शनिवार, 27 जून 2015

वो लड़की- रौद दी जाती है अस्मत जिसकी


 वो लड़की
रौंद दी जाती है  अस्मत जिसकी  ,
करती है नफरत
अपने ही वजूद से
जिंदगी हो जाती है बदतर उसकी
मौत से .

 वो लड़की
रौद दी जाती है अस्मत जिसकी ,
घिन्न आती है उसे
अपने ही जिस्म से ,
नहीं चाहती करना
अपनों का सामना ,
वहशियत की शिकार
बनकर लाचार
घबरा जाती है हल्की सी
आहट से .

 वो लड़की
रौद दी जाती है अस्मत जिसकी
समझा नहीं पाती खुद को ,
संभल नहीं पाती
उबर नहीं पाती हादसे से ,
चीत्कार करती है उसकी आत्मा
चीथड़े -चीथड़े उड़ गए हो
जिसकी गरिमा के
जिए तो जिए कैसे ?

 वो लड़की
 रौद दी जाती है अस्मत जिसकी
घर  से बहार निकलना
उसके लिए है मुश्किल
अब सबकी नज़रे
वस्त्रों में ढके उसके जिस्म पर
आकर जाती है टिक ,
समाज की कटारी नज़र
चीरने लगती है उसके पहने हुए वस्त्रों को ,
वो महसूस करती है खुद को
पूर्ण नग्न ,
छुटकारा नहीं मिलता उसे
म्रत्युपर्यन्त   इस मानसिक दुराचार से .
वो लड़की
रौद दी जाती है अस्मत जिसकी ........

                               शिखा कौशिक 'नूतन '





बुधवार, 17 जून 2015

अग्नि-परीक्षा सीता की अपराध था घनघोर

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भूतल  में  समाई  सिया  उर कर रहा धिक्कार
पितृ सत्ता के समक्ष लो  राम गया  हार   !

देवी अहिल्या को लौटाया नारी  का सम्मान
अपनी  सिया का साथ न दे  पाया किन्तु  राम
है वज्र सम ह्रदय मेरा करता हूँ मैं स्वीकार !
पितृ सत्ता के समक्ष  ........

वध किया  अनाचारी का बालि हो या  रावण
नारी को मिले मान बस था यही कारण
पर दिला पाया कहाँ सीता को ये अधिकार !
पितृ सत्ता के समक्ष .......
नारी नर समान है ;  वस्तु नहीं नारी
एक पत्नी व्रत लिया इसीलिए  भारी
पर तोड़ नहीं पाया पितृ सत्ता की दीवार !
पितृ सत्ता के समक्ष .....

अग्नि-परीक्षा सीता की अपराध था घनघोर
अपवाद न उठे कोई इस बात पर था जोर
फिर  भी  लगे सिया पर आरोप निराधार !
पितृ सत्ता के समक्ष लो राम गया हार !!

