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शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

मिट रही हैं बेटियां मिटती रहे---बेटे को पढ़ने दो |

शिखा जी को लिखा 

पथ दिखा सहेली कहाँ गईं ?
वो शिखा सहेली कहाँ गईं ??
ब्लॉग जगत वीराना है -
तू वापस आ जा जहाँ गई ||

कुशलक्षेम हम चाहें तो--
वाह में बदलें आहें तो
सही रास्ता चुन पाए  --
सम्मुख हों दो राहें तो ||

दीदी के भी दर्शन दूर |
दूर  कर  रहे कोई टूर |
सुख-दुःख के हैं साथी हम 
क्यूँ आने से हो मजबूर??

 बेटे को पढ़ने दो |
* घट रही है रोटियां घटती रहें---गेहूं  को सड़ने  दो |
* बँट रही हैं बोटियाँ बटती रहें-- नंगों को लड़ने  दो |

* गल रही हैं चोटियाँ गलती रहें--- पानी को घटने दो |
* मिट  रही हैं बेटियां मिटती रहे---बेटे को पढ़ने दो |

* घुट रही है बच्चियां घुटती रहें-- बर्तन को मलने दो ||
* लग रही हैं बंदिशें लगती रहें--- दौलत को बढ़ने दो |

* पिट रही हैं गोटियाँ पिटती रहें---रानी को चलने दो |
* मिट रही हैं हसरतें मिटती रहें--जीवन को मरने दो ||



सोमवार, 26 सितंबर 2011

पहले श्रृद्धा, फिर श्राद्ध करे



  हमारी संस्कृति कई रीति रिवाजों और परम्पराओं का समन्वय लिए हुए है। हिन्दुओं में श्राद्ध प्रथा बहुत प्राचीन है,जो आज भी अति शुभ मानी जाती है। हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार मृतात्मों को उचित गति मिले, इसके हेतु मरणोउपरांत पिडदान, श्राद्ध और तर्पण की व्यवस्था की गई है। श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धापूर्ण व्यवहार तथा तर्पण का अर्थ है तृप्त करना, श्राद्ध-तर्पण का अर्थ है पितरो को तृप्त करने की प्रक्रिया है। आश्विन मास में श्राद्ध पक्ष में पितरोेें का तर्पण किया जाता है और पितरों की मृत्यु के नियत तिथि पर यथाशक्ति बम्ह भोज और दान दिया जाता है। शास्त्रोें में व गुरू पुराण में कहा गया है कि संसार में श्राद्ध से बढकर और कल्याणप्रद ओर कोई मार्ग नहीं है,अतः बुद्धिमान व्यक्ति को प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध करना चाहिए। पितृ-पूजन से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग , कीर्ति , पुष्टि, बल, वैभव, पशु, सुख, धन और धान्य देते है।

 मुगल बादशाह शाहजंहा ने भी हमारी संस्कृति  के श्राद्ध पक्ष की सराहना की है,जब उनके क्रूर्र पुत्र सम्राट  औरंगजेब ने उन्हें जेल में बंद कर यातना दे रहा था और  पानी के लिए तरसा रहा था । आकिल खाॅ के ग्रंथ वाके आत आलमगीरी के अनुसार शाॅहजहा ने अपने पुत्र के नाम पत्र में मंर्मात वाक्य लिखे थे ‘है पुत्र तू भी विचित्र  मुसलमान है, जो अपने जीवित पिता को जल के लिए  तरसा रहा है,शत्-शत् बार प्रशंसनीय है,वे हिन्दु जो अपने मृत पिता को भी जल देते है।’

 अगर हमारे मन में जीवित माता-पिता बुर्जगों के प्रति श्रद्धा नहीं है तो उनके मरने के बाद उनका श्राद्ध मनाने का औचित्य क्या है,हम श्राद्ध इस डर से मनाते है कि हमारे पितरों की आत्मा कही भटक रही होगी तो हमें कही नुकसान नही पहुचाए,उनका अन्र्तमन उनको धिक्कारता हैकि हमने अपने मृतक के जीते जी उन्हें बहुत तकलीफ पहुचाई है,इसलिए मरने के बाद ये  पितृ हमें भी तकलीफ पहुॅचा सकते है।इसलिए हम श्राद्ध    पक्ष मनाकर अपने पितरों को खुश करने का प्रयास करते   है। 
जिस काग की सालभर पूछ नहीं होती है  उन्हें श्राद्ध पक्ष में कागो-वा-2 करके छत की मुडेर पर  बुलाया जाता है और पितरो के नाम से पकवान खिलाये  जाते है और पानी पिलाया जाता है,खा लेने पर यह सोचकर सन्तुष्ट हो जाते है कि हमारे पिृत हमसे प्रसन्न   है।
                     
  आज की युवा-पीढी में श्राद्ध मनाने के प्रति श्रद्धा   भाव खत्म हो चुका है,वह समाज की नजर में प्रंशसा  पाने और दिखावे के लिए लम्बे-चैडे भोज का आयोजन  करती है।हमे हमारे बुर्जगों को जीते जी
प्यार ,सम्मान व  श्रद्धा देनी होगी।

श्राद्ध पक्ष हमें अपने पूर्वजों के प्रति   अगाध श्रद्धा और स्मरण भाव के लिए प्रोत्साहित करता है, हमें इसे सादगीपूर्वक मनाकर भावी पीढी को भी  अनुसरण करने की प्ररेणा मिलेगी। 


प्रेषकः.
   श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत
                        अस्पताल चैराहा
                        महादेव कॅालोनी
                        बांसवाडा राज

रविवार, 25 सितंबर 2011

आज मेरी दादी का श्राद्ध है

यह वाक्य आज कल खूब सुनने में आता है ,सुनकर अपने देश की संस्कृति और रिवाजों पर गर्व होता है जहाँ  मरने के बाद भी अपने बुजुर्गों को पूजा जाता है देखने सुनने में भी अच्छा लगता है ,यह बात अलग है की इस रीत को निबाहने में वास्तव में बुजुर्गों के लिए सम्मान है या भगवान् का डर या फिर अपने जीवन में सुख शांति की कामना !यह व्यक्ति दर  व्यक्ति पर निर्भर करता है !मेरा मकसद यहाँ इस प्रथा का विश्लेषण करना नहीं बल्कि एक सच्चाई से आप लोगों को रूबरू करना है ,जो मुझे आज तक अन्दर से कचोट रही है !
   आज दादी का श्राद्ध है ...उसकी पोती ने आकर बताया !उस दादी का जिसका जिंदगी और रिश्तों से विश्वास उठ चुका था !जो दादी कभी अपने घर की महारानी थी अपने पति की आँख का तारा थी ,पढ़ी लिखी अच्छी नोकरी पर आसीन एक सम्मान जनक जिंदगी जीने वाली थी !कुछ साल पहले अचानक पति के गुजरने के बाद मानो वह तन मन से पंगु हो गई थी उसका आसमान उसकी धरती मनो भगवान् ने छीन ली थी!एक ही बेटा बहु थे !अपने साथ माँ को ले आये ,समाज से वाहवाही पाई !माँ ने प्यार में धीरे धीरे अपनी सारी जमापूंजी बेटे बहु को देदी,क्या करती एक ही बेटा था सो देनी ही थी !फिर कुछ समय बाद न जाने कोन सी भावना दादी के अन्दर पनप रही थी की जब भी मिले वो कहती थी बेटा अब जिंदगी से मन ऊब गया !हाथो पैरों ने भी धोखा देना शुरू कर दिया दो कदम भी चल नहीं पाती थी !
फिर एक दिन अचानक शोर मचा न जाने दादी कहाँ चली गई दो तीन दिन तक ढूँढ़ते रहे !फिर पुलिस की सहायता से पता चला की वहां के मुर्दा घर में एक बूढी औरत जो कटी हुई रेलवे ट्रेक से उठाई गई थी एक गठरी में बंधी हुई मिली !
जो दो कदम चल नहीं सकती थी वो दो किलोमीटर कैसे रेलवे ट्रेक पर जा सकती है आज तक रहस्य बना हुआ है !पुलिस आई चली गई मिडिया वाले आये चले गए ,जो डाएरी दादी लिखती   थी   वो कहाँ गई आज तक पता नहीं !कहानी पूरी तरह बदल दी गई !(रसूख वाले लोग हैं क्षमा करना किसी कारन वश पूरी पहचान नहीं बता सकती)कौन न्याय दिलाये क्या वो बेटा जिसके लिए माँ पूरे दिन इन्तजार करती थी की आफिस से आकर माँ से एक दो बात करेगा और वो बेटा आफिस से आते ही सीधा पत्नी के पास जाता था !माँ इससे ज्यादा कुछ नहीं चाहती थी !या वो बहु न्याय दिलाएगी जो एक बार कह रही थी कि मेरी सास को तो  खाना भी टाइम से चाहिए ........क्या कुछ ज्यादा मांग लिया  था ????
आज उस दादी का श्राद्ध है ..........
       

