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सोमवार, 31 दिसंबर 2012

Happy New Year




डाॅ.हरीवंष राय बच्चन लिखते हैः-’’वर्ष नव,हर्ष नव, जीवन उत्कर्ष नव,नव तंरग,जीवन का नव प्रंसग,नवल चाह,नवल राह,जीवन का नव प्रवाह,गीत नवल,प्रीति नवल ,जीवन की रीति नवल,जीवन की नीति नवल ,जीवन की जीत नवल।
सभी को नव वर्ष की हार्दिकष्षुभ कामनाए।नया साल नई उंमगो की सुबह लेकर आये। सभी को इंतजार रहता है नये साल का ,सभी अपने -अपने ढग से नये साल के स्वागत के लिए महफिले सजाते है।31 दिसम्बर की षाम को पार्टी का आयोजन करते है। केवल साल बदलने से या नये कंलैडर बदल जाने से या नये साल में एस एम एस करने  ,षुभ कामनाए देने भर से नया साल आ जायेगा अगर आपका यह मानना है तो ंगलत है। 31 दिसम्बर मनाने के बाद सोचते है कल सब नया हो जायगा पर ऐसा कैसे होसकता है आज हम कोई चीज खरीदते है दूसरे दिन वही चीज पुरानी की श्रेणी में आजाती है। नये साल आने से पहले कुछ संकल्प ले कुछ नयी तैयारी करे।ष्एक कवि महोदय ने कहा है कि ’’विगत वर्ष जो छोड गया कुछ कुटिल क्षणों की यादें ,नये साल के ष्षुभ संकल्पों से उन्हें मिटा दे ।
आइये नये साल में कुछ नये संकल्पों के साथ जीवन की ष्षुरूआत करें।रोते हुये को हॅसाने का संकल्प ले ,टूटे रिष्तों को जोडने का संकल्प ले ,किसी के अंधेरे जीवन में रोषनी देने का संकल्प ले स्वस्थरहने का संकल्प ले,खुष रहने और दूसरो को खुषी देने का संकल्प ले। यह सब तभी हो सकता है जब हम अपनी संकीर्ण स्वार्थ की परिधि से बाहर निकल कर दूसरो के लिए जीना सीख लेगे।तभी नया साल नयी खुषीया लेकर आयेगा।
महफिल तो गैर की हो पर बात हो हमारी,
इंसानियत जहां में आकौत हो हमारी।
जीवन तू देने वाले ऐसी जिन्दगी दे,
आॅसू तो गैर के हों पर आॅख हो हमारी।ेे
                                                                        भुवनेष्वरी मालोत
                                                                        महादेव काॅलोनी
                                                                         ेबाॅसवाडा राज.

एक ही रास्ता...... डा श्याम गुप्त....

                            एक ही रास्ता ...सयंम, चरित्र व आचरण ......डा श्याम गुप्त.....

                 अनाचरण की घटनाओं को रोकने का एक यही रास्ता है......पढ़ें , समझें व मनन करें .....दो विद्वानों के युक्ति-युक्त पूर्ण विचार..




                    ...

नूतन वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें


 HD new year free wallpaper 2013
 नूतन वर्ष की   हार्दिक शुभकामनायें इस सन्देश   के साथ -
 नारी दुर्गा है ''चिकनी -चमेली '' नहीं !


                                                 Durga Wallpaper
                                                      






''हू ला ला'' पर थिरके कदम 
''शीला-मुन्नी'' पर निकले है दम 
नैतिकता का है ये पतन 
दूषित हो गया अंतर्मन 
ओ फनकारों करो कुछ शर्म 
शालीन नगमों का कर लो सृजन 
फिर से सजा दो लबो पर हर दम 
वन्देमातरम .....वन्देमातरम !


नारी का मान घटाओ नहीं 
प्राणी है वस्तु बनाओ नहीं 
तराने रचो तो रचो सोचकर 
शक्ति है नारी तमाशा नहीं 
नारी की महिमा का फहरे परचम 
फिर से सजा दो ..........


नारी है देवी पहेली नहीं 
दुर्गा है ''चिकनी -चमेली '' नहीं 
इसका सम्मान जो करते नहीं 
फनकारी के काबिल नहीं 
बेहतर है रख दें वे अपनी कलम 
फिर से सजा दो ..............
                                       शिखा कौशिक 
                            nutan

रविवार, 30 दिसंबर 2012

रौब के तोते -लघु कथा

 

पुलिस स्टेशन में लैंडलाइन फोन बजा .थानाध्यक्ष ने रिसीवर उठाया .फोन पर आवाज़  साफ़ नहीं आ रही थी .उधर से कोई महिला बोल रही थी .थानाध्यक्ष जी समझने की कोशिश करते हुए प्रश्नों की बौछार करने में जुट गए -''.......क्या ...कौन भाग गयी ...किस इलाके से बोल रही हो ...भाई हमारा थाना वहां नहीं लगता ...अपने बच्चों को सँभालते नहीं....यहाँ फोन कर देते हो ......किसे किसे ढूंढें ....पहले ही गोली क्यों नहीं मार देते ....?'' ये कहकर थानाध्यक्ष जी ने फोन झटककर रख दिया .तभी उनका निजी  मोबाइल बज उठा .कॉल  घर से थी .वे कुछ बोलते उससे पहले ही उनकी श्रीमती जी का उन्हें लताड़ना शुरू हो गया - ''मोबाइल मिलाओ वो नहीं मिलता .थाने के नंबर पर फोन करो तो आप आवाज़ नहीं पहचानते .घंटे भर से आपको बता रही हूँ कि सपना एक चिट्ठी  लिखकर भाग गयी है किसी लड़के के साथ .ढूंढो उसे .'' ये कहकर गुस्से में श्रीमती जी ने फोन काट दिया और थानाध्यक्ष जी के रौब के तोते उड़ गए .
                               शिखा कौशिक 'नूतन '

हवन

          हवन
 पंतजलि महिला योग समितिष्बाॅसवाडा द्धारा बलात्कार से पीडित छात्रा की आत्मा की त्रिभुवन में चिरषांति के लिए दयानंद आश्रम में हवन किया गया।ओम् षांति ,ओम् षांति।
       
मेरे खून से धरती को न करो लाल
रक्त की हर बॅूद बनेगी तुम्हारा काल,
खुदा नंे दी जिंदगी रहम करो ,
बेटियों के साथ दुराचार करने वालो
ष्षरम करो।
यंे धरती तुम्हें धिक्कार रही है...............
ष्षरम करो दंुराचारियो ं , षरम करो दंुराचारियो , षरम करो दंुराचारियो
                                 भुवनेष्वरी मालोत
                                  जिला संयोजिका
                                  पंतजलि महिला योग समिति            
                                  बाॅसवाडा राज.

रविवार, 23 दिसंबर 2012

क्या यही है पुरुष !!-एक लघु कथा

 Delhi gang rape case: Section 144 lifted, protesters continue battle

शहर में बलात्कार -आरोपियों को कड़ी सजा दिलाने हेतु उग्र आन्दोलन चल रहा था .युवक-युवतियां पूरे जोश व् गुस्से में अपनी भावनाओं का इज़हार कर रहे थे .सिमरन भी अपनी सहेलियों के साथ इस गुस्साई भीड़ का हिस्सा थी .दिन भरे चले आन्दोलन के बाद सिमरन रेखा व् पूनम के साथ एक ऑटो   पकड़कर अपने घर को रवाना  हो गयी .ऑटो  ने उन तीनों को एक चौराहे पर उतार  दिया जहाँ से तीनों अपने घर को पैदल ही चल दी .सिमरन का घर थोड़ी ही दूर रह गया था तभी पीछे से एक बाइक जिस पर तीन युवक सवार थे तेज़ हॉर्न बजाती हुई उसके पास से इतनी तेज़ी से निकली कि एक बार को तो सिमरन घबरा ही गयी .सिमरन दो कदम ही बमुश्किल चल पाई थी कि वो बाइक मुड़कर सामने से आती हुई फिर दिखाई दी .इस बार उसकी रफ़्तार सामान्य से भी धीमी थी .उस पर सवार तीनों युवकों ने सिमरन के पास से गुजरते हुए उस पर फब्तियां कसी -''.....ए झाँसी की रानी ........आती क्या खंडाला .......हाय सैक्सी '' सिमरन उनके चेहरे देखकर ठिठक गयी .सिमरन उन्हें पलट कर कोई जवाब देती उससे पहले ही वे बाइक की रफ़्तार बढाकर फुर्र हो गए .घर तक पहुँचते पहुँचते सिमरन को आखिर याद आ  ही गया कि ये तीनों चेहरे उसे इतने जाने पहचाने क्यों लगे !! दरअसल ये तीनों आज के आन्दोलन में सबसे उग्र प्रदर्शनकारी थे .सिमरन के होठों पर एक फींकी व्यंग्यमयी मुस्कान तैर गयी और मन में उथल-पुथल '...क्या यही है पुरुष जोअन्य पुरुषों द्वारा प्रताड़ित स्त्री के लिए तो न्याय मांगता है और खुद किसी स्त्री को प्रताड़ित करने में आनद की अनुभूति करता है ..''
                                    शिखा कौशिक 'नूतन'

शनिवार, 22 दिसंबर 2012

दिल्ली गेंग रेप -एक चिंतन




दिल्ली में गेंग रेप को आज पांच दिन पूरे हो गए।सभी छह आरोपी हिरासत में हैं।दिल्ली में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं .शुरूआती एक दो दिन बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टी के कुछ नेता सामने आये और इस घटना की भत्सर्ना की। शायद उस लड़की की नाज़ुक हालत देखते हुए उन्हें डर था की कहीं उसकी मौत हो गयी उसके पहले अगर उनका कोई बयां नहीं आया तो जनता उन्हें असंवेदनशील कहेगी। कई नेताओं ने भी उस समय फांसी की मांग कर दी। आज पांच दिन बाद जब  की लड़की की जिजीविषा से उसकी  हालत में सुधार हो रहा है कोई नेता सामने नहीं आ रहा है। सिर्फ युवा लड़के लड़कियां महिलाये ही सडकों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। आरोपियों को फांसी की मांग के साथ एक सुरक्षित समाज देने की मांग कर रहे है तब उन पर पानी की बौछार और आंसू गैस के गोले बरसाए जा रहे हैं। 


दिल्ली में ही क्या देश में कहीं भी लड़कियों के प्रति अपराध दर में बढ़ोत्तरी हुई है।लड़कियां कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। लेकिन मुद्दा ये है की जैसे जैसे हम आधुनिकता की और बढ़ते जा रहे है वैसे वैसे समाज में ये पाशविकता क्यों बढ़ रही है? इसके गहरे में जाकर कारण ढूंढना जरुरी है।

