कुछ सालों पहले ऐसे वाकये अख़बार में पढ़े जाते थे ओर वे सभी विदेशों के होते थे.तब अपने यहाँ कि परिवार संस्कृति पर बड़ा मान होता था जिसकी वजह से हमारे यहाँ ऐसे वाकये नहीं के बराबर होते हैं. लेकिन आज ये आम हैं हमारा सामाजिक पारिवारिक परिवेश तेज़ी से बदल रहा है इन परिवर्तनों के साथ आ रहे हैं मूल्यों में बदलाव पारिवारिक व्यवस्था में बदलाव.
आज संयुक्त परिवार तेज़ी से ख़त्म होते जा रहे हैं सामाजिक व्यवस्था नौकरी पर टिकी है जिसके लिए बच्चों को घर से बाहर जाना ही होता है यदि नहीं भी तो भी युवा पीढ़ी बड़े बुजुर्गों के साथ उनकी देख रेख ,टोकाटाकी में रहना पसंद नहीं करती.ये उन्हें अपनी स्वतंत्रता में खलल लगते हैं.ऐसा नहीं है कि इससे परिवार का स्नेह कम ही होता हो लेकिन एक समय के बाद जब बच्चे बड़े हो जाते हैं अपनी पढाई लिखाई में व्यस्त, ऐसे समय में महिलाओं का घर में अकेले समय कटना मुश्किल होता है .पति के पास काम कि व्यस्तता बच्चों कि अपनी अलग दुनिया ऐसे में महिलाओं का सहारा बनती हैं किटी पार्टी क्लब या फेस बुक पर होने वाली दोस्ती.
आइये देखें कुछ उन कारणों को जिनके चलते महिलाएं अकेलेपन कि शिकार हो कर ऐसे कदम उठाने को विवश हो रही हैं.
*संयुक्त परिवार ख़त्म हो रहे हैं एकल परिवार के बढ़ते चलन से पति बच्चों के चले जाने के बाद महिलाएं घर में अकेली होती हैं ओर उनका समय काटे नहीं कटता .
*अति व्यस्तता के इस दौर में रिश्ते नातेदारों से भी एक दूरी बन गयी है अतः उनके यहाँ आना जाना मिलना जुलना कम हुआ है साथ ही सहनशीलता में कमी आयी है इसलिए रिश्तेदारों का कुछ कहना या सलाह देना अपनी जिंदगी में एक दखल सा लगता है जिससे उनसे दूरियां बढा लीं जाती हैं.
* विश्वास कि कमी के चलते सामाजिक दायरा बहुत सिमट गया है अब आस पड़ोस पहले जैसे नहीं रह गए जब किस के घर कौन आ रहा है कि खबर रखी जाती थी या दिन में महिलाएं एक साथ बैठ कर बतियाते हुए घर के काम निबटा लेतीं थीं. इसका एक बड़ा कारण दिनचर्या में बदलाव भी है सबके घरेलू कामों का समय उनके बच्चों के अलग स्कूल टाइम ट्यूशन कि वजह से अलग अलग हो गया है.
*पति कि अति व्यस्तता इसका एक बड़ा कारण है.अब पहले जैसी १० से ५ वाली नौकरियां नहीं रहीं .अब दिन सुबह ५ बजे से शुरू होता है जो सबके जाने तक भागता ही रहता है. इससे पति पत्नी को इतमिनान से बैठ कर कुछ समय अपने लिए बिताने का मौका ही नहीं मिलता .कम समय में जरूरी बातें ही हो पाती हैं .ऐसे में अकेलेपन कि शिकार महिलाओं के पास पति कि नजदीकी महसूस करने के लिए कोई बात ही नहीं रह जातीं .
*ऐसे ही पुरुषों कि व्यस्तता भी बहुत बढ़ गयी है .सुबह का समय भागदौड में ओर रात घर पहुँचते पहुँचते इतनी देर हो जाती है कि कहने सुनने के लिए समय ही नहीं बचता .इसलिए आजकल पुरुष भी अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं ओर ऑफिस में या फेस बुक पर उनकी भी दोस्ती महिलाओं से बढ़ रही है जिसके साथ वो अपने मन कि सारी बातें शेयर कर सकें.