शनिवार, 24 सितंबर 2011

सूखे नैन



नहीं आते आंसू,

सुख गया सागर,
इतना बहा कि अब
इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |

याद है मुझको
तेरा वो रूठना,
दो बुँदे बहके
तुझे मन थी लेती,
जहर गई वो बूंदें
इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |

आंसू नहीं मोती हैं
तुम्ही तो थे कहते,
एक भी ये मोती
तुम बिखरने नहीं देते,
खो गए वो मोती
इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |

वर्दी पहने जब निकले थे

दी मुस्कान के साथ विदाई,
आँखों में था पानी
दिल रुलाता था जुदाई,
सुख गया वो पानी,

इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |

तब भी बहुत बहा था
जब ये खबर थी आई
देश रक्षा में तुने
अपनी जान है लुटाई,
पर अब नहीं बहते,
इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |

जानती हूँ मैं
तुम नहीं हो आने वाले,
पर ये दिल ही नहीं मानता
तेरा इंतज़ार है करता,
करवटें बदल रोते-रोते,
इंतज़ार में तेरे
मेरे सूखे नैन |

बुधवार, 21 सितंबर 2011

पूर्णतः सच्ची घटना से प्ररित कुछ पंक्तियाँ कविता

संभवतः वर्ष 1999 के जून माह का अवसर रहा होगा। मेरी तैनाती ऋषिकेश से 15 किलोमीटर दूर पर्वतीय जनपद टिहरी गढवाल की एकमात्र अर्द्धमैदानी तहसील नरेन्द्रनगर में थी। उत्तराखंड राज्य की घोषणा हो चुकी थी बस उसे अवतरित होना बाकी था। तत्कालीन भारत सरकार के प्रधानमंत्री महोदय का उत्तराखंड आना प्रस्तावित था जिसके लिये आसपास के सभी जनपदों से प्रशासनिक अधिकारियों को शान्ति व्यवस्था हेतु जिम्मेदारी सौंपी गयी थीं । मुझे भी एक ऐसी ही मीटिंग में भाग लेने हेतु देहरादून कलक्ट्रेट पहुंचना था।

प्रातः जल्दी उठा और सरकारी कारिन्दों के साथ सरकारी जीप से देहरादून के लिये चल पड़ा। ऋषिकेश से कुछ किलोमीटर आगे बढ़ने पर थोड़ा सा रास्ता जंगल से होकर गुजरता था । इसी जगह पहँच कर देखा आगे रास्ते पर भारी भीड खडी है। सरकारी जीप को आते देखकर भीड़ इस आशय से किनारे हो गयी कि शायद पुलिस आ गयी है। कैातूहलवश जीप रोकवा कर मैं भी उतर पडा और भीड को लगभग चीरता हुआ आगे बढ आया। देखा सड़क से पचास मीटर दूर जंगल की अंदर एक युवती की अर्द्वनग्न लाश पड़ी थी।

आसपास एकत्रित भीड किसी मदारी के सामने खड़े तमाशबीनों की तरह उस लाश को देख रही थी। मैने आगे बढकर देखा युवती लगभग इक्कीस वर्ष की थी उसके शरीर पर छींटदार सूट और गले में रंगीन दुपट्टा था। गौरतलब बात यह थी उसके दाँये हाथ की कलाई पर ड्रिप के माध्मम से दवा, ग्लूकोस आदि चढ़ाये जाने वाली नली लगी थी। पास ही ऐक अधचढ़ी ड्रिप और नली भी पड़ी थी। युवती के शरीर केे निचले हिस्से केा देखने से स्पष्ठ प्रतीत होता था कि वहा गर्भवती थी। यह स्पष्ट था कि अनचाहे गर्भ से निजात पाने के दौरान किसी गंभीर काप्लिकेशन के कारण ही उसेकी मृत्यु हुयी थी और उसका तीमारदार अपनी जान छुड़ाकर उसे इस तरह छोड़कर भाग गया होगा। मैने आगामी कार्यवाही के लिये स्थानीय पुलिस को फोन किया और अपनी जीप से आगामी कार्यक्रम के लिये चल पड़ा।


परन्तु उस युवती की यह दशा देखकर मैं व्यथित हो गया था । वह युवती मेरे मष्तिश्क से जाने का नाम ही नहीं लेती थी , मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रही थी , वह जैसे मेरी जीप में आकर ही बैठ गयी थी । परन्तु उस युवती की यह दशा देखकर मैं व्यथित हो गया था ।

वह युवती मेरे मष्तिश्क से जाने का नाम ही नहीं लेती थी , मेरा पीछा ही नहीं छोड़ रही थी , वह जैसे मेरी जीप में आकर ही बैठ गयी थी । मै सोचने लगा कि आखिर किसी की प्रेमिका रही होगी वह ? प्रेम के वशीभूत अपने प्रेमी के आलिंगन में बंधने को कैसी आतुर रही होगी वह ?

और उस सम्मोहक आलिंगन की परिणति इस रूप में होगी, क्या कभी उसने सोचा होगा ? नहीं ना! बस इसी पृष्ठभूमि में उस नवयौवना को श्रंद्धांजलि स्वरूप कुछ पंक्तियाँ लिखीं थी जो समर्पित थीं उस प्रारंभिक निश्छल आलिंगन को, और उस इक्कीसवें बसंत को जो चाहकर भी अगली बहार या पतझड़ नहीं देख सकी थी।


वह श्रंद्धांजलि पूर्व में ‘साहित्य शिल्पी’ के संस्करण में कविता ‘इक्कीसवाँ बसंत’ के नाम से जारी हुयी है जिसे आज यहाँ पुनः प्रस्तुत कर रहा हूँ।


इक्कीसवॉ बसन्त
तपते रेगिस्तान में

पानी की कामना जैसी

धुप्प अंधेरे में

रोषनी की किरण फूटने जैसी

मॉ से बिछडे हुए

किसी अबोध का मिलने पर

मॉ की छाती से चिपककर रोने जैसी

मंझधार में डूबते हुए को

किनारा पाकर मिलने वाली संतुश्टि जैसी

कुछ ऐसी ही तो थी

उस इक्कीसवें बसंत की कल्पना

लेकिन यथार्थ की कठोरता

जब तमाचा बनकर

मेरे गालों पर पडीं

तब मैने जाना कि

चॉदनी रात कैसे आग उगलती है?

