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गुरुवार, 29 नवंबर 2012

विवाहेतर सम्बन्ध (लेख)



रंजनाजी का अपने पति से तलाक हो गया सुन कर धक्का सा लगा.करीब ४५ वर्षीय रंजनाजी भद्र महिला थीं पति बच्चे सब सुशिक्षित भला सा हँसता खेलता परिवार फिर अचानक ये क्या हुआ?सवाल मन को कचोटता रहा कि पता चला रंजनाजी ने दूसरी शादी कर ली ओर वह दूसरा आदमी किसी भी मायने में उनके पति से उन्नीस ही है लगभग ३ साल से उनका उससे अफेयर चल रहा था.सुनकर हैरानी हुई .अधिक जानकारी जुटाने पर पता चला कि रंजना जी कि मुलाकात उस व्यक्ति से फेस बुक पर हुई थी,ओर उन्ही के बेटे ने उन्हें बोरियत से बचाने के लिए उनका फेस बुक पर अकाउंट बनाया था प्रारंभिक जानपहचान के बाद उनकी घनिष्टता बढ़ती गयी ओर ओपचारिक बातों से बहुत आगे बढ़ कर प्यार मुहब्बत में बदल गयी वह व्यक्ति भी उसी शहर का था ओर जल्द ही कभी कभी होने वाली मुलाकातें एक दूसरे के बिना नहीं रह सकने में तब्दील हो गयी. वह व्यक्ति भी शादीशुदा है ओर इस शादी के लिए उसने भी अपनी पत्नी को बड़ी रकम दे कर उससे छुटकारा पा लिया .
कुछ सालों पहले ऐसे वाकये अख़बार में पढ़े जाते थे ओर वे सभी विदेशों के होते थे.तब अपने यहाँ कि परिवार संस्कृति पर बड़ा मान होता था जिसकी वजह से हमारे यहाँ ऐसे वाकये नहीं के बराबर होते हैं. लेकिन आज ये आम हैं हमारा सामाजिक पारिवारिक परिवेश तेज़ी से बदल रहा है इन परिवर्तनों के साथ आ रहे हैं मूल्यों में बदलाव पारिवारिक व्यवस्था में बदलाव.

आज संयुक्त परिवार तेज़ी से ख़त्म होते जा रहे हैं सामाजिक व्यवस्था नौकरी पर टिकी है जिसके लिए बच्चों को घर से बाहर जाना ही होता है यदि नहीं भी तो भी युवा पीढ़ी बड़े बुजुर्गों के साथ उनकी देख रेख ,टोकाटाकी में रहना पसंद नहीं करती.ये उन्हें अपनी स्वतंत्रता में खलल लगते हैं.ऐसा नहीं है कि इससे परिवार का स्नेह कम ही होता हो लेकिन एक समय के बाद जब बच्चे बड़े हो जाते हैं अपनी पढाई लिखाई में व्यस्त, ऐसे समय में महिलाओं का घर में अकेले समय कटना मुश्किल होता है .पति के पास काम कि व्यस्तता बच्चों कि अपनी अलग दुनिया ऐसे में महिलाओं का सहारा बनती हैं किटी पार्टी क्लब या फेस बुक पर होने वाली दोस्ती. 
आइये देखें कुछ उन कारणों को जिनके चलते महिलाएं अकेलेपन कि शिकार हो कर ऐसे कदम उठाने को विवश हो रही हैं. 

*संयुक्त परिवार ख़त्म हो रहे हैं एकल परिवार के बढ़ते चलन से पति बच्चों के चले जाने के बाद महिलाएं घर में अकेली होती हैं ओर उनका समय काटे नहीं कटता .

*अति व्यस्तता के इस दौर में रिश्ते नातेदारों से भी एक दूरी बन गयी है अतः उनके यहाँ आना जाना मिलना जुलना कम हुआ है साथ ही सहनशीलता में कमी आयी है इसलिए रिश्तेदारों का कुछ कहना या सलाह देना अपनी जिंदगी में एक दखल सा लगता है जिससे उनसे दूरियां बढा लीं जाती हैं.

* विश्वास कि कमी के चलते सामाजिक दायरा बहुत सिमट गया है अब आस पड़ोस  पहले जैसे नहीं रह गए जब किस के घर कौन आ रहा है कि खबर रखी जाती थी या दिन में महिलाएं एक साथ बैठ कर बतियाते हुए घर के काम निबटा लेतीं थीं. इसका एक बड़ा कारण दिनचर्या में बदलाव भी है सबके घरेलू कामों का समय उनके बच्चों के अलग स्कूल टाइम ट्यूशन कि वजह से अलग अलग हो गया है. 

*पति कि अति व्यस्तता इसका एक बड़ा कारण है.अब पहले जैसी १० से ५ वाली नौकरियां नहीं रहीं .अब दिन सुबह ५ बजे से शुरू होता है जो सबके जाने तक भागता ही रहता है. इससे पति पत्नी को इतमिनान से बैठ कर कुछ समय अपने लिए बिताने का मौका ही नहीं मिलता .कम समय में जरूरी बातें ही हो पाती हैं .ऐसे में अकेलेपन कि शिकार महिलाओं के पास पति कि नजदीकी महसूस करने के लिए कोई बात ही नहीं रह जातीं .

*ऐसे ही पुरुषों कि व्यस्तता भी बहुत बढ़ गयी है .सुबह का समय भागदौड में ओर रात घर पहुँचते पहुँचते इतनी देर हो जाती है कि कहने सुनने के लिए समय ही नहीं बचता .इसलिए आजकल पुरुष भी अकेलेपन का शिकार हो रहे हैं ओर ऑफिस में या फेस बुक पर उनकी भी दोस्ती महिलाओं से बढ़ रही है जिसके साथ वो अपने मन कि सारी बातें शेयर कर सकें.

*यदि अकेले रहने कि वजह परिवार से मनमुटाव है तो ऐसे में पति का उदासीन रवैया भी पत्नी को आहत करने वाला होता है .उसे लगता है कि उसका पति उसे समझ नहीं पा रहा है या उसकी भावनाओं कि उसे कोई क़द्र नहीं है .ऐसे में पति पत्नी के बीच एक भावनात्मक अलगाव पैदा हो रहा है. 