लड़कों का लड़कियों के प्रति नजरिया
ये बात सही है की समाज में खुलापन बढ़ रहा है। आज छोटे छोटे बच्चों को भी व्यस्क सामग्री आसानी से उपलब्ध है। बहुत कम उम्र से लड़के लड़कियों को उपभोग की वस्तु के रूप में देखते है। माता पिता भी लड़कों को हॉट सेक्सी जैसे शब्दों के उपयोग को लेकर कभी नहीं टोकते बल्कि उन की इन बातों से उन पर निहाल हो जाते हैं। यही मानसिकता बढ़ती उम्र में भी लड़कियों के प्रति कोई सम्मानजनक सोच उनमे विकसित नहीं होने देती। 

हर लड़के की एक गर्ल फ्रेंड होना चाहिए जैसी सोच और गर्ल फ्रेंड का मतलब वह लड़की सिर्फ उनकी है उसका वे जैसा चाहे उपयोग उपभोग करे।उन्हें लड़कियों के लिए असम्मानजनक नजरिया देती है। आजकल स्कूल में बहुत छोटी कक्षा में ही लड़के जिस विकृत सोच को प्रदर्शित करते है की हैरानी होती है। मैंने क्लास 7 के बच्चों से ऐसे चिट पकड़ी हैं जिसमे लड़के लड़की को सम्भोग करते दिखाया गया है। लड़की के जननागो को प्रदर्शित किया गया है।लेकिन विडम्बना ये है की जब माता पिता को उनके बच्चों की इन हरकतों के बारे में बताया जाता है तो वे बड़ी मासूमियत से कहते है मेडम मेरा बेटा कह रहा था ये उसने नहीं किया ये तो उसका दोस्त है जो ऐसी बाते करता है और ऐसे चित्र बनता है और उसका नाम फंसा देता है। अब ऐसे माता पिता को क्या समझाया जाये। स्कूल प्रशासन की मजबूरी होती है की अगर वे इस मामले में कठोर होंगे तो एक मोटे आसामी उनके बच्चे को उनके स्कूल से निकाल लेंगे। 
लेकिन स्कूल से निकाल देना ही विकल्प नहीं है क्योंकि समज में जो कुछ खुले रूप में मौजूद है बच्चों को उससे बचा कर रखना और कम से कम उसमे सही और गलत का आकलन करने की समझ देना माता पिता शिक्षक समाज सभी का दायित्व है जिसमे हम सभी असफल हो रहे हैं। 

लड़कों की लड़कियों के बारे में सोच विचार को सही रूप देने में परिवार जो भूमिका निभा सकता है वह कोई और नहीं। 

सामाजिक जिम्मेदारी 

रास्तों पर होने वाली छेड़छाड़ की घटनाओं पर हम सभी को चौकन्ने होने की जरुरत है। ये सिर्फ एक लड़की से छेड़छाड़ नहीं है  बल्कि ये समाज को विकृत करने की कोशिश है जहा आज किसी और की बहन बेटी है तो कल को मेरी बहन बेटी हो सकती है ये सोच लोगो को विकसित करनी होगी। बहुत पुराणी बात है शायद 30 साल पुराणी। एक लड़की सड़क पर जा रही थी उसके बगल से एक ठेले वाला कुछ कहते हुए गुज़रा जो निश्चित ही कुछ गलत था। वह लड़की इतनी छोटी थी की न तो उसने उस ठेले वाले की कोई बात सुनी और न ही उसने कोई प्रतिक्रिया दी वो तो कुछ समझी ही नहीं। लेकिन वहीँ पास खड़े उसी मोहल्ले के कुछ लड़कों ने ठेले वाले को कुछ कहते सुना और उसे ललकारते हुए उसे मारने उसके पीछे भागे। उन लोगों ने बता दिया की हमारे मोहल्ले में कोई भी लड़कियों से ऐसी वैसी कोई हरकत नहीं कर सकता। जबकि वो लड़की उस मोहल्ले की भी नहीं थी। 

आज हम क्या कर रहे है?हमारे आसपास अगर कोई किसी लड़की से बदतमीजी करता भी है तो हमें क्या करना कह कर हम अपना मुँह फेर लेते हैं या फिर उस लड़की को ही दोष देने लगते हैं। 

राजनैतिक जिम्मेदारी 
अभी पिछले कुछ समय में हमारे देश के कर्णधारों ने लड़कियों के पहनावे उनके मोबाइल के इस्तेमाल आदि पर अशोभनीय टिप्पणियां की। इन टिप्पणियों पर कुछ दिन हंगामा रहा कुछ ने इन्हें गलत समझा गया कह कर पल्ला झाड लिया कुछ दिनों के लिए इस बात पर बहुत बवाल हुआ लेकिन इन टिप्पणियों के लिए और भविष्य में ऐसी टिप्पणियां नहीं होंगी इसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।किसी भी महिला आयोग ने ऐसी टिप्पणियों के लिए कोई केस दायर नहीं किया। ये हमारी राजनैतिक दृढ़ता में कमी की निशानी है। 

प्रशासनिक जिम्मेदारी 

इसमें कोई शक नहीं की हमारी पुलिस फ़ोर्स कम से कम साधनों में भी बेहतर काम कर रही है।पुलिसे या किसी भी महकमे में निचले दर्जे पर पदस्थ कर्मचारी समाज के उन तबकों से आते हैं जहाँ स्त्रियों की कोई इज्जत नहीं की जाती। उनका यही व्यवहार उसके कार्यस्थल पर भी नज़र आता है। खास कर पुलिस में जहाँ उनका वास्ता महिलाओं से भी पड़ता है उन्हें पुलिस भर्ती और ट्रेनिंग के समय विशेष रूप से मनोविज्ञानी द्वारा ट्रेनिंग दी जानी चाहिए जिससे महिलाओं के प्रति उनके नज़रिए को एक स्वस्थ आकार दिया जा सके। 

महिलाओं के प्रति जिम्मेदारी हम सब की जिम्मेदारी है जिसे हर स्तर सबको निभाना होगा जिससे भविष्य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो सके। 

शुक्रवार, 21 दिसंबर 2012

चिंता .... ( लघु कथा )


जल्दी -जल्दी से बढे जा रहे हैं रजनी के कदम। आज तो देर हो गयी ,जाते ही डांट  पड़ेगी सर से। जिम में समय पर पहुंचना उसकी ड्यूटी  है लेकिन छोटे  बच्चे और भाई - बहनों ,  बूढी माँ को सँभालते -सँभालते देर हो ही जाती है।

जिम पहुंचकर सर पर एक नज़र डाल  कर जल्दी से पहुँच जाती है औरतों के समूह में जो उसके इंतजार में दुबली ( ? ) हो रही थी।

अब सभी के पैर थिरक रहे थे तेज़ संगीत की लय पर। हर -एक के एक साथ ,हाथ और पैर उठ रहे थे। दिमाग में सभी को अपने-अपने  बढे हुए पेट सपाट करने की चिंता थी।

और रजनी ?

उसे भी तो चिंता थी अपने पेट को सपाट करने की , जो कि अंतड़ियों से चिपका हुआ था .......



ऐसे समाज को फांसी पर लटका दिया जाये -लघु कथा

 aise Seagull collects a puffin

अस्पताल के बाहर मीडियाकर्मियों व् जनता की भीड़ लगी थी .अन्दर इमरजेंसी में गैंगरेप  की शिकार युवती जिंदगी व् मौत से जूझ रही थी .मीडियाकर्मी आपस में बातचीत कर रहे थे -''अरे भाई लड़की का नाम व् पता बदलकर छापना ....बेचारी अगर जिंदा बच गयी तो इस समाज का सामना कैसे करेगी ?''जनता का मुख्य उद्देश्य भी युवती का नाम -पता जानना था .तभी अस्पताल के भीतर से एक प्रौढ़ महिला हाथ में एक फोटो लिए बाहर आई . और अस्पताल  के सामने एकत्रित भीड़ को मजबूत स्वर में संबोधित करते हुए बोली -''मैं उस पीडिता की माँ हूँ [ ये कहकर फोटो लिए हाथ को ऊपर उठा दिया ] ये मेरी बेटी अस्किनी का फोटो है जो भीतर जिंदगी व् मौत से जूझ रही है .हम इसी शहर के स्थानीय निवासी हैं और हमारा घर करोड़ी मौहल्ले में है .हमारा मकान नंबर २/४१ है .अस्किनी के पिता जी अध्यापक हैं और छोटा भाई पीयूष दसवी कक्षा का छात्र है .
.....आप सोच रहे होंगें कि मैं ये सब जानकारियां स्वयं आप को क्यों दे रही हूँ .मैं ये सब इसलिए बता रही हूँ कि मेरी बेटी ने कोई अपराध नहीं किया है जो उसका नाम व् पता छिपाया जाये .यदि वो जिंदा बच गयी तो हमारे परिवार में उसका वही लाड   होगा जो इस हादसे से पहले होता था .मुंह तो उन कुकर्मी कुत्तों का छिपाया जाना चाहिए जिन्होंने मेरी बेटी के साथ दुष्कर्म किया है .नाम व् पता वे छिपाते फिरे और उनके परिवार वाले .मेरी बेटी के साथ यदि यह समाज इस हादसे के बाद कोई गलत व्यवहार करता है तो निश्चित रूप से उन दुराचारी कुत्तों के साथ इस समाज को भी खुलेआम फांसी पर लटका दिया जाना चाहिए .'' ये कहकर वे मुड़ी और तेज़ क़दमों से अस्पताल के भीतर पुन:  चली गयी

                     शिखा कौशिक ''नूतन''


गुरुवार, 20 दिसंबर 2012

आ छुपा है कौन ---गीत--डा श्याम गुप्त



नयन के द्वारे ह्रदय में,
आ बसा है कौन ?
खोल मन की  अर्गलायें ,
आ छुपा है कौन ?          -----नयन के द्वारे......||

कौन है मन की धरोहर,
यूं चुराए जारहा |
दिले-सहरा में सुगन्धित,
गुल खिलाए जारहा |

कौन सूनी राह पर,
प्रेमिल स्वरों में  ढाल कर ;
मोहिनी मुरली अधर धर,
मन लुभाए जारहा |

धडकनों की राह से,
नस नस समाया कौन ?        
लीन  मुझको  कर, स्वयं-
मुझ में समाया कौन |        ----नयन के द्वारे ...........||


जन्म जीवन जगत जंगम -
जीव जड़ संसार |
ब्रह्म सत्यं , जगन्मिथ्या ,
ज्ञान अहं अपार |

भक्ति-महिमा-गर्व-
कर्ता की अहं -टंकार |
तोड़ बंधन, आत्म-मंथन ,
योग अपरम्पार |

प्रीति के सुर-काव्य बन,
अंतस समाया मौन  ,
मैं हूँ यह या तुम स्वयं हो -
कौन मैं तुम कौन ?               -----नयन के द्वारे .....||






वो लड़की रौंद दी जाती है अस्मत जिसकी

 

वो लड़की
रौंद दी जाती है  अस्मत जिसकी  ,
करती है नफरत
अपने ही वजूद से
जिंदगी हो जाती है बदतर उसकी
मौत से .

