पेज

सोमवार, 10 जून 2013

प्रेम का पाखंड-जिया बनी शिकार

Jiah Khan
प्रेम का पाखंड

नारी के उर से खेल कर पा रहा आनंद
सदियों  से कर रहा पुरुष प्रेम का पाखंड !


भोली प्रिया न जानती पुरुष के दांव -पेंच ,
सर्वस्व अर्पित कर रही रागिनी अचेत ,
भावनाओं में बही लुटा रही सुगंध !
सदियों  से कर रहा पुरुष प्रेम का पाखंड !


छल कपट से मोह रहा नारी का ये ह्रदय ,
लक्ष्य देह की प्राप्ति किंचित न इसको भय ,
शकुन्तला को भूल जाते ये छली दुष्यंत !
सदियों  से कर रहा पुरुष प्रेम का पाखंड !


शुचिता प्रमाण का दिया श्रीराम ने आदेश  ,
चीखता सिया का उर सुन प्रभु -निर्देश  ,
चौदह बरस काँटों पे चली इन्ही राम संग !
सदियों  से कर रहा पुरुष प्रेम का पाखंड !


पुरुष ही जानते रहे पुरुष ह्रदय के भेद ,
विश्वामित्र के लिए मेनका दी भेज ,
नारी देहास्त्र से करवाते तप ये भंग !
सदियों  से कर रहा पुरुष प्रेम का पाखंड !


छली गयी नारी स्वयं को देती स्वयं दंड ,
आत्महत्या कर मिटी आहत न पुरुष दंभ ,
उलझा हुआ ये जाल है न अंत न आरम्भ !
सदियों  से कर रहा पुरुष प्रेम का पाखंड !


शिखा कौशिक 'नूतन '

10 टिप्‍पणियां:

  1. आपको यह बताते हुए हर्ष हो रहा है के आपकी यह विशेष रचना को आदर प्रदान करने हेतु हमने इसे आज (सोमवार, १० जून, २०१३) के ब्लॉग बुलेटिन - दूरदर्शी पर स्थान दिया है | बहुत बहुत बधाई |

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस सुन्दर प्रविष्टि की चर्चा कल मंगलवार ११ /६ /१ ३ के विशेष चर्चा मंच में शाम को राजेश कुमारी द्वारा की जायेगी वहां आपका स्वागत है

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बढ़िया लिखा है .शुभकामनायें आपको .

    जवाब देंहटाएं
  4. यह कहना बिलकुल ग़लतहै कि मर्द औरत को हमेशा धोखा देता है.
    क्या औरतें मर्दों को धोखा नहीं देतीं ?
    इसके बावुजूद सभी औरतें या मर्द धोखेबाज़ नहीं होते.
    शादी की उम्र हो जाने पर पहले लड़के लड़कियों की शादी हो जाती थी, अब नहीं हो पाती . अपने तन-मन की ज़रूरत को पूरी करने के लिए आधुनिक युवा ऐसे रिश्ते बना रहे हैं जिनकी बुनियादी शर्त ही यह होती है कि उन्हें कभी भी आसानी से ख़तम किया जा सकता है.
    ब्वायफ्रेंड और गर्लफ्रेंड के रिश्ते की जो खासियत है, वही इस रिश्ते की सबसे बड़ी खराबी भी है. जिया खान इसी खराबी की शिकार हुई है.
    यह उसका अपना फैसला था .

    जवाब देंहटाएं
  5. अनवर जी -
    इस मुद्दे पर कोई दो राय नहीं कि मर्यादा का उल्लंघन किसी भी परिस्थिति में उचित नहीं है.जो नैतिक बंधन समाज द्वारा स्थापित किये गए हैं वे पुरुष व् स्त्री दोनों के लिए सामान हैं पर स्त्री उन्हें ज्यादा निभाती आई है इसलिए वो पूजी जाती है पर यहाँ प्रश्न है कि जब पुरुष व् स्त्री दोनों मर्यादा का उललंघन करते हैं तब स्त्री ही क्यों आत्म हत्या कर उसका प्रायश्चित करती है ?पुरुष क्यों नहीं आगे बढ़कर अपने इन संबंधों को वैधता प्रदान करने की कोशिश करता .छली पुरुष क्यों एक स्त्री को छल कर दूसरी को छलने के लिए बढ़ लेता है और पहली स्त्री को आत्म हत्या के लिए विवश कर देता है .

    जवाब देंहटाएं
  6. सही कहा है शिखा जी ...परन्तु अनवर जमाल साहब की बात भी उचित तथ्य है ---- चाहे छुरी खरबूजे पर गिरे या खरबूजा छुरी पर कटता खरबूजा हे है ..अतः निश्चय ही आपको खरबूजा व छुरी दोनों को नही उचित स्थान पर रखना होगा ताकि ...आवश्यकता पड़ने पर उचित समय पर ही काटा जाय....

    जवाब देंहटाएं
  7. @ शिखा जी ! ऐसे समाचार भी आये दिन मिलते रहते हैं जब किसी की पत्नी मायके जाकर बैठ जाती है और पति उसे लाने के लिए सालों चक्कर काटता रहता है और नाकाम और निराश होकर आत्महत्या कर लेता है.

    विवाहिताओं द्वारा अपने प्रेमियों की मदद से अपने पतियों की हत्या भी इसी समाज का सच है.
    इसके बावुजूद औरत को ज्यादा झेलना पड़ता है. यह भी सच है.
    इसका इलाज यही है कि औरत अपनी ज्यादा केयर करे. समाज से बेवफ़ा मर्दों का सफ़ाया मुमकिन नहीं है. बेवफ़ा मर्दों को सज़ा देकर भी औरत के नुक़्सान की भरपाई मुमकिन नहीं है.
    ऐसे बेवफ़ा मर्द को दुनिया की कोई दूसरी औरत न अपनाए तो बेवफ़ा मर्द बिलकुल सीधे हो जायेंगे.
    औरत अपनी केयर न करे और दूसरी औरतें उसका साथ न दें तो औरत का भला मर्द कैसे कर देंगे ?
    किसी को दोष देकर औरत की समस्याएँ न हल हुई हैं और न ही हो सकती हैं.
    आप देखेंगी कि जल्दी ही सूरज पंचोली जी को इमोशनल सहारा देने के लिए कोई न कोई लड़की उनकी बग़ल में खड़ी होगी. चाहे आगे चलकर उसका हश्र जिया खान से भी ज़्यादा बुरा क्यों न हो !
    लडकियां कब सबक सीखेंगी और कब सिखाना सीखेंगी ?

    जवाब देंहटाएं