चंदन का आलिंगन

कितना जहरीला हो सकता है?

दिये की लौ

कैसे झुलसा सकती है?

प्रेम की आसक्ति

कितना लाचार कर सकती है?

चहचहाती चिडिया

एक पल में सहम कर

मौन हो सकती है

निरीह मेमना

मिमियाकर तुरंत निस्तेज हो सकता है

अगर वह भी

मेरी तरह किसी

कसाई के साथ हो


‘साहित्य शिल्पी’ पर पूरी कविता पढ़ने के लिए आगामी लिंक पर क्लिक करे .........

पूर्णतः सच्ची घटना से प्ररित कुछ पंक्तियाँ कविता

रविवार, 18 सितंबर 2011

भ्रूण में मरती हुई वो मारती इक वंश पूरा

भ्रूण में मरती हुई वो मारती इक वंश पूरा

बदचलन से दोस्ती, खुशियाँ मनाती  रीतियाँ
नेकनीयत से अदावत कर चुकी  हैं नीतियाँ |
आज आंटे की पड़ी किल्लत, सडा गेहूं बहुत-
भुखमरों को तो पिलाते, किंग बीयर-शीशियाँ ||
photo of a sugar ant (pharaoh ant) sitting on a sugar crystal
देख -गन्ने सी  सड़ी,  पेरी  गयी  इंसानियत,
ठीक चीनी सी बनावट ढो  रही हैं  चीटियाँ ||


हो  रही  बंजर  धरा, गौवंश  का  अवसान  है-
सब्जियों पर छिड़क दारु, दूध दुहती यूरिया ||


भ्रूण  में  मरती  हुई  वो  मारती इक वंश पूरा-
दोष दाहिज का  मरोड़े  कांच की नव चूड़ियाँ |


हो चुके इंसान गाफिल जब सृजन-सद्कर्म से,
पीढियां  दर  पीढियां, बढती  रहीं  दुश्वारियां  ||

शनिवार, 17 सितंबर 2011

बहुएं और बेटियाँ

मादा भ्रूण हत्या से संबंधित मात्र चार लाइनें “बहुएं और बेटियाँ”और “संबंध”आज प्रस्तुत कर रहा हूँ जिन्हें लिखा है रजनी अनुरागी जी ने जो दिल्ली विश्विद्यालय से हिन्दी साहित्य में पीएच-डी हैं और जानकी देवी मेमोरियल कालेज में पढ़ाती है।

नवोदित कवयित्री रजनी अनुरागी की कविताओं की केन्दीय भाव-भूमि व्यापक मानवीय सरोकार है।

सहज भाषा में गहन अभिव्यक्ति और स्पष्ट वैचारिकी उनके काव्य व्यक्तित्व की विशेषताएंहैं। उनकी कविताएं हिन्दी की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छप चुकी हैं।


“बिना किसी भूमिका के” उनका पहला कविता संग्रह है।

इनका ईमेल है : rajanianuragi@gmail.co
बहुएं और बेटियाँ



शादी के बाद मारी जाती हैं बहुएं


और बेटियाँ ...


जन्म से पहले ही


घोंट दिया जाता है उनका गला


संबंध


मैंने उससे कहा

आओ मेरा मन ले लो

उसे मेरा तन चाहिए था


मैंने फिर उससे कहा

आओ मेरा मन ले लो

उसे मेरा धन चाहिए था


उसने मेरा तन लिया

उसने मेरा धन लिया

मन तक तो वो आया ही नहीं


अब मैं सोचती हूँ

कि मैंने उसके साथ

इतना लम्बा जीवन कैसे जिया


पर जीवन जो बीत गया

जीवन जो रीत गया

वह जिया गया कहाँ

मंगलवार, 13 सितंबर 2011

क्या नौकरी करने के बावजूद भी औरत को सुरक्षा और सम्मान नहीं मिल पाता ?


लिव इन रिलेशनशिप  को लेकर यूरोप में कैसी भी दीवानगी देखने में आ रही हो, लेकिन भारतीय संस्कृति में यह अभी तक पूरी तरह से घूल-मिल नहीं पाई है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि भारतीय समाज पारिवारिक बंधनों में बहुत भरोसा करता है। ऐसे में दो युवाओं द्वारा अगर लिव इन रिलेशनशिप  जैसा कदम उठाया भी जाता है, तो भी पारिवारिक बंधनों के चलते ऐसे रिश्ते  कामयाब नहीं हो पाते हैं। ऐसा ही एक वाकिया हाल ही में टीवी और समाचार चैनलों पर सुर्खियों में बना हुआ है। यह मामला है एयरफोर्स की बर्खास्त पूर्व फ्लाइंग ऑफिसर अंजलि गुप्ता का, जिनके सूइसाइड के मामले में उनके प्रेमी ग्रुप कैप्टन अमित गुप्ता पर पुलिस का शिकंजा कसता जा रहा है। पुलिस का कहना है कि लिव-इन रिलेशनशिप में धोखा मिलने की वजह से अंजलि ने सूइसाइड किया है। अंजलि के परिवार वालों के मुताबिक, अंजलि और अमित पिछले सात सालों लिव-इन रिलेशनशिप में थे। उनका कहना है कि अमित ने अपनी पहली पत्नी से तलाक के बाद अंजलि से विवाह करने का वादा किया था, लेकिन अब वह इससे मुकर रहा था। अंजलि भी पिछले एक साल से भोपाल में ही रह रही थी। अंजलि की मां ने आरोप लगाया है कि अमित ने ही अंजलि को अपने सीनियरों के खिलाफ शारीरिक उत्पीड़न करने का आरोप लगाने के लिए उकसाया था। और, अंजलि ने 3 सीनियर अधिकारियों के खिलाफ एयरफोर्स के अधिकारियों से शिकायत की थी। इसके बाद उसका कोर्ट मार्शल कर दिया गया था। उसके बाद से अंजिली और अमित साथ रह रहे थे। अमित का पत्नी से तलाक होने वाला था। 
जाहिर है, लिव इन रिलेशनशिप  के चक्कर में अपनी जिंदगी को बर्बाद कर लेने वाली अंजलि गुप्ता इस रिष्ते की जटिलताओं का ही शिकार हुई है। अंजलि गुप्ता का कॅरिअर अच्छा चल रहा था, लेकिन अपने प्रेमी अमित के चक्कर में उन्होंने अपने सीनियर अधिकारियों के उपर झूठे इल्जाम लगाए। इसका नतीजा ये निकला कि उनका कॅरिअर पूरी तरह चैपट हो गया, उनके खिलाफ कोर्ट मार्शल भी हुआ। हालांकि इसके बाद भी अंजलि संभल गई थी और वो एक खुशहाल जिंदगी जी सकती थी, अगर अमित लिव इन रिलेशनशिप  के रिष्ते को पूरी ईमानदारी के साथ निभाता और उसका साथ देता। लेकिन अमित ने सिर्फ अंजलि का इस्तेमाल किया और जैसा कि अंजलि की मां के बयानों से लगता है कि उसने बरसों तक अंजलि का यौन शोषण करने के बाद भी अपनी पहली पत्नी को छोड़कर उससे शादी करने का इरादा नहीं जताया। इसी के चलते अब अंजलि आत्महत्या पर मजबूर हुई है।
Source :
http://khabarindiya.com/index.php/articles/show/3279_desh_dunia?utm_source=feedburner&utm_medium=feed&utm_campaign=Feed%3A+khabarindiya+%28KhabarIndiya.Com%२९
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सीनियर अधिकारियों ने अंजलि के साथ क्या किया ?
इसे केवल अंजलि और उसके अधिकारी ही जानते हैं।
नौकरी और रूपये को औरत की मज़बूती के लिए आज ज़रूरी माना जाता है लेकिन यह सब होने के बावजूद भी अंजलि ने आत्महत्या कर ली , क्यों ?
केवल एक सही सोच और एक सही तरीक़े के अभाव में।

