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रविवार, 29 अप्रैल 2012

''बिटिया रानी ''


''बिटिया  रानी  ''
Beautiful Little Girl Stock Photo
दादा जी कहते हैं मुझको ' राजदुलारी '  ,
दादी  कहती - मेरी पोती ' सबसे प्यारी' ,
पापा ' प्रिंसेस' कहते मुझको गोद उठाकर,
मम्मी कहती ' ब्यूटी क्वीन' गले लगाकर,
कहें 'लाडली' चूम के माथा नाना-नानी ,
मामा-मौसी कहते हैं ' परियों की रानी' ,
सारे घर में चहक-चहक  चिड़िया बन घूमूं  ,
पाकर सबका स्नेह  ख़ुशी से मैं  हूँ  झूमूं  .
                                     शिखा कौशिक 
[सभी फोटो गूगल से साभार ]


शनिवार, 28 अप्रैल 2012

इसीलिए तो माँ दिल पर राज़ करती है !




[google से sabhar ]
कभी आंसू नहीं मेरी आँख में आने देती ;
मुझे माँ में खुदा की खुदाई दिखती है .


लगी जो चोट मुझे आह उसकी निकली ;
मेरे इस जिस्म में रूह माँ की ही बसती है .


देखकर खौफ जरा सा भी  मेरी आँखों में ;
मेरी माँ मुझसे दो कदम आगे चलती है .


मेरे चेहरे से मेरे दिल का हाल पढ़ लेती ;
मुझे माँ कुदरत का  एक करिश्मा लगती है .


नहीं कोई भी  माँ से बढ़कर दुनिया में ;
इसीलिए तो माँ दिल पर  राज़ करती  है .


                        शिखा कौशिक  
                       [vikhyat ]







शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

इन्द्रधनुष का यथार्थ ...मधुकर अस्थाना


डा श्याम गुप्त के उपन्यास ...

                           "इन्द्रधनुष’ का यथार्थ ...मधुकर अस्थाना...नव गीतकार...लखनऊ....










गुरुवार, 26 अप्रैल 2012

नारी- पुरुष के लिए सांसारिक योग द्वारा ब्रह्म प्राप्ति का साधन है..डा. श्याम गुप्त..

                           नारी- पुरुष के लिए सांसारिक योग द्वारा  ब्रह्म प्राप्ति का साधन है । एक पत्नी कठोरतम मार्गदर्शक होती है ।   रूप-गर्व , गर्व, व्यंग्य, कटाक्ष व अपमान द्वारा वह ही पुरुष के आत्म-तत्व को उद्वेलित, उद्भाषित व प्रकाशित करने में समर्थ है । शायद गुरु से भी अधिक। वह काली को महाकवि कालिदास, रामबोला को तुलसीदास बना सकती है।
                        वस्तुतः ब्रह्म रूप, पुरुष तो निर्गुण ही होता है।  गुण तो शक्ति, प्रकृति, माया या स्त्री-रूप में ही होते है । अव्यक्त परब्रह्म के व्यक्त रूप-- ब्रह्म या पुरुष  व  आदि-शक्ति या प्रकृति-माया में --पुरुष तो निर्गुण होता है परन्तु आदि-शक्ति मूलतः त्रिगुणमयी होती है ...सत, रज, और तमआदि-शक्ति जहां प्रत्येक तत्व को ये गुण प्रदान करती है जिससे वह शक्तिमान होता है, तथा प्रकृति -माया रूप में वह प्रत्येक संसारी रूप-भाव में ये तीनों गुण उत्पन्न करती है, जो सरस्वती, लक्ष्मी व काली रूप होते हैं । वहीं नारी रूप में वही रूप-भाव सरस्वती, लक्ष्मी व काली के रूप में अवस्थित होते हैं जिसके कारण स्त्री अपने विभिन्न मायाभाव प्रकट कर पाती है, बाह्यांतर या आभ्यंतर रूप-भावों के प्रकटन द्वारा।
                          ये सत, रज, तम  गुण-रूप--शक्ति, प्रकृति या नारी-- सरस्वती, लक्ष्मी व काली  ... निर्गुण परब्रह्म या उसके संसारी रूप 'अर्धनारीश्वर'  के नारी-भाग हैं शक्ति भाग हैं जिनके शक्तिमान भाग ...पुरुष भाग से बनते हैं ...ब्रह्मा..विष्णु...शिव  ...नियामक,  पोषक  व संहारक  शक्तियुत ।  मानव ह्रदय- जिसमें प्राणों का बास कहा जाता है..  तीनों भाव युत होता है---  ह्र = हर = प्राण को हरने वाला...शिव  --- द = प्राण देने वाला  अर्थात विष्णु ....य =  नियमनकारी = ब्रह्मा । ये तीनों शक्तियां व शक्तिमान के संतुलन, संयोजन ...मिलन से ही सृष्टि होती है। अतः निश्चय ही स्त्री-पुरुष का आपसी संयोजन, संतुलन प्रत्येक प्रकार के सृष्टि-भाव के लिए आवश्यक है 
                 परब्रह्म  शुद्ध अव्यक्त रूप में निर्गुण होता है, संपूर्ण होता है । यथा ......