*टी वी सीरियल में आधुनिक महिलाओं के रूप में जो चारित्रिक हनन दिखाया जा रहा है उसका असर महिलाओं के सोचने समझने पर पड़ा है.अब किसी पराये व्यक्ति से बातचीत करना दोस्ती रखना कभी बाहर चले जाना जैसी बातें बहुत बुरी बातों में शुमार नहीं होतीं,बल्कि आज महिलाएं अकेले घर का मोर्चा संभल रही हैं ऐसे में  बाहरी लोग आसानी से उनके संपर्क में आते हैं. 
* पति परमेश्वर वाली पुरातन सोच बदल गयी है .
*इंटरनेट के द्वारा घर बैठे दुनिया भर के लोगों से संपर्क बनाया जा रहा है ऐसे में अकेलेपन हताशा निराशा को बाँट लेने का दावा करने वाले दोस्त महिलाओं कि भावनात्मक जरूरत में उनके साथी बन कर आसानी से उनके फ़ोन नंबर घर का पता हासिल कर उन तक पहुँच बना रहे हैं. 
* नौकरीपेशा महिलाएं भी घर बाहर कि जिम्मेदारियां निभाते हुए इतनी अकेली पड़ जातीं है कि ऐसे में किसी का स्नेह स्पर्श या भावनात्मक संबल उन्हें  किसी की ओर आकर्षित कर करने के लिए काफी होता है.

लेकिन ऐसे विवाहेतर सम्बन्ध क्या सच में महिलाओं या पुरुषों को वो भावनात्मक सुकून प्रदान कर पाते हैं? 
होता तो ये है की जब ऐसे सम्बन्ध बनते हैं दिमाग पर दोहरा दवाब पड़ता है. एक ओर जहाँ उस व्यक्ति के बिना रहा नहीं जाता ओर दूसरी ओर उस सम्बन्ध को सबसे छुपा कर रखने की जद्दोजहद रहती है.ऐसे में यदि कोई टोक दे की आजकल बहुत खुश रहती हो या बहुत उदास रहती हो तो एक दबाब बनता है. 
जब  सम्बन्ध नए नए बनते हैं तब तो सब कुछ भला भला सा लगता है लेकिन समय के साथ इसमें भी रूठना मनाना, बुरा लगना, दुःख होना जैसी बातें शामिल होती जातीं हैं लेकिन बाद में स्थिति ये हो जाती है की ना इससे छुटकारा पाना आसान होता है ना इन्हें बनाये रखना क्योंकि तब तक  इतनी अन्तरंग बातें सामने वाले को बताई जा चुकी होती हैं की इस सम्बन्ध को झटके से तोड़ना भी कठिन हो जाता है. 
हर विवाहेतर सम्बन्ध की इतिश्री तलाक या दूसरे विवाह में नहीं होती .लेकिन इतना तो तय है की ऐसे सम्बन्ध जब भी परिवार को पता चलते हैं विश्वास बुरी तरह छलनी होता है .फिर चाहे वह पति का पत्नी पर हो या पत्नी का पति पर या बच्चों का माता पिता पर. 
बच्चों पर इसका सबसे बुरा असर पड़ता है एक ओर जहाँ उनका अपने माता पिता के लिए सम्मान कम होता है वहीँ परिवार के टूटने की आशंका उनके में एक असुरक्षा की भावना भर देती है जिसका असर उनकी आने वाली जिंदगी पर भी पड़ता है ओर वे आसानी से  किसी पर विश्वास नहीं कर पाते.
 यदि परिवार ओर रिश्तेदार इसे एक भूल समझ कर माफ़ भी कर दें तो भी आगे की जिंदगी में एक शर्मिंदगी का एहसास बना रहता है जो सामान्य जिंदगी बिताने में बाधा बनता है 
यदि इन संबंधों में कहीं आगे बढ़ कर अंतरंगता में बदल दिया जाये तो ब्लेकमेल होने का डर सताता रहता है. 

विवाहेतर सम्बन्ध आकर्षित करते हैं लेकिन अंत में हाथ लगती है हताशा निराशा ओर टूटन .इनसे बचने के लिए जरूरी है की अकेलेपन से बचा जाये.खुद को किसी रचनात्मक कार्यों में लगाया जाये. अपने आसपास पड़ोसियों से मधुर सम्बन्ध बनाये जाएँ .रिश्तेदारों से बोलचाल व्यवहार के सम्बन्ध कायम किये जाएँ .अपने पार्टनर से अपनी परेशानियों के बारे में खुल कर बात की जाये ओर अपने पुराने विग्रह दूर रख कर उनकी बातें सुनी ओर समझीं जाएँ. हमारी सामाजिक पारिवारिक व्यवस्था बहुत मजबूत ओर सुरक्षित है इसे अपने बच्चों के लिए इसी रूप में संवारना हमारा कर्त्तव्य है अतः क्षणिक आवेश में आकर इसे तहस नहस ना करें. 
कविता वर्मा 

हम हिंदी चिट्ठाकार हैं

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                          शिखा कौशिक 'नूतन '
                                    




