गुरुवार, 25 अप्रैल 2024

राजनीति नारी का अपमान न करे

  भाजपा और अंधभक्त आज सत्ता के नशे में चूर नजर आ रहे हैं और इसका जीता जागता प्रमाण वे स्वयं प्रस्तुत कर रहे हैं. विपक्ष के नेताओं को लेकर भाजपा के बड़े बड़े नेताओं से लेकर छुटभैये कार्यकर्ताओं द्वारा भी भारतीय संस्कृति और सभ्यता की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं. अभी तक भाजपाइयों द्वारा राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को लेकर मात्र पप्पू और पिंकी शब्दावली का ही प्रयोग किया जा रहा था, किन्तु अपने बड़े नेताओं द्वारा इनके लिए असभ्य शब्दों का धड़ल्ले से इस्तेमाल किए जाने पर छुटभैये भाजपाइयों की भी ढीठ खुलती हुई नजर आ रही है. राहुल गांधी जी को लेकर तो अपशब्द भाजपा के शीर्ष से पहले ही जारी थे किंतु अब प्रियंका गांधी जी के भी चुनाव प्रचार में उतरने पर देश की सभ्यता संस्कृति की ठेकेदार बनने वाली भाजपा के कार्यकर्ताओं द्वारा प्रियंका गांधी जी के लिए जिन अपशब्दों का इस्तेमाल किया जा रहा है उसका लिया जाना भी एक सभ्य भारतीय अपने सपने में भी सोच नहीं सकता. 

    भारतीय संस्कृति में नारी का जो स्थान है उसे इतना भ्रष्ट स्वरुप कभी भी प्राप्त नहीं हुआ होगा, जितना बीजेपी के मौजूदा कार्यकाल में दिखाई दिया है. भारतीय संस्कृति में नारी को बहुत उच्च दर्जा प्रदान किया गया है - 

भारतीय संस्कृति में नारी का महत्व

       हर धर्म में महिला शक्‍त‍ि को सर्वोच्‍च स्‍थान द‍िया गया है। इस फेर में यहां तक कहा जाता है कि जहां नारी की पूजा नहीं होती वहां देवताओं का वास नहीं होता।

     भारतीय संस्कृति में नारी के सम्मान को बहुत महत्व दिया गया है। संस्कृत में एक श्लोक है- 'यत्र पूज्यंते नार्यस्तु तत्र रमन्ते देवता:। अर्थात्, जहां नारी की पूजा होती है, वहां देवता निवास करते हैं। महाभारत में कहा गया है कि जिस कुल में नारियों को उपेक्षा भाव से देखा जाता है उस कुल का सर्वनाश हो जाता है। शतपथ ब्राह्मण में कहा गया है कि नारी नर की आत्मा का आधा भाग है। नारी के बिना नर का जीवन अधूरा है इस अधूरेपन को दूर करने और संसार को आगे चलाने के लिए नारी का होना जरूरी है। नारी को वैदिक युग में देवी का दर्जा प्राप्त था। नारी की स्थिति से समाज और देश के सांस्कृतिक और बौद्धिक स्तर का पता चलता है। यदि नारी को धर्म, समाज और पुरुष के नियमों में बांधकर रखा गया है तो उसकी स्थिति बदतर ही मानी जा सकती है।

अथर्ववेद का एक श्लोक है- 

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:। 

यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफला: क्रिया:।।

जिस कुल में नारियों की पूजा, अर्थात सत्कार होता हैं, उस कुल में दिव्यगुण, दिव्य भोग और उत्तम संतान होते हैं और जिस कुल में स्त्रियों की पूजा नहीं होती, वहां जानो उनकी सब क्रिया निष्फल हैं। नारी ही मां है और नारी ही सृष्टि। एक सृष्टि की कल्पना बगैर मां के नहीं की जा सकती है। मां अर्थात माता के रूप में नारी, धरती पर अपने सबसे पवित्रतम रूप में है। माता यानी जननी। मां को ईश्वर से भी बढ़कर माना गया है, क्योंकि ईश्वर की जन्मदात्री भी नारी ही रही है। 

