हमारी संस्कृति कई रीति रिवाजों और परम्पराओं का समन्वय लिए हुए है। हिन्दुओं में श्राद्ध प्रथा बहुत प्राचीन है,जो आज भी अति शुभ मानी जाती है। हमारे धर्म शास्त्रों के अनुसार मृतात्मों को उचित गति मिले, इसके हेतु मरणोउपरांत पिडदान, श्राद्ध और तर्पण की व्यवस्था की गई है। श्राद्ध का अर्थ है श्रद्धापूर्ण व्यवहार तथा तर्पण का अर्थ है तृप्त करना, श्राद्ध-तर्पण का अर्थ है पितरो को तृप्त करने की प्रक्रिया है। आश्विन मास में श्राद्ध पक्ष में पितरोेें का तर्पण किया जाता है और पितरों की मृत्यु के नियत तिथि पर यथाशक्ति बम्ह भोज और दान दिया जाता है। शास्त्रोें में व गुरू पुराण में कहा गया है कि संसार में श्राद्ध से बढकर और कल्याणप्रद ओर कोई मार्ग नहीं है,अतः बुद्धिमान व्यक्ति को प्रयत्नपूर्वक श्राद्ध करना चाहिए। पितृ-पूजन से संतुष्ट होकर पितर मनुष्यों के लिए आयु, पुत्र, यश, स्वर्ग , कीर्ति , पुष्टि, बल, वैभव, पशु, सुख, धन और धान्य देते है।
मुगल बादशाह शाहजंहा ने भी हमारी संस्कृति के श्राद्ध पक्ष की सराहना की है,जब उनके क्रूर्र पुत्र सम्राट औरंगजेब ने उन्हें जेल में बंद कर यातना दे रहा था और पानी के लिए तरसा रहा था । आकिल खाॅ के ग्रंथ वाके आत आलमगीरी के अनुसार शाॅहजहा ने अपने पुत्र के नाम पत्र में मंर्मात वाक्य लिखे थे ‘है पुत्र तू भी विचित्र मुसलमान है, जो अपने जीवित पिता को जल के लिए तरसा रहा है,शत्-शत् बार प्रशंसनीय है,वे हिन्दु जो अपने मृत पिता को भी जल देते है।’
अगर हमारे मन में जीवित माता-पिता बुर्जगों के प्रति श्रद्धा नहीं है तो उनके मरने के बाद उनका श्राद्ध मनाने का औचित्य क्या है,हम श्राद्ध इस डर से मनाते है कि हमारे पितरों की आत्मा कही भटक रही होगी तो हमें कही नुकसान नही पहुचाए,उनका अन्र्तमन उनको धिक्कारता हैकि हमने अपने मृतक के जीते जी उन्हें बहुत तकलीफ पहुचाई है,इसलिए मरने के बाद ये पितृ हमें भी तकलीफ पहुॅचा सकते है।इसलिए हम श्राद्ध पक्ष मनाकर अपने पितरों को खुश करने का प्रयास करते है।
जिस काग की सालभर पूछ नहीं होती है उन्हें श्राद्ध पक्ष में कागो-वा-2 करके छत की मुडेर पर बुलाया जाता है और पितरो के नाम से पकवान खिलाये जाते है और पानी पिलाया जाता है,खा लेने पर यह सोचकर सन्तुष्ट हो जाते है कि हमारे पिृत हमसे प्रसन्न है।
आज की युवा-पीढी में श्राद्ध मनाने के प्रति श्रद्धा भाव खत्म हो चुका है,वह समाज की नजर में प्रंशसा पाने और दिखावे के लिए लम्बे-चैडे भोज का आयोजन करती है।हमे हमारे बुर्जगों को जीते जी
प्यार ,सम्मान व श्रद्धा देनी होगी।
श्राद्ध पक्ष हमें अपने पूर्वजों के प्रति अगाध श्रद्धा और स्मरण भाव के लिए प्रोत्साहित करता है, हमें इसे सादगीपूर्वक मनाकर भावी पीढी को भी अनुसरण करने की प्ररेणा मिलेगी।
प्रेषकः. श्रीमति भुवनेश्वरी मालोत
अस्पताल चैराहा
महादेव कॅालोनी
बांसवाडा राज
मुगल बादशाह शाहजंहा ने भी हमारी संस्कृति के श्राद्ध पक्ष की सराहना की है,जब उनके क्रूर्र पुत्र सम्राट औरंगजेब ने उन्हें जेल में बंद कर यातना दे रहा था और पानी के लिए तरसा रहा था । आकिल खाॅ के ग्रंथ वाके आत आलमगीरी के अनुसार शाॅहजहा ने अपने पुत्र के नाम पत्र में मंर्मात वाक्य लिखे थे ‘है पुत्र तू भी विचित्र मुसलमान है, जो अपने जीवित पिता को जल के लिए तरसा रहा है,शत्-शत् बार प्रशंसनीय है,वे हिन्दु जो अपने मृत पिता को भी जल देते है।’
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक पोस्ट सामाजिक सन्दर्भों से रु -बा -रु .
पहले श्रध्दा फिर श्राध्द....
जवाब देंहटाएंबेहतरीन बात की।
खू ब सु र त ||
जवाब देंहटाएंसच्चाई को आपने बड़े ही खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है! सटीक व्यंग्य!
जवाब देंहटाएंमेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com/
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
परम्परा को संजोती अच्छी पोस्ट .
जवाब देंहटाएंsahi hai....shradh se jyada shradha jaruri hai....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर भाव भर दिए हैं पोस्ट में........शानदार| नवरात्रि पर्व की शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूबसूरत ! शानदार प्रस्तुती!
जवाब देंहटाएंआपको एवं आपके परिवार को नवरात्रि पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें !
Shradh ke bare mein bahut sahi evm samyik jankari.
जवाब देंहटाएं