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रविवार, 30 जून 2013

दांवपेंच -एक लघु कथा

Portrait of a woman with her daughter stock photography
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अलका को ससुराल से मायके आये एक दिन ही बीता था कि माँ ने उसकी एकलौती भाभी को उसके मायके भेज दिया .माँ बोली -''जब तक अलका है तुम भी अपने घर हो आओ .तुम भी तो मिलना चाहती होगी अपने माता-पिता , भाई-बहन से .''  मन प्रसन्न हो गया माँ की इस सदभावना से .भैया भाभी को छोड़ने उनके मायके गए हुए थे तब माँ अलका को एक कीमती साड़ी देते हुए बोली-''ले रख ! तेरी भाभी यहाँ होती तो लगा देती टोक .इसीलिए जिद करके भेजा है उसे .अब दिल खोलकर अपनी भड़ास निकाल सकती हूँ .क्या बताऊँ तेरा भैया भी हर बात में बीवी का गुलाम बन चुका है ...''और भी न जाने दिल की कितनी भड़ास माँ ने भैया-भाभी के पीछे कहकर अपना दिल हल्का कर लिया और मेरा दिल इस बोझ से दबा जा रहा था कि कहीं मेरी सासू माँ ने भी तो ननद जी के आते ही इसीलिए जिद कर मुझे यहाँ मायके भेजा है .''

शिखा कौशिक 'नूतन' 

बुधवार, 26 जून 2013

ज़िन्दगी के पीछे छिपे संघर्षों के आगे इनकी जीत लेती मुस्कराहट
हमारी भारतीय महिलायें


सुसाइड नोट-एक लघु कथा

Suicide -
सर्वाधिकार सुरक्षित [do not copy]



'' विप्लव हमें शादी कर लेनी चाहिए ..'' सुमन ने विप्लव के कंधें पर हाथ रखते हुए कहा .विप्लव झुंझलाते हुए बोला -'' ..अरे यार .. तुम यही बात लेकर बैठ जाती हो ...कर लेंगें ''  सुमन उसकी बात सुनकर मुस्कुरा दी और अपने बैग से टिफिन निकालते हुए विप्लव से बोली -'' ...ओ.के.  ...मैं तो यूँ ही ...बस घबरा जाती हूँ ...इसीलिए कह रही थी कहीं हमारे शारीरिक संबंधों का पता घरवालों को न हो जाये ....लो ये गाज़र का हलवा खाओ  .''  टिफिन का ढक्कन खोलकर विप्लव की ओर बढ़ा दिया सुमन ने .विप्लव भी सामान्य होता हुआ बोला -''...अब देखो  कोई जबरदस्ती तो की नहीं मैंने तुमसे .तुम्हारी सहमति से ही तो हमने संबंध बनाये हैं .तुम घबराती क्यों हो ?'' यह कहते हुए विप्लव ने हलवा खाना शुरू कर दिया .अभी आधा टिफिन ही खाली कर पाया था की विप्लव का सिर चकराने लगा और मुंह से झाग निकलने लगे .शहर से बाहर खेत के बीच में विप्लव का तड़पना चिल्लाना केवल सुमन ही सुन सकती थी .विप्लव ने सुमन की गर्दन अपने पंजें से जकड़ते हुए कहा -'' साली ...हरामजादी ....मुझसे धोखा ....जहर मिलाकर लाई थी हलवे में !''ये कहते कहते उसकी पकड़ ढीली पड़ने लगी .सुमन ने जोरदार ठहाका लगाया और फिर दाँत भींचते हुए बोली -''...कुत्ते जबरदस्ती नहीं की तूने ....हरामजादे धोखा मैंने दिया है तूझे ...प्यार का नाटक कर शादी के ख्वाब दिखाकर नोंचता रहा मेरे बदन को और अब कहता है यही बात लेकर बैठ जाती है ...कमीने मेरी छोटी बहन को भी हवस का शिकार बनाना चाहता था तू ....उसने बताया कल उसे अकेले में पकड़ लिया था तूने ...सूअर अब तू जिंदा रहने लायक नहीं है ..न जाने क्या क्या कुकर्म करेगा तू ..जा और पाप करने से बचा लिया तुझे ..''  सुमन ने देखा विप्लव अब ठंडा  पड़ने लगा था .सुमन ने टिफिन में बचा हलवा खाना शुरू कर दिया .हलवा खाते  खाते  उसने बैग से एक  कागज  निकाला  और अपनी बांयी हथेली में कसकर पकड़ लिया ..............अगले दिन अख़बार में खबर छपी -''ऑनर किलिग़ के डर से एक प्रेमी युगल ने आत्महत्या कर ली .प्रेमिका के पास से मिला सुसाइड नोट ''

शिखा कौशिक  'नूतन  '

रविवार


दिन रविवार,
सब कुछ शांत, सन्नाटे सांय सांय कर रहे हैं,
घर के किसी कोने में हवा रुकी हुई है,
लम्बी लम्बी सांसे भरती हुई,
किताबें बिखरी पड़ी हैं,
कॉफ़ी का मग बिस्तर के एक कोने पे पड़ा,
न जाने क्या बडबडा रहा है,
और तुम्हारी तस्वीर दीवार पर लटकी हुई,
तुम्हारे होने का अनगढ़ सा एहसास जगाती हुई,
कुछ कहना चाहती है, और मैं अधमुंदी आँखों से टालता हूँ,
जानता हूँ तुम नहीं हो,
कुछ नहीं होने वाला मेरा,
मैं आज़ाद हूँ,
तुम्हारी यादों के बंद पिंजरे में।

- नीरज

मंगलवार, 25 जून 2013

हुक्म देना हक़ है मेरा जान लो बेगम मेरी

Couple getting married, hands and rings on fingers - stock photo
हुक्म देना हक़ है मेरा जान लो बेगम मेरी
[do not copy]


हुक्म देना हक़ है मेरा जान लो बेगम मेरी ,
पर्दे में रखना ये चेहरा जान लो बेगम मेरी !

सिर झुकाकर रहना होगा चारदीवारी में अब ,
रखूंगा मै सख्त पहरा जान लो बेग़म मेरी !

चौक-चूल्हा झाड़ू-बुहारी ये तुम्हारे काम हैं ,
और क्या वज़ूद तेरा जान लो बेग़म मेरी !

जो बग़ावत करने को फन उठाओगी कभी ,
मैं कुचल दूं बन सपेरा जान लो बेग़म मेरी !

हो मेरी अब कैद में फडफडाना  छोड़ दो ,
मैं हूँ 'नूतन' अँधा-बहरा जान लो बेग़म मेरी !

शिखा कौशिक 'नूतन'

शनिवार, 22 जून 2013

आपदा प्रबंधन और केदारनाथ त्रासदी ...डा श्याम गुप्त ...

            हमें व हमारे मीडिया को अपने देश एवं देश की हर व्यवस्था में कमी देखने की आदत सी होगई है | पढ़े लिखे जन भी प्रायः अन्यअमेरिका आदि जैसे देशों से तुलना करके अपने देश की कमी निकालते रहते हैं| अब इतने बड़े देश में प्रत्येक प्रवंधन में समय तो लगता ही है, कमियां भी रहेंगी ही परन्तु उन्हें गुणात्मक सोच से देखा जाना चाहिए |
 
          अभी हाल में ही अमेरिका में आयी एक बाढ़ में आपदा प्रबंधन द्वारा पूरी ताकत झोंक दी गयी थी और सिर्फ तीन लोगों को बचाने में सफलता की कहानी उनके मीडिया पर बार बार दिखाई जाती रही ..भारतीय मीडिया ने भी उनके इस तथाकथित शाबासी वाले कार्य की बार बार रिपोर्टिंग की गोया कोई बहुत बड़ा कार्य किया जा रहा हो ...परन्तु अपने यहाँ की इतनी बड़ी त्रासदी की आपदा प्रबंधन में सफलताओं की कहानियीं की कथाओं में भी कमियाँ ही कमियाँ प्रदर्शित की जाती रहीं हैं | यदि सेना ने कार्य संभाला हुआ है तो प्रदेश सरकार ने क्या किया, स्थानीय प्रशासन ने क्या किया, केंद्र क्या कर रहा है ...जैसी व्यर्थ की आलोचनाओं का मुख खुला हुआ है बजाय इसके कि इतने बड़े हादसे को अच्छी प्रकार संभालने के प्रयत्नों की प्रशंसा की जाती | सेना भी तो राज्य  सरकार व प्रशासन के तालमेल से ही कार्य करती है |
 
         हम कब स्वयं पर विश्वास करना सीखेंगे|
 
  

शुक्रवार, 21 जून 2013

कैसे कहूँ प्रभु तुम्हें करुणा के हो निधान ?

केदार नाथ में जिन भक्तों को प्रकृति के कोप का भाजन बनना पड़ा उनको शत शत श्रद्धांजलि !
   

केदारनाथ में भक्तों के साथ प्रभु ने ये कैसा खेल खेला ? भगवान के दर्शन को गए भक्तोंके साथ ऐसा होगा तो ये ही भाव मन में उभरेंगें - 

तड़प तड़प के भक्त जब त्याग देता प्राण ,
कैसे कहूँ प्रभु तुम्हें करुणा के हो निधान ?

