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रविवार, 18 सितंबर 2011

भ्रूण में मरती हुई वो मारती इक वंश पूरा

भ्रूण में मरती हुई वो मारती इक वंश पूरा

बदचलन से दोस्ती, खुशियाँ मनाती  रीतियाँ
नेकनीयत से अदावत कर चुकी  हैं नीतियाँ |
आज आंटे की पड़ी किल्लत, सडा गेहूं बहुत-
भुखमरों को तो पिलाते, किंग बीयर-शीशियाँ ||
photo of a sugar ant (pharaoh ant) sitting on a sugar crystal
देख -गन्ने सी  सड़ी,  पेरी  गयी  इंसानियत,
ठीक चीनी सी बनावट ढो  रही हैं  चीटियाँ ||


हो  रही  बंजर  धरा, गौवंश  का  अवसान  है-
सब्जियों पर छिड़क दारु, दूध दुहती यूरिया ||


भ्रूण  में  मरती  हुई  वो  मारती इक वंश पूरा-
दोष दाहिज का  मरोड़े  कांच की नव चूड़ियाँ |


हो चुके इंसान गाफिल जब सृजन-सद्कर्म से,
पीढियां  दर  पीढियां, बढती  रहीं  दुश्वारियां  ||

15 टिप्‍पणियां:

  1. दर्दनाक हक़ीकत पेश करने की हिम्मत को सलाम!

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  2. मौजूदा दौर की त्रासद स्थिति का चित्रण।

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  3. शिकायत और उम्मीद, इन दोनों का चक्रव्यूह ही संसार बनाता है.

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  4. शिकायत और उम्मीद, इन दोनों का चक्रव्यूह ही संसार बनाता है.

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  5. भ्रूण में मरती हुई वो मारती इक वंश पूरा-
    दोष दाहिज का मरोड़े कांच की नव चूड़ियाँ
    Mother's womb child,s tomb.Shame for modren tradition of female feticide.

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  6. प्रिय रविकर जी अति सुन्दर जबाब नहीं ....सारे समाज का चित्रण अव्यस्था की हालत ....काश आँखें खुलें

    भ्रमर ५

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  7. हो चुके इंसान गाफिल जब सृजन-सद्कर्म से,
    पीढियां दर पीढियां, बढती रहीं दुश्वारियां ||

    ----सुंदर भावाव्यक्ति ...

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