शिखा कौशिक

रविवार, 14 जून 2015

शादी में पुलिस व् समाज का दखल अब ज़रूरी


आजकल शादी-ब्याह के दिन चल रहे हैं बारातें सड़कों पर दिन-रात दिखाई दे रही हैं .कहीं बैंड बाजे का शोर है तो कहीं डी जे का धूम-धड़ाका.बारातों के आगमन पर -
''आज मेरे यार की शादी है ,यार की शादी है मेरे दिलदार की शादी है ..''
तो बहुत सी जगह सुनाई दे जाता है किन्तु बारातों की विदाई के वक़्त -
''बाबुल की दुआएं लेती जा ,जा तुझको सुखी संसार मिले ...''
सुनाई देना लगभग गौरैया चिड़िया के दिखाई देने के समान कठिन कार्य हो गया है कारण ये नहीं कि हम लोग बहुत आगे बढ़ चुके हैं बल्कि कारण ये है कि बारातों का आगमन तो आज भी समाज के अनुसार हो रहा है लेकिन दुल्हन की विदाई अब पूरी तरह से वर व् वधु पक्ष के आपसी समझौतों के ऊपर टिककर रह गयी है और यहाँ कानून भी कुछ नहीं कर सकता क्योंकि दोनों पक्ष कानून को भली भांति जानते हैं और अपने अपने तर्क व् सबूत मजबूत रखते हैं ऐसा ही साबित होता है अभी के एक समाचार से जो कहता है -
[बारात दर से लौटी तो थाने जा पहुंची दुल्हन ]
procession returned and bride protest to police station at muktsar
इस मामले में लड़की पक्ष जहाँ दहेज़ मांगने की बात कह रहा है वहीँ लड़के के पक्ष से गुब्बारे का विवाद सामने रखा गया है सच्चाई क्या है यह तो कानूनी जाँच के बाद ही सामने आएगा किन्तु ये साफ हो गया है कि अब शादी ब्याह के मामले में बगैर पुलिस के समारोह की पूर्णता असंभव है क्योंकि इस समारोह के आयोजन से पहले भले ही दोनों पक्ष कुछ भी सौदे करते रहे किन्तु इसके आयोजन पर यह एक सामाजिक समारोह होता है और इस तरह से इसमें खलल पड़ना जो कि आजकल एक आम बात हो गयी है यह समाज व् कानून व्यवस्था के लिए खतरा है क्योंकि इससे समाज की मान्यताएं टूटती हैं और इससे जो अफरा-तफरी की स्थिति पैदा होती है उससे कानूनी व्यवस्था भंग होती है इसलिए अब कानून और समाज दोनों को इस समारोह की पूर्णता के लिए इसमें अपना दायित्व निभाना होगा और अपना दखल इसमें बढ़ाते हुए इस समारोह को बगैर विध्न-बाधा दोनों पक्षों को समझदारी के इस्तेमाल के लिए तैयार करते हुए पूर्ण कराना होगा.

शालिनी कौशिक
[कौशल ]