सौप कर जीवन तुम्हें सद्कर्म जो करता रहे ,
उसको भी कष्ट देने का अजब तेरा विधान !

पूजता रहे तुम्हें कष्ट सहकर भी सदा ,
उसकी पुकार भी देते नहीं हो ध्यान !

सहता रहा दुःख ताप सब भक्ति में तेरा भक्त ,
रखा नहीं तुमने प्रभु श्रद्धा का कोई मान !

टूट गयी आस्था डोला अटल विश्वास ,
लगता है सच होता नहीं कोई कहीं भगवान !



शिखा कौशिक 'नूतन'

गुरुवार, 20 जून 2013

आग-एक लघु कथा

आग-एक लघु कथा
सारी  बस्ती धूं धूं कर जल रही थी .चीख पुकार मची हुई थी .कोई चिल्लाता -''बचाओ  ...मेरे बच्चे को बचाओ '' कोई चिल्लाता ''हाय मेरा सब कुछ जल गया .'' किसी की आहें दिल दहला देती  तो किसी का कराहना .बस्ती वालों की आँखें धुएं के कारण खुल तक नहीं पा रही थी . सब कुछ स्वाहा होने से  फायर -ब्रिगेड तक नहीं रोक पाई .जो बच  गए उनके मुंह पर बस एक ही बात थी -''ऐसी प्रचंड आग नहीं देखी..लगता था माँ चंडी ही अग्नि का रूप लेकर हमें जलाने आई थी .''अग्नि शांत हुई तो अपनों की खैर खबर लेने का सिलसिला शुरू हुआ .शायद ही कोई परिवार था जिसका व्यक्ति न जला हो .सभी अपना सिर पकड़ कर अपने जान -माल के नुकसान का शोक मना रहे थे तभी एक साधु बाबा उधर से निकले . उनके मुख के तेज़ से प्रभावित होकर सभी बस्ती वाले उनके चारों और इकठ्ठे हो गए .शेरू गिड़ गिडाता  हुआ बोला -'' महाराज हम गरीबों पर ईश्वर ने जुल्म कर दिया .सब फूँक  कर रख दिया .'' साधु बाबा उसे समझाते हुए बोले -'' बेटा उसे क्यों दोष देता है ...मैं देख रहा हूँ कुछ माह पहले एक निर्दोष युवती को डायन  कहकर इसी बस्ती में नंगा करके घुमाया गया था ..तुम सब देखते रहे थे .कुछ नहीं बोले ...उस युवती ने घटना से दो दिन बाद ही अपने पर मिटटी का तेल छिड़ककर आग में जलकर जान दे दी थी .ये वही युवती आग के रूप में तुम सबको भस्म करने आयी थी पर एक नन्ही सी बच्ची के कारण तुम सबकी जान बच गयी क्योंकि उसे आग से  डरा हुआ देखकर वो उस युवती की प्रतिशोध की आग ठंडी पड़ गयी ...याद करो एक बच्ची नंगी घुमाई जा रही उस युवती के लिए अपने घर से चादर लेकर दौड़ी थी ...'' बस्ती वाले साधु बाबा की बातों पर आपस में बातचीत करने लगे और फिर जब साधु बाबा की ढूंढ मची वे ढूंढें न मिले .

शिखा कौशिक 'नूतन '

मंगलवार, 18 जून 2013

सन्नी लियोन छा गयी सीता के मुल्क में !

still21.jpgIndian girl wearing modern wedding dress Royalty Free Stock Photo

सन्नी लियोन छा गयी सीता के मुल्क में ,
कौड़ी में हया बिक गयी सीता के मुल्क में !

बेटियां पहन रही कुछ ऐसी पोशाकें ,
शर्म भी शर्मा गयी सीता के मुल्क में !

फैशन की होड़ में उघाड़ती  बदन ,
देख नज़रे झुक गयी सीता के मुल्क में !

जिनको लिहाज़ है नहीं कुछ बाप-भाई का ,
बेमौत क्यों न मर गयी सीता के मुल्क में !

शर्मिंदगी से डूब मरे 'नूतन' वो मल्लिका ,
जिस्म से करती कमाई  सीता के मुल्क में !

शिखा कौशिक 'नूतन'

सोमवार, 17 जून 2013

MASESTRO बदल दें अपना विज्ञापन-लड़कों वाली बात''

 


THIS AD IS SPREADING DISCRIMINATION BETWEEN TWO GENDERS .OPPOSE THIS HERE-

Hero MotoCorp





[
MASESTRO को बेचना है अपना उत्पाद ...चाहे उसके लिए कुछ भी करना  पड़े .ये तैयार हैं .हम भी तैयार विरोध के लिए .''लड़की वाली बात'' क्या शर्म का विषय है और ''लड़कों वाली बात'' हिम्मत ..रौब और जिन्दादिली की ?.....MASESTRO बदल दें अपना विज्ञापन यही है माँग ....पर हमारा समाज भी तो यही सोच रखता है ना .......

 
मैंने पूछा बाबू जी  से क्या है 'लडको वाली बात ',
हंसकर बोले क्या  बतलाऊँ  तू है औरत जात !



खून में गर्मी चौड़ा  सीना बाहु में हो बल ,
आसमान छू आने की जिसमे चाह प्रबल ,
तू क्या जाने दब्बू कोमल क्या तेरी औकात?
हंसकर बोले क्या  बतलाऊँ  तू है औरत जात !



खुलकर हँसना घूमना-फिरना लड़कों  के हैं शौक  ,
धूम मचाना उधम तारना लड़कों पर नहीं रोक ,
दबकर-छिपकर काटे लड़की अपने दिन और रात !
हंसकर बोले क्या  बतलाऊँ  तू है औरत जात !



सीना ताने चलते है रौबीला अंदाज़ ,
ऊँचा रुतबा है मर्दों का दुनिया के सरताज ,
पुत्र जन्म को कहते हैं रब की सब सौगात !
हंसकर बोले क्या  बतलाऊँ  तू है औरत जात !



लड़कों के ये  सारे गुण उन पर ही हैं फबते ,
लड़की नक़ल करे तो उसके नाक नकेल हैं कसते ,
मर्दों की दुनिया में औरत खाती उनसे मात !
हंसकर बोले क्या  बतलाऊँ  तू है औरत जात !



और समझ ले बिटिया रानी बोले वे समझाकर ,
अबला नारी मत मर्दों से तू अपनी तुलना कर ,
लड़की मोमबत्ती की माफिक लड़का है फौलाद !
हंसकर बोले क्या  बतलाऊँ  तू है औरत जात !



शिखा कौशिक 'नूतन '

तस्वीर के दो रुख -----डा श्याम गुप्त

 जिसका जैसा भाग्य लिखा है,
 वही कर्म का लेख दिखा है |........
ज़िंदगी ,जंग और सफलता -१

ज़िंदगी की  जंग -२
चित्र ...-दैनिक जागरण साभार ....

रविवार, 16 जून 2013

पितृ दिवस पर...जगतपिता .. पर एक रचना... .सृष्टि को आगे बढाने का क्रम----पिता-पुत्र का दायित्व ..डा श्याम गुप्त..

 पितृ दिवस  पर जगतपिता पर एक रचना-----  सृष्टि को आगे बढाने का क्रम----पिता-पुत्र का दायित्व     
यह सच है कि ,ईश्वर ने-
सृष्टि को आगे बढाने का बोझ ,
नारी पर डाल दिया, पर-
पुरुष पर भी तो..... |
अंततः कब तक एक पिता ,बच्चों को-
उंगली पकड़ कर चलाता रहेगा |
बच्चा स्वयं अपना दायित्व निभाये,
उचित,शाश्वत,मानवीय मार्ग पर चले, चलाये;
अपने पिता के सच्चे पुत्र होने का ,
दायित्व निभाये |

आत्मा से परमात्मा बनने का,
अणु से विभु होने का हौसला दिखाए;
मानव से ईश्वर तक की यात्रा पूर्ण करने का,
जीवन लक्ष्य पूर्ण कर पाए ,
मुक्ति राह पाजाये |

पर नर-नारी दोनों ने ही ,
अपने-अपने दायित्व नहीं निभाये ;
फैशन, वस्त्र उतारने की होड़ ,
पुरुष बनने की इच्छा रूपी नारी दंभ ,
गर्भपात, वधु उत्प्रीणन ,कन्या अशिक्षा,
दहेज़ ह्त्या,बलात्कार,नारी शोषण से-
मानव ने किया है कलंकित -
अपने पिता को,ईश्वर को , और--
करके व्याख्यायित  आधुनिक विज्ञान,
कहता है अपने को सर्व शक्तिमान ,
करता है ईश्वर को बदनाम ||

Thanks father-वालिद शुक्रिया मेरे वालिद शुक्रिया

 

You Stood By Me...
HAPPY FATHER'S DAY
SHIKHA KAUSHIK 

वालिद शुक्रिया मेरे वालिद शुक्रिया ,
रहे सलामत आप रब से करते यही दुआ !


