भ्रूण में मरती हुई वो मारती इक वंश पूरा
बदचलन से दोस्ती, खुशियाँ मनाती रीतियाँ
नेकनीयत से अदावत कर चुकी हैं नीतियाँ |
आज आंटे की पड़ी किल्लत, सडा गेहूं बहुत-
भुखमरों को तो पिलाते, किंग बीयर-शीशियाँ ||
देख -गन्ने सी सड़ी, पेरी गयी इंसानियत,
ठीक चीनी सी बनावट ढो रही हैं चीटियाँ ||
हो रही बंजर धरा, गौवंश का अवसान है-
सब्जियों पर छिड़क दारु, दूध दुहती यूरिया ||
भ्रूण में मरती हुई वो मारती इक वंश पूरा-
दोष दाहिज का मरोड़े कांच की नव चूड़ियाँ |
हो चुके इंसान गाफिल जब सृजन-सद्कर्म से,
पीढियां दर पीढियां, बढती रहीं दुश्वारियां ||
दर्दनाक हक़ीकत पेश करने की हिम्मत को सलाम!
जवाब देंहटाएंअनमोल कविताओं का समृद्ध खजाना
जवाब देंहटाएंबहुत-बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंमौजूदा दौर की त्रासद स्थिति का चित्रण।
जवाब देंहटाएंBahut marmik
जवाब देंहटाएंबेहतरीन रचना !
जवाब देंहटाएंशिकायत और उम्मीद, इन दोनों का चक्रव्यूह ही संसार बनाता है.
जवाब देंहटाएंशिकायत और उम्मीद, इन दोनों का चक्रव्यूह ही संसार बनाता है.
जवाब देंहटाएंभ्रूण में मरती हुई वो मारती इक वंश पूरा-
जवाब देंहटाएंदोष दाहिज का मरोड़े कांच की नव चूड़ियाँ
Mother's womb child,s tomb.Shame for modren tradition of female feticide.
marmik samvedna...kee anubhuti huyee ....yahee kvi karam hai..
जवाब देंहटाएंmarmik samvedna...kee anubhuti huyee ....yahee kvi karam hai..
जवाब देंहटाएंदर्द से भरी रचना,
जवाब देंहटाएंविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
प्रिय रविकर जी अति सुन्दर जबाब नहीं ....सारे समाज का चित्रण अव्यस्था की हालत ....काश आँखें खुलें
जवाब देंहटाएंभ्रमर ५
हो चुके इंसान गाफिल जब सृजन-सद्कर्म से,
जवाब देंहटाएंपीढियां दर पीढियां, बढती रहीं दुश्वारियां ||
----सुंदर भावाव्यक्ति ...
man ko udvelit karti kavita.
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