर में हैं ,
तुम्हारे पापा के आतिथ्य में ।
 हैं .... ! मम्मी कहाँ हैं , पापा ?
बैठी हैं तुम्हारे कमरे में,


तुम्हारे पलंग पर, सजल नयन ....
मम्मी इमोशनल होगई हैं, और-
बैठी विचार मग्न हैं -
सिर्फ यही नहीं कि,
कैसे तुम यहाँ की डोर छोड़कर
गयी हो वहां,
अज़नबी, अनजान लोगों के बीच ,
अनजान डगर ,
हमारे पास ।

अपितु - साथ ही साथ ,
अपने अतीत की यादों के डेरे में , कि-
कभी वह स्वयं भी अपना घर-कमरा-
छोड़कर आयी थी ;
इसी तरह और----
तुम्हारी ननद भी ,
गयी है , छोड़कर
अपना घर, कमरा, कुर्सी- मेज-
इसी प्रकार ..................
................................
और....और....और......।।

3 टिप्‍पणियां:

कविता रावत ने कहा…

सच घर छोड़कर जाते हैं फिर भी कई लोग समझते नहीं ..कोफ़्त होती है यह देखकर ...
बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी रचना प्रस्तुति हेतु धन्यवाद

जसवंत लोधी ने कहा…

बेटों को दी महल अटरी 'बेटी को क्यों परदेश रे ?
Seetamni. blogspot. in

डा श्याम गुप्त ने कहा…

धन्यवाद कविता जी व रावत जी .....यह चक्रीय प्रथा है --हर बेटे को महल-अटारी मिलती है, इस प्रकार हर युगल को मिल जाती है ...व्यर्थ की भाग-दौड़, आपाधापी,संचयन व भौतिकता से बचा जाता है ---परन्तु इस सब में मानव अर्थात व्यक्ति का आचरण बहुत अर्थ रखता है ...यदि हर पुरुष नारी का मान रखे( दोनों पक्ष के लिए ..) एवं यह बात समझे ,उस पर अत्याचार न हो तो सब कुछ ठीक है ... अनाचरण का कोइ अन्य तोड़ नहीं होता....