बुधवार, 10 जून 2015

बलात्कारी..पति ?-कहानी


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पंचायत अपना फैसला सुना चुकी थी .नीला के बापू -अम्मा , छोटे भाई-बहन बिरादरी के आगे घुटने टेककर पंचायत का निर्णय मानने को विवश हो चुके थे .निर्णय की जानकारी होते ही नीला ने उस बंद -दमघोंटू कोठरी की दीवार पर अपना सिर दे मारा था और फिर तड़प उठी थी उसके असहनीय दर्द से .चार दिन पहले तक उसका जीवन कितनी आशाओं से भरा हुआ था . उसका इंटरमीडियट का परीक्षा-परिणाम आने वाला था .वो झाड़ू लगाते ,कच्चा आँगन लीपते , कपडे धोते , बर्तन मांजते और माँ के साथ रोटी बेलते ... बस डिग्री कॉलेज में प्रवेश के सपने देखती . अपने पूरे कुनबे में नीला पहली लड़की थी जिसने इंटरमीडिएट तक का पढाई का सफर पूरा किया था .दलित घर की बेटी , जिसके बापू-अम्मा ने मजदूरी कर-कर के, पढ़ाया था ...उस कोमल कली नीला को इस बात का अंदाज़ा तक न था कि कोई उसका सर्वस्व लूटने को उसके आस-पास मंडराता रहता है .चालीस-पैतालीस साल के उस अधेड़ को गली के बच्चे चच्चा-चच्चा कहकर पुकारते थे .वो कभी चूड़ी बेचने के बहाने , कभी गज़रे ,कभी ईंगुर -चुटीले ,कभी साड़ी...जिस के भी द्वारा घरों में औरतों से गुफ्तगूं का मौका मिल जाये , वही उठाकर बेचने नीला की गली में आ धमकता था .सबसे अच्छा लगता उसे चूड़ियाँ बेचना क्योंकि चूड़ी पहनाने के बहाने औरतों की नरम कलाइयां छूने का मौका जो मिल जाता उस दुष्ट को .नीला की अम्मा भी कभी-कभार उससे कुछ खरीद लेती .उस मनहूस दिन नीला घर पर अकेली थी .वो कुकर्मी दरवाज़े पर आया तो नीला ने बंद किवाड़ों के पीछे से ही कह दिया कि ''घर पर कोई नहीं है ....कल को आना अम्मा तुमसे चूड़ी ले लेंगी .'' उस कुकर्मी की आँखें 'घर पर कोई नहीं है ' सुनकर चमक उठी थी वासना की आग में .वो खांसता हुआ सा बोला था - ''बीबी बहुत प्यासा हूँ ...किवाड़ खोलकर थोड़ा पानी पिला दो .'' मासूम नीला उसकी वासना प्यास को समझ न पाई और किवाड़ खोलकर उसके लिए पानी लेने चली गयी .वो दुष्कर्मी नीला के पानी लेने घर के अंदर की ओर जाते ही घर में घुसा और अंदर से कुण्डी लगाकर अपना सामान फेंककर नीला के पास अंदर ही पहुँच गया .नीला कुछ समझ पाती इससे पहले ही वो बाज़ ऐसे झपटा कि मासूम चिड़िया छटपटाती रह गयी .
जब घर के सब लोग वापस आये तब नीला पर हुए अत्याचार की व्यथा-कथा सुनकर सारे मौहल्ले में हल्ला मच गया . नीला के बापू-अम्मा थाने पहुंचे तो वहां से उन्हें धकिया दिया गया .मामला पंचायत तक पहुंचा और पंचों ने ये कहकर अपना पल्ला झाड़ लिया कि-'' देखो भाई इस आदमी ने अपना गुनाह मान लिया है .दारू पिए हुए था ये .हो गयी गलती ...फांसी पर चढ़ा दें क्या इसे ? लौंडिया को भी देखना चाहिए था कि नहीं . जवान लौंडियाँ ने घर के किवाड़ खोले ही क्यों जिब घर पर माँ-बाप नी थे ! बस बहक गया यु तो ..मरद की जात..खैर छोद्दो यु सब ...इस ससुरे का ब्याह नी हुआ इब तक यु इधर-उधर मुंह मारता फिरे है ...आगे-पीछे भी कोई नी ...