 वो लड़की
रौद दी जाती है अस्मत जिसकी ,
घिन्न आती है उसे
अपने ही जिस्म से ,
नहीं चाहती करना
अपनों का सामना ,
वहशियत की शिकार
बनकर लाचार
घबरा जाती है हल्की सी
आहट से .

 वो लड़की
रौद दी जाती है अस्मत जिसकी
समझा नहीं पाती खुद को ,
संभल नहीं पाती
उबर नहीं पाती हादसे से ,
चीत्कार करती है उसकी आत्मा
चीथड़े -चीथड़े उड़ गए हो
जिसकी गरिमा के
जिए तो जिए कैसे ?

 वो लड़की
 रौद दी जाती है अस्मत जिसकी
घर  से बहार निकलना
उसके लिए है मुश्किल
अब सबकी नज़रे
वस्त्रों में ढके उसके जिस्म पर
आकर जाती है टिक ,
समाज की कटारी नज़र
चीरने लगती है उसके पहने हुए वस्त्रों को ,
वो महसूस करती है खुद को
पूर्ण नग्न ,
छुटकारा नहीं मिलता उसे
म्रत्युपर्यन्त   इस मानसिक दुराचार से .
वो लड़की
रौद दी जाती है अस्मत जिसकी ........

                               शिखा कौशिक 'नूतन '






बुधवार, 19 दिसंबर 2012

फाँसी :पूर्ण समाधान नहीं

 Four arrested in Delhi gang-rape case, search on for two more (© PTI)
 दिल्ली ''भारत का दिल ''आज वहशी दरिंदों का ''बिल'' बनती नज़र आ रही है .महिलाओं के लिए यहाँ रहना शायद आरा मशीन में लकड़ी या चारे की तरह रहना हो गया है कि हर हाल में कटना ही कटना है .दिल ही क्या दहला मुट्ठियाँ व् दांत भी भिंच गए हैं रविवार रात का दरिंदगी की घटना पर ,हर ओर से यही आवाजें उठ रही हैं कि दरिंदों को फाँसी की सजा होनी चाहिए क्योंकि अभी तक ''भारतीय दंड सहिंता की धारा ३७६ [२] बलात्संग के लिए कठोर कारावास जिसकी अवधि दस वर्ष से कम न होगी किन्तु जो आजीवन कारावास तक हो सकेगी ,दंड व् जुर्माने का प्रावधान करती है और वर्तमान बिगडती हुई परिस्थितियों में ये सभी को कम नज़र आने लगी है और ऐसे में जहाँ सारा विश्व फाँसी को खत्म करने की ओर बढ़ रहा है वहां भारत में बढ़ता ये मामले भारतीयों को फाँसी के पक्ष में कर रहे हैं .
    दिल्ली में चलती बस में फिजियोथेरेपिस्ट के साथ घटी इस दरिंदगी की घटना ने दोनों सदनों को भी हिला दिया .भाजपा की सुषमा स्वराज ,नजमा हेपतुल्लाह ,शिव सेना के संजय राउत ,आसाम गण परिषद् के वीरेंद्र कुमार वैश्य ,सपा के चौधरी मुन्नवर सलीम ने बलात्कार के दोषियों के लिए मौत की सजा की पैरवी कर डाली किन्तु क्या इन चंद दोषियों को फाँसी की सजा देने से हम बलात्कार जैसे पाप का अंत कर सकेंगें ?शायद नहीं .आज तक बहुत से हत्या के दोषियों को फाँसी दी गयी किन्तु क्या इससे  हत्या का अपराध बंद हुआ ?नहीं हुआ न और ऐसे होगा भी नहीं .गीतकार व् मनोनीत सदस्य जावेद अख्तर ने दोषियों को फाँसी की सजा पर असहमति जताते हुए कहा ''कि सिर्फ गुस्सा दिखाने से काम नहीं चलेगा .प्रशासनिक कदम उठाने के साथ ही सामाजिक स्तर पर भी पहल करनी होगी .''और मनोनीत सदस्य अशोक गांगुली ने कहा ''कि ऐसे मामलों के दोषियों को ऐसी सजा मिले जो कि बाकी के लिए नजीर बन सके .''
        ये दोनों वक्तव्य ही विचारणीय हैं क्योंकि फाँसी से हम एक अपराधी का अंत कर सकते हैं सम्पूर्ण अपराध का नहीं .हमें स्वयं में हिम्मत लानी होगी कि ऐसी घटनाओं को नज़रअंदाज न करते हुए न केवल अपने बचाव के लिए बल्कि दूसरे किसी के भी बचाव के लिए कंधे से कन्धा मिलकर खड़े हों .ये सोचना हमारा काम नहीं है कि जिसके साथ घटना हो रही है शायद उसका भी कोई दोष हो .हमें केवल यह देखना है कि जो घट रहा है यदि वह अपराध है तो हमें उसे रोकना है और यदि इस सबके बावजूद भी कोई घटना दुर्भाग्य से घट जाती है तो पीड़ित को समाज से बहिष्कृत न करते हुए उसके समाज में पुनर्वास में योगदान देना है और अपराधी को एकजुट हो कानून के समक्ष प्रस्तुत करना है ताकि वह अपने किये हुए अपराध का दंड भुगत सके .सिर्फ कोरी बयान बाजी और आन्दोलन इस समस्या का समाधान नहीं हैं बल्कि हमारी अपराध के सच्चे विरोध में ही इस समस्या का हल छुपा है .चश्मदीद गवाह जो कि सब जगह होते हैं किन्तु लगभग हर जगह अपने कर्तव्य से पीछे हट जाते हैं किसी भी मामले को सही निर्णय  तक पहुंचा सकते हैं और ऐसी घटनाओं में हमें अपनी ऐसी भूमिका के निर्वहन को आगे बढ़ना होगा क्योंकि ये एक सत्य ही है कि ज़रूरी नहीं कि हमेशा कोई दूसरा ही ऐसी घटना का शिकार हो कल इसके शिकार हम या हमारा भी कोई हो सकता है इसलिए सच्चे मन से न्याय की राह पर आगे बढ़ना होगा .
    याद रखिये फाँसी निबटा देती है अपराधी को अपराध को नहीं .वह अपराधी को पश्चाताप का अवसर नहीं देती हालाँकि हर अपराधी पश्चाताप की ओर अग्रसर भी नहीं होता किन्तु एक सम्भावना तो रहती ही है और दूसरी बात जो विभत्स तरीका वे अपराध के लिए अपना ते हैं फाँसी उसका एक अंश भी दंड उन्हें नहीं देती .आजीवन कारावास उन्हें पश्चाताप की ओर भी अग्रसर कर सकता है और यही वह दंड है जो तिल तिल कर अपने अपराध का दंड भी उन्हें भुगतने को विवश करता है .
                     शालिनी कौशिक
                          [कौशल ]


मंगलवार, 18 दिसंबर 2012

ऐसा धोखा मत देना -लघु कथा

[दैनिक जनवाणी में 16-12-2012 को प्रकाशित ]


ऐसा धोखा मत देना -लघु कथा

'अम्मी ...मैं  ज़रा शबाना के घर होकर आ रही हूँ .''ये कहकर जूही ने अपनी जीभ हल्की सी काट  ली क्योंकि वो जानती थी कि  वो झूठ  बोल रही है .वो आज किसी और ही नशे में  झूम रही थी .शाहिद से उसका मेलजोल यूँ तो दो साल से था पर ...इश्क का  सिलसिला कैसे और कब शुरू हुआ जूही खुद भी न समझ  पाई थी .अब तो एक लम्हां  भी शाहिद से दूर रहना जूही को बर्दाश्त नहीं था .कल जब शाहिद का मैसेज उसे  अपने मोबाइल पर मिला तो वो ख़ुशी से झूम उठी .मैसेज में लिखा था -''जूही मैं  कल जुम्मे  के पाक दिन  तुम्हे प्रपोज़ करना चाहता हूँ .'' बस तब से जूही  शाहिद  से मिलने के लिए बेक़रार हो उठी थी .कब व् कहाँ मिलना है ? ये आज  सुबह मिले शाहिद के मैसेज से जूही जान चुकी थी .जूही ने पसंदीदा गुलाबी रंग  का सलवार -कुर्ता पहना और दुपट्टा सिर पर सलीके से ओढ़कर आईने में खुद का  दीदार कर खुद पर ही रीझ गयी .उसके गोरे  गालो पर गुलाबी दुपट्टे की धमक ने  उसे और भी खूबसूरत बना दिया था .जूही ठीक वक़्त पर शाहिद  की बताई जगह पर  पहुँच गयी .ये किसी इंटर कॉलेज की निर्माणाधीन बिल्डिंग थी .ऐसी सुनसान जगह  पर आकर जूही का दिल जोर जोर से डर के मारे धड़कने लगा ... पर सामने से  शाहिद को आते देख उसके दिल को सुकून आ गया .शाहिद ने जूही के करीब आते ही  उसे ऊपर से नीचे तक ऐसी वहशी नज़रों से निहारा कि जूही कि रूह तक कांप गयी  और उसके पूरे बदन में दहशत की लहर दौड़ गयी .जूही के दिल ने कहा -''ये तो  मेरा वो शाहिद नहीं जो जिस्मों से दूर रूहों के मिलन की बात करता  था .''  ...पर ....अब देर हो चुकी थी .जूही वहां से घर लौटने के लिए ज्यों ही पीछे  हटी उसके कन्धों को दो फौलादी हाथों ने जकड लिया .अगले ही पल उसके मुंह को  दबोचते हुए वो फौलादी शख्स जूही को अपने कंधे पर उठाकर एक कमरे  की ओर बढ़  लिया .पीछे से आते शाहिद ने उस शख्स   के कमरे में घुसते ही खुद भी अन्दर  आकर कमरे की चटकनी बंद कर दी .जूही को लगभग ज़मीन पर पटकते हुए उस  शख्स ने  जोर से  ठहाका लगाया .जूही ने आँखे उठाकर देखा 'ये आफ़ताब था ' शाहिद का  जिगरी दोस्त .जूही ने उन दोनों से दूर खिसकते हुए खड़े होकर ज्यों ही किवाड़  की ओर कदम बढ़ाये शाहिद झुंझलाते  हुए बोला  -''जूही इस  दिन के इंतजार में  मैं कब से था ...अब नखरे   मत  दिखा  यार ...'  शाहिद की इस घटिया बात पर  जूही का खून उबल पड़ा और उसका  दिल धधक उठा .अगले ही पल उसने दुपट्टा एक ओर  फेंकते   हुए अपने कुरते का गला पकड़ कर जोर से खीच   डाला . कपडे की रगड़ से  उसकी सारी  गर्दन की खाल  छिल गयी और उस पर  खून छलक आया .दर्द के कारण   जूही  तड़प उठी .अर्धनग्न खुले वक्षस्थल के साथ खड़ी  जूही जोर से  चीखती हुई  बोली -''नोंच लो ....दोनों मिलकर नोंच लो ...मेरे इस पाक बदन को नापाक कर  दो !!...पर आगे से किसी लड़की के साथ ऐसा धोखा मत करना .अल्लाह !तुम्हे कभी  माफ़ नहीं करेगा ...अल्लाह !  करे तुम्हारे घर कभी कोंई बेटी-बहन पैदा न हो  ...'' जूही ये कहते कहते ज़मीन पर घुटने   टेककर सिर झुकाकर बैठ गयी .दो कदम  उसकी ओर बढे और उसके सिर पर दुपट्टा डालकर कमरे की चटकनी खोल बाहर की ओर  बढ़ गए .जूही ने दुपट्टे से अपना जिस्म ढकते हुए सिर उठाकर कमरे में चारो ओर  नज़र दौड़ाई .शाहिद दीवार की ओर मुंह करे खड़ा था .बाहर की ओर गए कदम आफ़ताब  के थे .जूही की ओर पीठ किये हुए ही शाहिद बोला -''जूही ...मैं गुनाहगार हूँ  ...मुझे माफ़ कर दो ...मैं तुमसे निकाह करना चाहता हूँ !'जूही कांपते हुए  स्वर में बोली -''नहीं ... शाहिद ..अब मैं तुमसे निकाह नहीं कर सकती क्योंकि  अब मैं तुम्हे वो इज्ज़त ... कभी नहीं दे सकती जो एक शरीक-ए-हयात कोअपने  शौहर  को देनी  चाहिए  .खुदाहाफिज़ !!'' ये कहकर जूही तेज़ क़दमों से वहां से  चल दी .
  शिखा कौशिक 'नूतन'

शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

श्याम स्मृति तरंग ..... डा श्याम गुप्त.....




                                 श्याम स्मृति तरंग .....

     १.पापा व कन्या भ्रूण हत्या ...
आया पर यह कहां से,  पापा नामक कीट,
नाना कर देता अगर उसकी मां को शहीद।
उसकी मां को शहीद,कहां फ़िर मामा होता ,
जग के रिश्ते, ताम-झाम भी कुछ ना होता।
चलती कैसे श्याम भला यह जग की माया,
सोचे मन में पापा,  स्वयं  कहां से आया |

 २ . कन्या-पुत्र न कोई  अंतर......                               

                       चौपाई....
जिसका जैसा भाग्य लिखा है, वही कर्म का लेख दिखाहै|
कन्या-पुत्र न कोई अंतर,  झाडू हो या कलम तदन्तर |

                 कवित्त छंद...
"तेरे करने से कुछ होता नहीं कार्य यहाँ,
आप शुभ कर्म न्याय रीति-नीति कीजिये |
होता जिस जातक का जैसा भाग्येश यथा,
होता वही, आप झाडू या कलम दीजिए |
पर होता माता-पिता का भी कुछ धर्म'श्याम,
आप भी  संतान हित, निज कर्म कीजिये |
कन्या और पुत्र में न कीजै कोई भेद-भाव,
दोनों को समान-भाव पाल-पोस  लीजिए ||

सोमवार, 10 दिसंबर 2012

लक्ष्य पर नजर रखे

एक कहानी आपने सुनी होगी ,मेंढको मे उॅचे पहाड पर चढने के लिए एक दौड प्रतियोगिता रखी गयी ,जिसमें सभी मेंढक दौंडने लगे,चारों और से निराषा व हताषा भरी आवाजे आने लगी कि इन नन्हें मेढको ंके लिए इतनी उॅची चढाई चढना मुष्किल है,असंभव है,ये चढ ही नहीे सकते है,इन्हें दौडना नहीं चाहिये आदि।ऐसी निराषा भरी आवाज से कई मेढक बहोष होकर गिरने लगे,कई मेढको ने बीच में ही दौड रोक दी।लेकिन एक मेढक अपनी धुन में दौडे जा रहा था और उसने पहाड पर चढने में सफलता प्राप्त कर ली। सबको आष्चर्य हुआ यह कैसे संभव हुआ ।जब मेढक से उसकी सफलता का रहस्य पूछा तो मालूम पडा कि वह तो बहरा है उसने तो  निराषा भरी आवाजे सुनी ही नहीं ।वह तो अपने लक्ष्य को ध्यान में रखकर आगे चढता गया,बढता गया और सफलता हासिल कर ली।इसलिये जीवन में हमेषा नकारात्मकता और हताष करने वाली बातों से दूर रहना चाहिये ,ये हमारे लक्ष्य में बाधा उत्पन्न करती है।इसलिए हमेषा अपने लक्ष्य पर ध्यान देते हुए अपना कार्य करते रहना चाहिये।कोई आलोचना करे तो उससे डरे नहीं ,न ही कोई प्रतिक्रिया करे ।प्रतिक्रिया दूसरो के लिये  छोड दे ।आलोचना करने वाला व्यक्ति आलोचना करते करते हुए स्ंवय अपने लक्ष्य को भूल जायेगा और उसका जीवन उदेष्यहीन हो जायेगा।आप अपने लक्ष्य पर दृषिट गढाये रखे ,आपको इसमे सफलता अवष्य मिलेगी।

 भुवनेष्वरी मालोत
 महादेव काॅलोनी
  बाॅसवाडा राज.      

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

''प्रेम ...जाल !!''-लघु कथा

 Teen girl posing with arms crossed, wearing white t-shirt, looking at camera. Isolated on white background. stock photography
''पापा ...वैभव  बहुत अच्छा है ...मैं उससे ही शादी करूंगी ....वरना !! ' अग्रवाल साहब नेहा के ये शब्द सुनकर एक घडी को तो सन्न रह गए .फिर  सामान्य  होते  हुए  बोले  -' ठीक है पर पहले मैं तुम्हारे साथ मिलकर उसकी परीक्षा लेना चाहता हूँ तभी होगा तुम्हारा विवाह वैभव से ...कहो मंज़ूर है ?'नेहा चहकते हुए बोली -''हाँ   मंज़ूर है मुझे ..वैभव से अच्छा जीवन साथी कोई हो ही नहीं सकता .वो हर परीक्षा में सफल होगा ....आप नहीं जानते पापा वैभव को !'  अगले दिन कॉलेज में नेहा जब वैभव से मिली तो उसका मुंह लटका हुआ था .वैभव मुस्कुराते हुए बोला -'क्या बात है स्वीट हार्ट ...इतना उदास क्यों हो ....तुम मुस्कुरा दो वरना मैं अपनी जान दे दूंगा .''  नेहा झुंझलाते हुए बोली -'वैभव मजाक छोडो ....पापा ने हमारे विवाह के लिए इंकार कर दिया है ...अब क्या होगा ? वैभव हवा में बात उडाता हुआ बोला -''होगा क्या ...हम घर से भाग जायेंगे और कोर्ट मैरिज कर वापस आ जायेंगें .'' नेहा उसे बीच में टोकते हुए बोली -''...पर इस सबके लिए तो पैसों की जरूरत होगी .क्या तुम मैनेज  कर लोगे ?'' ''......ओह बस यही दिक्कत है ...मैं तुम्हारे लिए  जान दे सकता हूँ पर इस वक्त मेरे पास पैसे नहीं ...हो सकता है घर से भागने के बाद हमें कही होटल में छिपकर रहना पड़े तुम ऐसा करो .तुम्हारे पास और तुम्हारे घर में जो कुछ भी चाँदी -सोना-नकदी तुम्हारे हाथ लगे तुम ले आना ...वैसे मैं भी कोशिश करूंगा   ...कल को तुम घर से कहकर आना कि तुम कॉलेज जा  रही हो और यहाँ से हम फर हो जायेंगे ...सपनों को सच करने के लिए !'' नेहा भोली बनते हुए बोली -''पर इससे तो मेरी व् मेरे परिवार कि बहुत बदनामी होगी '' वैभव लापरवाही के साथ बोला -''बदनामी .....वो तो होती रहती है ...तुम इसकी परवाह ..'' वैभव इससे आगे  कुछ कहता उससे पूर्व ही नेहा ने उसके गाल पर जोरदार तमाचा रसीद कर दिया .नेहा भड़कते हुयी बोली -''हर बात पर जान देने को तैयार बदतमीज़ तुझे ये तक परवाह नहीं जिससे तू प्यार करता है उसकी और उसके परिवार की  समाज में बदनामी  हो ....प्रेम का दावा करता है ....बदतमीज़ ये जान ले कि मैं वो अंधी प्रेमिका नहीं जो पिता की इज्ज़त की धज्जियाँ उड़ा कर ऐय्याशी   करती फिरूं .कौन से सपने सच हो जायेंगे ....जब मेरे भाग जाने पर मेरे पिता जहर खाकर प्राण दे देंगें !मैं अपने पिता की इज्ज़त नीलाम कर तेरे साथ भाग जाऊँगी तो समाज में और ससुराल में मेरी बड़ी इज्ज़त होगी ...वे अपने सिर माथे पर बैठायेंगें  ....और सपनों की दुनिया इस समाज से कहीं इतर होगी ...हमें रहना तो इसी समाज में हैं ...घर  से भागकर क्या आसमान में रहेंगें ?है कोई जवाब तेरे पास ?....पीछे से ताली की आवाज सुनकर वैभव ने मुड़कर देखा तो पहचान न पाया .नेहा दौड़कर  उनके पास  चली  गयी  और आंसू  पोछते  हुए बोली  -'पापा आप  ठीक  कह  रहे  थे  ये प्रेम  नहीं  केवल  जाल  है जिसमे फंसकर मुझ जैसी हजारों लडकिय अपना जीवन बर्बाद कर डालती हैं  !!''
                                 शिखा कौशिक 'नूतन '

शुक्रवार, 7 दिसंबर 2012

Guwahati molestation -11 accused get two years jail, four let off

with thanks from - go to MSN India

Guwahati molestation: 11 accused get two years jail, four let off-

 Guwahati molestation case: Court convicts 11 accused (© PTI)

 The verdict further mentioned that the period of imprisonment already undergone by the convicts during investigation and trial will be adjusted against their term 

                        Guwahati: A local court has convicted 11 of the total 16 accused of the infamous G.S. Road molestation case here and sentenced them to two years jail each. Four were acquitted due to lack of evidence while one accused was found to be a juvenile.

