समय के साथ
ज़िंदा है माँ जानता, इसका मिला सुबूत ।
आज पौत्र को पालती, पहले पाली पूत ।
पहले पाली पूत, हड्डियां घिसती जाएँ ।
करे काम निष्काम, जगत की सारी माएं ।
किन्तु अनोखेलाल, कभी तो हो शर्मिन्दा ।
दे दे कुछ आराम, मान कर मैया ज़िंदा ।।
ऐसा ही सब जगह देखने में आ रहा है!...गहन विषय , सार्थक पोस्ट!
जवाब देंहटाएंbilkul sahi likha hai aapne .aabhar
जवाब देंहटाएंdil ke behad kareeb |
जवाब देंहटाएंtouchy nice poem
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार ।।
जवाब देंहटाएंक्या बात है...क्या बात है...सत्यं..शिवम..सुन्दरं..
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