''पापा ...वैभव बहुत अच्छा है ...मैं उससे ही शादी करूंगी ....वरना !! ' अग्रवाल साहब नेहा के ये शब्द सुनकर एक घडी को तो सन्न रह गए .फिर सामान्य होते हुए बोले -' ठीक है पर पहले मैं तुम्हारे साथ मिलकर उसकी परीक्षा लेना चाहता हूँ तभी होगा तुम्हारा विवाह वैभव से ...कहो मंज़ूर है ?'नेहा चहकते हुए बोली -''हाँ मंज़ूर है मुझे ..वैभव से अच्छा जीवन साथी कोई हो ही नहीं सकता .वो हर परीक्षा में सफल होगा ....आप नहीं जानते पापा वैभव को !' अगले दिन कॉलेज में नेहा जब वैभव से मिली तो उसका मुंह लटका हुआ था .वैभव मुस्कुराते हुए बोला -'क्या बात है स्वीट हार्ट ...इतना उदास क्यों हो ....तुम मुस्कुरा दो वरना मैं अपनी जान दे दूंगा .'' नेहा झुंझलाते हुए बोली -'वैभव मजाक छोडो ....पापा ने हमारे विवाह के लिए इंकार कर दिया है ...अब क्या होगा ? वैभव हवा में बात उडाता हुआ बोला -''होगा क्या ...हम घर से भाग जायेंगे और कोर्ट मैरिज कर वापस आ जायेंगें .'' नेहा उसे बीच में टोकते हुए बोली -''...पर इस सबके लिए तो पैसों की जरूरत होगी .क्या तुम मैनेज कर लोगे ?'' ''......ओह बस यही दिक्कत है ...मैं तुम्हारे लिए जान दे सकता हूँ पर इस वक्त मेरे पास पैसे नहीं ...हो सकता है घर से भागने के बाद हमें कही होटल में छिपकर रहना पड़े तुम ऐसा करो .तुम्हारे पास और तुम्हारे घर में जो कुछ भी चाँदी -सोना-नकदी तुम्हारे हाथ लगे तुम ले आना ...वैसे मैं भी कोशिश करूंगा ...कल को तुम घर से कहकर आना कि तुम कॉलेज जा रही हो और यहाँ से हम फर हो जायेंगे ...सपनों को सच करने के लिए !'' नेहा भोली बनते हुए बोली -''पर इससे तो मेरी व् मेरे परिवार कि बहुत बदनामी होगी '' वैभव लापरवाही के साथ बोला -''बदनामी .....वो तो होती रहती है ...तुम इसकी परवाह ..'' वैभव इससे आगे कुछ कहता उससे पूर्व ही नेहा ने उसके गाल पर जोरदार तमाचा रसीद कर दिया .नेहा भड़कते हुयी बोली -''हर बात पर जान देने को तैयार बदतमीज़ तुझे ये तक परवाह नहीं जिससे तू प्यार करता है उसकी और उसके परिवार की समाज में बदनामी हो ....प्रेम का दावा करता है ....बदतमीज़ ये जान ले कि मैं वो अंधी प्रेमिका नहीं जो पिता की इज्ज़त की धज्जियाँ उड़ा कर ऐय्याशी करती फिरूं .कौन से सपने सच हो जायेंगे ....जब मेरे भाग जाने पर मेरे पिता जहर खाकर प्राण दे देंगें !मैं अपने पिता की इज्ज़त नीलाम कर तेरे साथ भाग जाऊँगी तो समाज में और ससुराल में मेरी बड़ी इज्ज़त होगी ...वे अपने सिर माथे पर बैठायेंगें ....और सपनों की दुनिया इस समाज से कहीं इतर होगी ...हमें रहना तो इसी समाज में हैं ...घर से भागकर क्या आसमान में रहेंगें ?है कोई जवाब तेरे पास ?....पीछे से ताली की आवाज सुनकर वैभव ने मुड़कर देखा तो पहचान न पाया .नेहा दौड़कर उनके पास चली गयी और आंसू पोछते हुए बोली -'पापा आप ठीक कह रहे थे ये प्रेम नहीं केवल जाल है जिसमे फंसकर मुझ जैसी हजारों लडकिय अपना जीवन बर्बाद कर डालती हैं !!''
शिखा कौशिक 'नूतन '
der aayad durust aayad...sundar rachna..
जवाब देंहटाएंसार्थक और प्रेरक पोस्ट है, बधाई ,कभी समय मिले तो मेरे ब्लॉग पर भी आयें स्वागत है सदा ही .
जवाब देंहटाएंkavita ji v sangeeta ji -hardik dhanyvad .
जवाब देंहटाएंहम हिंदी चिट्ठाकार हैं
.
जवाब देंहटाएं.विचारणीय अभिव्यक्ति .बधाई
प्रयास सफल तो आज़ाद असफल तो अपराध [कानूनी ज्ञान ] और [कौशल ].शोध -माननीय कुलाधिपति जी पहले अवलोकन तो किया होता .पर देखें और अपने विचार प्रकट करें
जब आँख खुले तब सवेरा.....
जवाब देंहटाएंअच्छी कहानी
अनु
एक प्रेरक कहानी !! काश सभी लडकियां इस कहानी की नायिका नेहा की तरह की सोच रखे !!
जवाब देंहटाएंवाह... उम्दा...एक प्रेरक कहानी, बेहतरीन अभिव्यक्ति...बहुत बहुत बधाई...
जवाब देंहटाएंयह प्रेम नही एक जाल है ,सीख देती हुई लघु कथा ,बधाई
जवाब देंहटाएंसुन्दर कथा .....
जवाब देंहटाएंआपकी टिप्पणियाँ अक्सर आपके होने का एहसास करा जाती हैं ,हमें भी जोश में ले आतीं हैं .
जवाब देंहटाएंबढ़िया सन्देश परक कथा है लघु ज़रूर पर सन्देश बड़ा छिपाए है अपने डिजिटल कलेवर में .सौद्देश्य लेखन के लिए बधाई .
आज के आधुनिक युवा के गाल पर तमाचा मारने वाली लघु कथा है
जवाब देंहटाएं"सुन्दर रचना"