लिव इन रिलेशनशिप भी इसी अभाव की कोख से जन्मा है और समय के साथ साथ और बहुत से मसले सामने आते चले जाएंगे।
अंजलि उनमें से एक बानगी भर है।

बेटिया निराली होती है

मोरारी बापू ने अपने प्रवचन में बेटी को माता-पिता की आत्मा और बेटे को हृदय की संज्ञा दी हेै। हृदय की धडकन तो कभी भी बंद हो सकती है लेकिन बेटी व आत्मा का संबध जन्मजंमातर का रहता है वह कभी अलग नहीं हो सकती

वाकई हमारी बेटिया निराली है उसे आप बढने मे इतनी मदद करे की वह कली से फूल बनकर फिजा मे अपनी खूशबू बिखेरा करे इन बेटियों की उपलब्धिया असीम है ।जीवन को अमृत तुल्य बनाने वाली इन बेटियो को इतना प्यार -दुलार दो कि हर लडकी की जुबान पर यही बात हो ‘‘अगले जन्म मोहे बिटिया ही कीजो।‘‘

सोमवार, 12 सितंबर 2011

ना आना इस देश लाडो (अंजलि गुप्ता को समर्पित)

अपनी राजनीतिक, प्रशासनिक और सामाजिक व्यवस्था को नकारते हुए (झकझोड़ने की तो कोई गुंजाईश है ही नहीं) पूर्व वायु सेना अधिकारी अंजलि गुप्ता ने अपनी जिंदगी को भी टर्मिनेशन दे दिया. जाते-जाते वह पहली भारतीय महिला वायुसेना अधिकारी जिस पर ' कोर्ट मार्शल' की कारर्वाई की गई के अलावे इतिहास में संभवतः एक और  कारण से अपना नाम लिखवाती गई हैं - आत्महत्या करने वाली भारतीय वायु सेना की पहली महिला अधिकारी. 


अंजलि गुप्ता (35 वर्ष) करीब 6 वर्ष पूर्व अपने वरिष्ठ अधिकारीयों पर यौन शोषण का आरोप लगा कर चर्चा में आई थीं. मगर जांच में उनके खिलाफ आरोप सही नहीं पाए गए, बल्कि अंजलि को ही वित्तीय अनियमितता और ड्यूटी पर न आने का दोषी पाया गया. भारत के सैन्य इतिहास का यह भी पहला मौका था जब किसी सैन्य अदालत की कारर्वाई की मीडिया को रिपोर्टिंग करने की अनुमति दी गई. नौकरी से बर्खास्त किये जाने के बाद वो काफी मानसिक दबाव से भी गुजर रही थीं. बर्खास्तगी के बाद अंजलि बंगलुरु के एक कॉल सेंटर से जुड गईं. 

आत्महत्या के बाद की जा रही छानबीन में एक नई कड़ी जुडी है जिसके अनुसार अंजलि की वायुसेना के ग्रुप कैप्टन अमित गुप्ता (54 वर्ष) से मित्रता थी. वो उनके भोपाल के शाहपुरा स्थित मकान में आई थीं, जहाँ अमित की पत्नी और बड़ी बहन रहती हैं. अमित और उसके परिवार वाले जब अपने बेटे की सगाई में दिल्ली गए हुए थे, इसी घर में अंजलि ने फांसी लगाकर तथाकथित आत्महत्या कर ली. समाचारों में घर से कई पेट्रोल की बोतलें मिलने की भी सूचनाएं हैं, जिससे अंजलि द्वारा आत्महत्या के दृढ निश्चय के कयास भी लगाये जा रहे हैं (!) अंजलि के कुछ रिश्तेदारों का दावा है कि अमित द्वारा अपनी पत्नी से तलाक ले उससे विवाह के वादे को ठुकराए जाने के कारण ही उसने ऐसा कदम उठाया. पुलिस हत्या और आत्महत्या दोनों संभावनाओं पर विचार कर रही है. 

संभावनाएं चाहे जो हों, एक बार फिर एक स्त्री को ही हार माननी पड़ी है. आखिर ऐसी कौन सी परिस्थितियां हैं जिनके कारण ये इतनी नाउम्मीद, इतनी हतोत्साहित हो जाती हैं !!!  प्राणोत्सर्ग कर जाना अपने सिस्टम पर भरोसा करने की तुलना में सहज लगता है. सेना हो या समाज, हर जगह Compromise स्त्री को ही करना पड़ता है, जान दे देने की हद तक !!! क्या वायु सेना को कैरियर बनाने वाली अंजलि इतनी कमजोर थी !!! समाज और व्यवस्था शायद ही इस बारे में विशेष सोचे क्योंकि चिंता करने के लिए तो भारतीय क्रिकेट टीम की Performance जैसी कई महत्वपूर्ण चीजें पड़ी हैं. हमलोग भी थोड़े बेचैन होंगे, एक रात की नींद खराब करेंगे, पोस्ट लिखेंगे, टिप्पणियां करेंगे और दैनिक व्यस्तताओं में खो जायेंगे. मगर अंदर कहीं छुपी अंतरात्मा तो कराहती हुई दुआ कर रही होगी कि न आना इस देश लाडो, यह धरती स्त्री की सिर्फ़ शाब्दिक आराधना करना जानती है; व्यवहारिक नहीं. यहाँ न तो तेरी अस्मिता सुरक्षित है न तेरा गौरव. यह धरती अब स्त्री विहीन होने के ही लायक है. 'No Land Without Woman' की अवधारणा इसी देश में ही अस्तित्व में आनी चाहिए. मरते समय यही बददुआ, यही श्राप अंजलि के ह्रदय से भी निकला होगा. 

रविवार, 11 सितंबर 2011

दो सौ वर्षों की प्रतीक्षा के बाद जन्मी एक सन्यासिन !

‘निर्वाण दिवस 11 सितम्बर पर पुण्य स्मरण’

क्या आप जानते हैं कि उत्तर प्रदेश के जनपद फर्रूखाबाद के एक संपन्न परिवार की सात पीढियों में दो सौ वर्षों तक किसी कन्या का जन्म नहीं हुआ था। 24 मार्च 1907 को जब बाबू बाँके बिहारी वर्मा के घर पर पौत्री के रूप में जब एक नवजात बालिका की किलकारी गूँजी तो उनकी प्रसन्नता का ठिकाना न रहा क्योंकि इस परिवार में किसी बालिका के जन्म पूरे दो सौ साल बाद हुआ था। उन्होंने इस बालिका को अपने घर की सबसे बडी देवी माना इसी लिये उसे नाम दिया ‘महादेवी’।

पिता श्री गोविन्द प्रसाद वर्मा और माता हेमरानी देवी की इस पुत्री की शिक्षा पाँच वर्ष की अवस्था में इंन्दौर के मिशन स्कूल से प्रारंभ हुयी । परन्तु तद्समय प्रचलित सामाजिक व्यवस्था के अनुसार सन् 1916 में नौ वर्ष की आयु पूरी होने तक इनके बाबा श्री बाँके बिहारी द्वारा इनका विवाह संम्पन करा दिया गया। जब इनका विवाह हुआ तो ये विवाह का अर्थ भी नहीं समझती थीं। उन्होंने इसके संबंध में अपने ही शब्दों में लिखा हैः-