Pronouncing the verdict, Kamrup Chief Judicial Magistrate (CJM) S.P. Moitra sentenced each of the eleven convicts including prime accused Amarjyoti Kalita to two years rigorous imprisonment. A fine of Rs 3,000 was also slapped on each of them. The verdict further mentioned that the period of imprisonment already undergone by the convicts during investigation and trial will be adjusted against their term.
The convicted include Puspendra Das, Sikandar Basfor, Dhanraj Basfor, Nabajyoti Baruah, Nabajyoti Deka, Deepak Deb, Rubul Ali, Deba Das, Rupkanta Kalita and Ghanasyham Kumar Malik, while the court acquitted local television channel journalist Gaurav Jyoti Neog, Hafizuddin, Diganta Basumatary and Jitumoni Deka due to lack of evidence.
Police had arrested a total of 16 people for their involvement in the infamous case July 9 that rocked the entire country. However, one of the accused was found to be a minor and his case was being heard in the Juvenile Justice Court.
All the accused were currently on bail. Advcate Bhaskar Dev Konwar, who represented the 11 accused, said that they are not happy with the judgement and they would approach a higher court.
'We have submitted an application to the CJM as we are not satisfied with the judgement. Since we have the statutory right to appeal before the sessions court within 30 days, we have also approached the court to uphold the existing bail of the convicts during the appeal period,' Konwar said.
A group of men publicly molested and stripped a teenage girl outside a pub in Guwahati July 9 evening. The incident created a country-wide furore after the video clip of it was telecast and the visuals went viral on the internet. Kalita, the main accused, remained absconding since July 9 but finally surrendered to Varanasi police in Uttar Pradesh July 23.
The government had constituted a Special Investigation Team (SIT), headed by Superintendent of Police (Operations) Ranjan Bhuyan, to deal with the case. The SIT submitted a charge sheet Sep 4 listing the 16 as accused.

 

बुधवार, 5 दिसंबर 2012

प्यार शादी धोखा और भरोसा



डिंपल मिश्र ने बदल दिया भदोही मीडिया और फेसबुक का इतिहास
the great iron lady in india
 dimple mishra
वाराणसी के एक छोटे से गाँव में पैदा हुयी एक मासूम सी बच्ची बारह वर्ष की उम्र में मुंबई गयी, वह मुंबई के सायन उपनगर में अपने पिता माँ और दो भाइयो के साथ रहती थी, १९९२ में जब बाबरी ढांचा ढहाया गया तो मुंबई में दंगा भड़क उठा, एक मासूम बालिका को लोंगो ने हाथ में तलवार लेकर घेर लिया, उसकी आँखों के सामने कई लोंगो को मार दिया गया, उसका घर जला दिया गया, हालाँकि लोंगो ने उसे बच्ची जानकर छोड़ दिया, उसका परिवार भाग कर एक नयी बन रही बिल्डिंग में शरण ली, उस लड़की को परिवार वाले प्यार से सोनिया बुलाते थे, जिसका नाम है डिंपल मिश्र,
पिता ने ठाणे जिला के उल्हासनगर में घर बनाया, बड़ी हुयी तो कपडा मिल काम करने वाले उसके पिता बलवंत मिश्र रिटायर हो गए, एक विकलांग भाई गाँव में रहने लगा और दूसरा भाई पिता और बहन का साथ छोड़कर अलग घर बसा लिया, १९९८ में माँ भी बेसहारा छोड़कर चली गयी,
अपने पिता और अपना पेट पालने के लिए वह रिलायंस में काम करने लगी, उसका काम था बकाया बिलों की वसूली करना, एक दिन वह भूल से अपने निजी मोबाइल द्वारा एक बकायेदार ठाणे निवासी विपिन मिश्र को फ़ोन कर दिया, विपिन मूलतः भदोही जनपद के गोपीगंज थाना क्षेत्र के मूलापुर गाँव का रहने वाला है,
उसका no मिलने के बाद विपिन बार बार फ़ोन करने लगा, वह उसकी कंपनी के गेट पर खड़ा होकर इंतजार करता, पीछा करके उसके घर तक आता, विपिन ने डिंपल के पिता को भी भरोशे में लिया, डिंपल के पिता शादी के लिए परेशान थे, विपिन ने कहा की वह भी अकेला है, उसके पिता से उसकी नहीं बनती, दोनों शादी करके खुश रहेंगे, विपिन द्वारा बार बार दबाव दिए जाने से डिंपल के पिता ने एक दुर्गा मंदिर में दर्जनों लोंगो के सामने हिन्दू रीती रिवाज़ के साथ डिंपल और विपिन की शादी कर दी, दोनों पति पत्नी विपिन के घर पर रहने लगे,
जब इसकी भनक विपिन के पिता नागेन्द्र नाथ मिश्र को मिली तो वे मुंबई पहुंचे और डिंपल को घर से मारपीट कर भगा दिए, उस दौरान विपिन ने साथ दिया और दोनों आकर डिंपल के पिता के घर आकर रहने लगे, कुछ दिन तक दोनों प्रेम से साथ रहने लगे, विपिन अपने घर भी आने जाने लगा, इसी दौरा डिंपल के पेट में विपिन का बच्चा पलने लगा, विपिन का मोह भी डिंपल से भंग होना शुरू हो गया,
डिंपल के पिता अपनी बेटी के लिए विपिन के  पिता से भी गिडगिडाने लगे तब विपिन के पिता ने दस लाख रूपये दहेज़ की मांग रखी और कहा की बिना दहेज़ लिए स्वीकार नहीं करेंगे,
८ अप्रैल २०११ को सदमे के चलते डिंपल के पिता का निधन हो गया, २ मई को जब अस्पताल में डिंपल ने मासूम अंचल को जन्म दे रही तो उसे अस्पताल में भरती कराकर विपिन दादा के बीमारी का बहाना बनाया और ५ मई को इलाहबाद जनपद के हंडिया तहसील निवासी राकेश कुमार पाण्डेय की बेटी क्षमा पाण्डेय से भरी दहेज़ लेकर विवाह कर लिया, इसकी जानकारी काफी दिन बाद डिंपल को हुयी, वह विपिन से रोने गिडगिडाने लगी, पर उसका असर विपिन पर नहीं पड़ा, वे लोग डिंपल की दूसरी शादी करना चाहते थे, पर वह तैयार नहीं थी,
पति की बेवफाई का शिकार बनी डिंपल ने सोशल मीडिया का सहारा लिया, फेसबुक के जरिये वह भदोही के लोंगो को दोस्त बनाना शुरू किया, अपना दुखड़ा वह सबको सुनाने लगी,
उधर ११ सितम्बर को उलहास्नगर के थाने में मुकादम दर्ज कराया पर एक गरीब की सुनवाई पुलिस नहीं की, उल्टा उसे ही परेशान किया जाता रहा, पुलिस स्टेसन  में बुलाकर उसे अपमानित किया जाता और विपिन को कुर्सी पर बैठकर पुलिस चाय पिलाती, उसकी गरीबी का मजाक बनाया जाता, अपनी मासूम बेटी को लेकर वह दर दर की ठोकरे खाती रही,
सब जगह से निराश होकर उसने भदोही में रहने वाले अपने फेसबुक के दोस्तों से कहा की यदि मैं आपकी बेटी या बहन होती तो भी आप ऐसा ही करते, मेरी कोई नहीं सुनेगा तो मैं अपनी बेटी के साथ आत्महत्या कर लूंगी,
भदोही के लोंगो का इमान उसने जगाया और लोग उसकी मदद में खड़े हुए, उसे भरोषा दिलाया,
फेसबुक के जरिये अपनी जंग की शुरुआत करने वाली एक अबला रणचंडी बन गयी, जन हथेली पर लेकर अपने बेटी के साथ वह आ पहुंची भदोही,
३० नवम्बर को वह बारात लेकर मूलापुर गाँव पहुँचने का एलान कर दिया, मोहल्ले के लोंगो से क़र्ज़ लेकर वह हवाई जहाज़ के आई थी और सीधे पति के घर पहुंची. मुंबई से चलकर अकेली आने वाली औरत को हजारो लोंगो का साथ मिला, बैंड बाजे के साथ वह धमक पड़ी पति की चौखट पर, उसकी हिम्मत थी की वह रणचंडी बन चुकी थी क्योंकि वह अपने बेटी को नाजायज़ नहीं कहलाना चाहती थी, एक फूल अंगारा बन चूका था,
ससुराल वाले घर छोड़कर भाग चुके थे, उसकी जिन्दगी बर्बाद करने में मुख्य भूमिका निभाने वाले विपिन के चाचा नागेन्द्रनाथ ने विपिन और उसके पिता को ही अपना दुश्मन बता दिया, कल तक उसके साथ कोई नहीं था, पर वह वाराणसी पहुंची तो दो दर्ज़न से अधिक मीडिया वालो ने उसे घेर लिया, समाजसेवी संगठनो और फेसबुक साथियों ने उसका इस्तकबाल किया,
भदोही के इतिहास में आजतक किसी ने भी मीडिया में उतनी जगह नहीं पाई थी जितनी  जगह उसे मिली, फ्रंट पेज से लेकर स्थानीय पेज का पूरा पन्ना उसके नाम से रंगा जाने लगा. मुंबई से अकेली चली एक निरीह महिला सेलिब्रेटी बन चुकी थी, मुहर्रम पर हुए बवाल की खबरे गायब हो गयी और हर जगह डिंपल डिंपल और सिर्फ डिंपल.
जगह जगह उसके स्वागत होने लगे, वह जहा भी जाती लोग गाजे बाजे से उसका स्वागत करते, उसे माला पहनाया जाता और फूल बरसाए जाते, जो पुलिस महाराष्ट में उसका अपमान करती वही पुलिस यहाँ सुरक्षा में तैनात है, जान से मारने की धमकिया मिलती रही और उसके इरादे मजबूत होते रहे, उसने ठान लिया है वह अपना हक़ लेकर रहेगी, अपनी बेटी को उसका हक़ दिलाकर रहेगी,
जिस फेसबुक को बन्द करने की मांग संसद में उठी उसी फेसबुक को उसने अपने हक़ की लड़ाई का जरिया बना दिया, शायद ही फेसबुक के इतिहास में ऐसी कोई घटना हुयी होगी जिसने फेसबुक के मायने बदल दिए, भदोही की मीडिया को उसने सकारात्मक सोच में परिवर्तित किया, ग्राम प्रधानो की महापंचायत ने उसके पक्ष में फैसला सुनकर अपनी जिम्मेदारियों का एहसास किया, जनपद की सभी ४८१ ग्राम पंचायतो ने उसका समर्थन किया, जनपद की सबसे बड़ी पंचायत जिला पंचायत अध्यक्षा श्यामला सरोज ने भी समर्थन दिया, डिस्टिक बार असोसिएसन ने समर्थन दिया, सामाजिक संगठनो ने समर्थन दिया, हालाँकि राजनितिक दल चुप्पी साधे पड़े है.
डिंपल ने यह दिखा दिया की नारी कभी अबला नहीं होती, वह दुर्गा भी है और झाँसी की रानी भी, बस वह अपने साथ हुए अन्याय के खिलाफ जंग छेड़ दे.
सामाजिक जंग जीत चुकी डिंपल अब कानूनी लड़ाई लड़ेगी और अपना हक़ लेकर रहेगी, उसने महिलाओ के आत्मसम्मान को जगाया है.
धन्य हो तुम क्योंकि तुम भारत की नारी हो, डिंपल मिश्र तुम्हे बार बार सलाम, तुम देश  के उन लाखो नारियो की प्रेरणा स्रोत हो जो अन्याय और उत्पीडन का शिकार होकर घर में घुटने को मजबूर है. भदोही की मीडिया और जनता तुम्हारा नमन करती है.
{ डिंपल मिश्र से हुयी बातचीत और जनचर्चाओ तथा मीडिया में आई खबरों पर प्रकाशित}