बुधवार, 28 नवंबर 2012

क्योंकि औरत कट्टर नहीं होती !-एक लघु कथा

क्योंकि औरत कट्टर नहीं होती !-एक लघु कथा



'...जिज्जी बाहर निकाल उस मुसलमानी को .!!!'  रमा के घर के बाहर खड़ी भीड़ में से आवाज़ आई .आवाज़ में ऐसा वहशीपन था कि दिल दहल जाये .रमा  ने साडी का पल्ला सिर पर ढका और घर के किवाड़ खोलकर दरवाजे के बीचोबीच खड़ी हो गयी .नज़ारा बहुत खौफनाक था .भीड़ में बबलू का सिर फटा  हुआ था और राजू की कमीज़ फटी हुई थी .खून से सने कपड़ों में खड़ा सोनू ही चीख चीख कर रमा से कह रहा था ''....हरामजादों ने मेरी बहन की अस्मत रौंद डाली ...मैं भी नहीं छोडूंगा इसको ....!!!''रमा  का  चेहरा सख्त हो गया .वो फौलाद से कड़क स्वर में बोली - ''मैं उस लड़की को तुम्हारे  हवाले नहीं करूंगी !!! उसकी अस्मत से खेलकर तुम्हारी बहन की इज्ज़त वापस नहीं आ जाएगी .किसी और की अस्मत लूटकर तुम्हारी बहन की अस्मत वापस मिल सकती है तो ...आओ ..लो मैं खड़ी हूँ ...बढ़ो और .....'' ''जिज्जी !!!!!'' सोनू चीख पड़ा और आकर रमा के पैरों में गिर पड़ा .सारी भीड़ तितर-बितर हो गयी .सोनू को कुछ लोग उठाकर अस्पताल ले गए .रमा पलट कर घर में ज्यों ही घुसी घर में किवाड़ की ओट में छिपी फाटे कपड़ों से बदन छिपती युवती उसके पैरों में गिर पड़ी .फफक फफक कर रोती हुई वो बोली -'' आप न होती तो मेरे जिस्म को ये सारी भीड़ नोंच डालती .मैं कहीं का न रहती !'.रमा ने प्यार से उसे उठाते हुए अपनी छाती से लगा लिया .और कोमल बोली में धैर्य   बंधाते हुए बोली -लाडो डर मत !! धार्मिक उन्मादों में कितनी ही  बहन बेटियों की अस्मत मुझ जैसी औरतों ने बचाई है क्योंकि औरत कट्टर नहीं होती !!

शिखा कौशिक 'नूतन'

मंगलवार, 27 नवंबर 2012

प्रेरणा

[ I HAVE SHARED THIS FROM Neelima Sharma JI'S FACEBOOK PHOTOS .]


दूसरों की जिंदगी रोशन करना कोई इनसे सीखें।

सोलन के गुप्ता परिवार के तीन सदस्य मरणोपरांत अपनी आंखें दान करके जरूरतमंदों की जिंदगी में उजाला कर चुके हैं। यहीं नहीं परिवार के दस अन्य सदस्य जिसमें बच्चे से लेकर बुजुर्ग तक हैं, अपनी आंखें दान करने का संकल्प ले चुके हैं और और आंखें दान करने संबंधी कागजी औपचारिकताएं निभा रहे हैं। आज यह परिवार हिमाचल ही नहीं देश के लिए एक मिसाल बन गया है।

मानवता की सेव
ा का संकल्प लेने वाले गुप्ता परिवार से ताल्लुक रखने वाले सुरेन्द्र गुप्ता के अनुसार परिवार में यह पहल उनके पिता की देन है। सबसे पहले उनकी माता श्यामा गुप्ता की आंखें दान की गईं और उसके बाद चाचा प्रह्लाद भगत गुप्ता और पिछले हफ्ते उनकी चाची बंती देवी गुप्ता की आंखें उनकी इच्छानुसार दान की गई हैं।

सुरेन्द्र गुप्ता के अनुसार आंखें दान करने के इस संकल्प में उनके पिता के साथ-साथ उनके भाई, पत्नी, बच्चे और वह स्वयं भी शामिल हैं। वहीं उनके नाते रिश्तेदार भी परिवार से प्रेरणा लेकर आंखें दान करने के लिए अपनी इच्छा व्यक्त कर चुके हैं। उन्होंने इस प्रेरणा का श्रेय स्वयंसेवी संस्था आशादीप को देते हुए कहा कि संस्था से संपर्क में आने के बाद पहले जहां रक्तदान से शुरूआत की, वहीं आंखें दान करने की प्रेरणा भी वहीं से मिली।.copied
 
                                         SHIKHA KAUSHIK 

अपराधी को सजा, मिलेगी ना जाने कब-रविकर

बस मूक हूँ .............पीड़ा का दिग्दर्शन करके

वन्दना 


दर्दनाक घटना घटी, मेरा पास पड़ोस ।
दुष्टों की हरकत लटी, था *धैया में रोष ।
था *धैया में रोष, कोसते हम दुष्कर्मी ।
जेल प्रशासन ढीठ, दिखाया बेहद नरमी ।
उठे मदद को हाथ, पीडिता की खातिर अब ।
अपराधी को सजा, मिलेगी ना जाने कब ।।
*धैया ग्राम हमारे कालेज के बगल में ही है जहाँ यह घटना हुई-

सोमवार, 26 नवंबर 2012

बस मूक हूँ .............पीड़ा का दिग्दर्शन करके-ज़िन्दगी…एक खामोश सफ़रपर

बस मूक हूँ .............पीड़ा का दिग्दर्शन करके

मुझमे उबल रहा है एक तेज़ाब झुलसाना चाह रही हूँ खुद को खंड- खंड करना चाहा खुद को मगर नहीं हो पायी नहीं ....नहीं छू पायी एक कण भी तेजाबी जलन की क्योंकि आत्मा को उद्वेलित करती तस्वीर शायद बयां हो भी जाए मगर जब आत्मा भी झुलस जाए तब कोई कैसे बयां कर पाए देखा था कल तुम्हें नज़र भर भी नहीं देख पायी तुम्हें नहीं देख पायी हकीकत नहीं मिला पायी आँख उससे और तुमने झेला है वो सब कुछ हैवानियत की चरम सीमा शायद और नहीं होती ये कल जाना जब तुम्हें देखा महसूसने की कोशिश में हूँ नहीं महसूस पा रही जानती हो क्यों क्योंकि गुजरी नहीं हूँ उस भयावहता से नहीं जान सकती उस टीस को उस दर्द की चरम ... अधिक »