सर्दी-गर्मी बारिश से आप टकराये ,
हम रहें महफूज़ ली खुद पर ही बलाएँ ,
आगे बढ़कर फ़र्ज़ पूरा आपने किया !
वालिद शुक्रिया मेरे वालिद शुक्रिया ,
रहे सलामत आप रब से करते यही दुआ !


कायदे से रहने की तहजीब सिखलाई ,
क्या भला और क्या बुरा है ये बात बतलाई ,
हर कदम पर साथ मेरा आपने दिया !
वालिद शुक्रिया मेरे वालिद शुक्रिया ,
रहे सलामत आप रब से करते यही दुआ !



दे ख़ुदा हमको भी दम हम इतना कर सकें ,
आपकी इज्ज़त हमेशा दिल से कर सकें ,
और एक औलाद क्या कर सकती है भला !
वालिद शुक्रिया मेरे वालिद शुक्रिया ,
रहे सलामत आप रब से करते यही दुआ !

        SHIKHA KAUSHIK 'NUTAN'

शुक्रवार, 14 जून 2013

जो औरत मर्द से दबकर घर में रह नहीं सकती

Indian_bride : Indian woman with a beautiful blue sariIndian_bride : Series. young beautiful brunette in the indian national dress  

जो औरत  मर्द से दबकर घर  में रह नहीं सकती ,
वो  इज्ज़त से ज़माने में रह नहीं सकती !

सुनो बेगम है जिसको कद्र अपने शौहर की ,
वो घर की बात दुनिया में कह नहीं सकती !

करे कितने भी ज़ुल्म शौहर अपनी बेगम पर ,
वो बीवी क्या जो लब सिल के सह नहीं सकती !

हदों में रहना हुक्म मर्द का जिस बीवी ने माना ,
किसी भी वक़्त वो ज़ज्बात में बह नहीं सकती !

सितम सहकर करें जो खिदमत  'नूतन' अपने शौहर की ,
हैं पक्की एक  ईमारत  बीवियाँ  ढह  नहीं सकती !

शिखा  कौशिक   'नूतन'

गुरुवार, 13 जून 2013

राजीव गुप्ता-इस बेटी के ज़ज्बे को सलाम

Download JNU - Babbi.JPG (16.4 KB)

इस बेटी के ज़ज्बे को सलाम
वर्तमान समय में बब्बी कुमारी दिल्ली स्थित जवाहरलालनेहरू विश्वविद्यालय से सोशियोलोजी की छात्रा हैं और इस समय ग्रीष्मावकास और वृद्ध पिता जी की तबियत ठीक न होने के कारण इन दिनों देवरिया जिले के साहबाज़पुर गाँव में अपने घर आयीं हुई हैं. इन्होने सपने मे भी नही सोचा था कि परिवार और समाज के चलते इतनी मुसीबतों का सामना करना पडेगा. दरअसल परिवार और समाज़ के दबाव के चलते इनका विवाह उस समय हुआ था जब यें बारहवीं कक्षा की छात्रा थी. परंतु पढने की ललक के चलते उस समय इन्होनें विवाहोपरांत ससुराल जाने से मना कर दिया परिणामत: ‘गवना’ की रश्म को कुछ दिनों के लिये टाल दिया गया. इन्होने अपने पति जो कि एक अनपढ हैं और कमाने के लिये शुरू से ही शहर मे रहते थे, से अपनी पढने की इच्छा जतायी तो उन्होने किसी भी प्रकार की सहायता देने के लिये मना कर दिया. परंतु इस बहादुर बेटी ने हार न मानने की ठान ली. माता-पिता की अस्वस्थता और उनकी निर्धनता के चलते इन्होने अपने स्नातक की पढाई का सारा खर्च दूसरे के खेतों मे मजदूरी कर उठाया. बहन की पढने की इस लगन को देखकर इनके बडे भाई जो कि उस समय खुद पढाई करते थे, ने अपनी बहन को दूसरे के खेत में मजदूरी के लिये जाने हेतु मना कर खुद मजदूरी करने लग गये. बहन-भाई की इस मेहनत का परिणाम सकारात्मक आया. कालंतर में बब्बी कुमारी का स्नातकोत्तर हेतु  जवाहरलालनेहरू विश्वविद्यालय के सोशियोलोजी कोर्स मे चयन हो गया और बब्बी कुमारी जे.एन.यू. चली गयी. जब इनकी ससुराल वालों को बब्बी कुमारी की इस सफलता के बारे में पता चला तो उन्होने ‘गवना’  के लिये समाज की सहायता से इनके परिवार वालों के ऊपर दबाव बनाना शुरू किया परंतु बब्बी कुमारी और इनके भाई मुन्ना किसी भी प्रकार के दबाव के आगे नही झुके. बब्बी कुमारी बताती है कि जे.एन.यू. जाने के बाद जबतक छात्रावास नही मिला तबतक यह वहाँ के अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के एक छात्रा के साथ कुछ दिनों तक रही. नम आँखों से बब्बी कुमारी ने बताया कि उनके साथ ऐसा समय कई बार आया जब इनके पास न्यूनतम कपडे तक नही होते थे और आर्थिक तंगी से परेशान होकर एक बार तो इन्होने आत्महत्या तक विचार बना लिया था परंतु इन्होने अपनी गरीबी को ही अपनी असली ताकत बनाने की सोचा. कुछ महीने बाद इन्हे छात्रावास मिला तथा छात्रावृत्ति भी मिलने लगी और आगे की पढाई का मार्ग प्रशस्त हुआ. इन्होने अपने पति से कई बार आर्थिक मदद के लिये कहा परंतु हर बार वो मना कर देता था. हारकर इन्होने भविष्य में अपने पति से कोई रिश्ता न रखने के लिये कहा तो उसने कुछ पैसे भेजें. इनकी आर्थिक – स्थिति को इनके साथ रहने वाली मित्र से जब नही देखा गया तो वह आगे आयी और इनकी हर प्रकार की सहायता की.
जे.एन.यू के एम.फिल की प्रवेश परीक्षा देकर ये अपने गाँव चली आयी. इनके गाँव आते ही इन्हे जबरदस्ती ससुराल ले जाने के लिये इनके ससुराल वालें कई लोगों के साथ इनके घर आ धमके. परंतु जब इनके भाई और इन्होने अपने ससुराल वालों के इस कृत्य का विरोध किया तो सैकडों गाँव वालों और खाप पंचायत के सामने अनुसूचितजाति-समाज की इस बेटी को खीँचकर ले जाने की कोशिश की गई परंतु इनके भाई के अलावा किसी ने भी इस कृत्य को रोकने की हिम्मत नही दिखायी. चिंतन-मनन के पश्चात किसी प्रकार वहाँ उपस्थित लोगों से इन्होने अगले दिन तक का समय मांगा और दिल्ली स्थित एक स्वतंत्र पत्रकार राजीव गुप्ता को फोनकर अपनी सारी स्थिति बताते हुए मदद मांगी. बस यही से इस पूरे घटनाक्रम मे तेज़ी से बदलाव आया. अगली सुबह ही जिला उप-जिलाधिकारी श्री दिनेश गुप्ता के संज्ञान मे सारा विषय आ गया और प्रशासन के सकारात्मक सहयोग और दूरदर्शिता के चलते दोनों परिवारवालों के बीच विवाह-खत्म करने की सहमति बनी. समाज-उपेक्षा से बब्बी को तो अब मुक्ति मिल जायेगी परंतु अभी भी बब्बी कुमारी की आर्थिक समस्या मुँह बाये खडी है फिर भी बब्बी कुमारी ने नेट, जे.आर.एफ जैसी छात्रवृत्ति पाने की आशा रखते हुए प्रशासनिक सेवा में जाने का अब मन बना लिया हैं.  
-    Picture of Rajeev Gupta
      राजीव गुप्ता, स्वतंत्र पत्रकार , 09811558925

Akela Chana: अय्यप्पन और सुधा की प्रेम कथा:



  कल अखबारों में अय्यप्पन के बारे में पढ़ा तो आंख की कोर गीली हो गयी ....... निश्छल प्रेम की जो मिसाल उस आदमी ने कायम कर दी उसे दुनिया सदियों तक याद करेगी .......अपनी बीमार गर्भवती बीवी सुधा को घनघोर बारिश में जंगल के ऊबड़ खाबड़ रास्तों पे , पीठ पे लाद के वो आदमी अकेला चालीस किलोमीटर पैदल ले आया ....... जहां उसे एक जीप मिल गयी ....और सुधा को अस्पताल तक पहुचाया जा सका ....खबर है की सुधा तो बच  गयी पर बच्चे को नहीं बचाया जा सका ........

  उस रात अपनी बीमार मरणासन्न गर्भवती पत्नी को पीठ पे लादे , मूसलाधार बारिश में बिना थके लगातार चलते अय्यप्पन को कौन हौसला दे रहा था ......कौन सा मानसिक संवेग उसे चलाये जा रहा था ......अपनी पत्नी सुधा के प्रति अगाध , अथाह प्रेम ही वो ताकत थी जो उस रात उस मरियल से आदिवासी को सारी रात चलाती रही ..........निश्छल प्रेम की ये गाथा आज के उन नौजवानों के लिए प्रेरणा बन सकती है जो रिश्तों की अहमियत नहीं समझ पाते ...........
Akela Chana: अय्यप्पन और सुधा की प्रेम कथा:                                एक बार मशहूर हास्य कवि सुरेंद्र शर्मा ने एक चुटकुला नुमा कविता पढी थी एक कवि सम्मलेन में . एक जाट की जाटनी ब...