‘‘दादा ने पुण्य लाभ से विवाह रच दिया, पिता जी विरोध नहीं कर सके। बरात आयी तो बाहर भाग कर हम सबके बीच खड़े होकर बरात देखने लगे। व्रत रखने को कहा गया तो मिठाई वाले कमरे में बैठ कर खूब मिठाई खाई। रात को सोते समय नाइन ने गोद में लेकर फेरे दिलवाये होंगे, हमें कुछ ध्यान नहीं है। प्रात: आँख खुली तो कपड़े में गाँठ लगी देखी तो उसे खोल कर भाग गए।**

ममता बिखेरती सन्यासिन महादेवी वर्मा (चित्र कविताकोश से साभार)
महादेवी वर्मा पति.पत्नी सम्बंध को स्वीकार न कर सकीं। कारण आज भी रहस्य बना हुआ है। आलोचकों और विद्वानों ने अपने.अपने ढँग से अनेक प्रकार की अटकलें लगायी हैं। महादेवी जी के जीवन के उत्तरार्ध में उनकी सेवा सुसुश्रा करने वाले श्री गंगा प्रसाद पाण्डेय के अनुसार.
’’ससुराल पहुँच कर महादेवी जी ने जो उत्पात मचायाए उसे ससुराल वाले ही जानते हैंण्ण्ण् रोनाए बस रोना। नई बालिका बहू के स्वागत समारोह का उत्सव फीका पड़ गया और घर में एक आतंक छा गया। फलतरू ससुर महोदय दूसरे ही दिन उन्हें वापस लौटा गए। ’’
1916 में विवाह के कारण कुछ दिन तक महादेवी जी की शिक्षा स्थगित रही। विवाहोपरान्त महादेवी जी ने 1919 में बाई का बाग स्थित क्रास्थवेट कॉलेज इलाहाबाद में प्रवेश लिया और कॉलेज के छात्रावास में रहने लगीं। महादेवी जी की प्रतिभा का निखार यहीं से प्रारम्भ होता है।
1921 में महादेवी जी ने आठवीं कक्षा में प्रान्त भर में प्रथम स्थान प्राप्त किया तथा इनकी कविता लेखन प्रतिभा का प्रस्फुटन भी इसी समय हुआ। वैसे तो वे वे सात वर्ष की अवस्था से ही कविता लिखने लगी थीं और 1925 तक जब मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण की थीएतो एक सफल कवयित्री के रूप में प्रसिद्ध हो चुकी थीं। विभिन्न पत्र.पत्रिकाओं में आपकी कविताओं का प्रकाशन होने लगा था।

विद्यार्थी जीवन में वे प्रायः राष्ट्रीय और सामाजिक जागृति संबंधी कविताएँ लिखती रहीं:-
’’विद्यालय के वातावरण में ही खो जाने के लिए लिखी गईं थीं। उनकी समाप्ति के साथ ही मेरी कविता का शैशव भी समाप्त हो गया।’’
मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के पूर्व ही उन्होंने ऐसी कविताएँ लिखना शुरू कर दिया थाए जिसमें व्यष्टि में समष्टि और स्थूल में सूक्ष्म चेतना के आभास की अनुभूति अभिव्यक्त हुई है। उनके प्रथम काव्य.संग्रह संग्रह 'नीहार' की अधिकांश कविताएँ उसी समय की है।

पिता जी की मृत्यु के बाद महादेवी वर्मा के पति श्री स्वरूप नारायण वर्मा कुछ समय तक अपने ससुर के पास ही रहेए पर अपनी पुत्री महादेवी वर्मा की मनोवृत्ति को देखकर उनके बाबू जी ने श्री वर्मा को इण्टर करवा कर लखनऊ मेडिकल कॉलेज में प्रवेश दिलाकर वहीं बोर्डिंग हाउस में रहने की व्यवस्था कर दी। जब महादेवी इलाहाबाद में पढती थी तो श्री वर्मा उनसे मिलने वहाँ भी आते थे। किन्तु महादेवी वर्मा उदासीन ही बनी रहीं। विवाहित जीवन के प्रति उनमें विरक्ति उत्पन्न हो गई थी।
इस सबके बावजूद श्री स्वरूप नारायण वर्मा से कोई वैमनस्य नहीं था। सामान्य स्त्री-पुरुष के रूप में उनके सम्बंध मधुर ही रहे। दोनों में कभी-कभी पत्राचार भी होता था। यदा-कदा श्री वर्मा इलाहाबाद में उनसे मिलने भी आते थे। एक विचारणीय तथ्य यह भी है कि श्री वर्मा ने महादेवी जी के कहने पर भी दूसरा विवाह नहीं किया।

1984 में लखनऊ में नवगीत गोष्ठी मे महादेवी जी (चित्र कविताकोश से साभार)
महादेवी जी का जीवन तो एक संन्यासिनी का जीवन था ही। उन्होंने जीवन भर श्वेत वस्त्र पहना, तख्त पर सोया और कभी शीशा नहीं देखा।। भगवान बुद्ध के प्रति गहन भक्तिमय अनुराग होने के कारण और अपने बाल-विवाह के अवसाद को झेलने वाली महादेवी बौद्ध भिक्षुणी बनना चाहती थीं। यायावरी की इच्छा से बद्रीनाथ की पैदल यात्रा की और रामगढ़, नैनीताल में 'मीरा मंदिर' नाम की कुटीर का निर्माण किया। यह सन्यासिन 11 सितम्बर के दिन वापस उसी लोक में चली गयी जहाँ रहते हुये पूरे दो सौ वर्षों तक अपने परिवार को अपने आने की प्रतीक्षा करवाती रही थी।

बुधवार, 7 सितंबर 2011

क्या प्रेम और आकर्षण में भिन्नता नहीं कर पाती हैं नारियां ?