सुन भाई नीला के बाप इब इस बलात्कारी से ही नीला का ब्याह करने में गनीमत है थारी भी और म्हारी भी वरना बगड़ के सारे गांवों में थू-थू होवेगी ...और जिब यु ऊँची जात का होके भी नीला को ब्याहने को राज़ी है तो तेरे के परेसानी है !'' नीला की अम्मा ने चीखकर इसका विरोध किया था भरी पंचायत में -'' जुलम है यु तो ...कहाँ वो जंगली सुअर और कहाँ मेरी फूल सी बच्ची !'' पर कौन सुनता उसकी .पंच ये कहकर उठ लिए ' चल हट यहाँ से ...फूल सी बच्ची ..दाग लग लिया उसके ..कौन जनानियों के मुंह लगे !''
तन -मन पर ज़ख्म लिए नीला दुल्हन बनी.फेरे हुए जिन्हें वो बलात्कारी बमुश्किल ही पूरे कर पाया क्योंकि उसने उस वक्त भी दारू पी हुई थी .नीला विदा होकर अपने ही गांव में कुछ दूर पर स्थित ससुराल पहुंची तो लोग-लुगाइयों की खुसर-पुसर के बीच उसने दारू के नशे में टुन्न बलात्कारी पति को सहारा देकर अंदर के कमरे में ले जाकर एक पलंग पर लिटा दिया . धीरे-धीरे आस-पड़ोस के लोग वहां से खिसक लिए .नीला ने घायल नागिन की नज़रों की भांति इधर-उधर देखा और तेजी से जाकर घर के मुख्य किवाड़ों की कुण्डी लगा आई .उसने देखा घर के एक कोने की भंड़रियां में केरोसीन के तेल की कनस्तरी रखी हुई थी ..उसने कनस्तरी उठाई और टुन्न पड़े बलात्कारी पति के ऊपर ले जाकर उड़ेल दी . वो टुन्न होते हुए भी एकाएक होश में आ गया और उसने अपने पंजे में नीला की गर्दन दबोच ली पर नीला ने शेरनी की भांति अपना घुटना मोड़ा और उसके पेट पर इतना जोरदार प्रहार किया कि वो बिलबिला उठा और पेट पकड़ कर जमीन पर गिर पड़ा .नीला ने अपनी सुहाग की साड़ी झटाझट उतारी और उस बलात्कारी पति के ऊपर कफ़न की तरह डाल दी . वो उसकी उलझन में ही फंसा था कि नीला ने ब्लाउज में पहले से छिपाए हुए लाइटर को जलाया और उस बलात्कारी के कपड़ों से छुआ दिया .खुद नीला फुर्ती से कमरे से निकलकर बाहर आई और किवाड़ बंद कर बाहर से सांकल लगा दी .बलात्कारी पति आग में झुलसते हुए उसे गालियां देता रहा और वो जोर जोर से चिल्लाती रही -'' अजी.. ..नहीं ऐसा मत करो ..मैंने तुम्हें माफ़ कर दिया है ..किवाड़ क्यों अंदर से बंद कर लिए .....कोई खिड़की भी नहीं जो देख सकूँ तुम क्या कर रहे हो ...हाय ये आग कैसी ....है तुमने खुद को आग लगा ली ...अजी ऐसा न करो ... मैं तो सुहागन बनते ही विधवा हो जाउंगी ..अजी किवाड़ खोल दो ..'' इधर नीला व् बलात्कारी पति की चींखें सुनकर आस-पड़ोस के लोग-लुगाई उनके घर के बाहर इकट्ठा हो चुके थे .सब बाहर से उनके घर का किवाड़ पीट रहे थे और नीला कमरे के किवाड़ की झरोख में से देख रही थी बलात्कारी को उसका दंड मिलते हुए . जब नीला ने देखा कि वो अधमरा होकर जमीन पर गिर पड़ा है तब नीला ने झटाक से ऐसी किवाड़ खोले जैसे धक्का देकर उसने ही अंदर से बंद किवाड़ खोल लिए हुए .इसके बाद वो ब्लाऊज-पेटीकोट में ही बाहर का किवाड़ खोलने को दौड़ पड़ी .उसको ऐसी हालत में देखकर इकठ्ठा हुई औरतों में से एक ने अपनी ओढ़ी हुई सूती चादर उड़ा दी और नीला बेसुध सी होकर फिर से अंदर भाग ली .