       वेदों में 'मां' को 'अंबा', 'अम्बिका', 'दुर्गा', 'देवी', 'सरस्वती', 'शक्ति', 'ज्योति', 'पृथ्वी' आदि नामों से संबोधित किया गया है। इसके अलावा 'मां' को 'माता', 'मात', 'मातृ', 'अम्मा', 'जननी', 'जन्मदात्री', 'जीवनदायिनी', 'जनयत्री', 'धात्री', 'प्रसू' आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है। सामवेद में एक प्रेरणादायक मंत्र मिलता है, जिसका अभिप्राय है, 'हे जिज्ञासु पुत्र! तू माता की आज्ञा का पालन कर, अपने दुराचरण से माता को कष्ट मत दे। अपनी माता को अपने समीप रख, मन को शुद्ध कर और आचरण की ज्योति को प्रकाशित कर।'

एक ब्रह्मा नैं शतरूपा रच दी, जबसे लागी सृष्टि हौण।'

अर्थात, यदि नारी नहीं होती तो सृष्टि की रचना नहीं हो सकती थी। स्वयं ब्रह्मा, विष्णु और महेश तक सृष्टि की रचना करने में असमर्थ बैठे थे। जब ब्रह्मा जी ने नारी की रचना की, तभी से सृष्टि की शुरुआत हुई।

     हिंदू धर्म में देवियों की होती है पूजा. नवरात्रि पर्व में भाजपा नेतृत्व और भाजपाइयों द्वारा बढ़ चढ़ कर कन्या पूजन किया जाता है. अभी नवरात्रि पर्व पूर्ण हुए हैं और कन्या की देवी के रूप में हिन्दुओं द्वारा बहुत पैर छू छूकर पूजा की गई है. क्या देश पर प्राण न्यौछावर करने वाले प्रधानमंत्री स्व श्री राजीव गांधी जी की पुत्री प्रियंका गांधी एक पुत्री, एक देवी नहीं हैं? 

       सनातन वैदिक हिन्दू धर्म में जहां पुरुष के रूप में देवता और भगवानों की पूजा-प्रार्थना होती थी वहीं देवी के रूप में मां सरस्वती, लक्ष्मी और दुर्गा का वर्णन मिलता है। वैदिक काल में नारियां मां, देवी, साध्वी, गृहिणी, पत्नी और बेटी के रूप में ससम्मान पूजनीय मानी जाती थीं। प्रियंका गांधी एक बेटी हैं, बहन हैं, पत्नी हैं, बहू हैं, दो बच्चों की माँ हैं क्या हिन्दू धर्म की मान्यताओं के अनुसार वे ससम्मान पूजनीय की श्रेणी में नहीं आती? नहीं आती तो क्यूँ नहीं आती? 

       हिंदू धर्म में परम्परा के अनुसार धन की देवी 'लक्ष्मी मां', ज्ञान की देवी 'सरस्वती मां' और शक्ति की देवी 'दुर्गा मां' मानीं गई हैं। नवरात्रों में 'मां' को नौ विभिन्न रूपों में पूजा जाता है और प्रियंका गांधी इन तीनों ही स्वरुपों मे सम्मानित और पूजनीय हैं पर भाजपा और इनके अनुयायी इनके लिए अभद्र भाषा का इस्तेमाल केवल इसलिए कर रहे हैं क्योंकि ये बीजेपी की नीतियों के खिलाफ और जनता जनार्दन पर भाजपा द्वारा किए जा रहे अत्याचारों के खिलाफ बोल रही हैं, भाजपा और उसके अनुयायी नहीं सोच रहे हैं कि इस तरह से तुम न केवल अपने कुसंस्कार दिखा रहे हो बल्कि साथ ही, उनकी अभद्र शब्दावली केवल प्रियंका गांधी को ही अपमानित नहीं कर रही है बल्कि भाजपा और उसके अनुयायियों की माँ, बहन, पत्नी, बहू सहित सम्पूर्ण नारी जाति का अपमान कर रही है। 

