ग़ज़ल---- उनके अश्कों को
उन के अश्कों को पलकों से
चुरा लाये हैं |
उनके गम को हम खुशियों से
सजा आये हैं
आप मानें या न मानें यह
तहरीर मेरी ,
उनके अशआर ही ग़ज़लों में उठा
लाये हैं|
उस दिए ने ही जला डाला
आशियाँ मेरा ,
जिसको बेदर्द हवाओं से बचा
लाये हैं |
याद करने से भी दीदार न
होता उनका,
इश्क में यूंही तड़पने की
सजा पाए हैं|
प्यार में दर्द का अहसास
कहाँ होता है,
प्यार में ज़ज्ब दिलों को ही
जख्म भाये हैं|
प्रीति है भीनी सी बरसात
क्या आलम कहिये,
रूह क्या अक्स भी आशिक का
भीग जाए है|
श्याम' वो करते हैं शक मेरे
ज़ज्वातों पे,
हम से ही दर्द के नगमे जहां
में आये हैं||
1 टिप्पणी:
nice
एक टिप्पणी भेजें