अकेलापन एक ज़हर के सामान होता है किन्तु इसे जितना गहरा ज़हर नारी के लिए कहा जाता है उतना गहरा पुरुष के लिए नहीं कहा जाता जबकि जिंदगी का अकेलापन दोनों के लिए ही बराबर ज़हर का काम करता हैनारी जहाँ तक घर के बाहर की बात है आज भी लगभग पुरुष वर्ग पर आश्रित है कोई भी लड़की यदि घर से बाहर जाएगी तो उसके साथ आम तौर पर कोई न कोई ज़रूर साथ होगा भले ही वह तीन-चार साल का लड़का ही हो इससे उसकी सुरक्षा की उसके घर के लोगों में और स्वयं भी मन में सुरक्षा की गारंटी होती है और इस तरह से यदि देखा जाये तो नारी के लिए पुरुषों के कारण भी अकेलापन घातक है क्योंकि पुरुष वर्ग नारी को स्वतंत्रता से रहते नहीं देख सकता और यह तो वह सहन ही नहीं कर सकता कि एक नारी पुरुष के सहारे के बगैर कैसे आराम से रह रही है इसलिए वह नारी के लिए अकेलेपन को एक डर का रूप दे देता है और यदि पुरुषों के लिए अकेलेपन के ज़हर की हम बात करें तो ये नारी के अकेलेपन से ज्यादा खतरनाक है न केवल स्वयं उस पुरुष के लिए बल्कि सम्पूर्ण समाज के लिए क्योंकि ये तो सभी जानते हैं कि ''खाली दिमाग शैतान का घर होता है ''ऐसे में समाज में यदि अटल बिहारी जी ,अब्दुल कलाम जी जैसे अपवाद छोड़ दें तो कितने ही पुरुष कुसंगति से घिरे गलत कामों में लिप्त नज़र आते हैं .घर के लिए कहा जाता है कि ''नारी हीन घर भूतों का डेरा होता है ''तो ये गलत भी नहीं है क्योंकि घर को जिस साज संभल की सुरुचि की ज़रुरत होती है वह केवल नारी मन में ही पाई जाती है .पुरुषों में अहंकार की भावना के चलते वे कभी अपनी परेशानी का उल्लेख करते नज़र नहीं आते किन्तु जब नारी का किसी की जिंदगी या घर में अभाव होता है तो उसकी जिंदगी या घर पर उसका प्रभाव साफ नज़र आता है नारी को यदि देखा जाये तो हमेशा पुरुषों की सहयोगी के रूप में ही नज़र आती है उसे पुरुष की सफलता खलती नहीं बल्कि उसके चेहरे पर अपने से सम्बंधित पुरुष की सफलता एक नयी चमक ला देती है किन्तु पुरुष अपने से सम्बंधित नारी को जब स्वयं सफलता के शिखर पर चढ़ता देखता है तो उसके अहम् को चोट पहुँचती है और वह या तो उसके लिए कांटे बोने लगता है या स्वयं अवसाद में डूब जाता है.
एक नारी फिर भी घर के बाहर के काम आराम से संपन्न कर सकती है यदि उसे पुरुष वर्ग के गलत रवैय्ये का कोई डर नहीं हो किन्तु एक पुरुष घर की साज संभाल एक नारी की तरह कभी नहीं कर सकता क्योंकि ये गुण नारी को भगवान ने उसकी प्रकृति में ही दिया है .इसलिए पुरुष वर्ग को अपने अकेलेपन की ज्यादा चिंता करनी चाहिए न कि नारी के अकेलेपन की क्योंकि वह पुरुष वर्ग के अनुचित दखल न होने पर सुकून की साँस ले सकती है.
शालिनी कौशिक
[कौशल ]
मनोविज्ञान पर आधारित आपका ये लेख बहुत सटीक और सही है. वास्तव में महिलायें हर परिस्थिति में अपने को व्यवस्थित करने में सक्षम होती हैं.
जवाब देंहटाएंअकेलापन तो मनुष्य मात्र के लिए ही घातक है, क्या महिला और क्या पुरुष। सृष्टि में भी सभी प्रजातियों के युग्म बने हुए है।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लेख-
जवाब देंहटाएंशुभकामनायें-
डेरा है शैतान का, खाली पड़ा दिमाग ।
बिन नारी के घर लगे, भूतों का संभाग ।
भूतों का संभाग, नारि से भूत भागते ।
संस्कार आदर्श, सत्य कर्तव्य जागते ।
नारी अगर अकेल, कभी नहिं होय सवेरा ।
दुनिया बड़ी अजीब, लफंगे डालें डेरा ।
agree with you .woman can bear every sorrow easily .thanks to post this article here . .हम हिंदी चिट्ठाकार हैं
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जवाब देंहटाएं---अच्छा आलेख है सभी जानते हैं इन सब बातों को ..बस मानते नहीं हैं ...
"यदि अटल बिहारी जी ,अब्दुल कलाम जी जैसे अपवाद छोड़ दें तो कितने ही पुरुष कुसंगति से घिरे गलत कामों में लिप्त नज़र आते हैं ."
---यह तो नारी के लिए भी कहा जा सकता है
'घर के लिए कहा जाता है कि ''नारी हीन घर भूतों का डेरा होता है ''तो ये गलत भी नहीं है'
----इसीलिए तो नारी घर पर ही अच्छी लगती है...और घर नारी के वहां होने से ...
मेरे पिताजी कहते थे !" बुढापो अति बुरो,ता बुरो नरा(नर),ना आदर हताया,ना आदर घरा(घर पर) !(हथाई-जहा गाँव के लो बैठ कर गाँव की चर्चा करते है !)
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