मंगलवार, 11 जून 2013

बेटी के जींस पहनने पर मचा बवाल और हो गई मां की हत्या

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woman mudered on jeans issue

woman mudered on jeans issue 10471599
वरिष्ठ संवाददाता, अलीगढ़। क्या जींस, टॉप पहनना वाकई जुर्म है? यदि नहीं तो बन्नादेवी क्षेत्र के ज्वालाजीपुरम में मंगलवार की रात एक बिटिया के जींस पहनने पर इतना बवाल क्यों बरपा? पहले तो महिला ने जींस पर कमेंट किया मगर जब युवती ने सवाल दागा तो आग बबूला हो चुकी महिला अपने हथियारबंद परिवारीजनों को बुला लाई। जमकर पथराव और फायरिंग हुई। आरोपियों ने तमंचे की बटों से पीट-पीट कर जींस वाली बेटी की मां की हत्या कर दी। इस दौरान कई लोग चुटैल भी हो गए। मौके पर एसपी सिटी, सीओ के अलावा एसओ फोर्स के साथ पहुंच गए।

सोमवार, 10 जून 2013

प्रेम का पाखंड-जिया बनी शिकार

Jiah Khan
प्रेम का पाखंड

नारी के उर से खेल कर पा रहा आनंद
सदियों  से कर रहा पुरुष प्रेम का पाखंड !


भोली प्रिया न जानती पुरुष के दांव -पेंच ,
सर्वस्व अर्पित कर रही रागिनी अचेत ,
भावनाओं में बही लुटा रही सुगंध !
सदियों  से कर रहा पुरुष प्रेम का पाखंड !


छल कपट से मोह रहा नारी का ये ह्रदय ,
लक्ष्य देह की प्राप्ति किंचित न इसको भय ,
शकुन्तला को भूल जाते ये छली दुष्यंत !
सदियों  से कर रहा पुरुष प्रेम का पाखंड !


शुचिता प्रमाण का दिया श्रीराम ने आदेश  ,
चीखता सिया का उर सुन प्रभु -निर्देश  ,
चौदह बरस काँटों पे चली इन्ही राम संग !
सदियों  से कर रहा पुरुष प्रेम का पाखंड !


पुरुष ही जानते रहे पुरुष ह्रदय के भेद ,
विश्वामित्र के लिए मेनका दी भेज ,
नारी देहास्त्र से करवाते तप ये भंग !
सदियों  से कर रहा पुरुष प्रेम का पाखंड !


छली गयी नारी स्वयं को देती स्वयं दंड ,
आत्महत्या कर मिटी आहत न पुरुष दंभ ,
उलझा हुआ ये जाल है न अंत न आरम्भ !
सदियों  से कर रहा पुरुष प्रेम का पाखंड !


शिखा कौशिक 'नूतन '

शनिवार, 8 जून 2013

मुझे माफ़ कर दो मेरे बच्चों -लघु कथा

pistol
लघु कथा 


Cute Baby With Hat


सुबह सुबह  घर  का मुख्य  द्वार कोई जोर जोर  से पीट रहा  था .वसुधा रसोई में  नाश्ता  तैयार  कर रही थी गगन  दफ्तर जाने  के   लिए  तैयार  हो  रहा था .वसुधा काम  बीच  में  छोड़कर  झींकती  हुई  किवाड़  खोलने  को  बढ़  गयी .किवाड़  खोलते ही उसकी चीख निकल गयी -'' पिता जी आप ....ये बन्दूक ...!!!'' गगन भी वहां पहुँच चुका था .वसुधा और गगन ने दो साल पहले प्रेम विवाह किया था घर से भागकर और अपने शहर से दूर यहाँ आकर अपनी गृहस्थी  जमाई थी .वसुधा के पिता को न जाने कैसे यहाँ का पता मिल गया था . गगन की छाती पर बन्दूक सटाकर वसुधा  के पिता गुस्से में फुंकारते हुए बोले -''...हरामजादी ...पूरी बिरादरी में नाक कटा दी .आज तेरे सामने ही इस हरामजादे का काम तमाम करूंगा   !'' वसुधा दहाड़े मारकर रोने लगी तभी पायल की छन छन  की मधुर ध्वनि के साथ ''माँ ...पप्पा ...'' करती हुई एक नन्ही सी बच्ची वसुधा की ओर दौड़ती हुई आई .वसुधा के पिता का ध्यान उस पर गया तो हाथ से बन्दूक छूट   गयी और उन्होंने दौड़कर उस बच्ची को गोद में उठा लिया . ''वसु ...मेरी छोटी सी वसु ..'' ये कहते हुए उन्होंने उसका माथा चूम लिया .वसुधा रोते हुए पिता के चरणों में गिर पड़ी और फफकते हुए बोली -''पिता जी मुझे माफ़ कर दीजिये .मैंने आपका दिल दुखाया है .'' गगन भी हाथ जोड़कर उनके चरणों में झुक गया .वसुधा के पिता ने झुककर दोनों को आशीर्वाद देते  हुए कहा -'' आज अगर ये नन्ही सी वसु मेरी आँखों के सामने न आती तो न जाने दुनिया की बातों में आकर मैं क्या अनिष्ट कर डालता .मुझे माफ़ कर दो मेरे बच्चों .'' 

शिखा कौशिक 'नूतन' 

शुक्रवार, 7 जून 2013

चुल्लू भर पानी में डूब मरो संजय पंचोली

                
पुरुष कितना स्वार्थी है ये हर वो हादसा साबित करता है जब कोई कली कुचल दी जाती है .वो गीतिका हो या जिया .जिया को आधुनिक नारी की संज्ञा देकर उसकी आत्म हत्या को आधुनिकता का दुष्परिणाम बताने वाले ये क्यों भूल जाते हैं कि उसकी मौत परिणाम है उस पुरुष की बेवफाई का  जिसने जब तक  चाहा उसकी भावनाओं के साथ खिलवाड़ किया  और  जब दिल भर गया तब झूठ बोलकर उससे  किनारा  कर  लिया पर क्या जिया के लिए ये सब इतना ही आसान था ?संजय पंचोली हो या कोई और इन्हें तब तक जिया जैसी लड़कियों से कोई परेशानी नहीं होती जब   तक ये इन्हें हासिल नहीं कर लेते पर हासिल कर लेने के बाद यूज एंड थ्रो की नीति अपनाते हुए छल का सहारा लेने लगते हैं .जिया जैसी लडकिया इन्हें उदार पुरुष समझ कर इन्हें सब कुछ सौप देती हैं अपना .ऐसा आज ही नहीं होता ये सब पुरातन काल से होता आया है .पुरुष का छल दुष्यंत-शकुन्तला वृतांत में भी था और आज भी प्रचंड रूप में दृष्टिगोचर हो रहा है .आज बस मेरे ह्रदय से यही निकल रहा है -चुल्लू भर पानी में डूब मरो संजय पंचोली ...जिसने इतनी चुलबुली -जीवंत लड़की को आत्महत्या के लिए मजबूर कर डाला ....तुम से सौ गुना वफादार तो जिया का एक फैन निकला जिसने जिया की मौत पर खुद फाँसी लगाकर आत्महत्या कर ली .

शिखा कौशिक 'नूतन '

वास्तव में जिया खान आधुनिक नारी की एक प्रतिनिधि थी

ज़िया ख़ान मर गई. उसने 3 दिन पहले पंखे से लटक कर खुदकुशी कर ली थी. पोस्टमार्टम रिपोर्ट में आया है कि मरने से पहले उसने शराब भी पी थी. मरने से पहले उसने सूरज पंचोली को फ़ोन किया था. 
आत्महत्याएं सारे समाज के लिए चेतावनी हैं. वास्तव में जिया खान आधुनिक नारी की प्रतिनिधि थी. आधुनिक नारी के रास्ते पर चलकर आज की नारियों के एक तादाद किस अंजाम से दो चार हो रही है. इसे आसानी से जाना जा सकता है.   वास्तव में आज इंसानियत के सामने आदर्श का संकट है. इन हालात में हम सबको सोचना होगा कि सेक्स और क्राइम की दलदल से अपनी नस्ल को कैसे बचाएं ?

बुधवार, 5 जून 2013

बहन जी फोबिया आखिर क्या है ?

Kareena with a mission in Satyagraha

मैंने प्रकाश झा से कहा था कि मुझे बहन जी टाइप मत
 बनाना।क्यों कहा करीना ने ऐसा ?

  बहन  जी फोबिया  आखिर  क्या  है  -

जब  कोई पुरुष  सड़क पर या किसी अन्य जगह पर  किसी महिला को संबोधित करते हुए कहता है -बहन जी और महिला को महसूस होता है कि ये उसकी सुन्दरता -स्मार्टनेस को कलंकित करने जैसा है तब उसे बहन जी फोबिया का शिकार  कहा जा सकता  है .