उसके पीछे बाहर इकठ्ठा मर्द भी भागते हुए अंदर कमरे में पहुंचे और बलात्कारी पति को उठाकर सरकारी अस्पताल ले गए .वहां पहुँचते-पहुंचते उसके प्राण निकल चुके थे .वो पुलिस जिसने नीला के बाप को धकियाकर थाने से ये कहकर भगा दिया था कि ''तुम्हारी जनानियों की भी कोई इज्जत -विज्जत होवे है के ..जा जाकर पंचायत में जाकर ले ले वापस अपनी इज्जत '' आज बड़ी मुस्तैदी के साथ अस्पताल में आ धमकी . नीला का बयान दर्ज़ किया गया .नीला ने अपना बयान कुछ इस तरह दर्ज़ कराया -'' आस-पड़ोस के लोगों के जाते ही मेरे पतिदेव मेरे चरणों पर गिर पड़े और बोले- मैंने तेरे साथ बहुत गलत किया .मैं तेरे लायक कहाँ ? मुझ जैसे बलात्कारी के लिए तू क्यों करवाचौथ को बरती रह्वेगी ? क्यों बड़-मावस पर बड़ पूजके मेरी लम्बी उम्र मांगेगी ? क्यों सिन्दूर सजावेगी मांग में और चूड़ी पहरेगी ....मैं तो एक जनम को भी तेरा पति होने लायक ना फेर सात जन्मों की बात रहन दे ..इब मैं प्राश्चित करूंगा और ये कहकर वे तेल की कनस्तरी उठा लाये और खुद पर उड़ेल दी .मैंने मना करी तो मुझे धक्का दे दिया .मैं ज्यों ही उठती तब तक उन्होंने लाइटर से अपने कपड़ों में आग लगा ली .मैं दौड़कर उनके पास पहुंची तो मेरी साड़ी ने भी आग पकड़ ली . ये देखकर उन्होंने मेरी साडी खींच ली और मुझे कमरे से बाहर धकियाकर तुरंत किवाड़ बंद कर लिए .मैं किवाड़ों को पीटती रही कि मैंने तुम्हे माफ़ कर दिया है पर उन्होंने नहीं खोले .मेरे लगातार किवाड़ पीटते रहने के कारण अंदर की सिटकनी खुल गयी .तब मैंने देखा वे ज़मीन पर अधमरे से पड़े थे .मैंने लाज-शर्म छोड़ उसी अवस्था में जाकर घर के किवाड़ खोल दिए और ....'' ये कहते-कहते नीला ने अपनी कलाइयां अस्पताल की दीवार पर दे मारी जिसके कारण उनमे पहनी हुई चूड़ियाँ मौल कर वहां फर्श पर बिखर गयी और नीला की कलाइयों में कांच चुभने के कारण खून छलक आया .इतने में खबर पाकर नीला के बापू-अम्मा भी वहां आ पहुंचे और आते ही अम्मा ने नीला को बांहों में भरकर '' मेरी बच्ची तू तो सही-सलामत हैं ना '' कहते हुए उसका माथा चूमने लगी . नीला ने अम्मा को एक ओर ले जाकर धीमे से उसके कान में कहा -'' अम्मा ये मेरा निर्णय था .पंचायत को मुझमे में दाग दिख रहा था ना तो लो दाग लगाने वाले को जलाकर खाक कर दिया मैंने .जंगली सूअर को उसके बाड़े में ही घुसकर काट डाला .बलात्कारी कभी पति नहीं हो सकता अम्मा ! वो केवल बलात्कारी ही रहता मेरे लिए .उसने जितने दर्द मेरे तन-मन को दिए थे आज मैंने उन सब दर्दों की सिकाई कर ली उसे आग में जलते देखकर .'' नीला के ये कहते ही अम्मा ने आँखों-आँखों में उसके द्वारा किये गए दुष्ट संहार पर असीम संतुष्टि व्यक्त की और उसे गले से लगा लिया . पुलिसवाले सारे मामले को आत्म-हत्या की धाराओं में दर्ज़ कर वहां से चम्पत हो लिए और वहां इकट्ठा लोग-लुगाई -'' के ...किब ....क्योंकर '' करते हुए बलात्कारी पति के अंतिम संस्कार की तैयारियों में जुट गए .