     आज बीजेपी के राज में श्री राम के नाम पर सत्ता प्राप्ति की कोशिशें बीजेपी द्वारा की जा रही हैं और श्री राम के विषय में उनके नारी सम्मान को लेकर रावण वध तक कर दिए जाने की ही भावना को पूरी तरह से दरकिनार कर दिया गया है. क्या भारत के पूर्व प्रधान मंत्री स्व राजीव गांधी जी की पुत्री और एक ऐसे प्रधानमंत्री की पुत्री जिन्होंने अपने प्राण देश के लिए न्यौछावर कर दिए हों, उन प्रियंका गांधी के साथ असभ्यता की हदें पार कर छींटाकशी किया जाना, प्रियंका गांधी जैसी भारतीय संस्कृति, सभ्यता के उच्च आदर्शों का पालन करने वाली नारी या किसी भी नारी के लिए ऐसे अपशब्दों का इस्तेमाल करने वाली भाजपा या इसके अनुयायियों द्वारा स्वयं को श्री राम के भक्तों की श्रेणी में रखना कहीं से भी सही कहे जाने की श्रेणी में रखा जाएगा? क्या राम नाम की परिभाषा का अ ब स द भी जानते या मानते हैं भाजपा और इसके अनुयायी? 

       भारत में सर्वव्यापी ईश्वर के रूप में पूजित श्री राम को तुलसीदास जी ने एक आदर्श पुरुष के रूप में चित्रित किया है, जिनमें सभी प्रकार के गुणों का समावेश है। वे करुणा, दया, क्षमा, सत्य, न्याय, सदाचार, साहस, धैर्य, और नेतृत्व जैसे गुणों के धनी हैं। वे एक आदर्श पुत्र, भाई, पति, राजा, और मित्र हैं। रामायण में श्रीराम अपने श्रीमुख से 'मां' को स्वर्ग से भी बढ़कर मानते हैं। वे कहते हैं-

'जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।'

(अर्थात, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।) श्री राम के आदर्शों का वर्णन करना सूर्य को दीपक दिखाने के समान ही कहा जाएगा. श्री राम गुणों की खान हैं. श्री राम नारी का सम्मान करते हैं. माता सीता से विवाह के पश्चात श्री राम ने राजाओं के यहां कई पत्नियां होने का रिवाज कहते हुए उन्हें एक पत्नि व्रत का वचन प्रथम भेंट के रूप में देते हुए पत्नी के, नारी के सम्मान को उच्च स्तर प्रदान किया. श्री राम ने माता सीता का हरण करने पर रावण से किए जाने वाले युद्ध को अखिल जगत की नारी के सम्मान हेतु उठाया गया कदम बताया. 

         इस तरह, श्री राम मन्दिर की स्थापना का श्रेय लेकर भाजपा और उसके अनुयायी यदि यह सोचते हैं कि उन्हें नारी जगत का इस तरह से अपमान करने का अधिकार मिल गया है तो यह घोर पाप है, अखिल विश्व की नारी जाति के सम्मान हेतु एक वनवासी श्री राम के लिए यदि भाजपा और उसके अनुयायी जरा भी श्रद्धा रखते हैं तो उन्हें प्रियंका गांधी से स्वयं आगे बढ़कर क्षमा माँगनी चाहिए क्योंकि अब ये पाप प्रभु श्री राम नहीं होने देंगे क्योंकि अब तो भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा उनकी प्राण प्रतिष्ठा भी की जा चुकी है. जय सियाराम जी की 🌹🙏🌹

शालिनी कौशिक 

एडवोकेट

कैराना (शामली)

सोमवार, 19 फ़रवरी 2024

दहेज कुप्रथा से बेटी को बचाने में सरकार और कानून असफल

 