*यदि अकेले रहने कि वजह परिवार से मनमुटाव है तो ऐसे में पति का उदासीन रवैया भी पत्नी को आहत करने वाला होता है .उसे लगता है कि उसका पति उसे समझ नहीं पा रहा है या उसकी भावनाओं कि उसे कोई क़द्र नहीं है .ऐसे में पति पत्नी के बीच एक भावनात्मक अलगाव पैदा हो रहा है.
*टी वी सीरियल में आधुनिक महिलाओं के रूप में जो चारित्रिक हनन दिखाया जा रहा है उसका असर महिलाओं के सोचने समझने पर पड़ा है.अब किसी पराये व्यक्ति से बातचीत करना दोस्ती रखना कभी बाहर चले जाना जैसी बातें बहुत बुरी बातों में शुमार नहीं होतीं,बल्कि आज महिलाएं अकेले घर का मोर्चा संभल रही हैं ऐसे में बाहरी लोग आसानी से उनके संपर्क में आते हैं.
* पति परमेश्वर वाली पुरातन सोच बदल गयी है .
*इंटरनेट के द्वारा घर बैठे दुनिया भर के लोगों से संपर्क बनाया जा रहा है ऐसे में अकेलेपन हताशा निराशा को बाँट लेने का दावा करने वाले दोस्त महिलाओं कि भावनात्मक जरूरत में उनके साथी बन कर आसानी से उनके फ़ोन नंबर घर का पता हासिल कर उन तक पहुँच बना रहे हैं.
* नौकरीपेशा महिलाएं भी घर बाहर कि जिम्मेदारियां निभाते हुए इतनी अकेली पड़ जातीं है कि ऐसे में किसी का स्नेह स्पर्श या भावनात्मक संबल उन्हें किसी की ओर आकर्षित कर करने के लिए काफी होता है.
लेकिन ऐसे विवाहेतर सम्बन्ध क्या सच में महिलाओं या पुरुषों को वो भावनात्मक सुकून प्रदान कर पाते हैं?
होता तो ये है की जब ऐसे सम्बन्ध बनते हैं दिमाग पर दोहरा दवाब पड़ता है. एक ओर जहाँ उस व्यक्ति के बिना रहा नहीं जाता ओर दूसरी ओर उस सम्बन्ध को सबसे छुपा कर रखने की जद्दोजहद रहती है.ऐसे में यदि कोई टोक दे की आजकल बहुत खुश रहती हो या बहुत उदास रहती हो तो एक दबाब बनता है.
जब सम्बन्ध नए नए बनते हैं तब तो सब कुछ भला भला सा लगता है लेकिन समय के साथ इसमें भी रूठना मनाना, बुरा लगना, दुःख होना जैसी बातें शामिल होती जातीं हैं लेकिन बाद में स्थिति ये हो जाती है की ना इससे छुटकारा पाना आसान होता है ना इन्हें बनाये रखना क्योंकि तब तक इतनी अन्तरंग बातें सामने वाले को बताई जा चुकी होती हैं की इस सम्बन्ध को झटके से तोड़ना भी कठिन हो जाता है.
हर विवाहेतर सम्बन्ध की इतिश्री तलाक या दूसरे विवाह में नहीं होती .लेकिन इतना तो तय है की ऐसे सम्बन्ध जब भी परिवार को पता चलते हैं विश्वास बुरी तरह छलनी होता है .फिर चाहे वह पति का पत्नी पर हो या पत्नी का पति पर या बच्चों का माता पिता पर.
बच्चों पर इसका सबसे बुरा असर पड़ता है एक ओर जहाँ उनका अपने माता पिता के लिए सम्मान कम होता है वहीँ परिवार के टूटने की आशंका उनके में एक असुरक्षा की भावना भर देती है जिसका असर उनकी आने वाली जिंदगी पर भी पड़ता है ओर वे आसानी से किसी पर विश्वास नहीं कर पाते.
यदि परिवार ओर रिश्तेदार इसे एक भूल समझ कर माफ़ भी कर दें तो भी आगे की जिंदगी में एक शर्मिंदगी का एहसास बना रहता है जो सामान्य जिंदगी बिताने में बाधा बनता है
यदि इन संबंधों में कहीं आगे बढ़ कर अंतरंगता में बदल दिया जाये तो ब्लेकमेल होने का डर सताता रहता है.