बहन जी फोबिया का शिकार आयु-वर्ग-

इस आयु वर्ग में १५ वर्ष से ६५ वर्ष तक की महिला को रखा जा सकता है .

क्या है कारण  इस फोबिया का -

अक्सर हम देखते हैं कि अभिनेत्रियाँ उम्र बढ़ जाने पर भी मेक अप के माध्यम से कम उम्र का दिखना चाहती हैं अमूमन ऐसी ही स्थिति कुछ आम महिलाओं की भी है .'बहन जी ' कहे जाने पर उनको एतराज इसलिए भी हो सकता है कि उन्हें महसूस होता उनका आकर्षण कम हो रहा है और पुरुष वर्ग उनकी खिल्ली उड़ा रहा है .

बहन जी फोबिया से बचने के लिए क्या उपाय करती हैं -

आजकल यह प्रचलन है कि शादीशुदा महिलाये भी साड़ी व् परम्परागत स्त्री वस्त्रों की जगह कम उम्र की दिखने के लिए जींस-टीशर्ट पहनना पसंद कर रही हैं .दूर से दिखने पर वे स्कूल गर्ल नज़र आती हैं और पास पहुँचने पर स्कूल गर्ल की माता जी .बस उदेश्य एक ही कोई उन्हें 'बहन जी ' न कह दे .मैडम कहलाना वे सर्वाधिक पसंद करती हैं और अब तो उनके बच्चे भी अपनी मॉम को आधुनिक परिधानों में देखना पसंद करते हैं .

कैसे बचें इस बहन जी फोबिया से ?

महिलाओं को चाहिए कि 'बहन जी ' कहे जाने पर गौरवान्वित महसूस करें .वर्तमान में जब लोग अपनी बहन तक का लिहाज़ नहीं करते तब कोई पुरुष जब आपको बहन का दर्ज़ा दे रहा है तब आपको शुक्रगुज़ार होना चाहिए उसका .साथ ही बहन जी का दर्ज़ा देने वाला पुरुष आपके प्रति गलत धारणा नहीं रखेगा -इस विचार को मस्तिष्क में स्थान दे .आप ऐसे सज्जनों का दिल से सम्मान करें .यदि कोई चिढाने के लिए भी ऐसा कर रहा है तो भी आपका तो सम्मान ही है .बहन का दर्ज़ा आकर्षण का केंद्र बनने वाली स्त्री से कहीं ऊपर है .

शिखा कौशिक 'नूतन '

ऑनर किलिंग व् पुत्री धर्म

Sita : Goddess Sita Stock Photo
ऑनर किलिंग व् पुत्री धर्म 

आज भारतीय समाज 'ऑनर  किलिंग ' जैसे स्त्री विरूद्ध अपराध से आक्रांत दिखाई दे रहा है .वैश्विक जीवन मूल्यों  से प्रभावित होते भारतीय सामाजिक-पारिवारिक मूल्यों ने एक विचित्र   स्थिति को जन्म दे दिया है .आज पिता -पुत्री व् बहन -भाई के पारस्परिक स्नेहमयी संबंधों में दरार सी आई प्रतीत होती है .परिवर्तन के इस दौर में पुन:-पुन:पिता व् भ्राताओं के पुत्री व् भगिनी के प्रति कर्तव्यों  पर तो विचार की मांग उठती रहती है किन्तु पुत्री व् बहन के कर्तव्यों व् आचरण का भी इस सन्दर्भ में अवलोकन कर लेना अनिवार्य हो जाता है .गत वर्ष घटित एक घटना में एक पुत्री अपने प्रेमी के साथ घर से भाग गयी जिसके परिणाम  स्वरुप उसके पिता ने जहर खा लिया .क्या पुत्री का धर्म  यही है कि वो अपने हित -चिंतन में अपने पिता की भावनाओं को स्वाहा कर दे ? एक अन्य घटना क्रम में एक पुत्री ने अपने प्रेमी के साथ मिलकर माता -पिता की हत्या कर दी .उसका एकलौता भाई किसी तरह बच गया .धिक्कार है ऐसी पुत्रियों पर !संयम- अनुशासन जैसे गुण कहाँ लुप्त हो गए हमारी पुत्रियों में से ?
                          भ्रमित व् स्वार्थी पुत्रियों को जानना चाहिए कि वे उस देश में पैदा हुई हैं जिसका इतिहास पुत्रियों के उज्जवल चरित्रों से भरा पड़ा है .राजा कुशनाभ की घृताची अप्सरा  के गर्भ से जन्मी सौ कन्याओं की पितृ-भक्ति वन्दनीय है और असंयमित होती आज की पीढ़ी की बेटियां इससे पुत्री-धर्म की शिक्षा ले सकती हैं . राजा कुशनाभ की अत्यंत सुन्दर अंगों वाली पुत्रियाँ एक दिन उद्यान भूमि में गति ,नृत्य करती आनंद मग्न हो रही थी तब उनके रूप-यौवन पर आसक्त होकर वायु देवता ने उनसे कहा -
''अहम् ...            ...भविष्यत ''-[श्लोक-१६-१७ ,पृष्ठ ९६ ,बाल कांड त्रियस्त्रिश: सर्ग :-श्रीमद्वाल्मीकीय रामायण ]  
 [अर्थात-सुन्दरियों मैं तुम सबको अपनी प्रेयसी के रूप में प्राप्त करना चाहता हूँ !तुम सब मेरी भार्यएं बनोगी .अब मनुष्य भाव का त्याग करो और मुझे अंगीकार करके देवांगनाओं  की भांति दीर्घ आयु प्राप्त कर लो .विशेषतः मानव शरीर में यौवन कभी स्थिर नहीं रहता -प्रतिक्षण क्षीण होता जाता है .मेरे साथ सम्बन्ध हो जाने से तुम लोग अक्षय यौवन प्राप्त करके अमर हो जाओगी !]  
वायु देव के इस प्रस्ताव को सुनकर पतिर -भक्त  कुशनाभ कन्याओं का यह  प्रतिउत्तर  भारतीय  संस्कृति में पुत्रियों को दिए गए संस्कारों  को प्रदर्शित करते हैं -यथा -
''माँ भूत स  कालो  .....नो  भर्ता भविष्यति ''  [21-22 श्लोक  उपरोक्त ]
[दुर्मते ! वह समय कभी न आवे जब कि हम अपने सत्यवादी पिता की अवहेलना करके कामवश या अत्यंत अधर्मपूर्वक स्वयं ही वर  ढूँढने लगें .हम लोगों पर हमारे पिता जी का प्रभुत्व है , वे हमारे लिए सर्वश्रेष्ठ देवता हैं .पिता जी हमें  जिसके हाथ में दे देंगे ,वही हमारा पति होगा ]
ऐसी पितृ भक्त कन्याओं को जब वायुदेव ने कुपित होकर उनके भीतर प्रवेश कर उनके अंगों  को टेढ़ा कर कुबड़ी बना दिया तब पिता कुशनाभ द्वारा चयनित ऐश्वर्यशाली तेजस्वी वर ब्रह्मदत्त के साथ विवाहकाल में हाथ के स्पर्श होते ही सभी कन्यायें कुब्जत्व दोष से रहित ,निरोग तथा उत्तम शोभा से संपन्न हुई .    