फ़र्क़ है तो बस शोध का फ़र्क़ है।

हम जिस बात को मानना चाहते हैं बस यूं ही मान लेते हैं किसी के बताने भर से।
किसी ने कह दिया कि श्री रामचंद्र जी ने सीता माता की अग्नि परीक्षा ली थी और फिर गर्भावस्था में निकाल दिया था और हम मान लेते हैं कि हां ऐसा ही हुआ होगा।
हम बताने वाले से यह नहीं पूछते कि भाई, हिंदू गणना के अनुसार श्री रामचंद्र जी हुए थे 12 लाख 76 हज़ार साल पहले और आप बता रहे हैं तो इतनी पुरानी बात आप तक कैसे पहुंची ?
इतने लंबे अर्से में बात पहुंचते पहुंचते कुछ की कुछ भी तो हो सकती है ?
एक आदमी कहता है कि राधा जी से श्री कृष्ण जी के प्रेम संबंध थे, कोई कहता है उनसे श्री कृष्ण जी ने आजन्म विवाह नहीं किया और कोई कहता है कि कर लिया था और कुछ यह भी कहते हैं कि राधा रायण की पत्नी और श्री कृष्ण जी की मामी थीं।
हम उस बताने वाले से यह नहीं पूछते कि भाई श्री कृष्ण जी को हुए 5 हज़ार साल हो गए हैं। हम तक बात किसने पहुंचाई ?
भारतीय ग्रंथों में सबसे पुराने वेद हैं और उनमें इस तरह की किसी घटना का उल्लेख नहीं है न तो श्री रामचंद्र जी के बारे में और न ही श्री कृष्ण जी के बारे में और जिन ग्रंथों में ये बातें लिखी मिलती हैं, उनकी उम्र चंद सौ साल से ज़्यादा नहीं है।
अगर इन महापुरूषों के साथ कोई अच्छा गुण जोड़कर बताया जाए तो एक बार उसे तो बिना किसी शोध के मान लेने में कोई हर्ज नहीं है लेकिन जो बात हम आज अपने लिए ठीक नहीं मानते, उसे अपने से अच्छे अपने पूर्वजों के बारे में हम मान लेते हैं और कोई खोज नहीं करते।
यह तो हुई मानने की बात कि मानना चाहें तो हम बिना किसी सुबूत के ही मान लेते हैं और न मानना चाहें तो चाहे सारी दुनिया साबित कर दे कि शराब, गुटखा, तंबाकू और ब्याज, ये चीज़ें इंसान की सेहत और अर्थव्यवस्था को बर्बाद कर देती हैं लेकिन हम मानते ही नहीं।
बुरे लोग अंग्रेज़ों में भी हैं लेकिन उनके बहुसंख्यक लोगों का स्वभाव शोध करने का बन चुका है।
बात चाहे कितनी ही मामूली क्यों न हो लेकिन बात मानने से पहले वे यह ज़रूर देखेंगे कि बात में सच्चाई कितनी है ?
और यह हमारे लिए कितनी हितकारी है ?
मस्लन औरत की वफ़ा के साथ उसकी बेवफ़ाई के क़िस्से भी सदा से ही आम हैं और बेवफ़ा औरत के लिए ही भारत में त्रिया चरित्र बोला जाता है लेकिन अंग्रेज़ों ने इस पर भी शोध कर डाला।
देखिए आप भी यह दिलचस्प शोध :

धोखा देने में महिलाएं भी नहीं हैं कुछ कम

आमतौर पर केवल पुरुषों के विषय में ही यह माना जाता है कि वह अपने प्रेम-संबंधों को लेकर संजीदा नहीं रहते. वह जरूरत पड़ने पर अपने साथी को धोखा देने से भी नहीं चूकते. लेकिन हाल ही में हुए एक अध्ययन ने यह स्पष्ट कर दिया है कि हमारी मानसिकता बिल्कुल बेबुनियाद है क्योंकि विश्वासघात और संबंधों से खेलना केवल पुरुषों का ही शौक नहीं है बल्कि महिलाएं भी इन तौर-तरीकों को अपनाने से नहीं हिचकतीं. प्रेमी को धोखा देने और उसके पीठ पीछे दूसरा प्रेम-संबंध बनाने में महिलाएं पुरुष के समान नहीं बल्कि उनसे कहीं ज्यादा आगे हैं.
डेली एक्सप्रेस में छपे एक शोध के नतीजों ने यह खुलासा किया है कि केवल पुरुष नहीं बल्कि महिलाएं भी अपने रिश्ते की गंभीरता को समझने में चूक कर बैठती हैं. लव-ट्राएंगल जैसे संबंधों में महिलाओं की भागीदारी अधिक देखी जा सकती है. इस सर्वेक्षण में 2,000 लोगों को शामिल किया गया था जिनमें से लगभग एक चौथाई महिलाओं ने यह बात स्वीकार की है कि उन्होंने एक ही समय में एक से ज्यादा पुरुषों के साथ प्रेम-संबंध स्थापित किए हैं. जबकि केवल 15% पुरुषों ने ही यह माना है कि उन्होंने एक बार में दो से ज्यादा महिलाओं से प्रेम किया है.

शोधकर्ताओं ने पाया कि लव-ट्राएंगल में महिलाओं की अधिक संलिप्तता का कारण यह है कि वह पुरुषों की अपेक्षा जल्द ही भावनात्मक तौर पर जुड़ जाती हैं जिसके कारण वह प्रेम और आकर्षण में भिन्नता नहीं कर पातीं. फेसबुक और ट्विटर जैसी सोशल नेटवर्किंग साइटों के आगमन से भी लोगों की जीवनशैली बहुत हद तक प्रभावित हुई है. ऐसी साइटों पर पर अधिक समय बिताने के कारण महिलाएं विभिन्न स्वभाव और व्यक्तित्व वाले पुरुषों के संपर्क में आ जाती हैं. लगातार बात करने और एक-दूसरे के संपर्क में रहने के कारण वह उनके साथ जुड़ाव महसूस करने लगती हैं और अपनी भावनाओं पर काबू ना रख पाने के कारण वह जल्द ही लव ट्राएंगल के फेर में पड़ जाती हैं.

इस शोध की सबसे हैरान करने वाली स्थापना यह है कि अधिकांश लोग यह मानते हैं कि एक समय में दो या दो से अधिक लोगों से प्यार करना और उनके साथ संबंध बनाना कोई गलत बात नहीं हैं. व्यक्ति चाहे तो वह दो लोगों से प्यार कर सकता है.
महिलाओं के विषय में एक और बात सामने आई है कि वे अधिक आमदनी वाले पुरुषों की तरफ ज्यादा आकर्षित होती हैं. धन संबंधी जरूरतों को पूरा करने के लिए महिलाएं आर्थिक रूप से सुदृढ़ पुरुष को मना नहीं कर पातीं.
Source >  http://lifestyle.jagranjunction.com/2011/08/26/women-also-cheats-love-triangle/
ग़र्ज़ बात जो भी हो हमें उसे मानने से पहले यह ज़रूर देख लेना चाहिए कि इसमें सच्चाई कितनी है ? 

यह तो हुई बेवफ़ाई की बात,


आप पकड़ सकते हैं अपने जीवन साथी को बेवफ़ाई करते हुए,
जानिए कैसे पकड़ा जाता है जीवन साथी की बेवफ़ाई को ?

मंगलवार, 6 सितंबर 2011

लक्ष्मण रेखा Posted by संगीता स्वरुप ( गीत ) : मेरी टिप्पणी

File:Ravi Varma-Ravana Sita Jathayu.jpgलक्ष्मण रेखा लांघती, लिए हथेली जान 
बीस निगाहें घूरती, खुद रावण पहचान 



खुद रावण पहचान, नहीं ये तृण से डरता
मर्यादा  को  भूल, हवस बस पूरी  करता 




संगीता की सीख, ठीक पहचानो रावण

खींचो खुदकी रेख, कहाँ ले खींचे लक्ष्मण

इसको  भी  क्लिक  कर  दें ---बेचारा 
मुलायम सी लक्ष्मण-रेखा लांघ बैठा  

अमर दोहे

मैंने माँ की दुआओं का असर है देख लिया ;




मैंने माँ की दुआओं का असर है देख लिया ;


मौत आकर के मेरे पास आज लौट गयी .




माँ ने सिखलाया है तू रहना मोहब्बत से सदा ;


याद आते ही सैफ नफरतों की टूट गयी .




जिसने माँ को नहीं बख्शी कभी इज्जत दिल से ;


ऐसी औलाद की खुशियाँ ही उससे रूठ गयी .




मिटाया खुद को जिस औलाद की खातिर माँ ने ;


बेरूखी देख उसकी माँ भी आज टूट गयी .




कैसे रखते हैं कदम ?माँ ने ही सिखाया था ;


वो ऐसा दौड़ा की माँ ही पीछे छूट गयी .




जो आँखें देखकर शैतानियों पर हँसती थी ;


तेरी नादानियों पर रोई और सूज  गयी .