शिखा कौशिक 'नूतन '

मंगलवार, 2 जून 2015

बदनाम रानियां

बगल में बस की सीट पर बैठी खूबसूरत युवती द्वारा मोबाइल पर की जा रही बातचीत से मैं इस नतीजे पर पहुँच चूका था कि ये ज़िस्म फ़रोशी का धंधा करती है .एक रात के पैसे वो ऐसे तय कर रही थी जैसे हम सेकेंड हैण्ड स्कूटर के लिए भाव लगा रहे हो .टाइट जींस व् डीप नेक की झीनी कुर्ती में उसके ज़िस्म का उभरा हुआ हर अंग मानों कपड़ों से बाहर निकलने को छटपटा रहा था .न चाहते हुए भी मेरी नज़र कभी उसके चेहरे पर जाती और कभी ज़िस्म पर .मोबाइल पर बात पूरी होते ही उसने हाथ उठाकर ज्यूँ ही अंगड़ाई ली त्यूं ही उस बस में मौजूद हर मर्द का ध्यान उसकी ओर चला गया . सबकी नज़रे उसके चेहरे और उसके ज़िस्म पर जाकर टिक गयी .शायद वो चाहती भी यही थी . वो बेखबर सी बनकर पर्स से लिपस्टिक निकाल कर दुसरे हाथ में छोटा सा आइना चेहरे के सामने कर होंठों को और रंगीन बनाने लगी . मेरे लिए बहुत ही असहज स्थिति थी . एक शरीफ मर्द होने के कारण मैं उससे थोड़ी दूरी बनाकर बैठना चाहता था पर दो की सीट होने के कारण ये संभव न था .उस पर वो युवती मुझसे सटकर बैठने में ही रुचि ले रही थी . सड़क के गड्ढों के कारण एकाएक बस उछली और संभलते-संभलते भी उसके लिपस्टिक लगे होंठ मेरी सफ़ेद कमीज के कन्धों पर आ छपे .मुझे गुस्सा तो बहुत आया पर उसके ''सॉरी'' कहते ही न जाने क्यों मेरे मर्दाना मन में कुछ गुदगुदी सी होने लगी . मैं चुप होकर बैठ गया और कहीं न कहीं मुझमें भी उसके प्रति या यूँ कहूँ उसके खूबसूरत ज़िस्म के पार्टी आकर्षण पैदा होने लगा . अविवाहित होने के कारण किसी लड़की की छुअन ने मेरे तन-मन दोनों को रोमांचित कर डाला जबकि मैं जानता था कि ये लड़कियां समाज में वेश्या-रंडी-छिनाल जैसी संज्ञाओं से विभूषित की जाती हैं . मैंने एक बार फिर से उसके चेहरे को गौर से देखा .बड़ी-बड़ी आँखें , गोरा रंग , धनुषाकार भौहें , होंठ के ऊपर काला तिल और सुडोल नासिका ...कुल मिलाकर गज़ब की खूबसूरत दिख रही थी वो . मैंने क्षण भर में ही अपनी नज़रें उसकी ओर से हटा ली तभी अचानक वो बिजली की सी रफ़्तार से सीट से खड़ी हुई और हमारी सीट के पास खड़े एक अधेड़ का गला दबोचते हुए बोली -'' क्या देखे जा रहा है हरामज़ादे इतनी देर से ......नंगी औरत देखनी है तो जा सिनेमा हॉल में ...परदे पर दिख जाएँगी तुझे ...खबरदार जो मेरी कुर्ती के अंदर झाँका .....नोट लगते हैं इसके ..समझा !!'' ये कहकर उसने धक्का देकर उसका गला छोड़ दिया .वो अधेड़ आदमी अपनी गर्दन सहलाता हुआ दूसरी ओर मुंह करके खड़ा हो गया और वो युवती फिर से और ज्यादा मुझसे सटकर सीट पर विराजमान हो गयी . अब मैंने उसकी ओर ध्यान न जाये इसलिए अपना मोबाइल निकाला और व्हाट्सऐप पर जोक्स पढ़ने का नाटक करने लगा .