                                             "ॐ पूर्णमदं पूर्णमिदं , पूर्णं पूर्णामेव उदच्यते ।     
                                                पूर्णस्य पूर्णमादाय ,पूर्नामेवावशिष्यते ।"
व्यक्त व सगुण होने पर....  वे पुरुष व प्रकृति रूप में अपने आप में पूर्ण होते हैं परन्तु संसारी रूप में --प्रकृति अपने आपमें तो संपूर्ण  होती है परन्तु सृष्टि-भाव हित, जीव रूप में,नारी-भाव में वह अपूर्ण होती है । पुरुष भी सान्सारिक रूप-जीव रूप में अपने में अपूर्ण होता है। अतः दोनों ही अपनी अपनी अपूर्णता के पूर्णता हित संसारी-योग अर्थात 'स्त्री-पुरुष मिलन ' के लिए आकुल-तत्पर  रहते हैं ( सृष्टि के प्रत्येक तत्व में यही आकुलता होती है ) ।   विवाह इसी कमी के पूरा करने हेतु संकल्प को कहते हैं तभी इसे योग मिलना भी कहा जाता है ।
                           अतः निश्चय ही विवाह  या स्त्री-पुरुष सम्बन्ध, पति-पत्नी सम्बन्ध .... प्रकृति-पुरुष के आपसी सामंजस्य  का नाम है ...योग है।  इस योग द्वारा वे एक दूसरे को बाह्य व आतंरिक रूप -भाव में पूर्णता से समझ पाते हैं । एक दूसरे के समस्त विभिन्न बाह्य व आतंरिक माया के आवरणों को समझकर , हटाकर  विराग मार्ग द्वारा मुक्ति, मोक्ष व अमृतत्व-प्राप्ति तक पहुंचते है और संपूर्ण होकर अपने मूल स्वरुप ब्रह्म को प्राप्त होते हैं ।

