यह वाक्य आज कल खूब सुनने में आता है ,सुनकर अपने देश की संस्कृति और रिवाजों पर गर्व होता है जहाँ मरने के बाद भी अपने बुजुर्गों को पूजा जाता है देखने सुनने में भी अच्छा लगता है ,यह बात अलग है की इस रीत को निबाहने में वास्तव में बुजुर्गों के लिए सम्मान है या भगवान् का डर या फिर अपने जीवन में सुख शांति की कामना !यह व्यक्ति दर व्यक्ति पर निर्भर करता है !मेरा मकसद यहाँ इस प्रथा का विश्लेषण करना नहीं बल्कि एक सच्चाई से आप लोगों को रूबरू करना है ,जो मुझे आज तक अन्दर से कचोट रही है !
आज दादी का श्राद्ध है ...उसकी पोती ने आकर बताया !उस दादी का जिसका जिंदगी और रिश्तों से विश्वास उठ चुका था !जो दादी कभी अपने घर की महारानी थी अपने पति की आँख का तारा थी ,पढ़ी लिखी अच्छी नोकरी पर आसीन एक सम्मान जनक जिंदगी जीने वाली थी !कुछ साल पहले अचानक पति के गुजरने के बाद मानो वह तन मन से पंगु हो गई थी उसका आसमान उसकी धरती मनो भगवान् ने छीन ली थी!एक ही बेटा बहु थे !अपने साथ माँ को ले आये ,समाज से वाहवाही पाई !माँ ने प्यार में धीरे धीरे अपनी सारी जमापूंजी बेटे बहु को देदी,क्या करती एक ही बेटा था सो देनी ही थी !फिर कुछ समय बाद न जाने कोन सी भावना दादी के अन्दर पनप रही थी की जब भी मिले वो कहती थी बेटा अब जिंदगी से मन ऊब गया !हाथो पैरों ने भी धोखा देना शुरू कर दिया दो कदम भी चल नहीं पाती थी !
फिर एक दिन अचानक शोर मचा न जाने दादी कहाँ चली गई दो तीन दिन तक ढूँढ़ते रहे !फिर पुलिस की सहायता से पता चला की वहां के मुर्दा घर में एक बूढी औरत जो कटी हुई रेलवे ट्रेक से उठाई गई थी एक गठरी में बंधी हुई मिली !
जो दो कदम चल नहीं सकती थी वो दो किलोमीटर कैसे रेलवे ट्रेक पर जा सकती है आज तक रहस्य बना हुआ है !पुलिस आई चली गई मिडिया वाले आये चले गए ,जो डाएरी दादी लिखती थी वो कहाँ गई आज तक पता नहीं !कहानी पूरी तरह बदल दी गई !(रसूख वाले लोग हैं क्षमा करना किसी कारन वश पूरी पहचान नहीं बता सकती)कौन न्याय दिलाये क्या वो बेटा जिसके लिए माँ पूरे दिन इन्तजार करती थी की आफिस से आकर माँ से एक दो बात करेगा और वो बेटा आफिस से आते ही सीधा पत्नी के पास जाता था !माँ इससे ज्यादा कुछ नहीं चाहती थी !या वो बहु न्याय दिलाएगी जो एक बार कह रही थी कि मेरी सास को तो खाना भी टाइम से चाहिए ........क्या कुछ ज्यादा मांग लिया था ????
आज उस दादी का श्राद्ध है ..........
फिर एक दिन अचानक शोर मचा न जाने दादी कहाँ चली गई दो तीन दिन तक ढूँढ़ते रहे !फिर पुलिस की सहायता से पता चला की वहां के मुर्दा घर में एक बूढी औरत जो कटी हुई रेलवे ट्रेक से उठाई गई थी एक गठरी में बंधी हुई मिली !
जो दो कदम चल नहीं सकती थी वो दो किलोमीटर कैसे रेलवे ट्रेक पर जा सकती है आज तक रहस्य बना हुआ है !पुलिस आई चली गई मिडिया वाले आये चले गए ,जो डाएरी दादी लिखती थी वो कहाँ गई आज तक पता नहीं !कहानी पूरी तरह बदल दी गई !(रसूख वाले लोग हैं क्षमा करना किसी कारन वश पूरी पहचान नहीं बता सकती)कौन न्याय दिलाये क्या वो बेटा जिसके लिए माँ पूरे दिन इन्तजार करती थी की आफिस से आकर माँ से एक दो बात करेगा और वो बेटा आफिस से आते ही सीधा पत्नी के पास जाता था !माँ इससे ज्यादा कुछ नहीं चाहती थी !या वो बहु न्याय दिलाएगी जो एक बार कह रही थी कि मेरी सास को तो खाना भी टाइम से चाहिए ........क्या कुछ ज्यादा मांग लिया था ????
आज उस दादी का श्राद्ध है ..........
सुंदर विमर्श।
जवाब देंहटाएंआप चलेंगे इस महाकुंभ में...
...मानव के लिए खतरा।
माफी चाहूंगा, पहला कमेंट त्रुटिवश आपके ब्लॉग पर हो गया है, कृपया उसे डिलीट कर दें।
जवाब देंहटाएंवैसे आपने दादी जी के बहाने जो सवाल उठाया है, वह व्यक्ति की सोच को दर्शाता है।
हार्दिक संवेदनाएं।
आप चलेंगे इस महाकुंभ में...
...मानव के लिए खतरा।
उस दादी का जिसका जिंदगी और रिश्तों से विश्वास उठ चुका था !जो दादी कभी अपने घर की महारानी थी अपने पति की आँख का तारा थी ||
जवाब देंहटाएंजो दो कदम चल नहीं सकती थी वो दो किलोमीटर कैसे रेलवे ट्रेक पर जा सकती है आज तक रहस्य बना हुआ है !पुलिस आई चली गई मिडिया वाले आये चले गए ,जो डाएरी दादी लिखती थी वो कहाँ गई आज तक पता नहीं !कहानी पूरी तरह बदल दी गई ||
आज उस दादी का श्राद्ध है ||
आभार ||
आपकी इस प्रस्तुति पर
बहुत-बहुत बधाई ||
yehi jeevan ki trasdi hai ,,bilkul satya hai .......
जवाब देंहटाएंबहुत ही भावुक प्रस्तुती! आँखें नम हो गई!
जवाब देंहटाएंमार्मिक प्रस्तुति............
जवाब देंहटाएंमार्मिक...!
जवाब देंहटाएंसच्चाई...!
आभार...!
जीवन का स्याह सच.
जवाब देंहटाएंआपको मेरी तरफ से नवरात्री की ढेरों शुभकामनाएं.. माता सबों को खुश और आबाद रखे..
जवाब देंहटाएंजय माता दी..