सड़क के गड्ढों के कारण बस फिर से उछली और मैं मोबाइल संभालते हुए लगभग गिरने ही वाला था कि उस युवती ने अपनी नरम हथेलियों से मेरी बांह पकड़ कर मुझे सहारा दिया . पल भर को मन मचल गया -'' काश ये नरम हथेलियाँ यूँ ही मुझे थामे रहे '' पर तुरंत होश में आते हुए मैंने ''थैंक्स '' कहते हुए उसकी ओर देखा तो वो मुस्कुराकर बोली -'' तुम कुंवारे हो या शादीशुदा !'' मैं उसके इस प्रश्न पर सकपका गया .दिमाग में उत्तर आया -'' तुझसे मतलब '' पर जुबान विनम्र बनकर बोली -'' अभी अविवाहित हूँ !' ये सुनते ही उस युवती ने जींस की जेब में से अपना विजिटिंग कार्ड निकालकर मेरे हाथ पर रखते हुए कहा -'' ये मेरा एड्रेस और नंबर है ...जब भी दिल चाहे आ जाना तेरी सारी आग बुझा दूँगी .'' मेरा दिमाग उसकी इस बात पर तेज़ाबी नफरत से भर उठा .मैं कड़वी जुबान में बोला -'' घिन्न नहीं आती तुम्हें अपने इस ज़िस्म से ..क्यों करती हो ऐसा गन्दा काम ? '' युवती मेरी बात पर ठठाकर हंस पड़ी और मेरे बालों को अपनी बारीक उंगलियों से हौले-हौले सहलाते हुए बोली -'' गन्दा काम ...क्या गन्दा है इसमें ? मेरा ज़िस्म है ...मैं कुछ भी करूँ...मर्द की हवस मिट जाती है और मेरे घर का चूल्हा जल जाता है ..क्या बुरा है ? रोज़ सुबह नहा-धो कर शुद्ध हो जाती हूँ मैं . अरे तुम सब मर्दों को तो मेरी जैसी औरतों का अहसानमंद होना चाहिए ..हम अपना बदन नोंचवा कर आदमी की अंदर की वासना को तृप्त न करें तो तुम जैसे नैतिकतावादियों की माँ-बहन-पत्नी-बेटी न जाने कब किसी दरिंदे की हवस की शिकार हो जाएँ ....खैर छोडो ये बकवास बातें ! ....तुम आना चाहो तो कार्ड पर लिखे मोबाइल नंबर पर कॉल कर देना ...उसी पर पैसे और दिन तय कर लेंगें .'' उसकी बातों ने मुझे गहरे अवसाद में डाल दिया था .अब मेरे बदन में रोमांच की जगह आक्रोश ने ले ली थी .मैं सोचने लगा -'' आखिर कैसे इसे समझाऊं कि वो जो कर रही है सही नहीं है पर उसके तर्क भी दमदार थे .आदमी नैतिकता का झंडा उठाये युगों-युगों से औरत को दो श्रेणियों में बांटता आया है -अच्छी औरत और बदजात औरत .देवी के आगे सिर झुकाने वाले कितने ही मर्दों ने उसकी प्रतिमूर्ति औरत के बदन को जी चाहे नोंचा-चूसा और उसके बाद उसे पतिता कहकर उसके मुंह पर थूककर चलते बने . न पीछे मुड़कर कभी देखा कि कहीं उस पतिता के गर्भ से तुम्हारी ही संतान ने जन्म न ले लिया हो !'' मेरे ये सोचते-सोचते उस युवती ने मेरे कंधें पर हाथ रखते हुए बड़ी अदा के साथ पूछा -'' कहाँ खो गए चिकने बाबू ? देखो मेरे भी कुछ उसूल हैं .मैं मर्द से पहले ही पूछ लेती हूँ कि वो कुँवारा है या शादीशुदा .यदि वो शादीशुदा है तो मैं उसके साथ डील नहीं करती क्योंकि मुझे उन सती -सवित्रियों से नफरत है जो अपने मर्दों को तो संभाल नहीं पाती और हुमजात औरतों को बदनाम करती हैं कि हमने उनके मर्दों को फंसा लिया . मैं केवल कुंवारे मर्दों से डील करती हूँ . कार्ड पर मेरा नाम तो पढ़ ही लिया होगा .मेरा असली नाम रागिनी है जिसे मैंने कार्ड पर '' रानी '' छपवाया है .