आजकल रोज समाचारपत्रों में महिलाओं की मौत के समाचार सुर्खियों में हैं जिनमे से 90 प्रतिशत समाचार दहेज हत्याओं के हैं. जहां एक ओर सरकार द्वारा महिला सशक्तिकरण के लिए गाँव और तहसील स्तर पर "मिशन शक्ति" कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं, राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण, जिला विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा महिलाओं को उनके कानूनी अधिकारों की जानकारी न्यायाधीशों और अधिवक्ताओं द्वारा मुफ्त में उपलब्ध करायी जा रही है, सरकारी आदेशों के मुताबिक परिवार न्यायालयों में महिला के पक्ष को ही ज्यादा मह्त्व दिया जाता है वहीं सामाजिक रूप से महिला अभी भी कमजोर ही कही जाएगी क्योंकि बेटी के विवाह में दिए जाने वाली "दहेज की कुरीति" पर नियंत्रण लगाने में सरकार और कानून दोनों ही अक्षम रहे हैं.  

        एक ऐसा जीवन जिसमे निरंतर कंटीले पथ पर चलना और वो भी नंगे पैर सोचिये कितना कठिन होगा पर बेटी ऐसे ही जीवन के साथ इस धरती पर आती है .बहुत कम ही माँ-बाप के मुख ऐसे होते होंगे जो ''बेटी पैदा हुई है ,या लक्ष्मी घर आई है ''सुनकर खिल उठते हों .

                 'पैदा हुई है बेटी खबर माँ-बाप ने सुनी ,

                उम्मीदों का बवंडर उसी पल में थम गया .''

बचपन से लेकर बड़े हों तक बेटी को अपना घर शायद ही कभी अपना लगता हो क्योंकि बात बात में उसे ''पराया धन ''व् ''दूसरे घर जाएगी तो क्या ऐसे लच्छन [लक्षण ]लेकर जाएगी ''जैसी उक्तियों से संबोधित कर उसके उत्साह को ठंडा कर दिया जाता है .ऐसा नहीं है कि उसे माँ-बाप के घर में खुशियाँ नहीं मिलती ,मिलती हैं ,बहुत मिलती हैं किन्तु ''पराया धन '' या ''माँ-बाप पर बौझ '' ऐसे कटाक्ष हैं जो उसके कोमल मन को तार तार कर देते हैं .ऐसे में जिंदगी गुज़ारते गुज़ारते जब एक बेटी का ससुराल में पदार्पण होता है तब उसके जीवन में उस दौर की शुरुआत होती है जिसे हम अग्नि-परीक्षा कह सकते हैं                  इस तरह माँ-बाप के घर नाजुक कली से फूल बनकर पली-बढ़ी बेटी को ससुराल में आकर घोर यातना को सहना पड़ता है. दहेज निषेध अधिनियम, 1961 के अनुसार दहेज लेने, देने या इसके लेन-देन में सहयोग करने पर 5 वर्ष की कैद और 15,000 रुपए के जुर्माने का प्रावधान है। दहेज के लिए उत्पीड़न करने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 498-ए जो कि पति और उसके रिश्तेदारों द्वारा सम्पत्ति अथवा कीमती वस्तुओं के लिए अवैधानिक मांग के मामले से संबंधित है, के अन्तर्गत 3 साल की कैद और जुर्माना हो सकता है। धारा 406 के अन्तर्गत लड़की के पति और ससुराल वालों के लिए 3 साल की कैद अथवा जुर्माना या दोनों, यदि वे लड़की के स्त्रीधन को उसे सौंपने से मना करते हैं।

       यदि किसी लड़की की विवाह के सात साल के भीतर असामान्य परिस्थितियों में मौत होती है और यह साबित कर दिया जाता है कि मौत से पहले उसे दहेज के लिए प्रताड़ित किया जाता था, तो भारतीय दंड संहिता की धारा 304-बी के अन्तर्गत लड़की के पति और रिश्तेदारों को कम से कम सात वर्ष से लेकर आजीवन कारावास की सजा हो सकती है।