                                                    शिखा कौशिक 
                                [विख्यात ]

सोमवार, 5 सितंबर 2011

रंगमंच पर झलकती नारी की स्थिति



पिछले दिनों दिल्ली के प्यारे लाल भवन में 'सक्षम' थियेटर समूह द्वारा सआदत हसन मंटो के नाटकों की प्रस्तुति की गई. मंटो की कहानी हतक (Insult, अपमान) पर आधारित इस नाटक में समाज में देह व्यापर से जुडी महिलाओं और उनके प्रति तथाकथित सभ्य सोसाइटी की मानसिकता पर एक करारा प्रहार किया गया है.

सुगंधा जो कि एक वैश्या है के चरित्र के माध्यम से मंटो ने समाज में स्त्री के दोयम दर्जे को भी रेखांकित किया है. पुरुषवादी समाज एक स्त्री को एक उपभोग्य बस्तु बना देता है, जिसे सुगंधा स्वीकार भी कर चुकी है, फिर  भी उसके अंदर कहीं एक सच्चे प्यार की मृगतृष्णा शेष है. उसकी इसी कमजोरी का भी लाभ उठाने एक अन्य पुरुष माधो उसकी जिंदगी में आता है; जो एक म्युनिशिपैलीटी हवलदार है और खुद उसी के शब्दों में उसकी एक काफी प्यार करने वाली, उसका इंतज़ार करने वाली बीवी भी है. यह जानते हुए भी बिना कोई शिकायत किये सुगंधा उसमें अपने प्यार को तलाशती है. मगर उसका यह भ्रम भी तब टूट जाता है जब उसे उक्त प्रेमी (!) द्वारा छल द्वारा वो पैसे हड़पने का प्रयास करते हुए देखती है, जिसे उसने अपने शरीर को हर रात बेचकर जमा किये हैं. उसके यथास्थिति को स्वीकार करने का धैर्य तब बिलकुल ही टूट जाता है जब एक ग्राहक उसे अस्वीकार कर देता है. 

इन परिस्थितियों में उभरा सुगंधा का आक्रोश समाज में हाशिए पर डाल दी गई नारी के उस वर्ग की अभिव्यक्ति है, जिसके पास स्वयं चयन का कोई अधिकार नहीं. स्वीकार और अस्वीकार करना दोनों ही पर पुरुष का ही नियंत्रण है. और दोनों ही परिस्थितियों में दोष सदा स्त्री के इसी रूप का ही माना जाता रहा है और जाने कब तक इसे ही माना जाता रहेगा.



मंटो के संवेदनशील नाटकों को साकार रूप देना सहज नहीं, मगर निर्देशक श्री सुनील रावत ने इसकी बेहतर प्रस्तुति को सुनिश्चित करने में अपना यथोचित योगदान दिया है. नाटक में विभिन्न पात्रों यथा सुगंधा के रूप में अनामिका वशिष्ठ और माधो के रूप में प्रवीण यादव ने सराहनीय अभिनय किया है. या यूँ कहूँ कि सुगंधा के चरित्र को उजागर करने में अनामिका वशिष्ठ ने अविस्मरणीय योगदान दिया है, तो अतिशयोक्ति न होगी.  नाटक एक संवेदनशील विषय पर संवाद आरंभ करने में सफल रहा है. 


बेटे के लिए सुंदर सुशील बहु कहां से आयेगी ?



        प्रकृति का एक चक्र है यदि उसके साथ छेडछाड की जाती है,तो वह चक्र रूक जायेगा ,इस संसार के विकास का पहिया थम जायगा ,तब सृष्टि नहीं विनाश होगा और विनाश के हम सब जिम्मेदार होगे । आजकल पानी की एक गंभीर समस्या है ,लोगो को पीने तक का पानी नही मिल रहा है क्योकि पानी के चक्र के लिए जो वनस्पति, पेड पोधे वन जरूरी है ,उसके साथ मानव ने छेडछाड की है ।  
           इसी प्रकार  बेटी को जन्म न देकर कन्या -भूण की हत्या करके हमने प्रकृति के सिद्धात को तोडने की कोशिश की है जिसका परिणाम भयावह होगा । नारी जिसे करूणा की प्रतिमूर्ति,मातृत्व की साकार प्रतिमा,सजृन व धैर्य की देवी माना जाता है। भारत में जहॉ नारी की देवी के रूप मंे उपासना की जाती है,वहॉ इस नारी शक्ति को भ्रूण में ही समाप्त किया जा रहा है। दरिन्दगी का यह खेल कन्या शिशु हत्या के रूप मे सदियों से चला आ रहा है, पहले कन्या को जन्म लेते ही लोग नमक चटा देते थे,जिससे नवजात शिशु कन्या की मौत हो जाती थी या कन्या शिशु को पैदा होते ही घर के पिछवाडे छोड दिया जाता था वही वह भूख,सर्दी और गर्मी से दम तोड देती थी ।अब यह खेल कन्या भू्रण हत्या के रूप में जारी है गा्रमीण क्षेत्रो से अधिक शहरी क्षेत्रो में कन्या भू्रण देखने
को मिलती है।
 ।

           बिना मातृत्व के एक स्त्री को अधूरी माना जाता है,जिस पूर्णता को प्राप्त होने पर जहॉ उसे आत्म संतोष का आभास होता है,लेकिन ज्योहिं यह पता पडता है कि यह भू्रण कन्या है तो वह उसे नष्ट करने के लिए तैयार हो जाती है। इसका सबसे बडा कारण समाज में छाया नर का वर्चस्व,साथ ही नारी जन्म से जुडी अभिशप्त परिस्थतियॉ। पुरानी मूढ मान्यताओं के विषय में यह भी समझ लिया जाता है कि शिक्षा का प्रचार प्रसार होगा,जनजागृति आयेगी ,वे मिटती चली जायेगी ,परंतु कन्या-भू्रण हत्या पढे लिखेे समाज में भी हो रही है ।
नेपोलियम ने कहा था कि ‘तुम मुझे सुदृढ मॉ दो मैं तुम्हें  एक सुदृढ राष्ट् दूगा ।  गांधीजी ने कहा था कि एक शिक्षित नारी सारे परिवार का  उद्धार कर सकती है । 
         यह एक विचारणीय पहलू है कि यदि हम कन्या- भू्रूण की ंहत्या कर देगे तो इस समाज का,परिवार का, देश का, रूप कैसा होगा?। जब इस पृथ्वी पर बेटिया ही नही रहेगी तो कहॉ से  आयेगी उनके लिए बहुए?यदि आपके मन मे बेटे की कामना हैै तो साथ मे बहु की कामना भी करनी होगी इसके लिए बेटियोे  को भू्रूण में बचाना होगा । उनको जन्म देकर ,अच्छे संस्कार व शि़क्षा देकर हमारे देश, समाज व परिवार के सुन्दर भविष्य की आधारशीला तैयार करनी होगी । दूधो नहाओ, पूतो फलो के आशीवार्द को बदलना होगा। यदि पुत ही पैदा होगे तो उसके लिए सुंदर सुशील बहू कहॉ से आयेगी?
 हरियाणा राजस्थान,पंजाब व दक्षिणी दिल्ली में शिक्षा पूरी तरह से असफल रही है ,कन्या-भ्रूण हत्या अनपढ लोगो से ज्यादा पढे लिखे लोग कर रहे है ,,यह समाज के लिए शर्म की बात है । पढे लिखे डाक्टरों द्वारा पैसो के लालच में कन्या-भू्रण हत्या की जा रही है,केवल समाज में पुरूष ही पुरूष होगे तो समाज कैसा होगा?
              नारी परिवार की मूल मजबूत दीवार है वह अपने आचरण का प्रभाव पत्नि रूप से पति पर मातृरूप से भावी सन्तान पर डाल सकती है 
कल्पना करे जिस समाज में केवल पुरूष होगे वह समाज कैसा होगा। धर्म दया,प्रेम,सहयोग की भावनाए नारी के कारण ही इस समाज में जीवित है ,नारी नही तो कुछ नही .......।       आज हम यह जानते हुए भी कि बेटे से अधिक बेटिया ही माता-पिता की सेवा करती है और बेटिया स्वंय अपनी प्रतिभा व मेहनत के बलपर चारो दिशाओं मे अपनी उपस्थिति दर्ज कर रही है फिर भी हम कन्या पैदा करना नही चाहते है हम झूठा आवरण ओढे हुए है,भीतर कुछ बाहर कुछ।   
visit my blog www.bhuneshwari.blogspot.com