शनिवार, 24 नवंबर 2012

नारी के अकेलेपन से पुरुष का अकेलापन ज्यादा घातक

 Sexy_BRian pic
अकेलापन एक ज़हर के सामान होता है किन्तु इसे जितना गहरा ज़हर नारी के लिए कहा जाता है उतना गहरा पुरुष के लिए नहीं कहा जाता जबकि जिंदगी  का अकेलापन दोनों के लिए ही बराबर ज़हर का काम करता हैनारी  जहाँ तक घर के बाहर की बात है आज भी लगभग पुरुष वर्ग पर आश्रित है कोई भी लड़की यदि घर से बाहर जाएगी तो उसके साथ आम तौर पर कोई न कोई ज़रूर साथ होगा भले ही वह तीन-चार साल का लड़का ही हो इससे उसकी सुरक्षा की उसके घर के लोगों में और स्वयं भी मन में सुरक्षा की गारंटी होती है और इस तरह से यदि देखा जाये तो नारी के लिए पुरुषों के कारण भी अकेलापन घातक है क्योंकि पुरुष वर्ग नारी को स्वतंत्रता से रहते नहीं देख सकता और यह तो वह सहन ही नहीं कर सकता कि एक नारी पुरुष के सहारे के बगैर कैसे आराम से रह रही है इसलिए वह नारी के लिए अकेलेपन को एक डर का रूप दे देता  है और यदि पुरुषों के लिए अकेलेपन के ज़हर की हम बात करें तो ये नारी के अकेलेपन से ज्यादा खतरनाक है न केवल स्वयं उस पुरुष के लिए बल्कि सम्पूर्ण समाज के लिए क्योंकि ये तो सभी जानते हैं कि ''खाली दिमाग शैतान का घर होता है ''ऐसे में समाज में यदि अटल बिहारी जी ,अब्दुल कलाम जी जैसे अपवाद छोड़ दें तो कितने ही पुरुष कुसंगति से घिरे गलत कामों में लिप्त नज़र आते हैं .घर के लिए कहा जाता है कि ''नारी हीन घर भूतों का डेरा होता है ''तो ये गलत भी नहीं है क्योंकि घर को जिस साज संभल की सुरुचि की ज़रुरत होती है वह केवल नारी मन में ही पाई जाती है .पुरुषों  में अहंकार की भावना के चलते वे कभी अपनी परेशानी का उल्लेख करते नज़र नहीं आते किन्तु जब नारी का किसी की जिंदगी या घर में अभाव होता है तो उसकी जिंदगी या घर पर उसका प्रभाव साफ नज़र आता है नारी को यदि देखा जाये तो हमेशा  पुरुषों की सहयोगी  के रूप में ही नज़र आती  है उसे पुरुष की सफलता खलती नहीं बल्कि उसके चेहरे  पर अपने से सम्बंधित  पुरुष की सफलता एक नयी चमक ला देती है किन्तु पुरुष अपने से सम्बंधित नारी को जब स्वयं सफलता के शिखर पर चढ़ता देखता है तो उसके अहम् को चोट पहुँचती है और वह या तो उसके लिए कांटे बोने लगता है या स्वयं अवसाद में डूब जाता है.
     एक नारी फिर भी घर के बाहर के काम आराम से संपन्न कर सकती है यदि उसे पुरुष वर्ग के गलत रवैय्ये का कोई डर नहीं हो किन्तु एक पुरुष घर की साज संभाल  एक नारी की तरह कभी नहीं कर सकता क्योंकि ये गुण नारी को भगवान ने उसकी प्रकृति में ही दिया है .इसलिए पुरुष वर्ग को अपने अकेलेपन की ज्यादा चिंता करनी चाहिए न कि नारी के अकेलेपन की क्योंकि वह पुरुष वर्ग के अनुचित दखल न होने पर सुकून की साँस ले सकती है.
       शालिनी कौशिक
                [कौशल ]


गुरुवार, 22 नवंबर 2012

दोयम दर्जे की इन्सान हूँ बहुत खूब बहुत खूब .

 stock photo : Portrait of a cute young woman  Saudi Arabianstock photo : Beautiful brunette portrait with traditionl costume. Indian style

शौहर की मैं गुलाम हूँ  बहुत खूब बहुत खूब ,
दोयम दर्जे की इन्सान हूँ  बहुत खूब बहुत खूब .


कर  सकूं उनसे बहस बीवी को इतना हक कहाँ !
रखती बंद जुबान हूँ  बहुत खूब बहुत खूब !


उनकी नज़र में है यही औकात इस नाचीज़ की ,
तफरीह का मैं सामान हूँ  बहुत खूब बहुत खूब !


रखा छिपाकर दुनिया से मेरी हिफाज़त की सदा ,
मानती अहसान हूँ   बहुत खूब बहुत खूब !


वे पीटकर पुचकारते कितने रहमदिल मर्द हैं !
उन पर ही मैं कुर्बान हूँ  बहुत खूब बहुत खूब !


'नूतन' ज़माने में नहीं औरत की कीमत रत्ती भर ,
देखकर हैरान हूँ  बहुत खूब बहुत खूब !


                                              शिखा कौशिक 'नूतन'

मुझे फख्र है मैंने जन्म दिया बेटी को

एक बेटी को जन्म देने वाली माता के भावों को इस रचना के माध्यम से प्रकट करने का प्रयास किया है -
Photo
from facebook

मेरी बेटी ने लिया जन्म ; मैं समझ पायी ,
सारी  जन्नत  ही मेरी गोद में सिमट आई .

उसने जब टकटकी लगाकर मुझे देख लिया ,
ख़ुशी इतनी मिली कि दिल में न समां पाई  .

 मखमली हाथों से छुआ चेहरा मेरा ,
मेरे तन में लहर रोमांच की सिहर आई .


 मुझे 'माँ' बनने की ख़ुशी दी मेरी बेटी ने ,
'जिए सौ साल ' मेरे लबो पर ये दुआ आई .



 मुझे फख्र है मैंने जन्म दिया बेटी को ,
आज मैं क़र्ज़ अपनी माँ का हूँ चुका पाई .

                               शिखा कौशिक 'नूतन'


सोमवार, 19 नवंबर 2012

मात गंगे -संतान हैं कृतघ्न हम !


युग युग से हम सभी के पापों को धोती माता गंगा आज स्वयं प्रदूषण  के गंभीर संकट से जूझ  रही हैं .हम कितनी कृतघ्न संतान हैं ?हमने माता को ही मैला कर डाला .हे माता हमें क्षमा करें -



मात गंगे हमें क्षमा करो !
संतान हैं कृतघ्न  हम !

हमने किया मैला तुम्हे
दण्डित करो हमें सर्वप्रथम !




तुम ब्रह्मलोक  से आई तुमने जन जन संताप हरे ,
हे पतित पावनी तुमने हम सबके पाप हरे ,
और हमने कर डाला दूषित तेरा ही जल !




तेरे अमृत जल से हरियाई भूमि ,
संत लगाते तेरे तट पर नित दिन धूनी ,
हे कल्याणी बदले में कर डाला हमने छल !