दिन में मैं एक दफ्तर में काम करती हूँ जहाँ और महिला सहकर्मियों की तुलना में मुझे ज्यादा वेतन मिल जाता है क्योंकि मैं बॉस और उसके क्लाइंट्स द्वारा मेरे जिस्म से खिलवाड़ करने से नाराज़ नहीं होती ..नाराज़ होकर कर भी क्या लूंगी ..वे मुझे दो दिन में बाहर का रास्ता दिखा देंगें और रात को मैं अनजान मर्दों की हवस को शांत करने की मशक्कत करती हूँ .इसमें मिलने वाले पैसों का कोई हिसाब नहीं .अभी मैं चौबीस साल की हूँ ...मेरे पास पैसे कमाने के करीब-करीब उतने ही साल हैं जितने किसी क्रिकेट खिलाडी के पास होते हैं ..मतलब करीब सोलह साल और ......चालीस के बाद कौन मेरे इस जिस्म का खरीदार मिलेगा ! मुझे इन्ही सोलह सालों में अपने बैंक-बैलेंस को बढ़ाना हैं ताकि चालीस के बाद मैं भूखी न मरूं .'' युवती बहुत सहज भाव में ये सब कह गयी पर मुझे एक-एक शब्द ऐसा लगा जैसे कोई मेरे कानों में गरम तेल उड़ेल रहा हो . मैं कहना चाहता था -'' बंद करो ये सब ...चुप हो जाओ ...ऐसी बातें सुनकर मुझे लग रहा है कि एक मर्द होने के कारण मैं भी तुम जैसी औरतों का अपराधी हूँ .आखिर मर्द इतना कमजोर कैसे हो सकता है ? अपनी बहन-बेटी-पत्नी-माँ की अस्मिता की रक्षा हेतु सचेष्ट मर्द अन्य औरतों को क्यों मात्र एक मादक बदन मानकर उसका मनमाना उपभोग करने को आतुर है .'' तभी एक झटके के साथ बस रूक गयी और वो युवती सीट पर से खड़ी हो गयी . उसे शायद यहीं उतरना था .अपना पर्स उठाकर वो चलते हुए मुझसे बोली -'' सॉरी तेरा बहुत दिमाग खाया पर यकीन कर यदि मेरे साथ एक रात बिताएगा तो मैं तेरे सारे शिकवे-गिले दूर कर दूँगी .'' ये कहकर उसने झुककर मेरे गाल पर किस चिपका दिया और तेजी से आगे बढ़कर बस से उतर गयी . मैं भी न जाने किस नशे में उसके पीछे -पीछे वहीं उतरने लगा . बस से उतर कर मैंने चारो ओर देखा तो वो कहीं नज़र न आई . मुझे खुद पर आक्रोश हो आया -'' आखिर कितना कमजोर है मेरा चरित्र जो एक कॉल-गर्ल के पीछे गंतव्य से पूर्व ही बस से उतर लिया ...अरे उसके लिए तो मैं केवल एक रात का साथी मात्र हूँ जो उसके मनचाहे पैसे देकर उसके जिस्म का उपभोग कर सकता हूँ ....पर क्या मैं भी और मर्दों की भांति एक औरत के जिस्म को एक रात में नोच -खसोट कर अपनी हवस पूरी कर पाउँगा ....या अपनी ही नज़रों में गिर जाऊंगा कि मैंने भी औरत को केवल एक जिस्म माना ....नहीं .मैं ऐसा कभी नहीं कर पाउँगा ..मैं उसके तर्कों के आगे झुककर ये मानता हूँ कि यदि ये कॉल-गर्ल न होती तो समाज में इज़्ज़त के साथ रह रही महिलाओं की अस्मिता खतरे में पड़ जाती क्योंकि मर्द की हवस की आग वेश्यालयों में शांत न की जाती तो घर-बाहर हर जगह बहन-बेटियों को दबोचने का सिलसिला जारी रहता पर कब तक ऐसी रानियां खुद बदनाम होकर अपने बदन को दरिंदों के हवाले करती रहेंगी ...मर्द भी कभी कुछ करेगा या नहीं ? शरुआत मुझे खुद से करनी होगी .'' ये सोचते हुए मैंने रानी का दिया कार्ड टुकड़े-टुकड़े कर डाला और हवा में उछाल दिया . शिखा कौशिक 'नूतन '