दिल्ली में गेंग रेप को आज पांच दिन पूरे हो गए।सभी छह आरोपी हिरासत में हैं।दिल्ली में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं .शुरूआती एक दो दिन बीजेपी और कांग्रेस दोनों पार्टी के कुछ नेता सामने आये और इस घटना की भत्सर्ना की। शायद उस लड़की की नाज़ुक हालत देखते हुए उन्हें डर था की कहीं उसकी मौत हो गयी उसके पहले अगर उनका कोई बयां नहीं आया तो जनता उन्हें असंवेदनशील कहेगी। कई नेताओं ने भी उस समय फांसी की मांग कर दी। आज पांच दिन बाद जब की लड़की की जिजीविषा से उसकी हालत में सुधार हो रहा है कोई नेता सामने नहीं आ रहा है। सिर्फ युवा लड़के लड़कियां महिलाये ही सडकों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं। आरोपियों को फांसी की मांग के साथ एक सुरक्षित समाज देने की मांग कर रहे है तब उन पर पानी की बौछार और आंसू गैस के गोले बरसाए जा रहे हैं।
दिल्ली में ही क्या देश में कहीं भी लड़कियों के प्रति अपराध दर में बढ़ोत्तरी हुई है।लड़कियां कहीं भी सुरक्षित नहीं हैं। लेकिन मुद्दा ये है की जैसे जैसे हम आधुनिकता की और बढ़ते जा रहे है वैसे वैसे समाज में ये पाशविकता क्यों बढ़ रही है? इसके गहरे में जाकर कारण ढूंढना जरुरी है।
लड़कों का लड़कियों के प्रति नजरिया
ये बात सही है की समाज में खुलापन बढ़ रहा है। आज छोटे छोटे बच्चों को भी व्यस्क सामग्री आसानी से उपलब्ध है। बहुत कम उम्र से लड़के लड़कियों को उपभोग की वस्तु के रूप में देखते है। माता पिता भी लड़कों को हॉट सेक्सी जैसे शब्दों के उपयोग को लेकर कभी नहीं टोकते बल्कि उन की इन बातों से उन पर निहाल हो जाते हैं। यही मानसिकता बढ़ती उम्र में भी लड़कियों के प्रति कोई सम्मानजनक सोच उनमे विकसित नहीं होने देती।
हर लड़के की एक गर्ल फ्रेंड होना चाहिए जैसी सोच और गर्ल फ्रेंड का मतलब वह लड़की सिर्फ उनकी है उसका वे जैसा चाहे उपयोग उपभोग करे।उन्हें लड़कियों के लिए असम्मानजनक नजरिया देती है। आजकल स्कूल में बहुत छोटी कक्षा में ही लड़के जिस विकृत सोच को प्रदर्शित करते है की हैरानी होती है। मैंने क्लास 7 के बच्चों से ऐसे चिट पकड़ी हैं जिसमे लड़के लड़की को सम्भोग करते दिखाया गया है। लड़की के जननागो को प्रदर्शित किया गया है।लेकिन विडम्बना ये है की जब माता पिता को उनके बच्चों की इन हरकतों के बारे में बताया जाता है तो वे बड़ी मासूमियत से कहते है मेडम मेरा बेटा कह रहा था ये उसने नहीं किया ये तो उसका दोस्त है जो ऐसी बाते करता है और ऐसे चित्र बनता है और उसका नाम फंसा देता है। अब ऐसे माता पिता को क्या समझाया जाये। स्कूल प्रशासन की मजबूरी होती है की अगर वे इस मामले में कठोर होंगे तो एक मोटे आसामी उनके बच्चे को उनके स्कूल से निकाल लेंगे।
लेकिन स्कूल से निकाल देना ही विकल्प नहीं है क्योंकि समज में जो कुछ खुले रूप में मौजूद है बच्चों को उससे बचा कर रखना और कम से कम उसमे सही और गलत का आकलन करने की समझ देना माता पिता शिक्षक समाज सभी का दायित्व है जिसमे हम सभी असफल हो रहे हैं।
लड़कों की लड़कियों के बारे में सोच विचार को सही रूप देने में परिवार जो भूमिका निभा सकता है वह कोई और नहीं।
सामाजिक जिम्मेदारी