कुल की मर्यादा को अपने काम भाव से ऊपर स्थान देने वाली कुशनाभ कन्याओं ने पुत्री-धर्म  का जो उदाहरण प्रस्तुत किया वह वर्तमान में कितना प्रासंगिक हो उठा है .आज यदि पुत्री-धर्म की शिक्षा कन्याओं को शिशु काल से ही प्रदान की जाये तो भारतीय समाज को देश व् कुल का मन बढ़ने वाली पुत्रियाँ प्राप्त हो सकेंगी .
                                            माता सीता की पितृ भक्ति सर्वविदित है .राजा जनक ने निश्चय  किया था कि-
''वीर्य शुल्केती ........मुनिपुङ्गव '' [श्लोक १३ ,बाल कांड, पृष्ठ १५५ षटपष्टितम: सर्ग :]
[अपनी इस अयोनिजा (सीता)कन्या के विषय में मैंने यह निश्चय किया है कि जो अपने पराक्रम से इस धनुष को चढ़ा देगा ,उसी के साथ मैं इसका ब्याह करूंगा .इस तरह इसे वीर्य शुल्क (  पराक्रम शुल्क वाली ) बनाकर अपने घर में रख छोड़ा .मुनि श्रेष्ठ ! भूतल से प्रकट होकर दिनों-दिन बढ़ने वाली मेरी पुत्री सीता को कई राजाओ ने यहाँ आकर माँगा ]   
  माता सीता ने पिता द्वारा निर्धारित पराक्रम शुल्क अर्थात परम प्रकाशमान शिव जी के धनुष पर प्रत्यन्चा चढ़ा देने वाले अयोध्या के राजकुमार श्रीराम को ही वरमाला पहनाई .यद्यपि माता सीता पुष्प वाटिका में श्रीराम के दर्शन कर उन पर मुग्ध हो गयी थी किन्तु वे यह भी जानती थी कि पिता का निश्चय उनकी भावनाओं से ऊपर है .इसीलिए   श्रीराम को वर के रूप में प्राप्त करने की इच्छा वे जिह्वा पर नहीं लाती और गौरी पूजन के समय मात्र इतना ही वर मांगती हैं -
''मोर मनोरथु जानहु नीके ,बसहु सदा उर पुर सबहि के ,
कीन्हेउ प्रगट न कारन तेहि ,अस कही चरण गहे वैदेही !''[श्रीरामचरितमानस ,बाल कांड ,पृष्ठ -२१९]
माता सीता श्री राम को वर रूप में प्राप्त करना चाहती हैं पर तभी जब वे उनके पिता द्वारा किये गए निश्चय को पूरा करें .यही कारण है कि वे सब ह्रदय में निवास करने वाली माता गौरी से अपनी मनोकामना नहीं  प्रकट करती क्योंकि माता गौरी तो उनके ह्रदय की कामना को भली -भांति जानती ही हैं .पिता के प्रण को अपनी मनोकामना से ऊपर स्थान देने वाली माता सीता इसीलिए जगत में जनकनंदनी ,जानकी ,जनकसुता और वैदेही के नाम से प्रसिद्द हुई .पुत्री धर्म का पालन करने वाली महान माता सीता के समक्ष जब आज की पिता को धोखा  देकर  भाग  जाने  वाली पुत्री को खड़ा करते  हैं तब सिर  शर्म  से झुक जाता है .
                                             तपस्विनी कन्या वेदवती की पितृ भक्ति के आगे कौन जन नतमस्तक न होगा ?रावण द्वारा उनका परिचय पूछे जाने पर वे कहती हैं -
''कुशध्वज  जो ........राक्षस पुंगव्  '' [श्लोक ८-१७ ,उत्तरकांडे पृष्ठ -६४३ ,सप्तदश: सर्ग:] 
[अमित तेजस्वी ब्रह्म ऋषि श्रीमान कुशध्वज मेरे पिता थे , जो ब्रहस्पति के पुत्र थे और बुद्धि में भी उन्ही के समान माने जाते थे .प्रति दिन वेदाभ्यास करने वाले उन महात्मा पिता से वांगमयी   कन्या के रूप में मेरा प्रादुर्भाव हुआ था .मेरा नाम वेदवती है .जब मैं बड़ी हुई तब देवता ,गन्धर्व ,राक्षस और नाग भी पिता जी के पास आकर उनसे मुझे मांगने लगे .राक्षसेश्वर ! मेरे पिता जी ने उनके हाथ में मुझे नहीं सौपा .इसका कारण क्या था ? मैं बता रही हूँ ...सुनिए  -पिता जी की इच्छा थी कि तीनों लोकों के स्वामी देवेश्वर भगवान् विष्णु मेरे दामाद बने .इसीलिए वे दूसरे किसी के हाथ में मुझे नहीं देना चाहते थे .उनके इस अभिप्राय को सुनकर बलाभिमानी दैत्यराज शम्भू उन पर कुपित हो उठा और उस पापी ने रात में सोते समय मेरे पिता की हत्या कर दी .   इससे मेरी महाभागा माता को बड़ा दुःख हुआ और वे पिता जी के शव को ह्रदय से लगाकर चिता की आग में प्रविष्ट हो गयी .तबसे मैंने प्रतिज्ञा कर ली है कि भगवान नारायण के प्रति पिता जी का जो मनोरथ था उसे सफल करूंगी .इसीलिए मैं उन्ही को अपने ह्रदय मंदिर में धारण करती हूँ .यही प्रतिज्ञा करके मैं ये महान तप कर रही हूँ ]
रावण के द्वारा कामवश अपने केश पकडे जाने पर वेदवती क्रोधित होकर अग्नि में समाने के लिए तत्पर होकर यही कहती हैं -
'यदि ...सुता '[उत्तर कांड   ,अष्टादश:सर्ग: .पृष्ठ ६४५ ,श्लोक ३३ ]
[यदि मैंने कुछ भी सत्कर्म ,दान और होम किये हो तो अगले जन्म में मैं सती-साध्वी अयोनिजा कन्या के रूप में प्रकट होऊं तथा किसी धर्मात्मा पिता की पुत्री बनू ]
यही वेदवती अगले जन्म में राजा जनक की पुत्री सीता  के रूप में जानी गयी .पिता के प्रण को प्राण चुकाकर  भी देवी वेदवती ने भंग न होने दिया और अगले जन्म में सनातन विष्णु अवतार श्रीराम को पति रूप में पाया .
ऐसी उज्जवल चरित्र वाली पुत्रियों की भूमि भारत में आज जब कुछ पुत्रियाँ अमर्यादित आचरण कर पिता की भावनाओं को रौंदती हुई कामोन्माद में घरों से भाग रही हैं तब यह जरूरी हो जाता है कि भारतीय समाज अपने परिवारों में दिए जाने वाले संस्कारों पर ध्यान दें क्योंकि शिशु तो अनुसरण से सीखता है .पुत्रियों को पुत्री धर्म की शिक्षा दें ताकि आने वाली पीढ़िया उनके उज्जवल चरित्रों से शिक्षा लेकर कुल व् देश का गौरव बढ़ाएं तथा ''ऑनर किलिंग' जैसे स्त्री विरूद्ध अपराधों पर भी इसी तरह  रोक लगायी जा सकती हैं .