विवाहेतर सम्बन्ध आकर्षित करते हैं लेकिन अंत में हाथ लगती है हताशा निराशा ओर टूटन .इनसे बचने के लिए जरूरी है की अकेलेपन से बचा जाये.खुद को किसी रचनात्मक कार्यों में लगाया जाये. अपने आसपास पड़ोसियों से मधुर सम्बन्ध बनाये जाएँ .रिश्तेदारों से बोलचाल व्यवहार के सम्बन्ध कायम किये जाएँ .अपने पार्टनर से अपनी परेशानियों के बारे में खुल कर बात की जाये ओर अपने पुराने विग्रह दूर रख कर उनकी बातें सुनी ओर समझीं जाएँ. हमारी सामाजिक पारिवारिक व्यवस्था बहुत मजबूत ओर सुरक्षित है इसे अपने बच्चों के लिए इसी रूप में संवारना हमारा कर्त्तव्य है अतः क्षणिक आवेश में आकर इसे तहस नहस ना करें.
कविता वर्मा
सपने ज्यादा गति बढ़ी, समय किन्तु घट जाय |
जवाब देंहटाएंमहत्वकांक्षा अहम् मद, मेटे नहीं मिटाय |
मेटे नहीं मिटाय, गौण बच्चे का सपना |
घर-ऑफिस बाजार, स्वयं ही हमें निबटना |
मांगे हम अधिकार, लगे कर्तव्य खटकने |
भोगवाद की जीत, मिटे ममता के सपने ||
न्यौछावर सपने किये, अपने में संतुष्ट ।
जवाब देंहटाएंमातु-पिता पति प्रति सजग, पुत्र-पुत्रियाँ पुष्ट ।
पुत्र-पुत्रियाँ पुष्ट, वही सपने बन जाते ।
खुद से होना रुष्ट, यही तो रहे भुलाते ।
सब रिश्तों में श्रेष्ठ, बराबर बैठा ईश्वर ।
परम-पूज्य है मातु, किया सर्वस्व निछावर ।।
रविकर ji aapka abhar..
जवाब देंहटाएंसोचने को विवश करता हुआ अच्छा आलेख!
जवाब देंहटाएंहमारा सामाजिक पारिवारिक परिवेश तेज़ी से बदल रहा है इन परिवर्तनों के साथ आ रहे हैं मूल्यों में बदलाव पारिवारिक व्यवस्था में बदलाव.
जवाब देंहटाएंsahi kaha kavita ji aapne.bharatiy nari par aapka hardik swagat hai .
गंभीर विषय पर बहुत अच्छा और सार्थक आलेख... बहुत-बहुत आभार कविता जी
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जवाब देंहटाएंसटीक विश्लेषण लेकिन कुछ तो बे -वफाई के जीन (जीवन खंड )भी होतें हैं .परिवर्तन प्रकृति का नियम है पूरब पश्चिम का विलय हुआ चाहता है .
KAVITA JI -MOST WELCOME ON THIS BLOG .YOUR VIEW IS VERY RIGHT .THANKS A LOT TO SHARE THIS ARTICLE HERE .
जवाब देंहटाएंसटीक विश्लेषण करती सार्थक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंवर्तमान काल एक संस्कृति से दूसरी संस्कृति में पदार्पण का संक्रान्ति काल है। इसलिए गलत और सही फैसलों में अन्तर समझ नहीं आ रहा है। बस विकल्प हमारे सामने खुल गया है तो उसका उपयोग करना है इसलिए स्वतंत्रता के लिए परिवार की बलि चढ़ाई जा रही है। जहाँ सम्बन्ध निभाने में कठिनाई है, वहां तो ऐसे फैसले ठीक हैं लेकिन केवल सामयिक आकर्षण के लिए परिवार की कीमत पर ऐसे फैसले सुखकारी नहीं होते। परिवार में समझौते और समर्पण तो करना ही होता है।
जवाब देंहटाएंगंभीर विषय .. लेख में समस्या और समाधान दोनों है।
जवाब देंहटाएं-----बहुत सुन्दर व सटीक विश्लेषण किया गया है....यद्यपि यह समस्या नयी नहीं है युगों से/ सदा से/ जब से मानव उत्पत्ति हुई तभी से ही है जैसा कि शर्मा जी ने कहा वे-वफाई के जींस.... ...परन्तु आजकल तो समस्या प्रायोजित-प्रोग्राम की भांति काफी बढ़ गयी है...जिसका उचित विश्लेषण व समाधान भी इस पोस्ट में दिया गया है...
