शौहर की मैं गुलाम हूँ बहुत खूब बहुत खूब ,
दोयम दर्जे की इन्सान हूँ बहुत खूब बहुत खूब .
कर सकूं उनसे बहस बीवी को इतना हक कहाँ !
रखती बंद जुबान हूँ बहुत खूब बहुत खूब !
उनकी नज़र में है यही औकात इस नाचीज़ की ,
तफरीह का मैं सामान हूँ बहुत खूब बहुत खूब !
रखा छिपाकर दुनिया से मेरी हिफाज़त की सदा ,
मानती अहसान हूँ बहुत खूब बहुत खूब !
वे पीटकर पुचकारते कितने रहमदिल मर्द हैं !
उन पर ही मैं कुर्बान हूँ बहुत खूब बहुत खूब !
'नूतन' ज़माने में नहीं औरत की कीमत रत्ती भर ,
देखकर हैरान हूँ बहुत खूब बहुत खूब !
शिखा कौशिक 'नूतन'
बहुत ही भावपूर्ण शब्दों में शिखा जी आपने मुस्लिम महिला के दर्द को अभिव्यक्त किया है. आभार कसाब को फाँसी :अफसोसजनक भी और सराहनीय भी.
जवाब देंहटाएंबहुत खूब बहुत खूब !
जवाब देंहटाएंअद्भुत अहसास...सुन्दर प्रस्तुति...
रूठे हुए शब्दों की जीवंत भावनाएं... सुन्दर चित्रांकन
प्रभावित करती रचना .
जवाब देंहटाएंबढिया रचना
जवाब देंहटाएंbahut hi badhiyan tarike se sab kuch kaha.....bahut khoob bahut khoob.
जवाब देंहटाएंक्या बात है ....यह भी खूब रही ...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब बहुत खूब .
shalini ji ,madan ji ,sushma ji ,manu ji ,anand ji v shyam ji -aap sabhi ka rachna ko sarahne hetu hardik aabhar
जवाब देंहटाएंAisa kyun!! pata nahi, kya aaj bhi hamara samaaj aisa hi hai?? m surprised with such a view in 21st century!
जवाब देंहटाएं