....बेटी ...
बेटी तुम जीवन का धन हो ,
तुम हो सारे घर की छाया,
सबके मन यह प्यार समाया ||
तेरा घुटनों के बल चलना,
रुदन, रूठना और मचलना |
गुड्डे और गुडिया लेने को,
जिद करना, मनवाकर हंसना ||,
मम्मी ने पायल दिलवाई,
नांच- नांच कर खुशी मनाई |
पुलकित मन हो दौड़ दौड़ कर,
सारी सखियों को दिखलाई ||
दादी ने जब आग मंगाई ,
झोली में भरकर ले आई |
फ्राक जल गयी खबर नहीं कुछ ,
पैर जला रोई चिल्लाई ||
जो कहें परायाधन तुझको,
वे तो सबही अज्ञानी हैं |
तुम उपवन की कोकिल मैना ,
चहको, करलो मनमानी है ||
इस जग की तो रीति यही है,
संसृति का संगीत यही है |
हो जब प्रियतम के घर जाना ,
दुनिया की सब रीति निभाना ||
यादें तो बरबस आयेंगी,
रोते मन को सहलायेंगी |
पर ये तो सुख के आंसूं हैं
बेटी प्रिय घर ही जायेंगी ||
BAHUT SUNDAR V PYARA BILKUL NANHI PARIYON JAISA .AABHAR
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर-
जवाब देंहटाएंआभार ||
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जवाब देंहटाएंbahut sunder rachana.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद--रविकर, भुवनेश्वरी जी व शिखा जी...
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