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सोमवार, 10 दिसंबर 2012

लक्ष्य पर नजर रखे

एक कहानी आपने सुनी होगी ,मेंढको मे उॅचे पहाड पर चढने के लिए एक दौड प्रतियोगिता रखी गयी ,जिसमें सभी मेंढक दौंडने लगे,चारों और से निराषा व हताषा भरी आवाजे आने लगी कि इन नन्हें मेढको ंके लिए इतनी उॅची चढाई चढना मुष्किल है,असंभव है,ये चढ ही नहीे सकते है,इन्हें दौडना नहीं चाहिये आदि।ऐसी निराषा भरी आवाज से कई मेढक बहोष होकर गिरने लगे,कई मेढको ने बीच में ही दौड रोक दी।लेकिन एक मेढक अपनी धुन में दौडे जा रहा था और उसने पहाड पर चढने में सफलता प्राप्त कर ली। सबको आष्चर्य हुआ यह कैसे संभव हुआ ।जब मेढक से उसकी सफलता का रहस्य पूछा तो मालूम पडा कि वह तो बहरा है उसने तो  निराषा भरी आवाजे सुनी ही नहीं ।वह तो अपने लक्ष्य को ध्यान में रखकर आगे चढता गया,बढता गया और सफलता हासिल कर ली।इसलिये जीवन में हमेषा नकारात्मकता और हताष करने वाली बातों से दूर रहना चाहिये ,ये हमारे लक्ष्य में बाधा उत्पन्न करती है।इसलिए हमेषा अपने लक्ष्य पर ध्यान देते हुए अपना कार्य करते रहना चाहिये।कोई आलोचना करे तो उससे डरे नहीं ,न ही कोई प्रतिक्रिया करे ।प्रतिक्रिया दूसरो के लिये  छोड दे ।आलोचना करने वाला व्यक्ति आलोचना करते करते हुए स्ंवय अपने लक्ष्य को भूल जायेगा और उसका जीवन उदेष्यहीन हो जायेगा।आप अपने लक्ष्य पर दृषिट गढाये रखे ,आपको इसमे सफलता अवष्य मिलेगी।

 भुवनेष्वरी मालोत
 महादेव काॅलोनी
  बाॅसवाडा राज.      

10 टिप्‍पणियां:

  1. और इसका अर्थ क्या है---

    निंदक नियरे राखिये, आँगन कुटी छबाय |
    साबुन और पानी बिना, निर्मल करे सुभाय ||

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  2. मेहनत और लगन से ही, होता मंजिल हासिल |
    जो सागर से डर रह जाते, उनका अंत है साहिल ||

    आपकी इस उत्कृष्ट पोस्ट की चर्चा बुधवार (12-12-12) के चर्चा मंच पर भी है | जरूर पधारें |
    सूचनार्थ |

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  3. बहुत सही बात कही है आपने .सार्थक अभिव्यक्ति बधाई भारत पाक एकीकरण -नहीं कभी नहीं

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  4. एक सार्थक सन्देश देती रचना है।

    my first short story:-  बेतुकी खुशियाँ

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  5. प्रेरक बोध कथा ,उत्प्रेरक प्रसंग .डॉ .श्याम कई मर्तबा विरोध स्वरूप विरोध पर उतर आतें हैं ऐसी क्या हीन ग्रन्थी है भाई ,उद्धृत दोहे की दूसरी पंक्ति यूं है -बिन साबुन ,पानी बिना निर्मल होत सुभाय .

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  6. ----ये विरोध स्वरुप विरोध क्या होता है वीरेन्द्र जी ......शायद आप कहना चाहते हैं "सिर्फ विरोध के लिए विरोध" यही सही वाक्य व कथ्य है.....
    ----यही अंतर होता है कथन हेतु उपयुक्त शब्दचयन व उनके तात्विक अर्थ समझने में .... इसीप्रकार इंगित स्थान पर समझें .....


    बिन साबुन ,पानी बिना निर्मल होत सुभाय ...और मेरे विचार से तो यदि यह पंक्ति सही है तो 'बिना' शब्द की पुनुरोक्ति हुई है ..जो शायद एक काव्य-दोष हो सकता है....

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