डिम्पल तुम्हारे साथ पूरा हिंदुस्तान है !

डिम्पल तुम्हारे साथ पूरा हिंदुस्तान है !

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मेरी बातें 

 सुश्री डिम्पल मिश्रा



भारतीय नारी परिवार तुम्हारे  संघर्ष को सलाम करता है और एक बात संतान कभी अवैध नहीं होती .धिक्कार है ऐसे पुरुष पर जो अपनी संतान को अपने स्वार्थ की बलिवेदी पर चढ़ा   देता है .समाज की सोच बदल रही है .छली पुरुष का साथ कोई समाज नहीं देगा .
शिखा कौशिक 'नूतन '


 इस पोस्ट को पढ़े और जाने आज की भारतीय नारी को जो घुटने नहीं टेकती .जो लडती है उस छल के विरुद्ध जिसकी आग में उसकी संतान का भविष्य जलाया जा रहा है और विस्मित करने वाली बात ये है की संतान उस दूसरे व्यक्ति की भी है  पर ...वो केवल अपने स्वार्थ में अँधा है-


मेरी बातें


डिंपल यादव जी आपके प्रदेश में नारी का सम्मान है - डिंपल मिश्रा

 जब मैं मुंबई में थी तो सुना करती थी की उत्तरप्रदेश में अपराध का बोलबाला है, भावनाओ की कोई कीमत नहीं है, मैं भदोही आने से डर  रही थी। सोचती थी मैं अपनी बेटी के हक़ के लिए जा रही हूँ, पता नहीं मेरे साथ क्या होगा। पर मन में एक सोच यह भी थी यदि अपने मान सम्मान के लिए और नारी जाती के अधिकारों के लिए हिम्मत जूटा  रही हूँ तो लोगो का साथ अवश्य मिलेगा। मेरे फेसबुक  के साथियों ने मेरा हौसला भी बढाया था, पर सच बात तो यह थी की मन में हिचकिचाहट भी थी। फिर सोचा जब कदम बढ़ा  दिया है तो पीछे क्या हटाना, यदि अपने अधिकारों के लिए लड़ना है तो हिम्मत जुटानी ही पड़ेगी। फेसबुक के साथियों ने हौसला दिया। जब मैंने वाराणसी की धरती पर कदम रखा  तो उत्तरप्रदेश के बारे में मेरी सोच बदलनी  शुरू हो गयी। एक साधारण सी घरेलू महिला जब पहुंची तो उसका भरपूर स्वागत किया गया। मुझे पता था यह सम्मान मेरे लिए नहीं था। बल्कि मेरे मुद्दे के प्रति था। यदि अपने सम्मान की रक्षा में मेरे प्राण भी जाते है तो मुझे परवाह नहीं। भदोही के लोंगो ने मुझे अपनी बेटी और बहन के जैसा सम्मान दिया।
लोग कहते थे की उत्तरप्रदेश में कोई सुरक्षित नहीं है। पर लोंगो ने सब गलत कहा था। एक अकेली महिला जब अपनी बच्ची को लेकर यहाँ पहुँचने के बाद सुरक्षित है और बिना भय के है तो लोग सुरक्षित क्यों नहीं है।

मैं आपके भदोही जनपद की  कानून व्यवस्था को भी धन्यवाद देना चाहूंगी। मैंने यहाँ के जिलाधिकारी जी को सिर्फ फेसबूक के जरिये  एक सन्देश भेजा था। पर उन्होंने मेरी बात को गंभीरता से लिया। जब मैं गाँव में पहुंची तो वहा  मेरी सुरक्षा का पूरा इंतजाम था।
सबसे बड़ी बात तो यह है की भदोही के लोंगो में भारतीय संस्कृति और सम्मान का भाव है। यहाँ के लोग अन्याय के खिलाफ बोलना जानते है। मैं लोंगो के लिए परायी थी किन्तु उनकी  अपनी बन गयी। सच कहू तो मुझे आपके प्रदेश में पहुंचते ही इंसाफ मिल गया। मैं सोचती थी की जब मेरी बेटी बड़ी होगी तो लोग उसे नाजायज़ कहेंगे। पर अब  नहीं क्योंकि गाव के लोंगो ने मुझे बहू माना। पूरे जिले ने मुझे बहू माना। फिर मेरी बेटी नाजायज कैसे। 

शायद भदोही के लोंगो में जिस तरह महिलाओ के लिए सम्मान है और लोग अन्याय के खिलाफ बोलना जानते है यदि इसी तरह देश के सभी लोग हो जाय  तो किसी भी महिला साथ अन्याय नहीं होगा। किसी की भी बहन बेटी इस तरह सडको पर भटकने को मजबूर नहीं होगी।  जिस तरह भदोही की पंचायते अपने अधिकारों के प्रति जागरूक है यदि देश की सभी पंचायते जागरूक हो जाय  तो किसी के साथ अन्याय नहीं होगा। 

डिम्पल जी यह लड़ाई सिर्फ मेरी नहीं बल्कि उन सभी महिलाओ की है जो अन्याय का शिकार हुयी है और न्याय पाने के लिए दर दर भटक रही है।

मैं धन्यवाद भदोही की मीडिया को भी देना चाहूंगी। एक छोटे से शहर में रहकर भी किसी बेसहारा महिला की आवाज़ पूरे देश में पहुचने का माद्दा यहाँ की मीडिया रखती है।

डिंपल जी मैं आप से मिल तो सकती नहीं पर आप अपने पति उत्तर  प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश जी को मेरी तरफ से जरूर धन्यवाद दीजियेगा की उनके प्रदेश में नारी का सम्मान है। यहाँ की पंचायते अभी भी भारतीय संस्कृतियों का सम्मान करती है।

                                                                                        आपकी ----- डिंपल मिश्रा ''

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सोमवार, 3 दिसंबर 2012

दहेज़ :इकलौती पुत्री की आग की सेज

दहेज़ :इकलौती पुत्री की आग की सेज


  
 एक ऐसा जीवन जिसमे निरंतर कंटीले पथ पर चलना और वो भी नंगे पैर सोचिये कितना कठिन होगा पर बेटी ऐसे ही जीवन के साथ इस धरती पर आती है .बहुत कम ही माँ-बाप के मुख ऐसे होते होंगे जो ''बेटी पैदा हुई है ,या लक्ष्मी घर आई है ''सुनकर खिल उठते हों .
                 'पैदा हुई है बेटी खबर माँ-बाप ने सुनी ,
                उम्मीदों का बवंडर उसी पल में थम गया .''

बचपन से लेकर बड़े हों तक बेटी को अपना घर शायद ही कभी अपना लगता हो क्योंकि बात बात में उसे ''पराया धन ''व् ''दूसरे  घर जाएगी तो क्या ऐसे लच्छन [लक्षण ]लेकर जाएगी ''जैसी उक्तियों से संबोधित कर उसके उत्साह को ठंडा कर दिया जाता है .ऐसा नहीं है कि उसे माँ-बाप के घर में खुशियाँ नहीं मिलती ,मिलती हैं ,बहुत मिलती हैं किन्तु ''पराया धन '' या ''माँ-बाप पर बौझ '' ऐसे कटाक्ष हैं जो उसके कोमल मन को तार तार कर देते  हैं .ऐसे में जिंदगी गुज़ारते गुज़ारते जब एक बेटी और विशेष रूप से इकलौती बेटी का ससुराल में पदार्पण होता है तब उसके जीवन में और अधिकांशतया  इकलौती पुत्री के जीवन में उस दौर की शुरुआत होती है जिसे हम अग्नि-परीक्षा कह सकते हैं .
               एक तो पहले ही बेटे के परिवार वाले बेटे पर जन्म से लेकर उसके विवाह तक पर किया गया खर्च बेटी वाले से वसूलना चाहते हैं उस पर यदि बेटी इकलौती हो तब तो उनकी यही सोच हो जाती है कि वे अपना पेट तक काटकर उन्हें दे दें .इकलौती बेटी को बहू बनाने  वाले एक परिवार के  सामने जब बेटी के पिता के पास किसी ज़मीन के ६ लाख रूपए आये तो उनके लालची मन को पहले तो ये हुआ कि ये  अपनी बेटी को स्वयं देगा और जब उन्होंने कुछ समय देखा कि बेटी को उसमे से कुछ नहीं दिया तो कुछ समय में ही उन्होंने अपनी बहू को परेशान करना शुरू कर दिया.हद तो यह कि बहू के लिए अपने बेटे से कहा ''कि इसे एक बच्चा गोद में व् एक पेट में डालकर इसके बाप के घर भेज दे .''उनके मन कि यदि कहूं तो यही थी कि बेटी का होना इतना बड़ा अपराध था जो उसके मायके वालों ने किया था कि अब बेटी की शादी के बाद वे पिता ,माँ व् भाई बस बेटी के ससुराल की ख़ुशी ही देख सकते थे और वह भी अपना सर्वस्व अर्पण करके.
     एक मामले में सात सात भाइयों की अकेली बहन को दहेज़ की मांग के कारण बेटे के पास न भेजकर सास ने  अपनी ही सेवा में रखा जबकि सास कि ऐसी कोई स्थिति  नहीं थी कि उसे सेवा करवाने की आवश्यकता हो.ऐसा नहीं कि इकलौती बेटी के साथ अन्याय केवल इसी हद तक सीमित रहता हो बेटे वालों की भूख बार बार शांत करने के बावजूद बेटी के विवाह में १२ लाख रूपए जेवर और विवाह के बाद बेटी की ख़ुशी के लिए फ्लैट देने के बावजूद इकलौती बेटी को सोने का अंडा देने वाली मुर्गी समझा जाता है और उच्च शिक्षित होते हुए भी उसके माँ-बाप ससुराल वालों के आगे लाचार से फिरते हैं और उन्हें बेटी के साथ दरिंदगी का पूरा अवसर देते हैं और ये दरिंदगी इतनी हद तक भी बढ़ जाती है कि या तो उसे मौत के घाट उतार दिया जाता है या वह स्वयं ही मौत को गले लगा लेती है क्योंकि एक गुनाह तो उसके माँ-बाप का है कि उन्होंने बेटी पैदा कि और दूसरा गुनाह जो कि सबसे बड़ा है कि वह ही वह बेटी है.
                 इस तरह माँ-बाप के घर नाजुक कली से फूल बनकर पली-बढ़ी इकलौती बेटी जिसे इकलौती होने के कारण अतुलनीय स्नेह प्राप्त होता है ससुराल में आकर घोर यातना को सहना पड़ता है .हमारा दहेज़ कानून दहेज़ के लेन-देन को अपराध घोषित करता है किन्तु न तो वह दहेज़ का लेना रोक सकता है न ही देना क्योंकि हमारी सामाजिक परम्पराएँ हमारे कानूनों पर आज भी हावी हैं .स्वयं की बेटी को दहेज़ की बलिवेदी पर चढाने वाले माँ-बाप भी अपने बेटे के विवाह में दहेज़ के लिए झोले लटकाए घूमते हैं .जिस तरह दहेज़ के भूखे भेड़िये निंदा के पात्र हैं उसी तरह सामाजिक बहिष्कार के भागी हैं दहेज़ के दानी जो इनके मुहं पर दहेज़ का खून लगाते हैं और अपनी बेटी के लिए आग की सेज सजाते हैं .
                शालिनी कौशिक
                    [कौशल]