THIS IS NEERAJ TOMAR'S ARTICLE -ना कोंसो अब हमें

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THURSDAY, APRIL 26, 2012


ना कोंसो अब हमें

i-next में उठाये गये प्रश्न ‘तो क्या लड़कियां ही हैं रेप की जिम्मेदार?’ के मुख्य दो कारण हैं- एक, कि यह प्रश्न वास्तव में जानना चाहता है कि रेप का वास्तविक कारण है क्या? दूसरा, इस प्रकार की शर्मनाक एवं दुखद घटनाओं के प्रति आने वाले वे असंवेदनशील संवाद जो उच्च पदों पर विराजमान शिरोमणियों के मुख से प्रकट हुए। डिप्टी कमिश्नर, डीजीपी, दिल्ली पुलिस कमिश्नर, सीएम दिल्ली एवं दिल्ली पुलिस, सभी के अनुसार लड़कियां अपने साथ हुई किसी भी दुर्घटना के लिए स्वतः जिम्मेदार है। किसी के अनुसार लड़कियों का पहनावा दोषी है तो किसी के अनुसार असमय उनका असुरक्षित यात्रा अथवा नौकरी करना। कितनी विचित्र स्थिति है कि एसी आफिस में बैठने वाले अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़ने के लिए ‘चोरी और ऊपर से सीना जोरी’ कर रहे है! पुलिस एवं सरकार की पहली जिम्मेदारी देश के प्रत्येक नागरिक को सुरक्षा के भाव का अहसास कराना है। ऐसे में ये उल्टी नसीहत उन्हें नागरिकों द्वारा कष्ट प्रदान न किये जाने का आदेश दे रही है। उन्नति की दौड़ में अपेक्षाओं से अधिक परिणाम प्रस्तुत कर अपने वजूद का लौहा मनाने वाली महिलाओं को सुरक्षा के नाम पर कैसे घर बैठकर आलू-गोभी काटने का हुक्म सुनाया जा सकता है? और इस प्रकार कैद महिलाओं की आन्तरिक सुरक्षा की क्या गारंटी? 15 मार्च 2012 को अमर उजाला में प्रकाशित समाचार ‘ नौ साल की उम्र में पहला एबार्शन’ लड़कियों की घरेलु सुरक्षा पर प्रश्नचिन्ह आरोपित करने के साथ-साथ दी जाने वाली नसीहतों को शर्मिंदा भी करता है। नाबालिकों के साथ आये दिन होने वाले दुर्व्यवहारों के लिए हमारे इन आलाकमानों के पास क्या नसीहत है? ऑफिस में बैठकर सुझावों एवं सलाहों के भँवरों में आम आदमी की सोच को गुमराह करने से बेहतर है एक सटीक रणनीति का निर्माण किया जाए और एक ऐसा समाधान प्रस्तुत किया जाये जिससे वास्तव में लड़कियों को सुरक्षित संरक्षण प्राप्त हो सके और वे अपने सपनों का आकाश पा सकें।

                                                                               

बुधवार, 25 अप्रैल 2012

इन्द्रधनुषी विचारों के दरवार में ... प्रोफ. वी बै ललिताम्बा....


                                .
       इन्द्रधनुषी विचारों के दरवार में ... प्रोफ. वी बै ललिताम्बा ...पूर्व आचार्य ..अहल्या वि वि इंदौर ( म प्र)










रविवार, 22 अप्रैल 2012

आज पौत्र को पालती, पहले पाली पूत-

 

समय के साथ

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ज़िंदा  है  माँ  जानता, इसका मिला सुबूत ।
आज पौत्र को पालती, पहले पाली पूत ।

पहले पाली पूत, हड्डियां घिसती जाएँ ।
करे काम निष्काम, जगत की सारी माएं ।

 किन्तु अनोखेलाल, कभी तो हो शर्मिन्दा ।
दे दे कुछ आराम, मान कर मैया ज़िंदा ।। 


नन्ही परियों के लिए एक बाल-गीत      (डा श्याम गुप्त के... प्रेम काव्य...सप्तम सुमनांजलि...वात्सल्य से )

         ....बेटी ...
बेटी  तुम जीवन का धन हो ,
इस आँगन का स्वर्ण सुमन हो |
तुम हो सारे घर की छाया,
सबके मन यह प्यार समाया ||

तेरा घुटनों के बल चलना,
रुदन, रूठना और मचलना |
गुड्डे और गुडिया लेने को,
जिद करना, मनवाकर हंसना ||,

मम्मी ने पायल दिलवाई,
नांच- नांच कर खुशी मनाई |
पुलकित मन हो दौड़ दौड़ कर,
सारी सखियों को दिखलाई ||

दादी  ने जब आग मंगाई ,
झोली में भरकर ले आई |
फ्राक जल गयी खबर नहीं कुछ ,
पैर जला रोई चिल्लाई ||

जो कहें परायाधन तुझको,
वे तो सबही  अज्ञानी हैं |
तुम उपवन की कोकिल मैना ,
चहको, करलो मनमानी है ||

इस जग की तो रीति यही है,
संसृति का संगीत यही  है |
हो जब प्रियतम के घर जाना ,
दुनिया की सब रीति निभाना ||

यादें तो बरबस आयेंगी,
रोते मन को सहलायेंगी |
 पर ये तो सुख के आंसूं हैं
बेटी प्रिय घर ही जायेंगी ||              

