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रविवार, 30 जून 2013

दांवपेंच -एक लघु कथा

Portrait of a woman with her daughter stock photography
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अलका को ससुराल से मायके आये एक दिन ही बीता था कि माँ ने उसकी एकलौती भाभी को उसके मायके भेज दिया .माँ बोली -''जब तक अलका है तुम भी अपने घर हो आओ .तुम भी तो मिलना चाहती होगी अपने माता-पिता , भाई-बहन से .''  मन प्रसन्न हो गया माँ की इस सदभावना से .भैया भाभी को छोड़ने उनके मायके गए हुए थे तब माँ अलका को एक कीमती साड़ी देते हुए बोली-''ले रख ! तेरी भाभी यहाँ होती तो लगा देती टोक .इसीलिए जिद करके भेजा है उसे .अब दिल खोलकर अपनी भड़ास निकाल सकती हूँ .क्या बताऊँ तेरा भैया भी हर बात में बीवी का गुलाम बन चुका है ...''और भी न जाने दिल की कितनी भड़ास माँ ने भैया-भाभी के पीछे कहकर अपना दिल हल्का कर लिया और मेरा दिल इस बोझ से दबा जा रहा था कि कहीं मेरी सासू माँ ने भी तो ननद जी के आते ही इसीलिए जिद कर मुझे यहाँ मायके भेजा है .''

शिखा कौशिक 'नूतन' 

8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत सुन्दर प्रस्तुति...!
    आपको सूचित करते हुए हर्ष हो रहा है कि आपकी इस प्रविष्टि की चर्चा आज सोमवार (01-07-2013) को प्रभु सुन लो गुज़ारिश : चर्चा मंच 1293 में "मयंक का कोना" पर भी है!
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. सुन्दर कथा.....

    चित्र का केप्शन हो सकता है---बेटी भी किसी की बहू है ...

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