     दहेज प्रतिषेध अधिनियम 1961 की धारा-3 के अनुसार - 

    दहेज लेने या देने का अपराध करने वाले को कम से कम पाँच वर्ष के कारावास साथ में कम से कम पन्द्रह हजार रूपये या उतनी राशि जितनी कीमत उपहार की हो, इनमें से जो भी ज्यादा हो, के जुर्माने की सजा दी जा सकती है लेकिन शादी के समय वर या वधू को जो उपहार दिया जाएगा और उसे नियमानुसार सूची में अंकित किया जाएगा वह दहेज की परिभाषा से बाहर होगा।

धारा 4 के अनुसार - 

दहेज की मांग के लिए जुर्माना-

       यदि किसी पक्षकार के माता पिता, अभिभावक या रिश्तेदार प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से दहेज की मांग करते हैं तो उन्हें कम से कम छः मास और अधिकतम दो वर्षों के कारावास की सजा और दस हजार रूपये तक जुर्माना हो सकता है।

    हमारा दहेज़ कानून दहेज़ के लेन-देन को अपराध घोषित करता है किन्तु न तो वह दहेज़ का लेना रोक सकता है न ही देना क्योंकि हमारी सामाजिक परम्पराएँ हमारे कानूनों पर आज भी हावी हैं .स्वयं की बेटी को दहेज़ की बलिवेदी पर चढाने वाले माँ-बाप भी अपने बेटे के विवाह में दहेज़ के लिए झोले लटकाए घूमते हैं, किन्तु जिस तरह दहेज़ के भूखे भेड़ियों की निंदा की जाती है उस तरह दहेज के दानी कर्णधारों की आलोचना क्यूँ नहीं की जाती है. 

      जब हमारे कानून ने दहेज के लेन और देन दोनों को अपराध घोषित किया है तो जब भी कोई दहेज हत्या का केस कोर्ट में दायर किया जाता है तो बेटी के सास ससुर के साथ साथ बेटी के माता पिता पर केस क्यूँ नहीं चलाया जाता है. हमारे समाज में बेटी की शादी किया जाना जरूरी है किन्तु क्या बेटी की शादी का मतलब उसे इस दुष्ट संसार में अकेले छोड़ देना है. बेटी के सास ससुर बहू को अपने बेटे के लिए ब्याह कर अपने घर लाते हैं वे उसे पैदा थोड़े ही करते हैं किन्तु जो माँ बाप उसे पैदा करते हैं वे उसे कैसे ससुराल में दुख सहन करने के लिए अकेला छोड़ देते हैं. आज तक कितने ही मामले ऐसे सामने आए हैं जिनमें दहेज के लोभी ससुराल वालों से तंग आकर बहू ने ससुराल में आत्महत्या कर ली और उस आत्महत्या की जिम्मेवारी भी ससुरालवालों पर डालकर केवल उन्हीं पर केस दर्ज किया गया और न्यायालयों द्वारा उन्हें ही सजा सुनाई गई जबकि ससुराल में बहुओं द्वारा आत्महत्या का एक पक्ष यह भी है कि जब मायके वालों ने भी साथ देने से हाथ खड़े कर दिए तो उस बहू /बेटी के आगे अपनी जिंदगी के ख़त्म करने के अलावा कोई रास्ता न बचने पर उसने आत्महत्या जैसे खौफनाक कदम को उठाने का फैसला किया और ऐसे में जितने दोषी ससुराल वाले होते हैं उतने ही दोषी बहू/बेटी के मायके वाले भी होते हैं किन्तु वे बेचारे ही बने रहते हैं. 