मंदमति संतान हैं हम ;माँ सद्बुद्धि  दो ,
करें शीघ्र प्रयास जल की शुद्धि हो ,
मल व् मैल से मुक्त जल हो जाये निर्मल !


मात गंगे हमें क्षमा करो !
संतान हैं कृतघ्न  हम !

हमने किया मैला तुम्हे
दण्डित करो हमें सर्वप्रथम !








सन्दर्भ


[साभार -http://hi.wikipedia.org/s/1y4f ]
एक अनुमान के अनुसार हिंदुओं द्वारा पवित्र मानी जाने वाली नदी में बीस लाख लोग रोजाना धार्मिक स्नान करते हैं। हिन्दू धर्म में कहा जाता है कि यह नदी भगवान विष्णु के कमल चरणों से (वैष्णवों की मान्यता) अथवा शिव की जटाओं से (शैवों की मान्यता) बहती है. इस नदी के आध्यात्मिक और धार्मिक महत्व की तुलना प्राचीन मिस्र वासियों के लिए नील नदी के महत्त्व से की जा सकती है. जबकि गंगा को पवित्र माना जाता है, वहीं पारिस्थितिकी तंत्र से संबंधित इसकी कुछ समस्याएं भी हैं। यह रासायनिक कचरे, नाली के पानी और मानव व पशुओं की लाशों के अवशेषों से भरी हुई है, और गंदे पानी में सीधे नहाने से (उदाहरण के लिए बिल्हारज़ियासिस संक्रमण) अथवा इसका जल पीने से (फेकल-मौखिक मार्ग से) स्वास्थ्य संबंधी बड़े खतरे हैं।
लोगों की बड़ी आबादी के नदी में स्नान करने तथा जीवाणुभोजियों के संयोजन ने प्रत्यक्ष रूप से एक आत्म शुद्धिकरण का प्रभाव उत्पन्न किया है, जिसमें पेचिश और हैजा जैसे रोगों के जलप्रसारित जीवाणु मारे जाते हैं और बड़े पैमाने पर महामारी फैलने से बच जाती है. नदी में जल में घुली हुई ऑक्सीजन को प्रतिधारण करने की असामान्य क्षमता है.[1


प्रदूषण

1981 में अध्ययनों से पता चला कि वाराणसी से ऊर्ध्वाधर प्रवाह में, नदी के साथ-साथ प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक में जैवरासायनिक ऑक्सीजन की मांग तथा मल कोलिफोर्म गणना कम थी. पटना में गंगा के दाहिने तट से लिए गए नमूनों के 1983 में किए गए अध्ययन पुष्टि करते हैं कि एशरिकिआ कोली (escherichia coli) (ई. कोलि (E.Coli)), फीकल स्ट्रेप्टोकोकाई (Fecal streptococci) और विब्रियो कोलेरी (vibrio cholerae) जीव सोन तथा गंडक नदियों, उसी क्षेत्र में खुदे हुए कुओं और नलकूपों से लिेए गए पानी की अपेक्षा गंगा के पानी में दो से तीन गुना तेजी से मर जाते हैं.[2]
तथापि हाल ही में[कब?] इस की पहचान दुनिया की सबसे अधिक प्रदूषित नदियों में से एक के रूप में की गई है. यूईसीपीसीबी (UECPCB) अध्ययन के अनुसार, जबकि पानी में मौजूद कोलिफोर्म (coliform) का स्तर पीने के प्रयोजन के लिए 50 से नीचे, नहाने के लिए 500 से नीचे तथा कृषि उपयोग के लिए 5000 से कम होना चाहिए- हरिद्वार में गंगा में कोलिफोर्म का वर्तमान स्तर 5500 पहुंच चुका है।
कोलिफोर्म (coliform), घुलित ऑक्सीजन और जैव रासायनिक ऑक्सीजन के स्तर के आधार पर, अध्ययन ने पानी को ए, बी, सी और डी श्रेणियों में विभाजित किया है. जबकि श्रेणी ए पीने के लिए, बी नहाने के लिए, सी कृषि के लिए और डी अत्यधिक प्रदूषण स्तर के लिए उपयुक्त माना गया.
चूंकि हरिद्वार में गंगा जल में 5000 से अधिक कोलिफोर्म (coliform) है और यहां तक कि जल में घुली हुई ऑक्सीजन और जैव रासायनिक ऑक्सीजन का स्तर निर्धारित मानकों के अनुरूप नहीं है, इसे श्रेणी डी में रखा गया है.
अध्ययन के अनुसार, गंगा में कोलिफोर्म (coliform) के उच्च स्तर का मुख्य कारण इसके गौमुख में शुरुआती बिंदु से इसके ऋषिकेश के माध्यम से हरिद्वार पहुँचने तक मानव मल, मूत्र और मलजल का नदी में सीधा निपटान है.
हरिद्वार तक इसके मार्ग में पड़ने वाले लगभग 12 नगरपालिका कस्बों के नालों से लगभग आठ करोड़ नब्बे लाख लिटर मलजल प्रतिदिन गंगा में गिरता है. नदी में गिरने वाले मलजल की मात्रा तब अधिक बढ़ जाती है जब मई और अक्तूबर के बीच लगभग 15 लाख(1.5 मिलियन) लोग चारधाम यात्रा पर प्रति वर्ष राज्य में आते हैं।
मलजल निपटान के अतिरिक्त, भस्मक के अभाव में हरिद्वार में अधजले मानव शरीर तथा श्रीनगर के बेस अस्पताल से हानिकारक चिकित्सकीय अपशिष्ट भी गंगा के प्रदूषण के स्तर में योगदान दे रहे हैं।
इस का परिणाम यह है कि भारत के सबसे मूल्यवान संसाधनों में से एक की क्रमिक हत्या को रही है. गंगा की मुख्य सहायक नदी, यमुना नदी का एक खंड कम से कम एक दशक तक जलीय जीव विहीन रहा है।
भारत के सबसे पावन नगर वाराणसी में कोलिफोर्म (coliform) जीवाणु गणना संयुक्त राष्ट्र विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा स्थापित सुरक्षित मानक से कम से कम 3000 गुना अधिक है. कोलिफोर्म (coliform) छड़ के आकार के जीवाणु हैं जो सामान्य रूप से मानव और पशुओं की आंतों में पाए जाते हैं और भोजन या जलापूर्ति में पाए जाने पर एक गंभीर संदूषक बन जाते हैं।