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रविवार, 4 सितंबर 2011

हाथ छुड़ा के -- फिर घर चलना |

माँ का ललना |
झूले पलना ||

समय समय पर  
दूध पिलाती |
जीवन खातिर-
हाड़ गलाती |
दीप शिखा सी 
हर-पल जलना ||
माँ का ललना |
झूले पलना ||


आयु  बढती--
ताकत घटती |
पति-पुत्र में -
बंटती-मिटती |
आज बिकल है -
कल भी कल-ना ||
माँ का ललना |
झूले पलना ||


आया रिश्ता- 
बेटा बिकता |
धीरे-धीरे--
माँ से उकता |
होती परबस-
डरना-मरना ||
माँ का ललना |
झूले पलना ||


हो एकाकी ,
साँसे बाकी |
पोते-पोती 
बनती जोती |
हाथ छुड़ा के  --
फिर घर चलना ||
माँ का ललना |
झूले पलना ||

पूनम पाण्डेय से पूछे गये सवाल से चीख जैसी किलकारियाँ तक का सफरनामा!



दिनांक 23 जुलाई 2011 को पर शिखा कौशिक द्वारा पूनम पाण्डेय से पूछे गये सवालों से एक सिलसिला आरंभ हुआ था जो भारतीय नारी ब्लाग के रूप में आपके सामने आया था ।


इसकी यात्रा का यह सिलसिला बीते कल एक महत्वपूर्ण मोड पर था , इस ब्लाग के लिये वह एक विशेष दिवस था जिसकी आहट हममें से कोई नही जान सका ।


आज इस महत्व को मैं भी तब अनायास ही जान सका जब इस ब्लाग पर नयी पोस्ट चीख जैसी किलकारियाँ का प्रबंधन करने अपने डैश बोर्ड पर जा पहुँचा। डैश बोर्ड पर जैसे ही संदेशों का प्रबंधन करे विकल्प पर चटका लगाया तो यह देखकर सुखद आश्चर्य हुआ कि भारतीय नारी ब्लाग पर अब सौ अधिक संदेशों की पूँजी इकट्ठा हो चुकी है।


संदेशो की सूची के विस्तार में गया तो यह रोचक आँकडा नजर आया कि इस ब्लाग सौवीं पोस्ट मादा भ्रूण हत्या पर मेरे द्वारा लिखी गयी पंक्तियाँ चीखों जैसी किलकारियाँ! है।


मेरे लिये यह गौरव का क्षण अनजाने ही आ गया कि सुश्री शिखा कौशिक के द्वारा जिस पहली पोस्ट के साथ भारतीय नारी की यात्रा को उन्होंने आरंभ किया था उसमें सौंवा पडाव मेरी रचना के रूप में रहा। बधाई! आप सब योगदानकर्ताओं को , शिखा जी को और आप सभी पाठकों को जिनके सक्रिय सहयोग से सैकडे की यह यात्रा इतनी जल्दी पूरी हो सकी।


आशा करता हूँ कि आप सबके सहयोग और आर्शिवाद से इस ब्लाग पर एक हजारवीं पोस्ट भी इसी तरह जल्दी ही प्रकाशित होगी। एक बार फिर आप सबको बधाई।

मैं बेटी का हक मांगूगी.


      Cute Little Girl  
                 [क्यूट बेबी से साभार ]
                           क्यूँ किया पता हे ! मात-पिता? 
                                 कि कोख में मैं एक कन्या हूँ.
                               उस पर ये गर्भ पात निर्णय
                            सुनकर मैं कितनी चिंतित हूँ?
                                हाँ !सुनो जरा खुद को बदलो
                                मैं ऐसे हार न मानूगीं;
                               हे! माता तेरी कोख में अब
                                मैं बेटी का हक़ मागूंगी  !
               बेटी के रूप में जन्म लिया;
              क्यूँ देख के मुरझाया चेहरा;
             मैं भी संतान तुम्हारी हूँ;
            फिर क्यूँ छाया दुःख का कोहरा
           लालन पालन मेरा करके
            मुझको भी जीने का हक दो
            मैं करुं तुम्हारी सेवा भी
           ऐसी मुझमे ताक़त भर दो
          बेटी होकर ही अब मैं तुमसे
          बेटो जैसा हक मांगूगी
          हे माता! तेरी कोख में अब
        मैं बेटी का हक मांगूगी.  
                                         शिखा  कौशिक 
                                  http://shikhakaushik666.blogspot.com 

       

शनिवार, 3 सितंबर 2011

०५ सितम्बर शिक्षक दिवस एवं १४ सितम्बर हिंदी दिवस विशेष......


हिंदी महिमा.....
हिंदी हिन्दुस्तानी, हिंद की ये भाषा 
इस हिंदी में छिपी हुई है, उन्नति की परिभाषा 
भारत माता की उर माला का, मध्य पुष्प है हिंदी 
माता के मस्तक पर, जैसे शोभित हो बिंदी 
यह भरती गागर में सागर, लिखता जग देख ठगा सा 
!! हिंदी ....................................... परिभाषा !!
इस हिंदी में महाकाव्य रच तुलसी हुए महान 
अर्थ गंभीर ललित श्रृंगारिक, सब करते गुणगान 
नीराजन यह भूमि भारत का, जन-जन की है यह आशा 
!! हिंदी ....................................... परिभाषा !!
अपनी संस्कृति अपनी मर्यादा, अपनी भाषा का ज्ञान 
यही एक पाथेय हमारा, रहे सदा यह ध्यान 
बिन इसके यदि बढ़ा कदम, हम बनेंगे जग में तमाशा 
!! हिंदी ....................................... परिभाषा !!
अपनी भाषा की समर्थता से, हम सामर्थ्य बढ़ाये 
प्रगति वास्तविक है तब ही, जब सब हिंदी अपनाएं 
भारत का उत्थान है हिंदी, अमृत निर्झर झरता सा 
!! हिंदी ....................................... परिभाषा !!
अपने घर में अपनी भाषा हिंदी अपमानित न होवें 
वह है अभागा अमृत पाकर कालजयी जो ना होवें 
हिंदी सेवा में जुटकर साथी, अब झटके दूर हताशा 
!! हिंदी ....................................... परिभाषा !!
हिंदी पर गर्व करेंगे जब हम, देश महान बनेगा 
दिग दिगंत में व्यापित हिंदी नवल वितान बनेगा 
भारत का मान बढेगा ऐसा, होगा अम्बर झुका-झुका सा 
!! हिंदी ....................................... परिभाषा !!

आप सबको ०५ सितम्बर शिक्षक दिवस एवं
१४ सितम्बर हिंदी दिवस की अग्रिम 
ढेर सारी शुभकामनाएं !!!!

नीलकमल वैष्णव"अनिश"