                   
     

रविवार, 2 दिसंबर 2012

'भारतीय नारी ' ब्लॉग प्रतियोगिता -1

'भारतीय नारी ' ब्लॉग प्रतियोगिता -1


प्रश्न १-आंठ्वी शताब्दी के अंत और नवी शताब्दी के शुरू  में अलवारों में एकमात्र महिला  का नाम बताएं .


प्रश्न २-भगवान महावीर से दीक्षा लेने वाली प्रथम भिक्षुणी का नाम बताएं .


प्रश्न-३  ऋग्वेद के दसवे मंडल के १०९वे सूक्त की दो रचयित्री हैं .इनका नाम बताएं .


 प्रश्न ४-आसफ खान द्वारा गोंडवाना विजय के समय रानी दुर्गावती की छोटी बहन मुगलों के हाथ  लग गयी थी और इन्हें दरबार में भेज दिया गया था .इनका नाम बताएं .

 प्रश्न ५-अजीजन नाम की नर्तकी जिसने १८५७ की क्रांति में अपनी महिला  सेना  के सहयोग से क्रांतिकारियों को दूध फल ,रसद व् हथियार पहुंचकर उनका हौसला बढाया .अजीजन की इस महिला सेना का नाम क्या था ?

 प्रश्न६- २० दिसंबर १९३१ को 'क्रिमिनल-ल़ा-एमेंडमेंट-एक्ट 'के अंतर्गत गिरफ्तार की गयी महान क्रन्तिकारी व् विदुषी   महिला का नाम बताएं .

 प्रश्न ७-डलहौजी-स्क्वायर-बम कांड में गिरफ्तार हुई क्रांतिकारी महिला का नाम बताएं .

 प्रश्न ८- प्रथम आदित्य  बिरला कला शिखर पुरस्कार  प्राप्त करने वाली महिला का नाम बताएं .

 प्रश्न ९-  ३० मार्च १९०८ को दक्षिण भारत के वाल्टेयर नगर में जन्मी भारतीय फिल्मों की  अभिनेत्री का नाम बताएं .

 प्रश्न 10 -भारत की प्रथम महिला म्रदंगमवादक  का नाम बताएं .



                                                          नियम व् शर्ते
*उत्तर केवल इस इ मेल पर प्रेषित करें [shikhakaushik666@hotmail.com].अन्यत्र प्रेषित उत्तर प्रतियोगिता का हिस्सा न बन सकेंगें .उत्तर के साथ अपना पूरा पता सही सही भेंजे .
* प्रतियोगिता आयोजक का निर्णय ही अंतिम माना जायेगा .इसे किसी भी रूप में चुनौती नहीं दी जा सकेगी .
*सर्वप्रथम-सर्वशुद्ध हल प्रेषित करने वाले प्रतिभागी को ही विजेता घोषित किया जायेगा .
*प्रतियोगिता किसी भी समय ,बिना कोई कारण बताये  रद्द की जा सकती है .
* विजेता को '' खामोश  ख़ामोशी और हम ''काव्य संग्रह की एक प्रति पुरस्कार  स्वरुप प्रदान की जाएगी .
*उत्तर भेजने की अंतिम तिथि १५ जनवरी २०१३ है .
*प्रतियोगिता परिणाम के विषय में अंतिम तिथि के बाद इसी ब्लॉग पर सूचित कर दिया जायेगा .

                                                         शिखा कौशिक [व्यवस्थापक -भारतीय नारी ]

गुरुवार, 29 नवंबर 2012

विवाहेतर सम्बन्ध (लेख)



रंजनाजी का अपने पति से तलाक हो गया सुन कर धक्का सा लगा.करीब ४५ वर्षीय रंजनाजी भद्र महिला थीं पति बच्चे सब सुशिक्षित भला सा हँसता खेलता परिवार फिर अचानक ये क्या हुआ?सवाल मन को कचोटता रहा कि पता चला रंजनाजी ने दूसरी शादी कर ली ओर वह दूसरा आदमी किसी भी मायने में उनके पति से उन्नीस ही है लगभग ३ साल से उनका उससे अफेयर चल रहा था.सुनकर हैरानी हुई .अधिक जानकारी जुटाने पर पता चला कि रंजना जी कि मुलाकात उस व्यक्ति से फेस बुक पर हुई थी,ओर उन्ही के बेटे ने उन्हें बोरियत से बचाने के लिए उनका फेस बुक पर अकाउंट बनाया था प्रारंभिक जानपहचान के बाद उनकी घनिष्टता बढ़ती गयी ओर ओपचारिक बातों से बहुत आगे बढ़ कर प्यार मुहब्बत में बदल गयी वह व्यक्ति भी उसी शहर का था ओर जल्द ही कभी कभी होने वाली मुलाकातें एक दूसरे के बिना नहीं रह सकने में तब्दील हो गयी. वह व्यक्ति भी शादीशुदा है ओर इस शादी के लिए उसने भी अपनी पत्नी को बड़ी रकम दे कर उससे छुटकारा पा लिया .
कुछ सालों पहले ऐसे वाकये अख़बार में पढ़े जाते थे ओर वे सभी विदेशों के होते थे.तब अपने यहाँ कि परिवार संस्कृति पर बड़ा मान होता था जिसकी वजह से हमारे यहाँ ऐसे वाकये नहीं के बराबर होते हैं. लेकिन आज ये आम हैं हमारा सामाजिक पारिवारिक परिवेश तेज़ी से बदल रहा है इन परिवर्तनों के साथ आ रहे हैं मूल्यों में बदलाव पारिवारिक व्यवस्था में बदलाव.

आज संयुक्त परिवार तेज़ी से ख़त्म होते जा रहे हैं सामाजिक व्यवस्था नौकरी पर टिकी है जिसके लिए बच्चों को घर से बाहर जाना ही होता है यदि नहीं भी तो भी युवा पीढ़ी बड़े बुजुर्गों के साथ उनकी देख रेख ,टोकाटाकी में रहना पसंद नहीं करती.ये उन्हें अपनी स्वतंत्रता में खलल लगते हैं.ऐसा नहीं है कि इससे परिवार का स्नेह कम ही होता हो लेकिन एक समय के बाद जब बच्चे बड़े हो जाते हैं अपनी पढाई लिखाई में व्यस्त, ऐसे समय में महिलाओं का घर में अकेले समय कटना मुश्किल होता है .पति के पास काम कि व्यस्तता बच्चों कि अपनी अलग दुनिया ऐसे में महिलाओं का सहारा बनती हैं किटी पार्टी क्लब या फेस बुक पर होने वाली दोस्ती. 
आइये देखें कुछ उन कारणों को जिनके चलते महिलाएं अकेलेपन कि शिकार हो कर ऐसे कदम उठाने को विवश हो रही हैं. 

*संयुक्त परिवार ख़त्म हो रहे हैं एकल परिवार के बढ़ते चलन से पति बच्चों के चले जाने के बाद महिलाएं घर में अकेली होती हैं ओर उनका समय काटे नहीं कटता .

*अति व्यस्तता के इस दौर में रिश्ते नातेदारों से भी एक दूरी बन गयी है अतः उनके यहाँ आना जाना मिलना जुलना कम हुआ है साथ ही सहनशीलता में कमी आयी है इसलिए रिश्तेदारों का कुछ कहना या सलाह देना अपनी जिंदगी में एक दखल सा लगता है जिससे उनसे दूरियां बढा लीं जाती हैं.

* विश्वास कि कमी के चलते सामाजिक दायरा बहुत सिमट गया है अब आस पड़ोस  पहले जैसे नहीं रह गए जब किस के घर कौन आ रहा है कि खबर रखी जाती थी या दिन में महिलाएं एक साथ बैठ कर बतियाते हुए घर के काम निबटा लेतीं थीं. इसका एक बड़ा कारण दिनचर्या में बदलाव भी है सबके घरेलू कामों का समय उनके बच्चों के अलग स्कूल टाइम ट्यूशन कि वजह से अलग अलग हो गया है. 

*पति कि अति व्यस्तता इसका एक बड़ा कारण है.अब पहले जैसी १० से ५ वाली नौकरियां नहीं रहीं .अब दिन सुबह ५ बजे से शुरू होता है जो सबके जाने तक भागता ही रहता है. इससे पति पत्नी को इतमिनान से बैठ कर कुछ समय अपने लिए बिताने का मौका ही नहीं मिलता .कम समय में जरूरी बातें ही हो पाती हैं .ऐसे में अकेलेपन कि शिकार महिलाओं के पास पति कि नजदीकी महसूस करने के लिए कोई बात ही नहीं रह जातीं .