भारतीय नारी ब्लॉग योगदानकर्ता- परिचय -श्री अशोक कुमार शुक्ला



 भारतीय नारी ब्लॉग योगदानकर्ता- परिचय 



भारतीय नारी ब्लॉग के  सजग योगदानकर्ता -श्री अशोक कुमार शुक्ला जी 


भारतीय नारी ब्लॉग पर आप सभी हमारे  योगदानकर्ताओं के द्वारा  प्रकाशित रचनाएँ तो पढ़ते ही रहते हैं . मैं 


एक ..एक कर इन सबका परिचय आप सभी से कराने  की कोशिश करूंगी  .आज प्रस्तुत है श्री अशोक कुमार शुक्ला जी का परिचय -

मेरा फोटो


                            इनके ब्लॉग का नाम है -कोलाहल से दूर
इसके अतिरिक्त  ये इन सामूहिक ब्लोग्स पर भी योगदानकर्ता हैं -









                          भारतीय नारी ब्लॉग पर  आपके  योगदान  हेतु  मैं  हार्दिक  धन्यवाद  प्रेषित करती  हूँ .
                                        
 Jus' A Thank You Note! 
                           शिखा कौशिक 



सबसे प्यारी -- "जान" है तू

अभी कोई  भी नन्ही परी चूंकि ''भारतीय नारी '' ब्लॉग  से एक योगदानकर्ता  के रूप में नहीं जुडी  है  इसलिए  मैं  ही  प्रस्तुत  कर  रही  हूँ  ''बाल झरोखा  सत्यम  की  दुनिया  ''पर  सुरेन्द्र  जी  द्वारा  प्रस्तुत यह रचना   जो  हमारी  नन्ही परियों  से ही सम्बंधित  है -

Saturday 19 November 2011

सबसे प्यारी -- "जान" है तू


















सबसे प्यारी -- "जानहै तू
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(photo with thanks from google/net,indianhindu names)
हे ! बिटिया तू कितनी प्यारी
सुन्दरदिव्य - मूर्ति देवी
निर्मल पावन है गंगा सी
मुट्ठी भर-भर सब लायी

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सूनी कोख - तेरी माता की
पाँच साल - अब भर आयी
चेहरे पर मुस्कान है ऐसी
जाने कौन गड़ा धन पायी
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तू मुस्काती-हम सब खिलते
गोदी दौड़ उठाते
बचपन का सुख सब पाने को
पलकों तुझे बिठाते
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मेरी कल्पना - मेरी प्रतिभा
ममता मेरीकिरण है तू
तू सूरज है -तू चंदा है
आँखों का तारा री तू !
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तू आयी तो जोश बढ़ा रे
ख़ुशी भरी है नयी उमंगें
दौड़ भाग सब काम करें हम
रग रग में जोशीला खून
हवा है रूख में
देखों जैसे - उड़े पतंगे
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हम सब गर्व से शीश उठाते
पुरस्कार जब तू लाती
इतने बच्चों में अव्वल तू
पत्र पत्रिका -फोटो तेरी छप जाती
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बेटी अब पेट्रोल भरे है
बस-गाडी दौडाए
पुलिस मिलिट्री की कमान ले
भ्रष्टाचार मिटाए
झाँसी की रानी सी चमके
वायुयान उडाये
देश की बागडोर तू थामे
विश्व पटल पर छाये
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बेटी -बहना -वधू या माता
दुर्गा -काली -कितने रूप
जगजननी हैजग कल्याणी
ज्योति तू है - रूप अनूप
विद्या -लक्ष्मी -सरस्वती तू
शत शत नमन हे ! बिटिया रानी
सब से प्यारी -"जान " है तू
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर 
.००-.२० पूर्वाह्न
२०.११.२०११ यच पी
[Surendra shukla" Bhramar"5 द्वारा BAAL JHAROKHA SATYAM KI DUNIYA -]
[नन्ही परियों जल्दी से दीजिये यहाँ टिप्पणी रूप में अपना ई.मेल ताकि अगले रविवार से आप स्वयं  

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                                                शिखा कौशिक