शिखा कौशिक 'नूतन 


कहानी ---पर्यावरण दिवस .... ड़ा श्याम गुप्त....

                                कहानी ---पर्यावरण दिवस   (ड़ा श्याम गुप्त )      
                क्लब-हाउस के चारों ओर घूमते हुए मि.वर्मा, मि.सेन व मुकुलेश जी की मुलाक़ात सत्यप्रकाश जी से हुई |       
              ‘चलिए सत्य जी,’ मि सेन बोले,’ आज पर्यावरण दिवस है, दोसौ पौधे आये हैं, ग्राउंड में लगवाने के लिए, चलेंगे |’
             ‘हाँ हाँ चलिए’, मि.वर्मा भी कहने लगे, ‘कुछ समाज सेवा भी होजाय |’
           ‘मुझे ब्लॉग पर पर्यावरण पर कहानी लिखनी है |’ सत्य जी बोले, ‘ वैसे क्या एक दिन पौधे लगाने से पर्यावरण सुधर जायगा ?’ उन्होंने प्रति-प्रश्न किया |
           अरे, यह लोगों में पर्यावरण के प्रति चेतना जगाने हेतु प्रचार-प्रसार है | आज कई प्रोग्राम हैं | स्कोलों में बच्चे नाटिकाएं कर रहे हैं, नुक्कड़ नाटक भी होरहे हैं | स्थान-स्थान पर विचार-विमर्श व् विविध कार्यक्रम किये जा रहे हैं ...  पानी बचाओ...पृथ्वी बचाओ ...पर्यावरण-मित्र बनें ...आदि| सभी प्रवुद्धजनों को अवश्य ही सहयोग देना चाहिए | अच्छे कार्य में |
           पर मैं सोचता हूँ, सत्यप्रकाश जी कहने लगे, ‘कि आप-हम सबको ...ये  पेड़ लगते हुए, पर्यावरण-दिवस मनते हुए ..देखते–सुनते हुए लगभग २०-३० वर्ष होगये | क्या आपके संज्ञान में कहीं कुछ लाभ हुआ है | पेड़ काटना/कटना रुका है, पानी की कमी पूरी हुई है कहीं, नदियों का प्रदूषण कम हुआ है, झीलें-तालाब लुप्त होने से बचे हैं, वातावरण शुद्ध हुआ है ? नहीं.... अपितु लगातार वन-पर्वत उजड रहे हैं, नदियों में कचरा बढ़ रहा है, पानी बोतलों में बिकने लगा है|’
           ‘तो क्या ये सारे प्रोग्राम व्यर्थ है, जागरूकता न लाई जाय ?’ वर्मा जी बोले |
            भई, देखिये, सत्य जी कहने लगे  ...आज ये बच्चे, युवा, बड़े, नेता, अफसर ...पेड़ लगाकर, नाटिका करके, भाषण देकर, उदघाटन करके घर जायेंगे | और घर जाकर सभी फ्लश में फाउंटेन में दिन भर पानी बहायेंगे, टूथब्रश करेंगे, विदेशी फल-सब्जियां खरीदेंगे, विदेशी क्वालिटी के बिना फल-फूल देने वाले सजावटी पौधे गमले में लगाकर घर सजायेंगे | प्लास्टिक के खिलौने, साइकल, ब्रांडेड जूते, पानी की बोतलों, रेकेट-शटल से मस्ती करेंगे | महिलायें कूड़ा फैंकने हेतु तरह तरह की प्लास्टिक की थैलियाँ खरीदेंगी | सरकार बड़ी-बड़ी मल्टी-स्टोरी बिल्डिंगें, माल, सड़कें बनाने हेतु वन-पेड़ काटने की अनुमति देगी |   
           तो फिर, मुकुलेश जी असमंजस में धीरे-धीरे बोले, ‘व्हाट टू डू ‘.. आपकी राय में फिर क्या करना चाहिए?
          ‘कथनी की बजाय करनी |’ सत्य जी बोले |
          कैसे, वर्माजी बोले |
         ‘शिफ्ट टू राईट’...  जीवन-यापन के सहज भारतीय तौर-तरीकों पर लौटना | पर्यावरण संस्कृति का अंग बने और हर दिन ही पर्यावरण-दिवस हो | 
         क्या मतलब, वर्मा जी पूछने लगे ?
            सत्य जी हंसते हुए कहने लगे, ‘ ब्रश छोडकर नीम/बबूल की दातुन का प्रयोग करें, फ्लश-सिस्टम समाप्त हो | वे पुनः हंसने लगे, बोले ...पुराने ‘लेंड-डिफीकेशन’ सिस्टम से पानी बचता है | ...प्लास्टिक का प्रयोग बिलकुल बंद, मल्टी स्टोरी आवास, माल सब समाप्त किये जायं | भूमि..धरती जैसी है वैसी ही प्राकृतिक तरीके से घर, गाँव, नगर बसने दिए जायं | सारे आधुनिक गेजेट्स जन-सामान्य, पब्लिक के प्रयोग के लिए बंद कर दिए जायं | तभी तो होगा पर्यावरण, संस्कृति का हिस्सा और हर दिन होगा पर्यावरण दिवस |’  
           क्या कहते हैं ! ‘ये कैसे होसकता है ? दुनिया की लाइफ ही पैरालाइज हो जायगी |’ तीनों एक साथ हैरानी से बोले|  और यदि ये वैज्ञानिक प्रगति नहीं होती तो आप स्वयं लैपटाप पर ब्लॉग या कहानी कैसे लिख रहे होते ? तीनों हंसने लगे |
          ‘यदि नहीं हो सकता, तो फिर चिंता क्या, ये सब नाटक करने के क्या आवश्यकता, चलने दीजिए ऐसे ही,  जैसा चल रहा है | कल की बजाय आज ही पेड़, पौधे, वनस्पति, पानी, नदियाँ समाप्त होजायं | कल की  बजाय आज ही प्रलय आजाय, धरती नष्ट होजाय | जब सभी नष्ट होंगे तो किसी का क्या जायगा | कम से कम नयी धरती तो जल्द तैयार होगी |’ सत्य जी हंसते हुये कहते गए,  ‘और यदि लेपटोप के लिए प्लास्टिक की उत्पत्ति होती ही नहीं तो ब्लॉग लिखने की आवश्यकता ही कहाँ पडती, यह नौबत ही क्यों आती|’
          आपका मतलब है कि ये सारी विज्ञान-प्रगति, एडवांस्मेंट व्यर्थ है | सब इंजीनियर, वैज्ञानिक, विज्ञान, सारा देश मूर्ख है जो इतनी कसरत कर रहे हैं ? मुकुलेश जी में कहा |
         नहीं, ऐसा नहीं है, सत्य जी बोले, ‘पर ..पहले गड्ढा खोदो फिर उसे भरो.. की नीति अपनाना व्यर्थ है | ये सारी प्रगति, विज्ञान, कला, साधन, भौतिक-उत्पादन, गेजेट्स आदि सभी केवल विशिष्ट कार्यों, परिस्थितियों, संस्थानों (उदाहरणार्थ ..राष्ट्रीय रक्षा-सुरक्षा ) के प्रयोगार्थ ही सीमित होनी चाहिए, सामान्य जन के भौतिक सुख-साधन हेतु कदापि नहीं | क्योंकि मानव की सुख-साधन लिप्सा का कोई अंत नहीं | यहीं से विनाश प्रारंभ होता है | ज़िंदगी होगई टूथब्रश व पेस्ट् के हज़ारों ब्रांड व तरीके प्रयोग करते परन्तु दांतों के रोग-रोगी-अस्पताल  बढ़ते ही जारहे हैं...क्यों? अतः वैज्ञानिक प्रगति के अति-व्यक्तिवादी व घरेलू प्रयोग-उपयोग से प्रकृति व वातावरण का तथा स्वयं सृष्टि व मानव का विनाश प्रारम्भ होता है, यह जानें, समझें, मानें ..उस पर चलें |


          






                             




मंगलवार, 4 जून 2013

5 जून पर्यावरण दिवस :धरती माँ की चेतावनी



दुश्मन न बनो अपने ,ये बात जान लो ,
कुदरत को खेल खुद से ,न बर्दाश्त जान लो .

चादर से बाहर अपने ,न पैर पसारो,
बिगड़ी जो इसकी सूरत ,देगी घात जान लो . 

निशदिन ये पेड़ काट ,बनाते इमारते ,
सीमा सहन की तोड़ ,रौंदेगी गात जान लो .

शहंशाह बन पा रहे ,जो आज चांदनी ,
करके ख़तम हवस को ,देगी रात जान लो .

जो बोओगे काटोगे वही कहती ''शालिनी ''
कुदरत अगर ये बिगड़ी ,मिले मौत जान लो .

      शालिनी कौशिक 
           [कौशल ]

सोमवार, 3 जून 2013

ये है मेरा सौभाग्य श्री राम की दासी हूँ मैं ,

Sita : Rama and Sita  

शूल बने फूल हैं , चुभन में भी  मिठास है ,
है मुदित ह्रदय मेरा , मिला प्रभु का साथ है !



जिस शीश सजना किरीट था उस शीश पर जटा बंधी 
चौदह बरस वनवास पर चले प्रिय महारथी  ,
 मैं भी चली उस पथ पे ही जिस पथ पे प्राणनाथ हैं !
है मुदित ह्रदय मेरा , मिला प्रभु का साथ है !



ये है मेरा सौभाग्य  श्री राम की दासी हूँ मैं ,
प्रिय हैं मेरे अमृत सदृश कंठ तक प्यासी हूँ मैं ,
जन्मों-जन्मों के लिए थामा प्रभु का हाथ है !
है मुदित ह्रदय मेरा , मिला प्रभु का साथ है !



वन वन प्रभु के संग चल चौदह बरस कट जायेंगें ,
भैया लखन को साथ ले वापस अयोध्या आयेंगें ,
होगी सनाथ फिर प्रजा जो हो रही अनाथ है !
है मुदित ह्रदय मेरा , मिला प्रभु का साथ है !


शिखा कौशिक 'नूतन '

