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रविवार, 22 अप्रैल 2012


नन्ही परियों के लिए एक बाल-गीत      (डा श्याम गुप्त के... प्रेम काव्य...सप्तम सुमनांजलि...वात्सल्य से )

         ....बेटी ...
बेटी  तुम जीवन का धन हो ,
इस आँगन का स्वर्ण सुमन हो |
तुम हो सारे घर की छाया,
सबके मन यह प्यार समाया ||

तेरा घुटनों के बल चलना,
रुदन, रूठना और मचलना |
गुड्डे और गुडिया लेने को,
जिद करना, मनवाकर हंसना ||,

मम्मी ने पायल दिलवाई,
नांच- नांच कर खुशी मनाई |
पुलकित मन हो दौड़ दौड़ कर,
सारी सखियों को दिखलाई ||

दादी  ने जब आग मंगाई ,
झोली में भरकर ले आई |
फ्राक जल गयी खबर नहीं कुछ ,
पैर जला रोई चिल्लाई ||

जो कहें परायाधन तुझको,
वे तो सबही  अज्ञानी हैं |
तुम उपवन की कोकिल मैना ,
चहको, करलो मनमानी है ||

इस जग की तो रीति यही है,
संसृति का संगीत यही  है |
हो जब प्रियतम के घर जाना ,
दुनिया की सब रीति निभाना ||

यादें तो बरबस आयेंगी,
रोते मन को सहलायेंगी |
 पर ये तो सुख के आंसूं हैं
बेटी प्रिय घर ही जायेंगी ||              

7 टिप्‍पणियां:

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  4. धन्यवाद--रविकर, भुवनेश्वरी जी व शिखा जी...

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