पर्यावरण जीवविज्ञान प्रयोगशाला, प्राणीविज्ञान विभाग, पटना विश्वविद्यालय द्वारा एक अध्ययन में वाराणसी शहर में गंगा नदी में पारे की उपस्थिति देखी गई. अध्ययन के अनुसार, नदी के पानी में पारे की वार्षिक सघनता 0.00023 पीपीएम थी. सघनता की सीमा एनटी (NT) (नहीं पाया गया) से 0.00191 पीपीएम तक थी।
1986-1992 के दौरान भारतीय विषाक्तता अनुसंधान केंद्र (ITRC), लखनऊ द्वारा किए गए अध्ययन से पता चला कि ऋषिकेश, इलाहाबाद जिला और दक्षिणेश्वर में गंगा नदी के जल में पारे की वार्षिक सघनता क्रमशः 0.081, 0.043, तथा 0.012 और पीपीबी (ppb) थी।
वाराणसी में गंगा नदी, विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा पीने के पानी के लिए निर्धारित अधिकतम अनुमेय स्तर 0.001 पीपीएम से कम ही था।[3]
दिसंबर 2009 में, गंगा की सफाई के लिए विश्व बैंक £ 6000 लाख ($1 अरब) उधार देने पर सहमत हुआ था.यह धन भारत सरकार की 2020 तक गंगा में अनुपचारित अपशिष्ट के निर्वहन का अंत करने की पहल का हिस्सा है. इससे पहले 1989 तक इसके पानी को पीने योग्य बनाने सहित, नदी को साफ करने के प्रयास विफल रहे थे

गंगा कार्य योजना

इस section में विकिपीडिया के गुणवत्ता मापदंडों पर खरे उतरने के लिए सफ़ाई की आवश्यकता है। कृपया इस section को सुधारने में यदि आप सहकार्य कर सकते है तो अवश्य करें। इसके संवाद पृष्ठ पर कुछ सलाह मिल सकती है। (March 2009)
नदी में प्रदूषण भार को कम करने के लिए 1985 में श्री राजीव गांधी द्वारा गंगा कार्य योजना या गैप (GAP) का शुभारंभ किया गया था. कार्यक्रम खूब धूमधाम के साथ शुरू किया गया था, लेकिन यह 15 वर्ष की अवधि में 901.71 करोड़ (लगभग 1010) रुपये व्यय करने के बाद नदी में प्रदूषण का स्तर कम करने में विफल रहा. http://www.cag.gov.in/reports/scientific/2000_book2/gangaactionplan.htm[5]
1985 में शुरू किए गए जीएपी चरण 1 की गतिविधियों को 31 मार्च 2000 को बंद घोषित कर दिया गया. राष्ट्रीय नदी संरक्षण प्राधिकरण की परिचालन समिति ने गैप (GAP) की प्रगति और गैप (GAP) चरण 1 से से सीखे गए सबकों तथा प्राप्त अनुभवों के आधार पर आवश्यक सुधारों की समीक्षा की; इस योजना के अंतर्गत 2.00 योजनाएं पूरी हो चुकी हैं. दस लाख लीटर मलजल को रोकने, हटाने और उपचारित करने का लक्ष्य है।

रविवार, 18 नवंबर 2012

जन्मदिन मुबारक इंदिरा जी.

Photo: Have a bias toward action – let’s see something happen now. You can break that big plan into small steps and take the first step right away.

कुछ  करने  में  पूर्वाग्रह  है - चलिए  अभी  कुछ  होते  हुए  देखते  हैं .  आप  उस  बड़ी  योजना  को  छोटे -छोटे  चरणों  में  बाँट  सकते  हैं  और  पहला  कदम  तुरंत  ही  उठा  सकते  हैं .

Indira Gandhi इंदिरा गाँधी
Happy Birthday Indira Ji.
जन्मदिन मुबारक इंदिरा जी.
سالگرہ مبارک اندرا جی.
শুভ জন্মদিন ইন্দিরা Ji.
જન્મદિવસની હાર્દિક શુભેચ્છા ઈન્દિરા જી.
పుట్టినరోజు శుభాకాంక్షలు ఇందిరా జీ.
ಜನ್ಮದಿನದ ಶುಭಾಶಯಗಳು ಇಂದಿರಾ ಜಿ.
பிறந்த இந்திரா ஜி.

Today birth anniversary of former Prime Minister Indira ji

कुछ करने में पूर्वाग्रह है - चलिए अभी कुछ होते हुए देखते हैं . आप उस बड़ी योजना को छोटे -छोटे चरणों में बाँट सकते हैं और पहला कदम तुरंत ही उठा सकते हैं .

Indira Gandhi इंदिरा गाँधी


                                                                   SHIKHA KAUSHIK

 

दे बेटी को मान, तुझे धिक्कारूं वरना -रविकर

 बेटे की चाहत रखें, ऐ नादाँ इंसान ।
अधिक जरुरी है कहीं, स्वस्थ रहे संतान ।
 
स्वस्थ रहे संतान, छोड़ यह अंतर करना ।
दे बेटी को मान, तुझे धिक्कारूं वरना ।
 
बेटा बेटी भेद, घूमता कहाँ लपेटे ।
स्वस्थ विवेकी सभ्य , चाहिए बेटी बेटे ।।

'' हुज़ूर इस नाचीज़ की गुस्ताखी माफ़ हो ''

'' हुज़ूर इस नाचीज़  की गुस्ताखी माफ़ हो ''




हुज़ूर इस नाचीज़  की गुस्ताखी माफ़ हो ,
 आज मुंह खोलूँगी हर गुस्ताखी माफ़ हो !


दूँगी सबूत आपको पाकीज़गी का मैं ,
पर पहले करें साबित आप पाक़-साफ़ हो !


मुझ पर लगायें बंदिशें जितनी भी आप चाहें ,
खुद पर लगाये जाने के भी ना खिलाफ हो !

मुझको सिखाना इल्म लियाकत का शबोरोज़ ,
पर पहले याद इसका खुद अलिफ़-काफ़ हो !

खुद को खुदा बनना 'नूतन' का छोड़ दो ,
जल्द दूर आपकी जाबिर ये जाफ़ हो !