जवाब देंहटाएं-----मूल समाधान हेतु --- तो मानवता के प्रथम कार्य-विभाजन के समय का बचन निभाते हुए ..यही करना पडेगा ..कि पुरुष बाहर का कार्य संभाले...स्त्री घर का ...
'अपनापन' खोता जा रहा है, हर गाँव, हर शहर |
जवाब देंहटाएंइस क़दर पी लिया हमने है, यह 'विदेशी ज़हर' ||
हमारे 'ख्याल,जज्वे,तहजीब'सब 'पराये'हो गये-
अजब आयी है' यह बेदर्द 'बदलाव की लहर' ||
बदली हमारी सोच है , बदली हमारी हर नज़र |
जवाब देंहटाएंबदलाव की आई अजब,देखो ज़माने में लहर ||
सब कुछ पराया हो चुका,अपना यहाँ क्या रह गया ?
जैसे बिका बिन मोल हो,हर गाँव ,गोया हर शहर ||
अति प्रभावी व तथ्यपूर्ण लेख।
जवाब देंहटाएंसादर- देवेंद्र
मेरी नयी पोस्ट अन्नदेवं,सृष्टि-देवं,पूजयेत संरक्षयेत पर आपका हार्दिक स्वागत है।
bahut badhiya aur sateek baat
जवाब देंहटाएंबहुत ही नपे-तुले ढंग से एक सार्थक आलेख प्रस्तुत किया है आपने .. मंथन पर मजबूर करता आलेख!
जवाब देंहटाएंसादर
मधुरेश
प्रिय ब्लॉगर मित्र,
जवाब देंहटाएंहमें आपको यह बताते हुए प्रसन्नता हो रही है साथ ही संकोच भी – विशेषकर उन ब्लॉगर्स को यह बताने में जिनके ब्लॉग इतने उच्च स्तर के हैं कि उन्हें किसी भी सूची में सम्मिलित करने से उस सूची का सम्मान बढ़ता है न कि उस ब्लॉग का – कि ITB की सर्वश्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगों की डाइरैक्टरी अब प्रकाशित हो चुकी है और आपका ब्लॉग उसमें सम्मिलित है।
शुभकामनाओं सहित,
ITB टीम
पुनश्च:
1. हम कुछेक लोकप्रिय ब्लॉग्स को डाइरैक्टरी में शामिल नहीं कर पाए क्योंकि उनके कंटैंट तथा/या डिज़ाइन फूहड़ / निम्न-स्तरीय / खिजाने वाले हैं। दो-एक ब्लॉगर्स ने अपने एक ब्लॉग की सामग्री दूसरे ब्लॉग्स में डुप्लिकेट करने में डिज़ाइन की ऐसी तैसी कर रखी है। कुछ ब्लॉगर्स अपने मुँह मिया मिट्ठू बनते रहते हैं, लेकिन इस संकलन में हमने उनके ब्लॉग्स ले रखे हैं बशर्ते उनमें स्तरीय कंटैंट हो। डाइरैक्टरी में शामिल किए / नहीं किए गए ब्लॉग्स के बारे में आपके विचारों का इंतज़ार रहेगा।
2. ITB के लोग ब्लॉग्स पर बहुत कम कमेंट कर पाते हैं और कमेंट तभी करते हैं जब विषय-वस्तु के प्रसंग में कुछ कहना होता है। यह कमेंट हमने यहाँ इसलिए किया क्योंकि हमें आपका ईमेल ब्लॉग में नहीं मिला।
[यह भी हो सकता है कि हम ठीक से ईमेल ढूंढ नहीं पाए।] बिना प्रसंग के इस कमेंट के लिए क्षमा कीजिएगा।
महिलाओं को थोड़ा रूक कर सोचना ही होगा..
जवाब देंहटाएंसच अपने सामने ही जब किसी की शादी होती है और फिर बात तलाक तक पहुँचती ही नहीं बल्कि तलाक हो भी जाता है फिर यह सब सुनकर बहुत दुःख तो होता है लेकिन आजकल किसी को समझना बहुत मुश्किल है ...दोनों में से एक भी समझदारी से काम ले तो ऐसी नौबत नहीं ... आपने बहुत बढ़िया तरीके से विस्तार से इस बारे में लिखा ..सार्थक प्रस्तुति के लिए आभार!
जवाब देंहटाएंसहमत हूं आपकी बात से पूर्णतः ...
जवाब देंहटाएंगंभीर समस्या पर सटीक आलेख...बहुत बहुत बधाई...
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