रास्तों पर होने वाली छेड़छाड़ की घटनाओं पर हम सभी को चौकन्ने होने की जरुरत है। ये सिर्फ एक लड़की से छेड़छाड़ नहीं है बल्कि ये समाज को विकृत करने की कोशिश है जहा आज किसी और की बहन बेटी है तो कल को मेरी बहन बेटी हो सकती है ये सोच लोगो को विकसित करनी होगी। बहुत पुराणी बात है शायद 30 साल पुराणी। एक लड़की सड़क पर जा रही थी उसके बगल से एक ठेले वाला कुछ कहते हुए गुज़रा जो निश्चित ही कुछ गलत था। वह लड़की इतनी छोटी थी की न तो उसने उस ठेले वाले की कोई बात सुनी और न ही उसने कोई प्रतिक्रिया दी वो तो कुछ समझी ही नहीं। लेकिन वहीँ पास खड़े उसी मोहल्ले के कुछ लड़कों ने ठेले वाले को कुछ कहते सुना और उसे ललकारते हुए उसे मारने उसके पीछे भागे। उन लोगों ने बता दिया की हमारे मोहल्ले में कोई भी लड़कियों से ऐसी वैसी कोई हरकत नहीं कर सकता। जबकि वो लड़की उस मोहल्ले की भी नहीं थी।
आज हम क्या कर रहे है?हमारे आसपास अगर कोई किसी लड़की से बदतमीजी करता भी है तो हमें क्या करना कह कर हम अपना मुँह फेर लेते हैं या फिर उस लड़की को ही दोष देने लगते हैं।
राजनैतिक जिम्मेदारी
अभी पिछले कुछ समय में हमारे देश के कर्णधारों ने लड़कियों के पहनावे उनके मोबाइल के इस्तेमाल आदि पर अशोभनीय टिप्पणियां की। इन टिप्पणियों पर कुछ दिन हंगामा रहा कुछ ने इन्हें गलत समझा गया कह कर पल्ला झाड लिया कुछ दिनों के लिए इस बात पर बहुत बवाल हुआ लेकिन इन टिप्पणियों के लिए और भविष्य में ऐसी टिप्पणियां नहीं होंगी इसके लिए कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।किसी भी महिला आयोग ने ऐसी टिप्पणियों के लिए कोई केस दायर नहीं किया। ये हमारी राजनैतिक दृढ़ता में कमी की निशानी है।
प्रशासनिक जिम्मेदारी
इसमें कोई शक नहीं की हमारी पुलिस फ़ोर्स कम से कम साधनों में भी बेहतर काम कर रही है।पुलिसे या किसी भी महकमे में निचले दर्जे पर पदस्थ कर्मचारी समाज के उन तबकों से आते हैं जहाँ स्त्रियों की कोई इज्जत नहीं की जाती। उनका यही व्यवहार उसके कार्यस्थल पर भी नज़र आता है। खास कर पुलिस में जहाँ उनका वास्ता महिलाओं से भी पड़ता है उन्हें पुलिस भर्ती और ट्रेनिंग के समय विशेष रूप से मनोविज्ञानी द्वारा ट्रेनिंग दी जानी चाहिए जिससे महिलाओं के प्रति उनके नज़रिए को एक स्वस्थ आकार दिया जा सके।
महिलाओं के प्रति जिम्मेदारी हम सब की जिम्मेदारी है जिसे हर स्तर सबको निभाना होगा जिससे भविष्य में ऐसी घटना की पुनरावृत्ति न हो सके।
सार्थक आलेख...विरोध आवश्यक है|
जवाब देंहटाएंमैंने भी एक पोस्ट लगाया है इस इश्यू पर, लिंक नीचे है|
http://hindihaiga.blogspot.com/2012/12/blog-post_20.html
बहुत सारगर्भित चिंतन..
जवाब देंहटाएंविचारणीय उपयोगी आलेख्।
जवाब देंहटाएंसार्थक चिंतन ...विचारणीय आलेख...
जवाब देंहटाएंबहुत सही बात कही है आपने .सार्थक अभिव्यक्ति भारतीय भूमि के रत्न चौधरी चरण सिंह
जवाब देंहटाएंachcha alekh.
जवाब देंहटाएंसहीं कहा आपने सभी की पृथक पृथक और संयुक्त जिम्मेदारी से की बेहतर समाज की परिकल्पना साकार होगी. सुन्दर आलेख के लिए धन्यवाद. आरंभ : चोर ले मोटरा उतियइल
जवाब देंहटाएंsarthak vichar aabhar.
जवाब देंहटाएंबेह्तरीन अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंविस्तृत चिंतन ... सच है की सभी पहलुओं की सोच के अब इस समस्या का निदान बहुत जरूरी है ...
जवाब देंहटाएंआपसे पूरा सहमत ,अच्छा चिंतन और आलेख ,आभार
जवाब देंहटाएंसार्थक आलेख है .....
जवाब देंहटाएं----बस पत्तियों पर, शाखाओं पर ध्यान देने की बजाय ...उस की जड़ ...जो पाश्चात्य-संस्कृति का प्रसार है ...पर नियमन किया जाना पर्याप्त है....
आपने कई पहलू से इस दर्दनाक हादसे को निचोड़ा ..सचमुच इसमें व्यापक सोच जरूरी है
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