                                                  शिखा कौशिक 'नूतन'




शुक्रवार, 16 नवंबर 2012

शूर्पणखा काव्य उपन्यास....सर्ग -२..अरण्य पथ..... डा श्याम गुप्त.....

शूर्पणखा काव्य उपन्यास....सर्ग -२..अरण्य पथ.....  

  पिछले सर्ग एक चित्रकूट में जयंत प्रसंग के पश्चात राम ने चित्रकूट छोड़कर आगे जाने का विचार बनाया ....प्रस्तुत है सर्ग -2  अरण्य पथ - इस सर्ग में राम सीता लक्ष्मण..अत्रि-अनुसूया के आश्रम में पहुंचते हैं जहां महासती अनुसूया सीता को स्त्री के कर्तव्य व पति-सेवा धर्म से परिचित कराती हैं साथ ही पुरुष के कर्तव्य व गुणों का भी वर्णन करती हैं।  कुल छन्द-- २३........



भाग १-- छंद १ से १३ तक.....
१-
करके फ़िर प्रवेश वन प्रान्तर,
सीता अनुज सहित रघुनन्दन ;
पहुंचे अत्रिमुनि१ के आश्रम ।
किया प्रणाम राम लक्षमण ने,
सादर मुनि निज़ कंठ लगाये;
स्वय्ं ब्रह्म आये इस द्वारे ॥
२-
सीता ने की मुदित-मगन मन,
चरण वंदना अत्रि प्रिया की ।
सीता, तुम हो अति बडभागी-
जो पाये तुम पति रघुनन्दन ।
सौभाग्य अखंड रहे तेरा,
अनुसूया२ ने आशीष दिये ॥
३-
यद्यपि तुम ज्ञानी, महासती,
कर्तव्य और अधिकार मेरा-
पर यह कहता है, हे सीता! 
नारि-धर्म, पतिव्रत कर्मों का,
तुमको कुछ तो उपदेश करूं;
पद गहे सिया ने हो विभोर ॥
४-
मां तुम स्वयं रूप ममता का,
तीनों देवों३ की  माता हो ।
तेरी चरण वंदना को तो,
स्वयं सतीत्व-भाव अकुलाता ।
महासती अनुसूया४ से, यदि-
उपदेश मिले जीवन सुधरे ॥
५-
पहनाये दिव्य बसन-भूषण५,
रहते जो नूतन, अमल सदा।
आज्ञा है मत संकोच करो,
दृढ़ता से बोलीं अनुसूया | 
सीता फिर मना न कर पायीं , 
प्रभु माया को किसने जाना ||६
६-
भ्राता मातु पिता सब सीता,
सच्चे मित्र सदा हितकारी |
पति अपना सब कुछ दे देता,
अमित मित्र,सुन जनकदुलारी |
नारि, न नारि कहाए जग में,
पति सेवा से रहे विरत जो ||
७-
है दाम्पत्य मधुर जीवन-सुख,
पर विपत्ति के घन भी छाते  |
वे दम्पति ही सुघर-सफल हैं,
जो विपदा में साथ निभाते |
परख विपत्ति काल में होती-
धीरज धर्म मित्र नारी की ||
८-
रोगी हो, या वृद्ध,मूढ़मति,
निर्धन, क्रोधी, अंगक्षीण या;
ऐसे पति का भी सुन सीता,
करे नहीं अपमान कभी भी |
यदि पति माना है मन से तो,
सेवा करना नित्य धर्म है ||
९-
मनसा वाचा और कर्मणा ,
पति सेवा रत रहना ही तो;
नारि-धर्म की परिभाषा है |
एक दूजे का साथ निभाना-
ही तो मन की अभिलाषा है ;
एक धर्म व्रत नियम यही है ||
१०-
आगम-निगम शास्त्र सब कहते,
पतिव्रत धर्म चार-विधि होते |
उत्तम,मध्यम,नीच,अधम सब,
भाव विचार कर्म व्रत मन से |
पति संग के व्यवहार-भाव नित,
जैसे भी जो नारि निभाये ||
११-
सपने में भी मन में जिसके,
अन्य पुरुष का भाव न आये;
उत्तम सो पतिव्रता कहाए |
मध्यम पतिव्रता वह नारी,
भ्राता पुत्र व पिता भाव से;
देखे सदा पर-पुरुष को जो ||
१२-
मन में धर्म समझ, कुल लाजा,
जो नारि पतिव्रता बनी रहें ;
वह भाव पतिव्रता है निकृष्ट |
भय कारण या अवसर न मिले,
इसलिए बनीं जो भली रहें;
वह नारी का अधम भाव है ||
१३-
पति से अन्य, पर-पुरुष के संग,
घूमें फिरें करें  रति, गति,व्यति |
क्षण भर के सुख-भ्रम के कारण,
जन्मान्तर के दुःख-पाप सहें |
युग युग तक वे नारी, सीता!
भोगें अति रौरव नर्क-भाव ||   

  {कुंजिका - १= अत्रि मुनि जो आदि-सप्तर्षियों में प्रमुख स्थान रखते हैं , जिनका आश्रम चित्रकूट के गहन वन की सीमा पर था | ये ऋग्वेद के रचनाकार  ऋषि हैं | अत्रि के पुत्र आत्रेय प्रथम भिषजकचिकित्सक (फिजीसियन ) थे जिन्होंने  विश्व के प्रथम चिकित्सा ग्रन्थ, चरक संहिता  की मूल रचना की थी जिसे बाद में आचार्य चरक ने  संहिता रूप दिया |; २= अनुसूया -अत्रि की पत्नी ; ३ = अनुसोया के पतिव्रत-शक्ति के कारण परिक्षा लेने आये तीनों देव -ब्रह्मा, विष्णु, महेश --छोटे बालक के रूप में पुत्र  बन कर गोद में खेलने लगे.जिन्हें फिर तीनों देवियों सरस्वती, लक्ष्मी, पार्वती ने अनुसूया से क्षमा मांग कर स्वतंत्र कराया था ... तीनों के वरदान से महान तपस्वी "दत्तात्रेय ' का जन्म हुआ |; ४=  भारतीय इतिहास की  ५ महासतियों में प्रमुख --ये सतियाँ हैं -अनुसूया, द्रौपदी, सावित्री, सुलोचना ( मेघनाद की पत्नी ) व मंदोदरी (रावण की पत्नी )|
५=  कभी न गंदे व नष्ट होने वाले वस्त्र | ६= वास्तव में सीता जी को संकोच था की वे वन में ये बसन  व आभूषण कैसे पहनें, परन्तु अनुसूया को आगत का कुछ कुछ ज्ञान था अतः उन्होंने समझा-बुझा कर पहनादिये जो  में सीता-हरण के समय राम के लिए मार्ग-निर्धारण में काम आये |
सर्ग-२-भाग दो......छंद १४ से २३ तक....