         बेटी को उसके ससुराल में खुश दिखाने का दिखावा स्वयं बेटी पर कितना भारी पड़ सकता है इसका अंदाजा हमारे समाज में निश दिन आने वाली दहेज हत्या या बहू द्वारा आत्महत्याओं की खबरें हैं. जिन पर रोक लगाने के लिए सरकार और कानून से भी आगे बेटी के माँ बाप को ही आना होगा और उन्हें यह समझना होगा कि बेटी की शादी जरूरी है किन्तु उसका साथ छोड़ना जरूरी नहीं है. यदि ससुराल वाले बेटी को दहेज के लिए प्रताडित करते हैं, तंग करते हैं तो अपनी बेटी को अपने घर वापस लाकर जिंदगी दीजिए और तब कानून की शरण में जाकर उसे न्याय दिलाईये, यह नहीं कि पहले ससुराल वालों की प्रताड़ना से बचाने के लिए उनकी गलत मांगों को पूरा करते रहें और फिर उनके द्वारा बेटी की हत्या कर दिए जाने पर उन्हें सजा दिलाएं और मृत पुत्री को न्याय क्योंकि मृत्यु के बाद जब शरीर से आत्मा मुक्त हो जाती है तो बेटी को दुख में अकेले छोड़ देना पुत्री के माता पिता के भी पाप में ही आता है और जब तक बेटी को अपने माता पिता का ऐसा मजबूत साथ नहीं मिल जाता है तब तक बेटी का जीवन बचाने में वास्तव में सरकार और कानून भी असफल ही नजर आता है. 

                शालिनी कौशिक

                       एडवोकेट 

                 कैराना (शामली) 

                    

               

     

सोमवार, 7 अगस्त 2023

श्रेया को इन्साफ मिले तभी लिखें RIP

 


विद्यालय प्रांगण दिन प्रति दिन छात्र/छात्राओं के शोषण का स्थल बनते जा रहे हैं. आज़मगढ़ की गर्ल्स कॉलेज की ग्यारहवीं की छात्रा श्रेया तिवारी की संदिग्ध आत्महत्या /हत्या इसका ताजा उदाहरण है। अब तो RIP लिखते हुए भी दिल नहीं मानता. RIP तभी लिखें जब श्रेया को इन्साफ मिले।

-डॉ शिखा कौशिक नूतन 

गुरुवार, 20 जुलाई 2023

स्त्री होना कितना भयावह #मणिपुर

 मणिपुर हिंसा की आग में जल गई बेटियों की अस्मत और सरकार तमाशबीन बनी हुई है। लानत है।



नारी शक्ति है क्या

  



 
    मणिपुर वीभत्स घटना आज पूरे देश के सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर छाई हुई है. महिलाओं के लिए मौजूदा समय कितना दुखदायी है निरन्तर आंखों के सामने खुलता जा रहा है. यूँ तो, आरंभ से नारी की जिंदगी माँ के गर्भ में आने से लेकर मृत्यु तक शोचनीय ही रहती है. वह चाहे बेटी हो, पत्नी हो या माँ, सभी की नजर में बेचारी ही रहती है. आज एक ओर सरकारी योजनाओं में मिशन शक्ति, विधिक सेवा प्राधिकरण आदि माध्यम से सरकार नारी को सशक्त किए जाने का अथक प्रयास कर रही है किन्तु यह प्रयास भी भारतीय पुरातन सोच को परिवर्तित करने में विफल ही नजर आते हैं. नारी को अबला और भोग्या ही समझने वाला पुरुष सत्ता धारी समाज नारी की सामाजिक स्थिति को उन्नत होते हुए नहीं देख सकता है और वह जब भी, जैसे भी नारी को शोषित करने का कोई भी दुष्कर्म कर सकता है, करता है. बृज भूषण सिंह हो, कुलदीप सेंगर हो या मणिपुरी आदिवासी समाज - महिला को अपमानित करने से कहीं भी पीछे नहीं हटते हैं और ऐसे में इन पुरुष सामंतवाद के समर्थकों पर फर्क नहीं पड़ता है नारी के कमजोर या सबल होने से और सबसे दुःखद स्थिति यह है कि आज सत्ता के शीर्ष पर बैठी नारी शक्ति की मिसाल भी नारी अपमान के मुद्दों पर नारी के साथ खड़ी दिखाई नहीं देती हैं और इतनी ऊपर पहुंचकर भी नारी के "अबला और बेचारी" होने की कहावत को ही चरितार्थ करती हैं.

शालिनी कौशिक एडवोकेट

कैराना (शामली)