शनिवार, 1 जून 2013

संस्कृति रक्षण में महिला सहभाग

pretty hindu indian woman...editable vector illustration of ...स्मारिका- संस्कृति रक्षण में महिला सहभाग
यूनान ,मिस्र ,रोमां सब मिट गए जहाँ से ,
बाकी अभी है लेकिन ,नामों निशां हमारा .
कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी ,
सदियों रहा है दुश्मन ,दौरे ज़मां हमारा .
भारतीय संस्कृति की अक्षुणता को लक्ष्य कर कवि इक़बाल ने ये ऐसी अभिव्यक्ति दी जो हमारे जागृत व् अवचेतन मन में चाहे -अनचाहे विद्यमान  रहती है  और साथ ही इसके अस्तित्व में रहता है वह गौरवशाली व्यक्तित्व जिसे प्रभु ने गढ़ा ही इसके रक्षण के लिए है और वह व्यक्तित्व विद्यमान है हम सभी के सामने नारी रूप में .दया, करूणा, ममता ,प्रेम की पवित्र मूर्ति ,समय पड़ने पर प्रचंड चंडी ,मनुष्य के जीवन की जन्मदात्री ,माता के समान हमारी रक्षा करने वाली ,मित्र और गुरु के समान हमें शुभ कार्यों  के लिए प्रेरित करने वाली ,भारतीय संस्कृति की विद्यमान मूर्ति श्रद्धामयी  नारी के विषय में ''प्रसाद''जी लिखते हैं -
''नारी तुम केवल श्रद्धा हो ,विश्वास रजत नग-पग तल में ,
पियूष स्रोत सी बहा करो ,जीवन के सुन्दर समतल में .''
संस्कृति और नारी एक दूसरे के पूरक कहे जा सकते हैं .नारी के गुण ही हमें संस्कृति के लक्षणों के रूप में दृष्टिगोचर होते हैं .जैसे भारतीय नारी में ये गुण है  कि वह सभी को अपनाते हुए गैरों को भी अपना बना लेती है वैसे ही भारतीय संस्कृति में विश्व के विभिन्न क्षेत्रों से आई संस्कृतियाँ समाहित होती गयी और वह तब भी आज अपना अस्तित्व कायम रखे हुए है और यह गुण उसने नारी से ही ग्रहण किया है .
   संस्कृति मनुष्य की विभिन्न साधनाओं की अंतिम परिणति है .संस्कृति उस अवधारणा को कहते हैं जिसके आधार पर कोई समुदाय जीवन की समस्याओं पर दृष्टि निक्षेप करता है .''आचार्य हजारी प्रसाद द्वैदी  ''के शब्दों में ,-
''नाना प्रकार की धार्मिक साधनाओं कलात्मक प्रयत्नों और भक्ति तथा योगमूलक अनुभूतियों के भीतर मनुष्य उस महान सत्य के व्यापक और परिपूर्ण रूप को क्रमशः  प्राप्त करता जा रहा है जिसे हम ''संस्कृति''शब्द द्वारा व्यक्त करते हैं .''
    इस प्रकार किसी समुदाय की अनुभूतियों के संस्कारों के अनुरूप ही सांस्कृतिक अवधारणा का स्वरुप निर्धारित होता है .संस्कृति किसी समुदाय,जाति अथवा देश का प्राण या आत्मा होती है ,संस्कृति द्वारा उस जाति ,राष्ट्र अथवा समुदाय के उन समस्त संस्कारों का बोध होता है जिनके सहारे वह अपने आदर्शों ,जीवन मूल्यों आदि का निर्धारण करता है और ये समस्त संस्कार जीवन के समस्त क्षेत्रों में नारी अपने हाथों  से प्रवाहित  करती  है .जीवन के आरम्भ  से लेकर अंत तक नारी की भूमिका संस्कृति के रक्षण में अमूल्य है .
    भारतीय संस्कृति का मूल तत्व ''वसुधैव कुटुम्बकम ''है .सारी वसुधा को अपना घर मानने वाली संस्कृति का ये गुण नारी के व्यव्हार में स्पष्ट दृष्टि गोचर होता है .पूरे परिवार को साथ लेकर चलने वाली नारी होती है .बाप से बेटे में पीढ़ी  दर पीढ़ी संस्कार भले ही न दिखाई दें किन्तु सास से बहू तक किसी भी खानदान के रीति-रिवाज़ व् परम्पराएँ हस्तांतरित होते सभी देखते हैं .
    ''जियो और जीने दो''की परंपरा को मुख्य सूत्र के रूप में अपनाने वाली हमारी संस्कृति अपना ये गुण भी नारी के माध्यम  से जीवित रखते दिखाई देती है .हमारे नाखून जो हमारे शरीर पर मृत कोशिकाओं के रूप में होते हैं किन्तु नित्य प्रति उनका बढ़ना जारी रहता है ..हमारी मम्मी ने ही हमें बताया था कि उनकी दादी ने ही उनको बताया था -''कि नाखून काटने के बाद इधर-उधर नहीं फेंकने चाहियें बल्कि नाली में बहा देना चाहिए .''हमारे द्वारा ऐसा करने का कारण पूछने पर मम्मी ने बताया -''कि यदि ये नाखून कोई चिड़िया खाले तो वह बाँझ हो सकती है और इस प्रकार हम अनजाने में चिड़ियों की प्रजाति के खात्मे के उत्तरदायी हो सकते हैं .''
         इन्सान जितना पैसे बचाने के लिए प्रयत्नशील रहता है शायद किसी अन्य कार्य के लिए रहता हो .हमारी मम्मी ने ही हमें बताया -''कि जब पानी भर जाये तो टंकी बंद कर देनी चाहिए क्योंकि पानी यदि व्यर्थ में बहता है तो पैसा भी व्यर्थ में बहता है अर्थात खर्च होता है व्यर्थ में .
     घरों में आम तौर पर सफाई के लिए प्रयोग होने वाली झाड़ू के सम्बन्ध में दादी ,नानी ,मम्मी सभी से ये धारणा हम तक आई है कि झाड़ू लक्ष्मी स्वरुप होती है इसे पैर नहीं लगाना चाहिए और यदि गलती से लग भी जाये तो इससे क्षमा मांग लेनी चाहिए . और ये भावना नारी की ही हो सकती है कि एक छोटी सी वस्तु का भी तिरस्कार न हो . हमारी संस्कृति कहती है कि ''जैसा व्यवहार आप दूसरों से स्वयं के लिए चाहते हो वही दूसरों के साथ करो .''अब चूंकि सभी अपने लिए सम्मान चाहते हैं ऐसे में नारी द्वारा झाड़ू जैसी छोटी वस्तु को भी लक्ष्मी का दर्जा दिया जाना संस्कृति की इसी भावना का पोषण है वैसे भी ये मर्म एक नारी ही समझ सकती है कि यदि झाड़ू न हो तो घर की सफाई कितनी मुश्किल है और गंदे घर से लक्ष्मी वैसे भी दूर ही रहती हैं .
    हमारी संस्कृति कहती है -
   ''यही पशु प्रवर्ति है कि आप आप ही चरे ,
    मनुष्य है वही कि जो मनुष्य के लिए मरे .''
भूखे को भोजन खिला उसकी भूख शांत करना हमारी संस्कृति में मुख्य कार्य के रूप में सिखाया गया है और इसका अनुसरण करते हुए ही हमारी मम्मी ने हमें सिखाया -''कि तुम दूसरे को खिलाओ ,वह तुम्हे मुहं से दुआएँ दे या न दे आत्मा से ज़रूर देगा .''
      भारतीय संस्कृति की दूसरों की सेवा सहायता की भावना ने विदेशी महिलाओं को भी प्रेरित किया .मदर टेरेसा ने यहाँ आकर इसी भावना से प्रेरित होकर अपना सम्पूर्ण जीवन इसी संस्कृति के रक्षण में अर्पित कर दिया .आरम्भ से लेकर आज तक नर्स की भूमिका नारी ही निभाती आ रही है क्योंकि स्नेह व् प्रेम का जो स्पर्श मनुष्य को जीवन देने के काम आता है वह प्रकृति ने नारी के ही हाथों में दिया है .
    हमारी ये महान संस्कृति परोपकार के लिए ही बनी है और इसके कण कण में ये भावना व्याप्त है .संस्कृत का एक श्लोक कहता  है -
  ''पिबन्ति नद्यः स्वयमेव नाम्भः ,
  स्वयं न खादन्ति फलानि वृक्षाः.
  नादन्ति शस्याम खलु वारिवाहा ,
  परोपकाराय  सताम विभूतयः ."    
    और नारी अपने फ़र्ज़ के लिए अपना सारा जीवन कुर्बान कर देती है .अपना या अपने प्रिय से प्रिय का भी बलिदान देने से वह नहीं हिचकती है .जैसे इस संस्कृति में पेड़ छाया दे शीतलता पहुंचाते हैं नदियाँ प्यास बुझाने के लिए जल धारण करती हैं .माँ ''गंगा ''का अवतरण भी इस धरती पर जन जन की प्यास बुझाने व् मृत आत्माओं की शांति व् मुक्ति के लिए हुआ वैसे ही नारी जीवन भी त्याग बलिदान की अपूर्व गाथाओं से भरा है इसी भावना से भर पन्ना धाय ने अपने पुत्र चन्दन का बलिदान दे कुंवर उदय सिंह की रक्षा की .महारानी सुमित्रा ने इसी संस्कृति का अनुसरण करते हुए बड़े भाइयों की सेवा में अपने दोनों पुत्र लगा दिए .देवी सीता ने इस संस्कृति के अनुरूप ही अपने पति चरणों की सेवा में अपना जीवन अर्पित कर दिया .उर्मिला ने लक्ष्मण की आज्ञा पालन के कारण अपने नयनों से अश्रुओं को बहुत दूर कर दिया ..
      नारी का संस्कृति रक्षण में सहभाग ऐसी अनेकों कहानियों को अपने में संजोये है इससे हमारा इतिहास भरा है वर्तमान जगमगा रहा है और भविष्य भी निश्चित रूप में सुनहरे अक्षरों में दर्ज होगा .

                              शालिनी कौशिक 
                        [   कौशल ]


                             

आजकल के लड़केवाले -लघु कथा

Indian_bride : An Indian bride and the henna artwork on her hands
आजकल के लड़केवाले -लघु कथा 

सीमा ने पड़ोसन विमला को उसके मुख्य द्वार से निकलते देखा तो अपनी चौखट लाँघ कर उसके पास पहुँच गयी और उसके कंधें पर हाथ रखते हुए बोली -विमला ..विम्पी को जो कल देखने आये थे क्या कह गए ?''  विमला उदास स्वर में बोली -'' क्या बताऊँ सीमा ...आजकल  के  लड़के  वाले  बहुत  ईमानदार  हो गए हैं  .कल जिस  लड़के  के  माता  -पिता  विम्पी को देखने आये थे बैठते  ही  बोले विम्पी के पापा से -देखिये भाईसाहब आप बस इतना बता दीजिये कि कितने का बजट है आपका ? यानि कितना पैसा लगा पायेंगें शादी में .यदि हमें सूट करेगा तो ठीक है वरना हम आपको धोखे में नहीं रखना चाहते .शादी के बाद बहू को दहेज़ के लिए सताना हम नहीं चाहते' .... विम्पी के पापा ने जो बजट बताया वो उनकी हैसियत से काफी कम था इसलिए विम्पी को देखे बगैर ही वे हाथ जोड़कर विदा हो गए .'' सीमा कडवी हँसी हँसते हुए बोली -सच कहा विमला लड़के वाले कुछ ज्यादा ही ईमानदार हो गए हैं .''


शिखा कौशिक 'नूतन'