          पिछले सर्ग -2  अरण्य पथ  भाग-१ -- में सती अनुसूया द्वारा सीताजी को पतिव्रत धर्म के बारे में बताया , आगे वे पुरुष व समाज के कर्तव्य ,धर्म के बारे में भी वर्णन करती हैं की यदि समाज व पुरुष नारी का उचित सम्मान करता है तो वह उसके लिए सब कुछ करती है .....प्रस्तुत है ..सर्ग-२, अरण्य-पथ , भाग दो...छंद १४ से २३ तक...
१४ -
विना परिश्रम किये लाभ हित,
नारी ले पर-पुरुष सहारा |
है प्रतिकूल  ही धर्म भाव के,
उनके साथ सदा छल होता |
उत्तम पतिव्रत धर्म निभाकर,
नारि, परम गति पाय सहज ही ||
१५-
नारि-पुरुष में अंतर१  तो है,
सभी समझते, सदा रहेगा |
दो-नर या दो  नारी जग में,
एक सामान भला कब होते ?
भेद बना है, बना रहेगा,
भेदभाव व्यवहार नहीं हो ||
१६-
वैदेही तुम तो तनया हो,
जनक, महाज्ञानी-विदेह२की |
कौशल-महाराज्य महारानी,
पूर्ण-पुरुष रघुवर की पत्नी |
तुमको क्या पति धर्म बताना,
जग हित भाव३ मैं पुनः बखाना ||
१७-
धर्म नीति विज्ञान कर्म-शुभ,
पुनः पुनः स्मरण, श्रवण और;
ध्यान-मनन करने से बढ़ती,
मन में श्रृद्धा, कर्म भावना |
शुभ कर्मों का धर्म भाव का,
ज्ञान भाव जग बढ़ता जाता ||
१८-
सारे गुण से युक्त राम हैं ,
जो आदर्श पति में होते |
मान और सम्मान नारि का ,
पुरुष-वर्ग का धर्म है सदा|
जो पत्नी का मान रखे नहिं,
वो जग में क्यों पति कहलाये ||
१९-
पुरुष-धर्म से जो गिर जाता,
अवगुण युक्त वही पति करता;
पतिव्रत धर्म-हीन , नारी को |
अर्थ राज्य छल और दंभ हित,
नारी का प्रयोग जो करता;
वह नर कब निज धर्म निभाता ?
२०-
वह समाज जो नर-नारी को,
उचित धर्म-आदेश न देता |
राष्ट्र राज्य जो स्वार्थ नीति-हित,
प्रजा भाव हित कर्म न करता;
दुखी, अभाव-भाव नर-नारी,
भ्रष्ट, पतित होते तन मन से ||
२१-
माया-पुरुष रूप होते हैं,
नारी-नर के भाव जगत में |
इच्छा कर्म व प्रेम-शक्ति से ,
पुरुष स्वयं माया को रचता |
पुनः स्वयं ही जीव रूप धर,
माया जग में विचरण करता४ ||
२२-
माया, प्रकृति उसी जीव के,
पालन, पोषण, भोग व धारण;
के निमित्त ही गयी रचाई |
किन्तु ,जीव-अपभाव रूप में,
निजी स्वार्थ या दंभ भाव से;
करे नहीं अपमान प्रकृति का ||
२३-
तभी प्रकृति माया या नारी,
करती है सम्मान पुरुष का |
पालन पोषण औ धारण हित,
भोग्या भी वह बन जाती है|
सब कुछ देती बनी धरित्री,
शक्ति नारि माँ साथी पत्नी ||   ---क्रमश: सर्ग तीन...प्रतिज्ञा......

{कुंजिका--  १= स्त्री-पुरुष में संरचनात्मक व भावनात्मक अंतर प्रकृतिगत है अतः उनके कार्य ,गुण व कर्तव्यों आदि में भी स्वाभाविक अंतर रहेगा - स्त्री-पुरुष समता का अर्थ -समानता नहीं है अपितु यथा-योग्य कर्म व व्यबहार होता है, अत: स्त्रियों से इस तर्क पर किसी प्रकार का व्यवहार गत  भेद-भाव नहीं होना चाहिये... |;  २= जनक को विदेह कहाजाता है क्योंकि वे चक्रवर्ती सम्राट व अथाह धन-संपदा-श्री -ज्ञान से संपन्न होने पर भी निर्लिप्त भाव से रहते थे , देहाभिमान से शून्य ...वि.. देह , इसीलिये उनकी पुत्री सीता को भी वैदेही कहा जाता है |;  ३= विभिन्न इतिहास, शास्त्र, धर्म ग्रन्थ,आदि को अच्छी प्रकार जानते हुए भी पुनः पुनः पारायण इसलिए किया जाता है ताकि समाज व व्यक्ति, राष्ट्र से  विस्मृत न होजाय | सभी प्रकार के  ज्ञान के लिए यही सत्य व आवश्यक है | इसीलिये हमें स्वयं जानते हुए भी यदि कोइ अन्य गुरुजन, ज्ञानी आदि वही तथ्य बताता है तो सुन लेना चाहिए| कथा, संत समागम, कीर्तन, तीर्थस्थान-यात्रा आदि का यही महत्त्व है |; ४= वह ब्रह्म स्वयं ही माया व समस्त माया जग का उत्पादन करता है और फिर वह स्वयं ही जीव/आत्मा रूप में जीवधारी के अंतर में उपस्थित होता है ,जन्म लेता है, कर्म बंधन में बंधता है  और माया के इशारों पर माया-संसार में कर्म रूपी नाच, नाचता है |  यह भारतीय दर्शन का आत्मा व परमात्मा का अद्वैत भाव है |