*ऐसे ही पुरुषों कि व्यस्तता भी बहुत बढ़ गयी है .सुबह का समय भागदौड में ओर रात घर पहुँचते पहुँचते इतनी देर हो जाती है कि कहने सुनने के लिए समय ही नहीं बचता .इसलिए आजकल पुरुष भी अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं ओर ऑफिस में या फेस बुक पर उनकी भी दोस्ती महिलाओं से बढ़ रही है जिसके साथ वो अपने मन कि सारी बातें शेयर कर सकें.

*यदि अकेले रहने कि वजह परिवार से मनमुटाव है तो ऐसे में पति का उदासीन रवैया भी पत्नी को आहत करने वाला होता है .उसे लगता है कि उसका पति उसे समझ नहीं पा रहा है या उसकी भावनाओं कि उसे कोई क़द्र नहीं है .ऐसे में पति पत्नी के बीच एक भावनात्मक अलगाव पैदा हो रहा है. 

*टी वी सीरियल में आधुनिक महिलाओं के रूप में जो चारित्रिक हनन दिखाया जा रहा है उसका असर महिलाओं के सोचने समझने पर पड़ा है.अब किसी पराये व्यक्ति से बातचीत करना दोस्ती रखना कभी बाहर चले जाना जैसी बातें बहुत बुरी बातों में शुमार नहीं होतीं,बल्कि आज महिलाएं अकेले घर का मोर्चा संभल रही हैं ऐसे में  बाहरी लोग आसानी से उनके संपर्क में आते हैं. 
* पति परमेश्वर वाली पुरातन सोच बदल गयी है .
*इंटरनेट के द्वारा घर बैठे दुनिया भर के लोगों से संपर्क बनाया जा रहा है ऐसे में अकेलेपन हताशा निराशा को बाँट लेने का दावा करने वाले दोस्त महिलाओं कि भावनात्मक जरूरत में उनके साथी बन कर आसानी से उनके फ़ोन नंबर घर का पता हासिल कर उन तक पहुँच बना रहे हैं. 
* नौकरीपेशा महिलाएं भी घर बाहर कि जिम्मेदारियां निभाते हुए इतनी अकेली पड़ जातीं है कि ऐसे में किसी का स्नेह स्पर्श या भावनात्मक संबल उन्हें  किसी की ओर आकर्षित कर करने के लिए काफी होता है.

लेकिन ऐसे विवाहेतर सम्बन्ध क्या सच में महिलाओं या पुरुषों को वो भावनात्मक सुकून प्रदान कर पाते हैं? 
होता तो ये है की जब ऐसे सम्बन्ध बनते हैं दिमाग पर दोहरा दवाब पड़ता है. एक ओर जहाँ उस व्यक्ति के बिना रहा नहीं जाता ओर दूसरी ओर उस सम्बन्ध को सबसे छुपा कर रखने की जद्दोजहद रहती है.ऐसे में यदि कोई टोक दे की आजकल बहुत खुश रहती हो या बहुत उदास रहती हो तो एक दबाब बनता है. 
जब  सम्बन्ध नए नए बनते हैं तब तो सब कुछ भला भला सा लगता है लेकिन समय के साथ इसमें भी रूठना मनाना, बुरा लगना, दुःख होना जैसी बातें शामिल होती जातीं हैं लेकिन बाद में स्थिति ये हो जाती है की ना इससे छुटकारा पाना आसान होता है ना इन्हें बनाये रखना क्योंकि तब तक  इतनी अन्तरंग बातें सामने वाले को बताई जा चुकी होती हैं की इस सम्बन्ध को झटके से तोड़ना भी कठिन हो जाता है. 
हर विवाहेतर सम्बन्ध की इतिश्री तलाक या दूसरे विवाह में नहीं होती .लेकिन इतना तो तय है की ऐसे सम्बन्ध जब भी परिवार को पता चलते हैं विश्वास बुरी तरह छलनी होता है .फिर चाहे वह पति का पत्नी पर हो या पत्नी का पति पर या बच्चों का माता पिता पर. 
बच्चों पर इसका सबसे बुरा असर पड़ता है एक ओर जहाँ उनका अपने माता पिता के लिए सम्मान कम होता है वहीँ परिवार के टूटने की आशंका उनके में एक असुरक्षा की भावना भर देती है जिसका असर उनकी आने वाली जिंदगी पर भी पड़ता है ओर वे आसानी से  किसी पर विश्वास नहीं कर पाते.
 यदि परिवार ओर रिश्तेदार इसे एक भूल समझ कर माफ़ भी कर दें तो भी आगे की जिंदगी में एक शर्मिंदगी का एहसास बना रहता है जो सामान्य जिंदगी बिताने में बाधा बनता है 
यदि इन संबंधों में कहीं आगे बढ़ कर अंतरंगता में बदल दिया जाये तो ब्लेकमेल होने का डर सताता रहता है. 

विवाहेतर सम्बन्ध आकर्षित करते हैं लेकिन अंत में हाथ लगती है हताशा निराशा ओर टूटन .इनसे बचने के लिए जरूरी है की अकेलेपन से बचा जाये.खुद को किसी रचनात्मक कार्यों में लगाया जाये. अपने आसपास पड़ोसियों से मधुर सम्बन्ध बनाये जाएँ .रिश्तेदारों से बोलचाल व्यवहार के सम्बन्ध कायम किये जाएँ .अपने पार्टनर से अपनी परेशानियों के बारे में खुल कर बात की जाये ओर अपने पुराने विग्रह दूर रख कर उनकी बातें सुनी ओर समझीं जाएँ. हमारी सामाजिक पारिवारिक व्यवस्था बहुत मजबूत ओर सुरक्षित है इसे अपने बच्चों के लिए इसी रूप में संवारना हमारा कर्त्तव्य है अतः क्षणिक आवेश में आकर इसे तहस नहस ना करें. 
कविता वर्मा 

हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

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                          शिखा कौशिक 'नूतन '
                                    




बुधवार, 28 नवंबर 2012

क्योंकि औरत कट्टर नहीं होती !-एक लघु कथा

क्योंकि औरत कट्टर नहीं होती !-एक लघु कथा



'...जिज्जी बाहर निकाल उस मुसलमानी को .!!!'  रमा के घर के बाहर खड़ी भीड़ में से आवाज़ आई .आवाज़ में ऐसा वहशीपन था कि दिल दहल जाये .रमा  ने साडी का पल्ला सिर पर ढका और घर के किवाड़ खोलकर दरवाजे के बीचोबीच खड़ी हो गयी .नज़ारा बहुत खौफनाक था .भीड़ में बबलू का सिर फटा  हुआ था और राजू की कमीज़ फटी हुई थी .खून से सने कपड़ों में खड़ा सोनू ही चीख चीख कर रमा से कह रहा था ''....हरामजादों ने मेरी बहन की अस्मत रौंद डाली ...मैं भी नहीं छोडूंगा इसको ....!!!''रमा  का  चेहरा सख्त हो गया .वो फौलाद से कड़क स्वर में बोली - ''मैं उस लड़की को तुम्हारे  हवाले नहीं करूंगी !!! उसकी अस्मत से खेलकर तुम्हारी बहन की इज्ज़त वापस नहीं आ जाएगी .किसी और की अस्मत लूटकर तुम्हारी बहन की अस्मत वापस मिल सकती है तो ...आओ ..लो मैं खड़ी हूँ ...बढ़ो और .....'' ''जिज्जी !!!!!'' सोनू चीख पड़ा और आकर रमा के पैरों में गिर पड़ा .सारी भीड़ तितर-बितर हो गयी .सोनू को कुछ लोग उठाकर अस्पताल ले गए .रमा पलट कर घर में ज्यों ही घुसी घर में किवाड़ की ओट में छिपी फाटे कपड़ों से बदन छिपती युवती उसके पैरों में गिर पड़ी .फफक फफक कर रोती हुई वो बोली -'' आप न होती तो मेरे जिस्म को ये सारी भीड़ नोंच डालती .मैं कहीं का न रहती !'.रमा ने प्यार से उसे उठाते हुए अपनी छाती से लगा लिया .और कोमल बोली में धैर्य   बंधाते हुए बोली -लाडो डर मत !! धार्मिक उन्मादों में कितनी ही  बहन बेटियों की अस्मत मुझ जैसी औरतों ने बचाई है क्योंकि औरत कट्टर नहीं होती !!

शिखा कौशिक 'नूतन'

मंगलवार, 27 नवंबर 2012

प्रेरणा

[ I HAVE SHARED THIS FROM Neelima Sharma JI'S FACEBOOK PHOTOS .]


दूसरों की जिंदगी रोशन करना कोई इनसे सीखें।

सोलन के गुप्ता परिवार के तीन सदस्य मरणोपरांत अपनी आंखें दान करके जरूरतमंदों की जिंदगी में उजाला कर चुके हैं। यहीं नहीं परिवार के दस अन्य सदस्य जिसमें बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक हैं, अपनी आंखें दान करने का संकल्प ले चुके हैं और और आंखें दान करने संबंधी कागजी औपचारिकताएं निभा रहे हैं। आज यह परिवार हिमाचल ही नहीं देश के लिए एक मिसाल बन गया है।

मानवता की सेव
ा का संकल्प लेने वाले गुप्ता परिवार से ताल्लुक रखने वाले सुरेन्द्र गुप्ता के अनुसार परिवार में यह पहल उनके पिता की देन है। सबसे पहले उनकी माता श्यामा गुप्ता की आंखें दान की गईं और उसके बाद चाचा प्रह्लाद भगत गुप्ता और पिछले हफ्ते उनकी चाची बंती देवी गुप्ता की आंखें उनकी इच्छानुसार दान की गई हैं।

सुरेन्द्र गुप्ता के अनुसार आंखें दान करने के इस संकल्प में उनके पिता के साथ-साथ उनके भाई, पत्नी, बच्चे और वह स्वयं भी शामिल हैं। वहीं उनके नाते रिश्तेदार भी परिवार से प्रेरणा लेकर आंखें दान करने के लिए अपनी इच्छा व्यक्त कर चुके हैं। उन्होंने इस प्रेरणा का श्रेय स्वयंसेवी संस्था आशादीप को देते हुए कहा कि संस्था से संपर्क में आने के बाद पहले जहां रक्तदान से शुरूआत की, वहीं आंखें दान करने की प्रेरणा भी वहीं से मिली।.copied
 
                                         SHIKHA KAUSHIK